ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – साखी [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय॥
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि॥
कबीर के गुरु के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
कबीरदास ने गुरु का स्थान ईश्वर से श्रेष्ठ माना है। कबीर कहते है जब गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों एक साथ खडे हो तो गुरु के श्रीचरणों मे शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रुपी प्रसाद से गोविंद का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गुरु ज्ञान प्रदान करते हैं, सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं, मोह-माया से मुक्त कराते हैं।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय॥
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि॥
कबीर के अनुसार कौन परमात्मा से मिलने का रास्ता दिखाता है?

उत्तर :
कबीर के अनुसार गुरु परमात्मा से मिलने का रास्ता दिखाता है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय॥
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि॥
‘जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।’ – का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
इस पंक्ति द्वारा कबीर का कहते है कि जब तक यह मानता था कि ‘मैं हूँ’, तब तक मेरे सामने हरि नहीं थे। और अब हरि आ प्रगटे, तो मैं नहीं रहा। अँधेरा और उजाला एक साथ, एक ही समय, कैसे रह सकते हैं? जब तक मनुष्य में अज्ञान रुपी अंधकार छाया है वह ईश्वर को नहीं पा सकता अर्थात् अहंकार और ईश्वर का साथ-साथ रहना नामुमकिन है। यह भावना दूर होते ही वह ईश्वर को पा लेता है।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय॥
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि॥
यहाँ पर ‘मैं’ और ‘हरि’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?

उत्तर:
यहाँ पर ‘मैं’ और ‘हरि’ शब्द का प्रयोग क्रमशः अहंकार और परमात्मा के लिए किया है।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।
शब्दों के अर्थ लिखिए –
पाहन, पहार, मसि, बनराय

उत्तर:

शब्दअर्थ
पाहनपत्थर
पहारपहाड़
मसिस्याही
बनरायवन

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।
‘पाहन पूजे हरि मिले’ – दोहे का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
इस दोहे द्वारा कवि ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य आडंबर का विरोध किया है। कबीर मूर्ति पूजा के स्थान पर घर की चक्की को पूजने कहते है जिससे अन्न पीसकर खाते है।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।
“ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय” – पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
शप्रस्तुत पंक्ति में कबीरदास ने मुसलमानों के धार्मिक आडंबर पर व्यंग्य किया है। एक मौलवी कंकड़-पत्थर जोड़कर मस्जिद बना लेता है और रोज़ सुबह उस पर चढ़कर ज़ोर-ज़ोर से बाँग (अजान) देकर अपने ईश्वर को पुकारता है जैसे कि वह बहरा हो। कबीरदास शांत मन से भक्ति करने के लिए कहते हैं।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।
कबीर की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर:
कबीर साधु-सन्यासियों की संगति में रहते थे। इस कारण उनकी भाषा में अनेक भाषाओँ तथा बोलियों के शब्द पाए जाते हैं। कबीर की भाषा में भोजपुरी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, उर्दू और फ़ारसी के शब्द घुल-मिल गए हैं। अत: विद्‌वानों ने उनकी भाषा को सधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी कहा है।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – काकी

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
उस दिन बड़े सबेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा घर भर में कुहराम मचा हुआ है।
बड़े सबेरे किसकी नींद किस कारणवश खुली?

उत्तर:
बड़े सबेरे श्यामू की नींद घर में मचे कोहराम के कारण खुली।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
उस दिन बड़े सबेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा घर भर में कुहराम मचा हुआ है।
श्यामू ने उठने के बाद क्या देखा?

उत्तर :
उस दिन बड़े सबेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा कि उसके घर में कुहराम मचा हुआ है उसकी माँ ऊपर से नीचे तक एक कपड़ा ओढ़े हुए कंबल पर भूमि शयन कर रही है और घर के सब लोग उसे, घेरकर बैठे बड़े करुण ढंग से विलाप कर रहे हैं।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
उस दिन बड़े सबेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा घर भर में कुहराम मचा हुआ है।
श्यामू ने उपद्रव क्यों मचाया?

