वर्ण विभाग – हिन्दी वर्ण, वर्णमाला, परिभाषा, भेद और उदाहरण

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वर्ण की परिभाषा – Varna In Hindi (Varn Kise Kahate Hain)

वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 1

Varna In Hindi: भाषा के द्वारा मनुष्य अपने भावों-विचारों को दूसरों के समक्ष प्रकट करता है तथा दूसरों के भावों-विचारों को समझता है। अपनी भाषा को सुरक्षित रखने और काल की सीमा से निकालकर अमर बनाने की ओर मनीषियों का ध्यान गया। वर्षों बाद मनीषियों ने यह अनुभव किया कि उनकी भाषा में जो ध्वनियाँ प्रयुक्त हो रही हैं, उनकी संख्या निश्चित है और इन ध्वनियों के योग से शब्दों का निर्माण हो सकता है। बाद में इन्हीं उच्चारित ध्वनियों के लिए लिपि में अलग-अलग चिह्न बना लिए गए, जिन्हें वर्ण कहते हैं।

हिन्दी वर्णमाला – Varna Mala In Hindi

वर्गों के समूह या समुदाय को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी में वर्गों की संख्या 45 है-
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 2

संस्कृत वर्णमाला में एक और स्वर ऋ है। इसे भी सम्मिलित कर लेने पर वर्णों की संख्या 46 हो जाती है।

इसके अतिरिक्त, हिन्दी में अँ, ड, ढ़ और अंग्रेज़ी से आगत ऑ ध्वनियाँ प्रचलित हैं। अँ अं से भिन्न है, ड ड से, ढ ढ से भिन्न है, इसी प्रकार ऑ आ से भिन्न ध्वनि है। वास्तव में इन ध्वनियों (अँ, ड, ढ, ऑ) को भी हिन्दी वर्णमाला में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इनको भी सम्मिलित कर लेने पर हिन्दी में वर्गों की संख्या 50 हो जाती है। हिन्दी वर्णमाला दो भागों में विभक्त है- स्वर और व्यंजन।

स्वर वर्ण – Swar Varna In Hindi

जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवंर से अबाध गति से निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं।

स्वर तीन प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं-
1. मूल स्वर वे स्वर जिनके उच्चारण में कम-से-कम समय लगता है, अर्थात् जिनके उच्चारण में अन्य स्वरों की सहायता नहीं लेनी पड़ती है, मूल स्वर
या ह्रस्व स्वर कहलाते हैं;

जैसे—
अ, इ, उ, ऋ।

2. सन्धि स्वर वे स्वर जिनके उच्चारण में मूल स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, सन्धि स्वर कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(i) दीर्घ स्वर वे स्वर जो सजातीय स्वरों (एक ही स्थान से बोले जाने वाले स्वर) के संयोग से निर्मित हुए हैं, दीर्घ स्वर कहलाते हैं;

जैस-
अ + अ = आ
इ + इ = ई
उ + उ = ऊ

(ii) संयुक्त स्वर वे स्वर जो विजातीय स्वरों (विभिन्न स्थानों से बोले जाने वाले स्वर) के संयोग से निर्मित हुए हैं, संयुक्त स्वर कहलाते हैं;

जैसे-
अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ

3. प्लुत स्वर वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है, प्लुत स्वर कहलाते हैं; जैसे- ‘इ’ किसी को पुकारने या नाटक के संवादों में इसका प्रयोग करते हैं;

जैसे-
राऽऽऽऽम

स्वरों का उच्चारण

उच्चारण स्थान की दृष्टि से स्वरों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, जो निम्न हैं-
1. अग्र स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग ऊपर उठता है, अग्र स्वर कहलाते हैं;
जैसे—
इ, ई, ए, ऐ।

2. मध्य स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा समान अवस्था में रहती है, मध्य स्वर कहलाते हैं;
जैसे-
‘अ’

3. पश्च स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग ऊपर उठता है, पश्च स्वर कहलाते हैं;
जैसे-
आ, उ, ओ, औ।

