गुण संधि – (Gun Sandhi) – Gun Sandhi Ke Udaharan – आद्गुण:, संस्कृत व्याकरण

गुण संधि – Gun Sandhi Sanskrit

Gun Sandhi Sanskrit: ‘आद्गुणः’ सूत्र द्वारा (स्वर) संहिता के विषय में अ/आ वर्ण से परे इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, लु वर्गों में से कोई वर्ण होने पर पूर्व – पर वर्गों के स्थान पर गुण संधि एकादेश (अ, ए, ओ) होता है। इनके क्रमशः

गुण संधि के 11 नियम होते हैं!

गुण  संधि के उदाहरण – (Gun Sandhi Sanskrit Examples)

(अ) अ+इ – ए

उप + इन्द्रः = उपेन्द्रः
गज + इन्द्रः = गजेन्द्रः
न + इति = नेति
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
विकल:+ इन्द्रियः = विकलेन्द्रियः
राम + इतिहासः = रामेतिहास:

(आ) आ + इ = ए

महा + इन्द्रः = महेन्द्रः
तथा + इति = तथेति
यथा + इच्छम् = यथेच्छम्
यथा + इष्ट = यथेष्ट

(इ) अ+ई = ए

गण + ईशः = गणेशः
सर्व + ईशः = सर्वेशः
सुर + ईशः = सुरेशः
दिन + ईशः = दिनेशः

(ई) आ + ई = ए

रमा + ईशः = रमेशः
गङ्गा + ईश्वरः = गङ्गेश्वरः
उमा + ईशः = उमेशः
महा + ईशः = महेशः

(उ) अ+उ = ओ

सूर्य + उदयः = सूर्योदयः
पर + उपकार:= परोपकारः
वृक्ष + उपरि = वृक्षोपरि
हित + उपदेशः= हितोपदेशः
पुरुष + उत्तमः = पुरुषोत्तमः

(ऊ) आ + उ = ओ

परीक्षा + उत्सवः = परीक्षोत्सवः
महा + उदयः = महोदयः
आ + उदकान्तम् = ओदकान्तम्
गङ्गा + उदकम् = गङ्गोदकम्

(ऋ) अ+ऊ = ओ

अत्यन्त + ऊर्ध्वम् = अत्यन्तोर्ध्वम्
एक + ऊन = एकोनः
गगन + ऊर्ध्वम् = गगनोर्ध्वम्

(ऋ) आ + ऊ = ओ

मायया + ऊर्जस्वि = माययोर्जस्वि
महा + ऊर्णम् = महोर्णम्

(ल) अ ऋ = अर्

कृष्ण + ऋद्धिः = कृष्णर्द्धिः
ग्रीष्म. + ऋतुः = ग्रीष्मतः
वसन्त + ऋतुः = वसन्ततः
राज + ऋषिः = राजर्षिः

(ए) आ+ऋ =अर्

महा + ऋषिः = महर्षिः
ब्रह्मा + ऋषिः = ब्रह्मर्षिः
महा + ऋद्धिः = महर्द्धिः

(ऐ) अ/आ ल = अल्

तव + लृकारः = तवल्कारः
मम + लृकारः = ममल्कारः
तव + लृदन्तः = तवल्दन्तः

Gun Sandhi in Sanskrit

सम्बंधित संधि:

  1. यण सन्धि – Yan Sandhi in Sanskrit
  2. अयादि सन्धि – Ayadi Sandhi in Sanskrit
  3. वृद्धि सन्धि – Vriddhi Sandhi in Sanskrit
  4. सवर्णदीर्घ सन्धि – Savarnadergh Sandhi in Sanskrit
  5. पूर्वरूप सन्धि – poorva Roop Sandhi in Sanskrit
  6. पररूप सन्धि – Pararoop Sandhi in Sanskrit

अयादि संधि – (Ayadi Sandhi) – Ayadi Sandhi Ke Udaharan – एचोऽयवायाव:, संस्कृत व्याकरण

अयादि संधि – Ayadi Sandhi Sanskrit

Ayadi Sandhi Sanskrit: “एचोऽयवायावः” सत्र द्वारा संहिता के विषय में अच (कोई भी असमान स्वर) सामने होने पर ‘एच’ (ए, ओ, ऐ, औ) के स्थान पर क्रमशः अयादि संधि (अय्, अव्, आय, आव्) आदेश होते हैं। यथा –

अयादि संधि के चार नियम होते हैं!