उत्तर:
उस दिन बड़े सबेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा कि उसके घर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी माँ ऊपर से नीचे तक एक कपड़ा ओढ़े हुए कंबल पर भूमि शयन कर रही है और घर के सब लोग उसे, घेरकर बैठे बड़े करुण ढंग से विलाप कर रहे हैं। उसके बाद जब उसकी माँ की श्मशान ले जाने के लिए ले जाने लगे तो श्यामू ने अपनी माँ को रोकने के लिए बड़ा उपद्रव मचाया।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
उस दिन बड़े सबेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा घर भर में कुहराम मचा हुआ है।
श्यामू को सत्य का पता किस प्रकार चला?

उत्तर:
श्यामू अबोध बालक होने के कारण बड़े बुद्धिमान गुरुजनों ने उससे उसकी माँ की मृत्यु की बात यह कहकर छिपाई कि उसकी माँ मामा के यहाँ गई है परंतु जैसा कि कहा जाता है असत्य के आवरण में सत्य बहुत समय तक छिपा नहीं रह सकता ठीक उसी प्रकार श्यामू जब अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेलने जाता तो उनके मुख से यह बात उजागर हो गई कि उसकी माँ राम के यहाँ गई है और इस तरह श्यामू को पता चल ही गया कि उसकी माँ की मृत्यु हो गई है।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वर्षा के अनंतर एक दो दिन में ही पृथ्वी के ऊपर का पानी तो अगोचर हो जाता है, परंतु भीतर-ही-भीतर उसकी आर्द्रता जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है, वैसे ही उसके अंतस्तल में वह शोक जाकर बस गया था।
उपर्युक्त कथन किससे संबंधित है? उसका परिचय दें।

उत्तर:
उपर्युक्त कथन इस कहानी के मुख्य पात्र श्यामू से संबंधित है। वह अपनी माँ से बहुत प्यार करता है। वह इतना अबोध बालक है कि सत्य और असत्य के ज्ञान से अपरिचित होने के कारण अपनी माँ की मृत्यु की बात भी नहीं समझ पाता। उसे लगता है उसकी माँ ईश्वर के पास गई है जिसे वह पतंग की डोर के सहारे नीचे ला सकता है।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वर्षा के अनंतर एक दो दिन में ही पृथ्वी के ऊपर का पानी तो अगोचर हो जाता है, परंतु भीतर-ही-भीतर उसकी आर्द्रता जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है, वैसे ही उसके अंतस्तल में वह शोक जाकर बस गया था।
उपर्युक्त पंक्तियों का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ यह है कि श्यामू अपनी माँ की मृत्यु के बाद बहुत रोता था और उसे चुप कराने के लिए घर के बुद्‌धिमान गुरुजनों ने उसे यह विश्वास दिलाया कि उसकी माँ उसके मामा के यहाँ गई है। लेकिन आस-पास के मित्रों से उसे इस सत्य का पता चलता है कि उसकी माँ ईश्वर के पास गई है। इस प्रकार बहुत दिन तक रोते रहने के बाद उसका रुदन तो शांत हो जाता है लेकिन माँ के वियोग की पीड़ा उसके हृदय में शोक बनकर बस जाता है।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वर्षा के अनंतर एक दो दिन में ही पृथ्वी के ऊपर का पानी तो अगोचर हो जाता है, परंतु भीतर-ही-भीतर उसकी आर्द्रता जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है, वैसे ही उसके अंतस्तल में वह शोक जाकर बस गया था।
नन्हें बालक के लिए माँ का वियोग सबसे बड़ा वियोग होता है स्पष्ट करें।