इसके अतिरिक्त अँ (*), अं (‘), और अ: (:) ध्वनियाँ हैं। ये न तो स्वर हैं और न ही व्यंजन। आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ने इन्हें अयोगवाह कहा है, क्योंकि ये बिना किसी से योग किए ही अर्थ वहन करते हैं। हिन्दी वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले निर्धारित किया गया है।

व्यंजन जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से नहीं निकलती, वरन् उसमें पूर्ण या अपूर्ण अवरोध होता है, व्यंजन कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में, वे ध्वनियाँ जो बिना स्वरों की सहायता लिए उच्चारित नहीं हो सकती हैं, व्यंजन कहलाती हैं;
जैसे—
क = क् + अ।

सामान्यतया व्यंजन छ: प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं-

  1. स्पर्श व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का कोई-न-कोई भाग मुख के किसी-न-किसी भाग को स्पर्श करता है, स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। क से लेकर म तक 25 व्यंजन स्पर्श हैं। इन्हें पाँच-पाँच के वर्गों में विभाजित किया गया है। अतः इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहते हैं; जैसे—क से ङ तक क वर्ग, च से ञ तक च वर्ग, ट से ण तक ट वर्ग, त से न तक त वर्ग, और प से म तक प वर्ग।
  2. अनुनासिक व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु नासिका मार्ग से निकलती है, अनुनासिक व्यंजन कहलाते हैं। ङ, ञ, ण, न और म . अनुनासिक व्यंजन हैं।
  3. अन्तःस्थ व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख बहुत संकुचित हो जाता है फिर भी वायु स्वरों की भाँति बीच से निकल जाती है, उस समय उत्पन्न होने वाली ध्वनि अन्तःस्थ व्यंजन कहलाती है। य, र, ल, व अन्त:स्थ व्यंजन हैं।
  4. ऊष्म व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की गरमाहट या सुरसुराहट-सी प्रतीत होती है, ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं। श, ष, स और ह ऊष्म व्यंजन हैं।
  5. उत्क्षिप्त व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की उल्टी हुई नोंक तालु को छूकर झटके से हट जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं। ड, ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन हैं।
  6. संयुक्त व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों की सहायता लेनी पड़ती है, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं;
    जैसे-

    • क् + ष = क्ष (उच्चारण की दृष्टि से क् + छ = क्ष)
    • त् + र = त्र
    • ज् + ञ = ज्ञ (उच्चारण ग + य =ज्ञ)
    • श् + र = श्र

व्यंजनों का उच्चारण

उच्चारण स्थान की दृष्टि से हिन्दी-व्यंजनों को आठ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. कण्ठ्य व्यंजन जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा के पिछले भाग से कोमल तालु का स्पर्श होता है, कण्ठ्य ध्वनियाँ (व्यंजन) कहलाते हैं। क, ख, ग, घ, ङ कण्ठ्य व्यंजन हैं।
  2. तालव्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग कठोर तालु को स्पर्श करता है, तालव्य व्यंजन कहलाते हैं। च, छ, ज, झ, ञ और श, य तालव्य व्यंजन हैं।
  3. मूर्धन्य व्यंजन कठोर तालु के मध्य का भाग मूर्धा कहलाता है। जब जिह्वा की उल्टी हुई नोंक का निचला भाग मूर्धा से स्पर्श करता है, ऐसी स्थिति में उत्पन्न ध्वनि को मूर्धन्य व्यंजन कहते हैं। ट, ठ, ड, ढ, ण मूर्धन्य व्यंजन हैं।
  4. दन्त्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की नोंक ऊपरी दाँतों को स्पर्श करती है, दन्त्य व्यंजन कहलाते हैं। त, थ, द, ध, स दन्त्य व्यंजन हैं।
  5. ओष्ठ्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में दोनों ओष्ठों द्वारा श्वास का अवरोध होता है, ओष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। प, फ, ब, भ, म ओष्ठ्य व्यंजन हैं।
  6. दन्त्योष्ठ्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में निचला ओष्ठ दाँतों को स्पर्श करता है, दन्त्योष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। ‘व’ दन्त्योष्ठ्य व्यंजन है।
  7. वर्ण्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा ऊपरी मसूढ़ों (वर्ल्स) का स्पर्श करती है, वर्ण्य व्यंजन कहलाते हैं; जैसे-न, र, ल।
  8. स्वरयन्त्रमुखी या काकल्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्दर से आती हुई श्वास, तीव्र वेग से स्वर यन्त्र मुख पर संघर्ष उत्पन्न करती – है, स्वरयन्त्रमुखी व्यंजन कहलाते हैं; जैसे-ह।

