श्चुत संधि – स्तो श्चुनाश्चु (Shchut Sandhi) – Shchut Sandhi ke Udaharan – (व्यंजन संधि – हल् संधि)

श्चुत संधि - Shchut Sandhi in Sanskrit

श्चुत्व संधि (Shchut Sandhi Sanskrit) – स्तो श्चुनाश्चु

Shchut Sandhi Sanskrit:श्चत्व सन्धि “स्तोः श्चुना श्चः” सूत्र से जब सकार और तवर्ग (व्यंजन) (स, त्, थ्, द्, ध्, न्) वर्गों के पहले अथवा बाद में शकार और चवर्ग (श्, च्, छ्, ज, झ्, ञ्) वर्ण आते हैं, तब सकार एवं तवर्ग के स्थान पर शकार एवं चवर्ग वर्ण क्रमशः होते हैं। अर्थात् स्, त्, थ्, द्, ध्, न् के स्थान पर क्रमशः श्, च, छ, ज, झ, ञ् वर्ण होते हैं। यथा –

श्चुत संधि के उदाहरण – (Yan Sandhi Sanskrit Examples)

  • सत + चित = सच्चित्
  • रामस + चिनोति = रामश्चिनोति
  • हरिस् + शेते = हरिश्शेते
  • शाङ्गिन + जय = शाङ्गिञ्जय
  • रामस् + च = रामश्च
  • कस् + चित् = कश्चित्
  • उद् + ज्वलः = उज्ज्वलः

Shchut Sandhi in Sanskrit

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पररूप संधि – (Pararoop Sandhi) – Pararoop Sandhi Ke Udaharan – एडि पररूपम्, संस्कृत व्याकरण

पररूप संधि – Pararoop Sandhi in sanskrit

(i) ‘एङि पररूपम्’ सूत्र द्वारा यदि अकारान्त उपसर्ग के बाद एङ् (स्वर) (ए, ओ) स्वर जिसके प्रारम्भ में हो ऐसी धातु आए तो दोनों स्वरों (पूर्व – पर) के स्थान पर पररूप संधि एकादेश अर्थात् क्रमशः ए और औ हो जाता है।

पररूप संधि के नियम

पररूप संधि के उदाहरण – (Yan Sandhi Sanskrit Examples)

(अ) अ + ए = ए

प्र + एजते = प्रेजते

(आ) अ + ओ = ओ

उप + ओषति = उपोषति

(ii) ‘शकन्ध्वादिषु पररूपं वाच्यम्’ इस वार्तिक से शकन्धु – आदि शब्दों में टिभाग का पररूपरकादेश होता है। उदाहरण यथा

(अ) शक + अन्धुः

शक् अ (टिभागः) + अन्धुः = शक् अन्धुः = शकन्धुः
मनस् + ईषा = मन् अस् (टिभागः) + ईषा = मन् + ईषा = मनीषा

(आ) कर्क + अन्धुः = कर्क्

अ + अन्धु = कर्कन्धुः।

(इ) कुल + अटा = कुल्

अ + अटा = कुलटा।

(ई) पतत् + अञ्जलिः = पत्

अत् + अञ्जलिः = पतञ्जलिः।

Pararoop Sandhi in Sanskrit

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  2. अयादि सन्धि – Ayadi Sandhi in Sanskrit
  3. गुण सन्धि – Gun Sandhi in Sanskrit
  4. वृद्धि सन्धि – Vriddhi Sandhi in Sanskrit
  5. सवर्णदीर्घ सन्धि – Savarnadergh Sandhi in Sanskrit
  6. पूर्वरूप सन्धि – poorva Roop Sandhi in Sanskrit

पूर्वरूप संधि – (poorva Roop Sandhi) – Poorav Roop Sandhi Ke Udaharan – एडः पदान्तादति, संस्कृत व्याकरण

पूर्वरूप संधि – Poorva Roop Sandhi Sanskrit

‘एङः पदान्तादति’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में यदि पद के अन्त में एङ् (ए, ओ) (स्वर) आए और उसके बाद ह्रस्व ‘अ’ आए तो पूर्व एवं पर वर्गों के स्थान पर पूर्वरूप संधि एकादेश होता है, तथा अकार की स्पष्ट प्रतीति के लिए अवग्रह चिह्न (ऽ) हो जाता है।

पूर्वरूप संधि के नियम

इनके क्रमशः पूर्वरूप संधि

पूर्वरूप संधि के उदाहरण – (Poorva Roop Sandhi Sanskrit Examples)

(अ) ए + अ = ए

अन्ते + अपि = अन्तेऽपि
ते + अत्र = तेऽत्र
हरे + अव = हरेऽव
मे + अन्तिके = मेऽन्तिके
दीर्घ + अहनि = दीर्घऽहनि