उत्तर:
अबोध बालकों का सारा संसार अपनी माँ के आस-पास ही घूमता रहता है। उनके लिए माँ से बढ़कर कुछ भी नहीं होता। बालक की माँ बिना बोले ही उसकी सारी बातें समझ लेती है। साथ ही बालकों का हृदय अत्यंत कोमल, भावुक और संवेदनशील होता है और वे मातृ-वियोग की पीड़ा को सहन नहीं कर पाते हैं। और वैसे भी माँ का स्थान इस संसार में कोई नहीं ले सकता इसलिए अपनी माँ को खोना एक बालक के लिए सबसे बड़ा वियोग होता है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वर्षा के अनंतर एक दो दिन में ही पृथ्वी के ऊपर का पानी तो अगोचर हो जाता है, परंतु भीतर-ही-भीतर उसकी आर्द्रता जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है, वैसे ही उसके अंतस्तल में वह शोक जाकर बस गया था।
श्यामू अकसर शून्य में क्यों ताका करता था?

उत्तर:
अबोध बालक होने के कारण श्यामू अपनी माँ की मृत्यु की वास्तविकता से अपरिचित था। बड़ों के समझाने पर उसे लगता था कि उसकी माँ उसके मामा के पास गईं हैं लेकिन हमउम्र के बच्चों से उसे पता चलता है कि उसकी माँ राम के पास गई है। वह पहले अपनी माँ के लिए बहुत रोता था परंतु धीरे उसका रोना तो कम हो गया परंतु फिर भी उसकी माँ नहीं लौटी अत:श्यामू अकसर अपनी माँ के वियोग दुःख को सहन न कर पाने के कारण शून्य में ताका करता था।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
एक दिन उसने ऊपर आसमान में पतंग उड़ती देखी। न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा।
किसका ह्रदय क्यों खिल उठा?

उत्तर:
श्यामू अपनी माँ के जाने के बाद हमेशा दुखी रहा करता था। उसके हमउम्र बच्चों के अनुसार उसकी माँ राम के पास गई है इसलिए वह प्राय: शून्य मन से आकाश की ओर ताका करता था। एक दिन उसने ऊपर आसमान में पतंग उड़ती देखी और श्यामू ने सोचा कि पतंग की डोर को ऊपर रामजी के घर भेजकर वह अपनी माँ को वापस बुला लेगा और यही सोचकर उसका ह्रदय खिल उठा।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
एक दिन उसने ऊपर आसमान में पतंग उड़ती देखी। न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा।
श्यामू ने कौन-सी चीज किस उद्देश्य से मँगवाई थी?

उत्तर:
श्यामू ने एक दिन आसमान में एक पतंग उड़ती देखी तो उसके मन में यह विचार आया कि वह पतंग के सहारे अपनी माँ को रामजी के घर से वापस ले आएगा। इस तरह अपनी माँ को रामजी के घर से पुन:प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने भोला से पतंग और रस्सी मँगवाई।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
एक दिन उसने ऊपर आसमान में पतंग उड़ती देखी। न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा।
इस कार्य में उसकी मदद किसने की उसका परिचय दें।

उत्तर:
पश्यामू की माँ को रामजी के घर से लाने में श्यामू की मदद भोला ने की।
भोला उसका समवयस्क साथी था। वह सुखिया दासी का पुत्र था। भोला चतुर समझदार था परंतु छोटा होने के कारण डरपोक भी था इसलिए विश्वेश्वर के डाँटने पर उसने चोरी संबंधित सारी बात उगल दी। वह भी श्यामू की तरह मासूम और भावुक बालक है।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
एक दिन उसने ऊपर आसमान में पतंग उड़ती देखी। न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा।
अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्यामू ने पैसों की व्यवस्था किस प्रकार की?

उत्तर:
श्यामू अपनी माँ को रामजी के घर से लाने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पहले अपने पिता से पतंग दिलवाने की प्रार्थना करता है परंतु जब उसके पिता उसे पतंग नहीं दिलवाते हैं तो वह खूँटी पर रखे पिता के कोट से चवन्नी चुरा लेता है और भोला से कहकर पतंग और डोर की व्यवस्था करता है। इस प्रकार अपनी माँ को वापस लाने के लिए वह चोरी करने से भी नहीं हिचकिचाता।

प्रश्न घ-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वही खड़े हो गए उन्होंने फटी पतंग उठाकर देखी उस चिपके हुए कागज़ पर लिखा हुआ था-काकी।
भोला ने श्यामू की योजना में क्या कमी बताई?