उपरोक्त आठ वर्गों के विभाजन के अतिरिक्त व्यंजनों के उच्चारण हेतु उल्लेखनीय बिन्दु निम्नलिखित हैं
1. घोषत्व के आधार पर घोष का अर्थ स्वरतन्त्रियों में ध्वनि का कम्पन है।
(i) अघोष जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कम्पन न हो, अघोष व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक ‘वर्ग’ का पहला और दूसरा व्यंजन वर्ण अघोष ध्वनि होता है;

जैसे—

  • क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फा

(ii) घोष जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कम्पन हो, वह घोष व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक ‘वर्ग’ का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ व्यंजन वर्ण घोष ध्वनि होता है;

जैसे—

  • ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण।

2. प्राणत्व के आधार पर यहाँ ‘प्राण’ का अर्थ हवा से है।
(i) अल्पप्राण जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम हवा निकले, अल्पप्राण व्यंजन होते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ व्यंजन वर्ण अल्पप्राण ध्वनि होता है

जैसे-

  • क, ग, ड, च, ज, ब आदि।

(ii) महाप्राण जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक हवा निकले महाप्राण व्यंजन होते हैं। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा व्यंजन वर्ण महाप्राण ध्वनि होता है;

जैसे-

  • ख, घ, छ, झ, ठ, ढ आदि।

3. उच्चारण की दृष्टि से ध्वनि (व्यंजन) को तीन वर्गों में बाँटा गया है-

  • संयुक्त ध्वनि दो-या-दो से अधिक व्यंजन ध्वनियाँ परस्पर संयुक्त होकर ‘संयुक्त ध्वनियाँ’ कहलाती हैं; जैसे–प्राण, घ्राण, क्लान्त, क्लान, प्रकर्ष इत्यादि। संयुक्त ध्वनियाँ अधिकतर तत्सम शब्दों में पाई जाती हैं।
  • सम्पृक्त ध्वनि एक ध्वनि जब दो ध्वनियों से जुड़ी होती है, तब यह ‘सम्पृक्त ध्वनि’ कहलाती है; जैसे—’कम्बल’। यहाँ ‘क’ और ‘ब’ ध्वनियों के साथ म् ध्वनि संयुक्त (जुड़ी) है।
  • युग्मक ध्वनि जब एक ही ध्वनि द्वित्व हो जाए, तब यह ‘युग्मक ध्वनि’ कहलाती है; जैसे-अक्षुण्ण, उत्फुल्ल, दिक्कत, प्रसन्नता आदि।

वर्तनी

किसी भी भाषा में शब्दों की ध्वनियों को जिस क्रम और जिस रूप से उच्चारित किया जाता है, उसी क्रम और उसी रूप से लेखन की रीति को वर्तनी (Spelling) कहते हैं। जो जैसा उच्चारण करता है, वैसा ही लिखना चाहता है। अतः उच्चारण और वर्तनी में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। इस प्रकार शुद्ध वर्तनी के लिए शुद्ध उच्चारण भी आवश्यक है।

शब्दों की वर्तनी में अशुद्धि दो प्रकार की होती है-

  • वर्ण सम्बन्धी
  • शब्द रचना सम्बन्धी

वर्ण सम्बन्धी अशुद्धियाँ पुन: दो प्रकार की होती हैं

  • स्वर-मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
  • व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ।