अयादि संधि के उदाहरण – (Ayadi Sandhi Sanskrit Examples)

(अ) ए + अच् = अय् + अच्

ने + अनम् = नयनम्
कवे + ए = कवये
हरे + ए = हरये
शे + अनम् = शयनम्
हरे + एहि = हरयेहि
चे + अनम् = चयनम्

(आ)

ओ + अच् = अव+अच्
पो + अनः = पवनः
भो + अनम् = भवनम्
विष्णो + इह = विष्णविह

(इ) ऐ + अच् = आय् + अच्

गै + अकः = गायक:
नै + अकः = नायकः
सै + अकः = सायकः
गै + अन्ति = गायन्ति

(ई) औ + अच् = आव् + अच्

भौ + उकः = भावुकः
पौ + अकः = पावकः
असौ + अयम् = असावयम्
अग्नौ + इह = अग्नाविह
भौ + अयति = भावयति
इन्दौ + उदिते = इन्दावुदिते।

Ayadi Sandhi in Sanskrit

सम्बंधित संधि:

  1. यण सन्धि – Yan Sandhi in Sanskrit
  2. गुण सन्धि – Gun Sandhi in Sanskrit
  3. वृद्धि सन्धि – Vriddhi Sandhi in Sanskrit
  4. सवर्णदीर्घ सन्धि – Savarnadergh Sandhi in Sanskrit
  5. पूर्वरूप सन्धि – poorva Roop Sandhi in Sanskrit
  6. पररूप सन्धि – Pararoop Sandhi in Sanskrit

यण् संधि (Yan Sandhi) – Yan Sandhi Ke Udaharan – इकोऽयणचि, संस्कृत व्याकरण

यण् संधि – Yan Sandhi Sanskrit

Yan Sandhi in Sanskrit:‘इको यणचि’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अच् (स्वर) परे रहने पर ‘इक्’ के स्थान पर ‘यण’ होता है। माहेश्वर सूत्र के अनुसार ‘इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ , लु’_ये वर्ण ‘इक्’ वर्ण कहलाते हैं। इसी प्रकार ‘य, व, र, ल’—इन वर्गों को ‘यण’ वर्ण कहते हैं। अतः इक् वर्गों के स्थान पर जहाँ क्रमशः यण वर्ण होते हैं, वहाँ ‘यण् सन्धि‘ होती है। इनके क्रमशः

यण् संधि के चार नियम होते हैं!

यण संधि के उदाहरण – (Yan Sandhi Sanskrit Examples)

(अ) इ/ई + अच् = य् + अच्

अति + उत्तमः = अत्युत्तमः
इति + अत्र = इत्यत्र
इति + आदि = इत्यादि
इति + अलम् = इत्यलम्
यदि + अपि = यद्यपि
प्रति + एकम् = प्रत्येकम्
नदी + उदकम् = नधुदकम्
स्त्री + उत्सवः = स्त्र्युत्सवः
सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः

(आ) उ/ऊ + अच् – व + अच्

अनु + अयः = अन्वयः
सु + आगतम् = स्वागतम्
मधु + अरिः = मध्वरिः
गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः
साधु + इति = साध्विति
वधू + आगमः = वध्वागमः
अनु + आगच्छति = अन्वागच्छति

(इ) ऋ/ऋ + अच् = अच्

पितृ + ए = पित्रे
मातृ + आदेशः = मात्रादेशः
धातृ + अंशः = धात्रंशः
मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
भ्रातृ + उपदेशः = भ्रात्रुपदेशः
मातृ + अनुमतिः = मात्रनुमतिः
सवितृ + उदयः = सवित्रुदयः
पितृ + आकृतिः = पित्राकृतिः

(ई) लु+अच् – लु+अच्।

लृ + आकृतिः = लाकृतिः
ल + अनुबन्धः = लनुबन्धः
लृ + आकारः = लाकारः
लृ + आदेशः = लादेशः

Yan Sandhi in Sanskrit 1
Yan Sandhi in Sanskrit 2

सम्बंधित संधि:

  1. अयादि सन्धि – Ayadi Sandhi in Sanskrit
  2. गुण सन्धि – Gun Sandhi in Sanskrit
  3. वृद्धि सन्धि – Vriddhi Sandhi in Sanskrit
  4. सवर्णदीर्घ सन्धि – Savarnadergh Sandhi in Sanskrit
  5. पूर्वरूप सन्धि – poorva Roop Sandhi in Sanskrit
  6. पररूप सन्धि – Pararoop Sandhi in Sanskrit