उत्तर:
भोला श्यामू से अधिक समझदार था। उसे श्यामू का उसकी माँ को लाने का सुझाव पसंद तो आया परंतु भोला ने श्यामू को बताया कि पतंग की डोर पतली होने के कारण टूट सकती है। इस कार्य के लिए उन्हें मोटी रस्सी की आवश्यकता होगी। इस प्रकार भोला ने श्यामू की योजना में डोर के पतले होने की कमी बताई।

प्रश्न घ-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वही खड़े हो गए उन्होंने फटी पतंग उठाकर देखी उस चिपके हुए कागज़ पर लिखा हुआ था-काकी।
श्यामू को रात भर नींद क्यों नहीं आई?

उत्तर:
भोला द्वारा जब उसकी माँ को लाने की योजना में मोटी रस्सी की कमी बताई गई तो उसके सामने अब मोटी रस्सी लाने की कठिनता आ गई क्योंकि रस्सी खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे और घर में भी ऐसा कोई नहीं था जो इस कार्य में उसकी मदद करता और यही सब सोचकर श्यामू को चिंता के मारे रात-भर नींद नहीं आई।

प्रश्न घ-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वही खड़े हो गए उन्होंने फटी पतंग उठाकर देखी उस चिपके हुए कागज़ पर लिखा हुआ था-काकी।
श्यामू पतंग पर किससे, क्या लिखवाता है और क्यों?

उत्तर:
श्यामू लिखना नहीं जानता था इसलिए उसने जवाहर भैया से काकी लिखवाने में मदद माँगी। काकी लिखवाने का श्यामू का यह उद्देश्य था कि यदि चिट पर काकी लिखा होगा तो पतंग सीधे उसकी काकी के पास ही पहुँच जाएगी।

प्रश्न घ-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वही खड़े हो गए उन्होंने फटी पतंग उठाकर देखी उस चिपके हुए कागज़ पर लिखा हुआ था-काकी।
विश्वेश्वर हतबुद्‌धि होकर क्यों खड़े रह गए?

उत्तर:
विश्वेश्वर अपनी कोट की जेब से एक रूपए की चोरी का पता लगाने जब भोला और श्यामू के पास पहुँचते हैं तो उन्हें भोला से सच्चाई का पता चलता है कि श्यामू ने ही एक रूपए की चोरी की है। इस पर वे बहुत अधिक क्रोधित हो उठते है और क्रोधवश श्यामू को धमकाने और मारने के बाद पतंग फाड़ देते हैं। लेकिन जब उन्हें भोला द्‌वारा यह पता चलता है कि श्यामू इस पतंग के द्‌वारा काकी को राम के यहाँ से नीचे लाना चाहता है, सुनकर विश्वेश्वर हतबुद्‌धि होकर वहीं खड़े रह जाते हैं।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – गिरिधर की कुंडलियाँ [कविता]

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – गिरिधर की कुंडलियाँ [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
लाठी से क्या-क्या लाभ होते हैं?

उत्तर:
लाठी संकट के समय हमारी सहायता करती है। गहरी नदी और नाले को पार करते समय मददगार साबित होती है। यदि कोई कुत्ता हमारे ऊपर झपटे तो लाठी से हम अपना बचाव कर सकते हैं। अगर हमें दुश्मन धमकाने की कोशिश करे तो लाठी के द्‌वारा हम अपना बचाव कर सकते हैं। लाठी गहराई मापने के काम आती है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
‘बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै’ – पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :
इस पंक्ति का भाव यह है कि कंबल को बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
कमरी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?