स्वर-मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 3

(अ)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 4

(‘अ’ नहीं होना चाहिए)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 5

(आ)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 6

(इ)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 7

वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 8

(‘इ’ की मात्रा नहीं होनी चाहिए)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 9

(‘ई’ की मात्रा होनी चाहिए)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 10
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 11

(उ)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 12

(ऊ)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 13

(ऋ)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 14

(ए, ऐ)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 15

(‘ओ’, ‘औ’)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 16

व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 17

संयुक्त व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 18
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 19

व्यंजन द्वित्व सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 20
चन्द्रबिन्दु और अनुस्वार की अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 21
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 22

हल् सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
(हल होना चाहिए)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 23

(हल नहीं होना चाहिए)
वर्ण विभाग - वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण 24

शब्दकोश में प्रयुक्त वर्णानुक्रम सम्बन्धी नियम

शब्दकोश में प्रयुक्त वर्णानुक्रम सम्बन्धी नियम निम्न प्रकार हैं-

  • शब्दकोश में पहले स्वर उसके पश्चात् व्यंजन का क्रम आता है।
  • शब्दकोश में अनुस्वार (-) और विसर्ग (:) का स्वतन्त्र वर्ण के रूप में प्रयोग नहीं होता, लेकिन संयुक्त वर्गों के रूप में इन्हें अ, आ, इ, ई, उ, ऊ आदि से पहले स्थान प्रदान किया जाता है; जैसेकं, कः, क, का, कि, की, कु, कू, के, के, को, कौ।
  • शब्दकोश में पूर्ण वर्ण के पश्चात् संयुक्ताक्षर का क्रम आता है; जैसे कं, क: “” को, कौ के पश्चात् क्य, क्र, क्ल, क्व, क्षा
  • शब्दकोश में ‘क्ष’, ‘त्र’, ‘ज्ञ’ का कोई पृथक् शब्द संग्रह नहीं मिलता, क्योंकि ये संयुक्ताक्षर होते हैं। इनसे सम्बन्धित शब्दों को ढूँढने हेतु इन संयुक्ताक्षरों के पहले वर्ण वाले खाने में देखना होता है; जैसे- यदि हमें ‘क्ष’ (क् + ष) से सम्बन्धित शब्द को ढूँढना है, तो हमें ‘क’ वाले खाने में जाना होगा। इसी तरह ‘त्र’ (त् + र), ‘ज्ञ’ (ज् + ञ), श्र (श् + र) के लिए क्रमशः ‘त’, ‘ज’ और ‘श’ वाले खाने में जाना पड़ेगा।
  • ङ, ब, ण, ड, ढ़ से कोई शब्द आरम्भ नहीं होता, इसलिए ये स्वतन्त्र रूप से शब्दकोष में नहीं मिलते।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली

प्रश्न 1.
भाषा की सबसे छोटी इकाई है (उत्तराखण्ड पुलिस उपनिरीक्षक परीक्षा 2014)
(a) शब्द
(b) व्यंजन
(c) स्वर
(d) वर्ण
उत्तर :
(d) वर्ण

प्रश्न 2.
हिन्दी में मूलतः कितने वर्ण हैं?
(a) 52
(b) 50
(c) 40
(d) 46
उत्तर :
(d) 46

प्रश्न 3.
हिन्दी भाषा में वे कौन-सी ध्वनियाँ हैं जो स्वतन्त्र रूप से बोली या लिखी जाती हैं? (उत्तराखण्ड पुलिस सब-इंस्पेक्टर परीक्षा 2011)
(a) स्वर
(b) व्यंजन
(c) वर्ण
(d) अक्षर
उत्तर :
(a) स्वर

प्रश्न 4.
संयुक्त को छोड़कर हिन्दी में मूल वर्गों की संख्या है।
(a) 36
(b) 44
(c) 48
(d) 53
उत्तर :
(b) 44

प्रश्न 5.
स्वर कहते हैं
(a) जिनका उच्चारण ‘लघु’ और ‘गुरु’ में होता है
(b) जिनका उच्चारण बिना अवरोध अथवा विघ्न-बाधा के होता है
(c) जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है
(d) जिनका उच्चारण नाक और मुँह से होता है
उत्तर :
(b) जिनका उच्चारण बिना अवरोध अथवा विघ्न-बाधा के होता है