स्वर संधि – अच् संधि – संस्कृत व्याकरण, (Swar Sandhi – Ach Sandhi – Sanskrit Vyakaran)

स्वर संधि – अच् संधि – संस्कृत व्याकरण (Swar Sandhi – Ach Sandhi – Sanskrit Vyakaran)

स्वर संधि - अच् संधि - संस्कृत व्याकरण, (Swar Sandhi - Ach Sandhi - Sanskrit Vyakaran)

जब दो स्वरों का सन्धान अथवा मेल होता है, तब वह सन्धान स्वर – सन्धि या अच् सन्धि कही जाती है। यहाँ अच् – सन्धि में स्वर के स्थान पर आदेश होता है। स्वर – सन्धियाँ आठ प्रकार की होती हैं। जैसे –
Sandhi in Sanskrit संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण - (संस्कृत व्याकरण) 1Sandhi in Sanskrit संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण - (संस्कृत व्याकरण) 2

स्वर सन्धि मे सन्धियाँ 7 प्रकार की होती हैंस्वर संधि – अच् संधि-

  1. यण – सन्धि
  2. अयादि सन्धि
  3. गुण – सन्धि
  4. वृद्धि सन्धि
  5. सवर्णदीर्घ सन्धि
  6. पूर्वरूप सन्धि
  7. पररूप सन्धि

1. यण – सन्धि

‘इको यणचि’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अच् (स्वर) परे रहने पर ‘इक्’ के स्थान पर ‘यण’ होता है। माहेश्वर सूत्र के अनुसार ‘इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ , लु’_ये वर्ण ‘इक्’ वर्ण कहलाते हैं। इसी प्रकार ‘य, व, र, ल’—इन वर्गों को ‘यण’ वर्ण कहते हैं। अतः इक् वर्गों के स्थान पर जहाँ क्रमशः यण वर्ण होते हैं, वहाँ ‘यण् सन्धि’ होती है। इनके क्रमशः

उदाहरण-

(अ) इ/ई + अच् = य् + अच्

  • अति + उत्तमः = अत्युत्तमः
  • इति + अत्र = इत्यत्र
  • इति + आदि = इत्यादि
  • इति + अलम् = इत्यलम्
  • यदि + अपि = यद्यपि
  • प्रति + एकम् = प्रत्येकम्
  • नदी + उदकम् = नधुदकम्
  • स्त्री + उत्सवः = स्त्र्युत्सवः
  • सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः

2. अयादि सन्धि

“एचोऽयवायावः” सत्र द्वारा संहिता के विषय में अच (कोई भी असमान स्वर) सामने होने पर ‘एच’ (ए, ओ, ऐ, औ) के स्थान पर क्रमशः अयादि (अय्, अव्, आय, आव्) आदेश होते हैं। यथा –

(अ) ए + अच् = अय् + अच्

  • ने + अनम् = नयनम्
  • कवे + ए = कवये
  • हरे + ए = हरये
  • शे + अनम् = शयनम्
  • हरे + एहि = हरयेहि
  • चे + अनम् = चयनम्

3. गुण – सन्धि

‘आद्गुणः’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अ/आ वर्ण से परे इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, लु वर्गों में से कोई वर्ण होने पर पूर्व – पर वर्गों के स्थान पर गुण एकादेश (अ, ए, ओ) होता है। इनके क्रमशः

उदाहर-

(अ) अ+इ – ए

  • उप + इन्द्रः = उपेन्द्रः
  • गज + इन्द्रः = गजेन्द्रः
  • न + इति = नेति
  • देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
  • विकल:+ इन्द्रियः = विकलेन्द्रियः
  • राम + इतिहासः = रामेतिहास:

4. वृद्धि सन्धि

‘वृद्धिरेचि’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अ/आ वर्ण से परे ‘एच’ (ए, ओ, ऐ, औ) होने पर पूर्व एवं पर के स्थान पर वृद्धि एकादेश (आ, ऐ,
औ) होते हैं। इनके क्रमशः

उदाहरण –

(अ) अ/आ + ए = ऐ

  • जन + एकता = जनैकता
  • एक + एकः = एकैकः
  • अत्र + एकमत्यम् = अत्रैकमत्यम्
  • राज + एषः राजैषः
  • बाला + एषा = बालैषा
  • तथा + एव = तथैव
  • गंगा + एषा = गंगैषा
  • सदा + एव = सदैव