उत्तर:
कंबल (कमरी) बहुत ही सस्ते दामों में मिलता है। यह हमारे ओढ़ने तथा बिछाने के काम आता है। कंबल को बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
शब्दार्थ लिखिए – कमरी, बकुचा, मोट, दमरी

उत्तर:

शब्दअर्थ
कमरीकाला कंबल
बकुचाछोटी गठरी
मोटगठरी
दमरीदाम, मूल्य

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
‘गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय’ – पंक्ति का भावार्थ लिखिए।

उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में गिरिधर कविराय ने मनुष्य के आंतरिक गुणों की चर्चा की है। गुणी व्यक्ति को हजारों लोग स्वीकार करने को तैयार रहते हैं लेकिन बिना गुणों के समाज में उसकी कोई मह्त्ता नहीं। इसलिए व्यक्ति को अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
कौए और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि क्या स्पष्ट करते हैं?

उत्तर:
कौए और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि कहते है कि जिस प्रकार कौवा और कोयल रूप-रंग में समान होते हैं किन्तु दोनों की वाणी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है। कोयल की वाणी मधुर होने के कारण वह सबको प्रिय है। वहीं दूसरी ओर कौवा अपनी कर्कश वाणी के कारण सभी को अप्रिय है। अत: कवि कहते हैं कि बिना गुणों के समाज में व्यक्ति का कोई नहीं। इसलिए हमें अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
संसार में किस प्रकार का व्यवहार प्रचलित है?

उत्तर:
कवि कहते हैं कि संसार में बिना स्वार्थ के कोई किसी का सगा-संबंधी नहीं होता। सब अपने मतलब के लिए ही व्यवहार रखते हैं। अत:इस संसार में मतलब का व्यवहार प्रचलित है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
शब्दार्थ लिखिए –
काग, बेगरजी, विरला, सहस

उत्तर:

शब्दअर्थ
कागकौवा
बेगरजीनि:स्वार्थ
विरलाबहुत कम मिलनेवाला
सहसहजार

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
कैसे पेड़ की छाया में रहना चाहिए और कैसे पेड़ की छाया में नहीं?

उत्तर:
कवि के अनुसार हमें हमें सदैव मोटे और पुराने पेड़ों की छाया में आराम करना चाहिए क्योंकि उसके पत्ते झड़ जाने के बावज़ूद भी वह हमें शीतल छाया प्रदान करते हैं। हमें पतले पेड़ की छाया में कभी नहीं बैठना चाहिए क्योंकि वह आँधी-तूफ़ान के आने पर टूट कर हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
‘पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम। दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥’- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि जिस प्रकार नाव में पानी भरने से नाव डूबने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में हम दोनों हाथ से नाव का पानी बाहर फेंकने लगते है। ठीक वैसे ही घर में धन बढ़ जाने पर हमें दोनों हाथों से दान करना चाहिए।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
कवि कैसे स्थान पर न बैठने की सलाह देते हैं?

उत्तर:
कवि हमें किसी स्थान पर सोच समझकर बैठने की सलाह देते है वे कहते है कि हमें ऐसे स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जहाँ से किसी के द्वारा उठाए जाने का अंदेशा हो।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
शब्दार्थ लिखिए – बयारि, घाम, जर, दाय

उत्तर:

शब्दअर्थ
बयारिहवा
घामधूप
जरजड़
दायरुपया-पैसा

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – महायज्ञ का पुरस्कार

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
‘पर सब दिन न जात एक समान अकस्मात् दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।’
प्रस्तुत पाठ के आधार पर सेठ जी की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:
प्रस्तुत पाठ लेखक यशपाल द्वारा रचित है। प्रस्तुत पाठ में सेठ जी कुछ ख़ास विशेषताओं का उल्लेख किया है। सेठजी बड़े विन्रम और उदार थे। सेठ जी इतने बड़े धर्मपरायण थे कि कोई साधू-संत उनके द्वार से निराश न लौटता, भरपेट भोजन पाता। उनके भंडार का द्वार हमेशा सबके लिए खुला रहता। उन्होंने बहुत से यज्ञ किए और दान में न जाने कितना धन दिन दुखियों में बाँट दिया था। यहाँ तक की गरीब हो जाने के बावजूद भी उन्होंने अपनी उदारता को नहीं छोड़ा और पुन:धन प्राप्ति के बाद भी ईश्वर से सद्बुद्धि ही माँगी।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
‘पर सब दिन न जात एक समान अकस्मात् दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।’
सेठजी के दुःख का कारण क्या था?