(आ) ओ + अ = ओ

विष्णो + अत्र = विष्णोऽत्र
सो + अवदत् = सोऽवदत्
रामो + अहसत् = रामोऽहसत्
को + अपि = कोऽपि

poorva Roop Sandhi in Sanskrit

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सवर्णदीर्घ सन्धि – (Savarnadergh Sandhi) – Savarnadergh Sandhi Ke Udaharan – संस्कृत व्याकरण

सवर्णदीर्घ सन्धि – Savarnadergh Sandhi Sanskrit

‘अकः सवर्णे दीर्घः’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में ‘अक्’ प्रत्याहार (अ, इ, उ, ऋ, लु) से परे सवर्ण अच् (स्वर) होने पर पूर्व – पर वर्णों के स्थान पर दीर्घ सन्धि एकादेश होता है। (स्वर) इनके क्रमशः

सवर्णदीर्घ सन्धि के चार नियम होते हैं!

सवर्णदीर्घ संधि के उदाहरण – (Savarnadergh Sandhi Sanskrit Examples)

(अ) अ/आ + अ/आ = आ

दैत्य + अरिः = दैत्यारिः
शश + अङ्कः = शशाङ्क:
गौर + अङ्गः = गौराङ्गः
विद्या + आलयः = विद्यालयः
रत्न + आकरः = रत्नाकरः
यथा + अर्थः = यथार्थः
विद्या + अभ्यासः = विद्याभ्यासः
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

(आ) इ/ई + इ/ई = ई

श्री + ईशः = श्रीशः
इति + इव = इतीव
अति + इव = अतीव
रवि + इन्द्रः = रवीन्द्रः
परि + ईक्षा = परीक्षाः
गौरी + ईशः = गौरीशः
महती + इच्छा = महतीच्छा

(इ) उ/ऊ+उ/ऊ = ऊ

विष्णु + उदयः = विष्णूदयः
भानु + ऊष्मा = भानूष्मा
गुरु + उपदेशः = गुरुपदेशः
वधु + उत्सवः = वधूत्सवः
भानु + उदयः = भानूदयः
मधु + उत्तमम् = मधूत्तमम्

(ई) ऋ/ऋ + ऋ /ऋ = ऋ

होतृ + ऋकारः = होतृकारः
पितृ + ऋणम् = पितृणम्
कर्तृ + ऋणि = कर्तृणि
कर्तृ + ऋद्धि = कर्तृद्धिः

Savarnadergh Sandhi in Sanskrit

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वृद्धि संधि – (Vriddhi Sandhi) – Vriddhi Sandhi Ke Udaharan – ब्रध्दिरेचि, संस्कृत व्याकरण

वृद्धि संधि – Vriddhi Sandhi Sanskrit

‘वृद्धिरेचि’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अ/आ वर्ण से परे ‘एच’ (ए, ओ, ऐ, औ) (स्वर) होने पर पूर्व एवं पर के स्थान पर वृद्धि संधि एकादेश (आ, ऐ, औ) होते हैं। इनके क्रमशः

वृद्धि संधि के पांच नियम होते हैं!

वृद्धि संधि के उदाहरण – (Vriddhi Sandhi Sanskrit Examples)

(अ) अ/आ + ए = ऐ

जन + एकता = जनैकता
एक + एकः = एकैकः
अत्र + एकमत्यम् = अत्रैकमत्यम्
राज + एषः राजैषः
बाला + एषा = बालैषा
तथा + एव = तथैव
गंगा + एषा = गंगैषा
सदा + एव = सदैव

(आ) अ/आ + ओ = औ

वन + ओषधिः = वनौषधिः
जल + ओघः = जलौघः
गंगा + ओघः = गंगौघः
महा + ओजसः = महौजसः
बिम्ब + ओष्ठी = बिम्बौष्ठी

(इ) अ/आ + ऐ = ऐ

देव + ऐश्वर्यम् = देवैश्वर्यम्
दीर्घ + ऐकारः = दीधैंकारः
नृप + ऐश्वर्यम् = नृपैश्वर्यम्
महा + ऐश्वर्यम् = महैश्वर्यम्

(ई) अ/आ + औ = औ

कृष्ण + औत्कण्ठ्यम् = कृष्णौत्कण्ठ्यम्
तव + औदार्यम् = तवौदार्यम्
जन + औचित्यम् = जनौचित्यम्
राम + औत्सुक्यम् = रामौत्सुक्यम्
महा + औषधिः = महौषधिः
मम + औदासीन्यम् = ममौदासीन्यम्

(उ) अ/आ+ऋ/ऋ = आर्

प्र + ऋच्छति = प्रार्छति
कम्बल + ऋणम् = कम्बलार्णम्
दश + ऋणः = दशार्णः
सुख + ऋतः = सुखार्तः
वसन + ऋणम् = वसनार्णम्

Vriddhi Sandhi in Sanskrit

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