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से अग्र स्वर नहीं है
(a) अ
(b) इ
(c) ए
(d) ऐ
उत्तर :
(a) अ

प्रश्न 7.
हिन्दी में स्वरों के कितने प्रकार हैं?
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 4
उत्तर :
(c) 3

प्रश्न 8.
हिन्दी वर्णमाला में ‘अं’ और ‘अ’ क्या है? (यू.जी.सी. नेट/जे.आर.एफ. दिसम्बर 2012)
(a) स्वर
(b) व्यंजन
(c) अयोगवाह
(d) संयुक्ताक्षर
उत्तर :
(c) अयोगवाह

प्रश्न 9.
जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है, वे कहलाते हैं
(a) मूल स्वर
(b) प्लुत स्वर
(c) संयुक्त स्वर
(d) अयोगवाह
उत्तर :
(b) प्लुत स्वर

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन स्वर नहीं है? (उत्तराखण्ड पुलिस उपनिरीक्षक परीक्षा 2014)
(a) अ
(b) उ
(c) ए
(d) ञ
उत्तर :
(d) ञ

Kriya in Hindi | क्रिया की परिभाषा, भेद, और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

kriya in Hindi ( क्रिया )

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Kriya ki Paribhasha, Prakar, Bhed aur Udaharan (Examples) in Hindi Grammar

Kriya Kise Kahate Hain (What is Kriya in Hindi) – क्रिया इन हिंदी

परिभाषा, धातु, मूल, क्रिया, प्रकार, प्रयोग, काल, भेद, परिवर्तन, वाच्य, प्रकार, वाच्य, परिवर्तन.

क्रिया वाक्य को पूर्ण बनाती है। इसे ही वाक्य का ‘विधेय’ कहा जाता है। वाक्य में किसी काम के करने या होने का भाव क्रिया ही बताती है। अतएव, ‘जिससे काम का होना या करना समझा जाय, उसे ही ‘क्रिया’ कहते हैं।’ जैसे-

लड़का मन से पढ़ता है और परीक्षा पास करता है।

उक्त वाक्य में ‘पढ़ता है’ और ‘पास करता है’ क्रियापद हैं।

1. क्रिया का सामान्य रूप ‘ना’ अन्तवाला होता है। यानी क्रिया के सामान्य रूप में ‘ना’ लगा रहता है।

जैसे-
खाना : खा
पढ़ना : पढ़
सुनना : सुन
लिखना : लिख आदि।

नोट : यदि किसी काम या व्यापार का बोध न हो तो ‘ना’ अन्तवाले शब्द क्रिया नहीं कहला सकते।
जैसे-
सोना महँगा है। (एक धातु है)
वह व्यक्ति एक आँख से काना है। (विशेषण)
उसका दाना बड़ा ही पुष्ट है। (संज्ञा)

2. क्रिया का साधारण रूप क्रियार्थक संज्ञा का काम भी करता है।
जैसे-
सुबह का टहलना बड़ा ही अच्छा होता है।
इस वाक्य में ‘टहलना’ क्रिया नहीं है।
निम्नलिखित क्रियाओं के सामान्य रूपों का प्रयोग क्रियार्थक संज्ञा के रूप में करें :

  • नहाना
  • कहना
  • गलना
  • रगड़ना
  • सोचना
  • हँसना
  • देखना
  • बचना
  • धकेलना
  • रोना

निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियार्थक संज्ञाओं को रेखांकित करें :
1. माता से बच्चों का रोना देखा नहीं जाता।
2. अपने माता-पिता का कहना मानो।
3. कौन देखता है मेरा तिल-तिल करके जीना।
4. हँसना जीवन के लिए बहुत जरूरी है।
5. यहाँ का रहना मुझे पसंद नहीं।।
6. घर जमाई बनकर रहना अपमान का घूट पीना है।
7. मजदूरों का जीना भी कोई जीना है?
8. सर्वशिक्षा अभियान का चलना बकवास नहीं तो और क्या है?
9. बड़ों से उनका अनुभव जानना जीने का आधार बनता है।
10. गाँधी को भला-बुरा कहना देश का अपमान करना है।