उत्तर :
सेठ जी के उदार होने के कारण कोई भी उनके द्वार से खाली नहीं जाता था परंतु अकस्मात् सेठ जी के दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा। ऐसे समय में संगी-साथियों ने भी मुँह फेर दिया और यही सेठ जी के दुःख का कारण था।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
‘पर सब दिन न जात एक समान अकस्मात् दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।’
सेठानी ने सेठ को क्या सलाह और क्यों दी?

उत्तर:
उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल का क्रय-विक्रय हुआ करता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता। जब बहुत तंगी हुई तो एक दिन सेठानी ने सेठ को सलाह दी कि क्यों न वे अपना एक यज्ञ बेच डाले। इस प्रकार बहुत अधिक गरीबी आ जाने के कारण सेठानी ने सेठ को अपना यज्ञ बेचने की सलाह दी।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
‘पर सब दिन न जात एक समान अकस्मात् दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।’
धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में क्या अफ़वाह थी?

उत्तर:
धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में यह अफ़वाह थी कि उसे कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है जिससे वह तीनों लोकों की बात जान सकती है।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह देख सेठ का दिल भर आया – ”बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
सेठ जी ने अपना यज्ञ बेचने का निर्णय क्यों लिया?

उत्तर:
सेठ जी को जब पैसों को बहुत तंगी होने लगी और सेठानी ने उन्हें यज्ञ बेचने का सुझाव दिया। सेठानी की यज्ञ बेचने की बात पर पहले सेठ बड़े दुखी हुए परंतु बाद में तंगी का विचार त्यागकर सेठ अपना एक यज्ञ बेचने के लिए तैयार हो गए।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह देख सेठ का दिल भर आया – ”बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
यज्ञ बेचने के लिए सेठ जी कहाँ गए?

उत्तर:
कुंदनपुर नाम का एक नगर था, जिसमें एक बहुत सेठ रहते थे। लोग उन्हें धन्ना सेठ कहते थे। धन की उनके पास कोई कमी न थी। विपद्ग्रस्त सेठ ने उन्हीं के हाथ एक यज्ञ बेचने का का विचार किया। इस तरह सेठ जी ने कुंदनपुर के धन्ना सेठ के पास अपना यज्ञ बेचने गए।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए :
यह देख सेठ का दिल भर आया – ”बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
सेठ जी ने कहाँ विश्राम और भोजन करने की सोची?

उत्तर:
सेठ जी बड़े तड़के उठे और कुंदनपुर की ओर चल दिए। गर्मी के दिन थे सेठ जी सोचा कि सूरज निकलने से पूर्व जितना ज्यादा रास्ता पार कर लेगें उतना ही अच्छा होगा परंतु आधा रास्ता पार करते ही थकान ने उन्हें आ घेरा। सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह देख सेठ का दिल भर आया – ”बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
सेठ जी ने अपना सारा भोजन कुत्ते को क्यों खिला दिया?

उत्तर:
सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। पोटली से लोटा-डोर निकालकर पानी खींचा और हाथ-पाँव धोए। उसके बाद एक लोटा पानी ले पेड़ के नीचे आ बैठे और खाने के लिए रोटी निकालकर तोड़ने ही वाले थे कि क्या देखते हैं एक कुत्ता हाथ भर की दूरी पर पड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण वह इतना दुर्बल हो गया कि अपनी गर्दन भी नहीं उठा पा रहा था। यह देख सेठ का दिल भर आया और उन्होंने अपना सारा भोजन धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दिया।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
”सेठ जी ! यज्ञ खरीदने के लिए हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा।”
उपर्युक्त अवतरण के वक्ता का परिचय दें।