5. सवर्णदीर्घ सन्धि

‘अकः सवर्णे दीर्घः’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में ‘अक्’ प्रत्याहार (अ, इ, उ, ऋ, लु) से परे सवर्ण अच् (स्वर) होने पर पूर्व – पर वर्णों
के स्थान पर दीर्घ एकादेश होता है। इनके क्रमशः उदाहरण यथा –

(अ) अ/आ + अ/आ = आ

  • दैत्य + अरिः = दैत्यारिः
  • शश + अङ्कः = शशाङ्क:
  • गौर + अङ्गः = गौराङ्गः
  • विद्या + आलयः = विद्यालयः
  • रत्न + आकरः = रत्नाकरः
  • यथा + अर्थः = यथार्थः
  • विद्या + अभ्यासः = विद्याभ्यासः
  • विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

6. पूर्वरूप सन्धि

‘एङः पदान्तादति’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में यदि पद के अन्त में एङ् (ए, ओ) आए और उसके बाद ह्रस्व ‘अ’ आए तो पूर्व एवं पर वर्गों के स्थान पर पूर्वरूप एकादेश होता है, तथा अकार की स्पष्ट प्रतीति के लिए अवग्रह चिह्न (ऽ) हो जाता है। इनके क्रमशः उदाहरण यथा –

(अ) ए + अ = ए

  • अन्ते + अपि = अन्तेऽपि
  • ते + अत्र = तेऽत्र
  • हरे + अव = हरेऽव
  • मे + अन्तिके = मेऽन्तिके
  • दीर्घ + अहनि = दीर्घऽहनि

(आ) ओ + अ = ओ

  • विष्णो + अत्र = विष्णोऽत्र
  • सो + अवदत् = सोऽवदत्
  • रामो + अहसत् = रामोऽहसत्
  • को + अपि = कोऽपि

7. पररूप सन्धि

(i) ‘एङि पररूपम्’ सूत्र द्वारा यदि अकारान्त उपसर्ग के बाद एङ् (ए, ओ) स्वर जिसके प्रारम्भ में हो ऐसी धातु आए तो दोनों स्वरों (पूर्व – पर) के स्थान पर पररूप एकादेश अर्थात् क्रमशः ए और औ हो जाता है। क्रमशः उदाहरण यथा –

(अ) अ + ए = ए

  • प्र + एजते = प्रेजते

Sandhi in Sanskrit संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण – (संस्कृत व्याकरण)

Sandhi – Sanskrit Vyakaran

Sandhi in Sanskrit संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण - (संस्कृत व्याकरण)

[नोट – संस्कृत की नवीन पाठ्यपुस्तक ‘स्पन्दना’ में व्याकरण के अन्तर्गत सन्धि, समास, कारक आदि की विषय – वस्तु संस्कृत में दी गई है। यहाँ छात्रों की सुविधा एवं समझने की दृष्टि से पाठ्यपुस्तक की विषय – वस्तु को हिन्दी – माध्यम से प्रस्तुत किया गया है तथा परीक्षा की दृष्टि से नवीन पाठ्यक्रमानुसार अभ्यासार्थ प्रश्नोत्तर संस्कृत माध्यम से दिये जा रहे हैं।]

सन्धिः सन्धि शब्द की व्युत्पत्ति – सम् उपसर्ग पूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से “उपसर्गे धोः किः” सूत्र से ‘कि’ प्रत्यय करने पर ‘सन्धि’ शब्द निष्पन्न होता है।

सन्धि की परिभाषा – वर्ण सन्धान को सन्धि कहते हैं। अर्थात् दो वर्गों के परस्पर के मेल अथवा सन्धान को सन्धि कहा जाता है।

पाणिनीय परिभाषा – “परः सन्निकर्षः संहिता” अर्थात् वर्णों की अत्यधिक निकटता को संहिता कहा जाता है। जैसे—’सुधी + उपास्य’ यहाँ ‘ई’ तथा ‘उ’ वर्गों में अत्यन्त निकटता है। इसी प्रकार की वर्गों की निकटता को संस्कृत – व्याकरण में संहिता कहा जाता है। संहिता के विषय में ही सन्धि – कार्य होने पर ‘सुध्युपास्य’ शब्द की सिद्धि होती है।