मुख्यतः क्रिया के दो प्रकार होते हैं- Types of Kriya in Hindi Grammar

1. सकर्मक क्रिया

“जिस क्रिया का फल कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े, उसे ‘सकर्मक क्रिया’ (Transitive verb) कहते हैं।”

अतएव, यह आवश्यक है कि वाक्य की क्रिया अपने साथ कर्म लाये। यदि क्रिया अपने साथ कर्म नहीं लाती है तो वह अकर्मक ही कहलाएगी। नीचे लिखे वाक्यों को देखें :
(i) प्रवर अनू पढ़ता है। (कर्म-विहीन क्रिया)
(ii) प्रवर अनू पुस्तक पढ़ता है। (कर्मयुक्त क्रिया)

प्रथम और द्वितीय दोनों वाक्यों में ‘पढ़ना’ क्रिया का प्रयोग हुआ है; परन्तु प्रथम वाक्य की क्रिया अपने साथ कर्म न लाने के कारण अकर्मक हुई, जबकि द्वितीय वाक्य की वही क्रिया अपने साथ कर्म लाने के कारण सकर्मक हुई।

2. अकर्मक क्रिया

“वह क्रिया, जो अपने साथ कर्म नहीं लाये अर्थात् जिस क्रिया का फल या व्यापार कर्ता पर ही पड़े, वह अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb) कहलाती है।”
जैसे-
उल्लू दिनभर सोता है।

इस वाक्य में ‘सोना’ क्रिया का व्यापार उल्लू (जो कर्ता है) ही करता है और वही सोता भी है। इसलिए ‘सोना’ क्रिया अकर्मक हुई।
कुछ क्रियाएँ अकर्मक सकर्मक दोनों होती हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-
1. उसका सिर खुजलाता है। (अकर्मक)
2. वह अपना सिर खुजलाता है। (सकर्मक)
3. जी घबराता है। (अकर्मक)
4. विपत्ति मुझे घबराती है। (सकर्मक)
5. बूंद-बूंद से तालाब भरता है। (अकर्मक)
6. उसने आँखें भर के कहा (सकर्मक)
7. गिलास भरा है। (अकर्मक)
8. हमने गिलास भरा है। (सकर्मक)

जब कोई अकर्मक क्रिया अपने ही धातु से बना हुआ या उससे मिलता-जुलता सजातीय कर्म चाहती है तब वह सकर्मक कहलाती है।
जैसे-
सिपाही रोज एक लम्बी दौड़ दौड़ता है।
भारतीय सेना अच्छी लड़ाई लड़ना जानती है/लड़ती है।

यदि कर्म की विवक्षा न रहे, यानी क्रिया का केवल कार्य ही प्रकट हो, तो सकर्मक क्रिया भी अकर्मक-सी हो जाती है। जैसे-
ईश्वर की कृपा से बहरा सुनता है और अंधा देखता है।

एक प्रेरणार्थक क्रिया होती है, जो सदैव सकर्मक ही होती है। जब धातु में आना, वाना, लाना या लवाना, जोड़ा जाता है तब वह धातु ‘प्रेरणार्थक क्रिया’ का रूप धारण कर लेता है। इसके दो रूप होते हैं :

  • धातु – प्रथम प्रेरणार्थक – द्वितीय प्रेरणार्थक
  • हँस – हँसाना – हँसवाना
  • जि – जिलाना – जिलवाना
  • सुन – सुनाना – सुनवाना
  • धो – धुलाना – धुलवाना

शेष में आप आना, वाना, लाना, लवाना, जोड़कर प्रेरणार्थक रूप बनाएँ :
कह पढ़ जल मल भर गल सोच बन देख निकल रह पी रट छोड़ जा भेजना भिजवाना टूट तोड़ना तुड़वाना अर्थात् जब किसी क्रिया को कर्ता कारक स्वयं नहीं करके किसी अन्य को करने के लिए प्रेरित करे तब वह क्रिया ‘प्रेरणार्थक क्रिया’ कहलाती है।