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण की वक्ता कुंदनपुर के धन्ना सेठ की पत्नी हैं। धन्ना सेठ की पत्नी बड़ी विदुषी स्त्री थीं। उनके बारे में यह प्रचलित था कि उन्हें कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है जिसके कारण वे तीनों लोकों की बात जान लेती हैं। इसी शक्ति के बल पर वह जान लेती हैं यज्ञ बेचने वाले सेठ अत्यंत उदार, कर्तव्यपरायण और धर्मनिष्ठ हैं।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
”सेठ जी ! यज्ञ खरीदने के लिए हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा।”
श्रोता को वक्ता की किस बात पर आश्चर्य हुआ?

उत्तर:
श्रोता धन्ना सेठ की पत्नी ने जब वक्ता सेठ जी से अपना महायज्ञ बेचने की बात की तो उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि महायज्ञ की बात तो छोड़िए सेठ ने बरसों से कोई सामान्य यज्ञ भी नहीं किया था।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
”सेठ जी ! यज्ञ खरीदने के लिए हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा।”
सेठ जी धन्ना सेठ की पत्नी की बात सुनकर क्या सोचने लगे?

उत्तर:
धन्ना सेठ की पत्नी ने जब महायज्ञ की बात की तो सेठजी सोचने लगे कि इन्हें यज्ञ तो खरीदना नहीं है नाहक ही मेरी हँसी उड़ा रही हैं क्योंकि जिस महायज्ञ की वे बात कर रही है वो तो उन्होंने किया ही नहीं है।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
”सेठ जी ! यज्ञ खरीदने के लिए हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा।”
धन्ना सेठ की पत्नी ने सेठ के किस काम को महायज्ञ बताया और क्यों?

उत्तर:
धन्ना सेठ ही पत्नी के अनुसार स्वयं भूखे रहकर चार रोटियाँ किसी भूखे कुत्ते को खिलाना ही महायज्ञ है। इस तरह यज्ञ कमाने की इच्छा से धन-दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ, सच्चा यज्ञ नहीं है, निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही सच्चा यज्ञ महायज्ञ है।

प्रश्न घ-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, ”धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”
उपर्युक्त अवतरण की वक्ता का परिचय दें।

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण की वक्ता सेठ की पत्नी है। सेठ की पत्नी भी बुद्धिमत्ती स्त्री है। मुसीबत के समय अपना धैर्य न खोते हुए उसने अपने पति को अपना एक यज्ञ बेचने की सलाह दी। विपत्ति की स्थिति में वह अपने पति को ईश्वर पर विश्वास और धीरज धारण करने को कहती है। इस प्रकार सेठ की पत्नी भी कर्तव्य परायण, धीरवती, ईश्वर पर निष्ठा रखने वाली और संतोषी स्त्री थी।

प्रश्न घ-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, ”धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”
वक्ता ने अपने पति की रज मस्तक पर क्यों लगाई?

उत्तर:
सेठानी के पति जब कुंदनपुर गाँव से धन्ना सेठ के यहाँ से खाली हाथ घर लौटे तो पहले तो वे काँप उठी पर जब उसे सारी घटना की जानकारी मिली तो उनकी वेदना जाती रही। उनका ह्रदय यह देखकर उल्लसित हो गया कि विपत्ति में भी उनके पति ने अपना धर्म नहीं छोड़ा और इसी बात के लिए सेठानी ने अपने पति की रज मस्तक से लगाई।

प्रश्न घ-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, ”धीरज रखें,भगवान सब भला करेंगे।”
सेठानी भौचक्की-सी क्यों खड़ी हो गई?