सन्धि के भेद – संस्कृत व्याकरण में सन्धि के तीन भेद होते हैं। वे इस प्रकार हैं –

  1. स्वर सन्धि
  2. व्यजन सन्धि
  3. विसर्ग सन्धि

1. स्वर सन्धि – अच् संधि

जब दो स्वरों का सन्धान अथवा मेल होता है, तब वह सन्धान स्वर – सन्धि या अच् सन्धि कही जाती है। यहाँ अच् – सन्धि में स्वर के स्थान पर आदेश होता है। स्वर – सन्धियाँ आठ प्रकार की होती हैं। जैसे –

  • अ + अ = आ – पुष्प + अवली = पुष्पावली
  • अ + आ = आ – हिम + आलय = हिमालय
  • आ + अ = आ – माया + अधीन = मायाधीन
  • आ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय
  • इ + इ = ई – कवि + इच्छा = कवीच्छा
  • इ + ई = ई – हरी + ईश = हरीश
  • इ + इ = ई – मही + इन्द्र = महीन्द्र
  • इ + ई = ई – नदी + ईश = नदीश
  • उ + उ = ऊ – सु + उक्ति = सूक्ति
  • उ + ऊ = ऊ – सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि
  • ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव
  • ऊ + ऊ = ऊ – भू + ऊर्ध्व = भूल
  • ऋ+ ऋ = ऋ – मात + ऋण = मातण

स्वर सन्धि मे सन्धियाँ 7 प्रकार की होती हैं-

  1. यण – सन्धि
  2. अयादि सन्धि
  3. गुण – सन्धि
  4. वृद्धि सन्धि
  5. सवर्णदीर्घ सन्धि
  6. पूर्वरूप सन्धि
  7. पररूप सन्धि

2. व्यजन सन्धि – हल् संधि

व्यंजन के साथ व्यंजन या स्वर का मेल होने से जो विकार होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं। व्यंजन सन्धि के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-

यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क्, च्, ट्, त्, के आगे कोई स्वर अथवा किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण अथवा य, र, ल, व आए तो क.च.ट. त. पके स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा अक्षर अर्थात क के स्थान पर ग, च के स्थान पर ज, ट के स्थान पर ड, त के स्थान पर द और प के स्थान पर ‘ब’ हो जाता है जैसे-

  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • वाक् + ईश = वागीश
  • अच् + अन्त = अजन्त
  • षट् + आनन = षडानन
  • सत् + आचार = सदाचार
  • सुप् + सन्त = सुबन्त
  • उत् + घाटन = उद्घाटन
  • तत् + रूप = तद्रूप

व्यंजन संधि मे सन्धियाँ 6 प्रकार की होती हैं-

  1. श्चत्व सन्धि
  2. ष्टुत्व सन्धि
  3. जश्त्व सन्धि
  4. चर्व सन्धिः
  5. अनुस्वार
  6. परसवर्ण सन्धिः

2. विसर्ग सन्धि

जब विसर्ग के स्थान पर कोई भी परिवर्तन होता है, तब उसे विसर्ग – सन्धि कहा जाता है। विसर्गों का प्रयोग संस्कृत को छोड़कर संसार की किसी भी भाषा में नहीं होता है। हिन्दी में भी विसर्गों का प्रयोग नहीं के बराबर होता है। कुछ इने-गिने विसर्गयुक्त शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं;

जैसे-

  • अत:, पुनः, प्रायः, शनैः शनैः आदि।

हिन्दी में मनः, तेजः, आयुः, हरिः के स्थान पर मन, तेज, आयु, हरि शब्द चलते हैं, इसलिए यहाँ विसर्ग सन्धि का प्रश्न ही नहीं उठता। फिर भी हिन्दी पर संस्कृत का सबसे अधिक प्रभाव है। संस्कृत के अधिकांश विधि निषेध हिन्दी में प्रचलित हैं। विसर्ग सन्धि के ज्ञान के अभाव में हम वर्तनी की अशुद्धियों से मुक्त नहीं हो सकते। अत: इसका ज्ञान होना आवश्यक है।

  • निः + शंक = निश्शंक
  • दुः + शासन = दुश्शासन
  • निः + सन्देह = निस्सन्देह
  • नि: + संग = निस्संग
  • निः + शब्द = निश्शब्द
  • निः + स्वार्थ = निस्स्वार्थ

विसर्ग – संधि मे सन्धियाँ 4 प्रकार की होती हैं-

  1. सत्व सन्धि
  2. उत्व सन्धि
  3. रुत्व सन्धि
  4. लोप सन्धि