प्रेरणार्थक रूप अकर्मक एवं सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं से बनाया जाता है। प्रेरणार्थक क्रिया बन जाने पर अकर्मक क्रिया भी सकर्मक रूप धारण कर लेती है।

निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियाओं को छाँटकर उनके प्रकार लिखें : [C.B.S.E]
1. हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाये।
2. कैप्टन बार-बार मर्ति पर चश्मा लगा देता था।
3. गाड़ी छूट रही थी।
4. एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
5. नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
6. अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
7. दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
8. जेब से चाकू निकाला।
9. नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
10. पानवाला नया पान खा रहा था।
11. मेघ बरस रहा था।
12. वह विद्यालय में पढ़ता-लिखता है।

नोट : कुछ धातु वास्तव में मूल अकर्मक या सकर्मक है; परन्तु स्वरूप में प्रेरणार्थक से जान पड़ते हैं।
जैसे-
घबराना, कुम्हलाना, इठलाना आदि।

अकर्मक से सकर्मक बनाने के नियम :
1. दो अक्षरों के धातु के प्रथम अक्षर को और तीन अक्षरों के धातु के द्वितीयाक्षर को दीर्घ करने से अकर्मक धातु सकर्मक हो जाता है। जैसे-

  • अकर्मक – सकर्मक
  • लदना – लादना
  • फँसना – फाँसना
  • गड़ना – गाड़ना
  • लुटना – लूटना
  • कटना – काटना
  • कढ़ना – काढ़ना
  • उखड़ना – उखाड़ना
  • सँभलना – सँभालना
  • मरना – मारना
  • पिसना – पीसना
  • निकलना – निकालना
  • बिगड़ना – बिगाड़ना
  • टलना – टालना
  • पिटना – पीटना

2. यदि अकर्मक धातु के प्रथमाक्षर में ‘इ’ या ‘उ’ स्वर रहे तो इसे गुण करके सकर्मक धातु बनाए जाते हैं। जैसे

  • घिरना – घेरना
  • फिरना – फेरना
  • छिदना – छेदना
  • मुड़ना – मोड़ना
  • खुलना – खोलना
  • दिखना – देखना।

3. ‘ट’ अन्तवाले अकर्मक धातु के ‘ट’ को ‘ड’ में बदलकर पहले या दूसरे नियम से सकर्मक धातु बनाते हैं।
जैसे-

  • फटना – फोड़ना
  • जुटना – जोड़ना
  • छूटना – छोड़ना
  • टूटना – तोड़ना

क्रिया के अन्य प्रकार

1. पूर्वकालिक क्रिया
“जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली क्रिया ‘पूर्वकालिक क्रिया’ कहलाती है।” जैसे-
चोर उठ भागा। (पहले उठना फिर भागना)
वह खाकर सोता है। (पहले खाना फिर सोना)

उक्त दोनों वाक्यों में ‘उठ’ और ‘खाकर’ पूर्वकालिक क्रिया हुईं। पूर्वकालिक क्रिया प्रयोग में अकेली नहीं आती है, वह दूसरी क्रिया के साथ ही आती है। इसके चिह्न हैं—

  • धातु + ० – उठ, जाना। ……………
  • धातु + के – उठके, जाग के ……………
  • धातु + कर – उठकर, जागकर ……………
  • धातु + करके – उठकरके, जागकरके ……………

नोट : परन्तु, यदि दोनों साथ-साथ हों तो ऐसी स्थिति में वह पूर्वकालिक न होकर क्रियाविशेषण का काम करता है। जैसे—वह बैठकर पढ़ता है।