उत्तर:
रात के समय सेठानी उठकर दालान में दिया जलाने आईं तो रास्ते में किसी चीज से टकराकर गिरते-गिरते बची। सँभलकर आले तक पहुँची और दिया जलाकर नीचे की ओर निगाह डाली तो देखा कि दहलीज के सहारे पत्थर ऊँचा हो गया है जिसके बीचों बीच लोहें का कुंदा लगा है। शाम तक तो वहाँ वह पत्थर बिल्कुल भी उठा नहीं था अब यह अकस्मात कैसे उठ गया? यही सब देखकर सेठानी भौचक्की-सी खड़ी हो गई।

प्रश्न घ-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, ”धीरज रखें,भगवान सब भला करेंगे।”
सेठ को धन की प्राप्ति किस प्रकार हुई?

उत्तर:
सेठानी ने जब सेठ को बुलाकर दालान में लगे लोहे कुंदे के बारे में बताया तो सेठ जी भी आश्चर्य में पड़ गए। सेठ ने कुंदे को पकड़कर खींचा तो पत्थर उठ गया और अंदर जाने के लिए सीढ़ियाँ निकल आईं। सेठ और सेठानी सीढ़ियाँ उतरने लगे कुछ सीढ़ियाँ उतरते ही इतना प्रकाश सामने आया कि उनकी आँखें चौंधियाने लगी। सेठ ने देखा वह एक विशाल तहखाना है और जवाहरातों से जगमगा रहा है। इस तरह सेठ को धन की प्राप्ति हुई।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – स्वर्ग बना सकते हं [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को।
कवि ने भूमि के लिए किस शब्द का प्रयोग किया हैं और क्यों?

उत्तर:
कवि ने भूमि के लिए ‘क्रीत दासी’ शब्द का प्रयोग किया हैं क्योंकि किसी की क्रीत (खरीदी हुई) दासी नहीं है। इस पर सबका समान रूप से अधिकार है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को।
धरती पर शांति के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर :
धरती पर शांति के लिए सभी मनुष्य को समान रूप से सुख-सुविधाएँ मिलनी आवश्यक है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को।
भीष्म पितामह युधिष्ठिर को किस नाम से बुलाते है? क्यों?

उत्तर:
भीष्म पितामह युधिष्ठिर को ‘धर्मराज’ नाम से बुलाते है क्योंकि वह सदैव न्याय का पक्ष लेता है और कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होने देता।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को।
शब्दार्थ लिखिए – क्रीत, जन्मना, समीरण, भव, मुक्त, सुलभ।

उत्तर:

शब्दअर्थ
क्रीतखरीदी हुई
जन्मनाजन्म से
समीरणवायु
भवसंसार
मुक्तस्वतंत्र
सुलभआसानी से प्राप्त

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में,
लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर,
भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं;
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
‘प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि ईश्वर ने हमारे लिए धरती पर सुख-साधनों का विशाल भंडार दिया हुआ है। सभी मनुष्य इसका उचित उपयोग करें तो यह साधन कभी भी कम नहीं पड़ सकते।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में,
लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर,
भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं;
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
मानव का विकास कब संभव होगा?

उत्तर:
कमानव के विकास के पथ पर अनेक प्रकार की मुसीबतें उसकी राह रोके खड़ी रहती है तथा विशाल पर्वत भी राह रोके खड़े रहता है। मनुष्य जब इन सब विपत्तियों को पार कर आगे बढ़ेगा तभी उसका विकास संभव होगा।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में,
लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर,
भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं;
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
किस प्रकार पल में धरती को स्वर्ग बना सकते है?

उत्तर:
ईश्वर ने हमारे लिए धरती पर सुख-साधनों का विशाल भंडार दिया हुआ है। सभी मनुष्य इसका उचित उपयोग करें तो यह साधन कभी भी कम नहीं पड़ सकते। सभी लोग सुखी
होंगे। इस प्रकार पल में धरती को स्वर्ग बना सकते है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में,
लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर,
भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं;
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
शब्दार्थ लिखिए – शमित, विकीर्ण, कोलाहल, विघ्न, चैन, पल।

उत्तर:

शब्दअर्थ
शमितशांत
विकीर्णबिखरे हुए
कोलाहलशोर
विघ्नरूकावट
चैनशांति
पलक्षण