Shanta Rasa – शान्त रस परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

Learn Hindi Grammar online with example, all the topic are described in easy way for education.

Shanta Rasa – शान्त रस परिभाषा

अभिनवगुप्त ने शान्त रस को सर्वश्रेष्ठ माना है। संसार और जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित्त में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है परिणामत: मनुष्य भौतिक तथा लौकिक वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाता है, इसी को निर्वेद कहते हैं। जो विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर शान्त रस में परिणत हो जाता है।

उदाहरण-

“सुत वनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबही ते।
अन्तहिं तोहि तजेंगे पामर! तू न तजै अबही ते।
अब नाथहिं अनुराग जाग जड़, त्यागु दुरदसा जीते।
बुझै न काम अगिनि ‘तुलसी’ कहुँ विषय भोग बहु घी ते।।”

यहाँ स्थायी भाव, निर्वेद आश्रय, सम्बोधित सांसारिक जन आलम्बन, सुत वनिता आदि अनुभाव, सुत वनितादि को छोड़ने को कहना संचारी भाव धृति, मति विमर्श आदि हैं, अत: यहाँ शान्त रस है। शास्त्रीय दृष्टि से नौ ही रस माने गए हैं लेकिन कुछ विद्वानों ने सूर और तुलसी की रचनाओं के आधार पर दो नए रसों को मान्यता प्रदान की है-वात्सल्य और भक्ति।

Leave a Comment