इस वाक्य में ‘बैठना’ और ‘पढ़ना’ दोनों साथ-साथ हो रहे हैं। इसलिए ‘बैठकर’ क्रिया विशेषण है। इसी तरह निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों पर विचार करें-
(a) बच्चा दौड़ते-दौड़ते थक गया। (क्रियाविशेषण)
(b) खाया मुँह नहाया बदन नहीं छिपता। (विशेषण)
(c) बैठे-बैठे मन नहीं लगता है। (क्रियाविशेषण)

2. संयुक्त क्रिया
“जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के योग से बनकर नया अर्थ देती है यानी किसी एक ही क्रिया का काम करती है, वह ‘संयुक्त क्रिया’ कहलाती है।” जैसे
उसने खा लिया है। (खा + लेना)
तुमने उसे दे दिया था। (दे + देना)

अर्थ के विचार से संयुक्त क्रिया के कई प्रकार होते हैं-

1. निश्चयबोधक : धातु के आगे उठना, बैठना, आना, जाना, पड़ना, डालना, लेना, देना, चलना और रहना के लगने से निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया का निर्माण होता है। जैसे
(a) वह एकाएक बोल उठा।
(b) वह देखते-ही-देखते उसे मार बैठा।
(c) मैं उसे कब का कह आया हूँ।
(d) दाल में घी डाल देना।
(e) बच्चा खेलते-खेलते गिर पड़ा।

2. शक्तिबोधक : धातु के आगे ‘सकना’ मिलाने से शक्तिबोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे

  • दादाजी अब चल-फिर सकते हैं।
  • वह रोगी अब उठ सकता है।
  • कर्ण अपना सब कुछ दे सकता है।

3. समाप्तिबोधक : जब धातु के आगे ‘चुकना’ रखा जाता है, तब वह क्रिया समाप्तिबोधक हो जाती है। जैसे

  • मैं आपसे कह चुका हूँ।
  • वह भी यह दृश्य देख चुका है।

4. नित्यताबोधक : सामान्य भूतकाल की क्रिया के आगे ‘करना’ जोड़ने से नित्यताबोधक क्रिया बनती है। जैसे-

  • तुम रोज यहाँ आया करना।
  • तुम रोज चैनल देखा करना।

5. तत्कालबोधक : सकर्मक क्रियाओं के सामान्य भूतकालिक पुं० एकवचन रूप के अंतिम स्वर ‘आ’ को ‘ए’ करके आगे ‘डालना’ या ‘देना’ लमाने से

  • तत्कालबोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-
  • कहे डालना, कहे देना, दिए डालना आदि।

6. इच्छाबोधक : सामान्य भूतकालिक क्रियाओं के आगे ‘चाहना’ लगाने से इच्छाबोधक क्रियाएँ बनती हैं। इनसे तत्काल व्यापार का बोध होता है। जैसे-

  • लिखा चाहना, पढ़ा चाहना, गया चाहना आदि।

7. आरंभबोधक : क्रिया के साधारण रूप ‘ना’ को ‘ने’ करके लगना मिलाने से आरंभ बोधक क्रिया बनती है। जैसे-

  • आशु अब पढ़ने लगी है।
  • मेघ बरसने लगा।

8. अवकाशबोधक : क्रिया के सामान्य रूप के ‘ना’ को ‘ने’ करके ‘पाना’ या ‘देना’ मिलाने से अवकाश बोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-

  • अब उसे जाने भी दो।
  • देखो, वह जाने न पाए।
  • आखिर तुमने उसे बोलने दिया।

9. परतंत्रताबोधक : क्रिया के सामान्य रूप के आगे ‘पड़ना’ लगाने से परतंत्रताबोधक क्रिया बनती है। जैसे-

  • उसे पाण्डेयजी की आत्मकथा लिखनी पड़ी।
  • आखिरकार बच्चन जी को भी यहाँ आना पड़ा।

10 एकार्थकबोधक : कुछ संयुक्त क्रियाएँ एकार्थबोधक होती हैं। जैसे-

  • वह अब खूब बोलता-चालता है।
  • वह फिर से चलने-फिरने लगा है।

नोट : 1. संयुक्त क्रियाएँ केवल सकर्मक धातुओं के मिलने अथवा केवल अकर्मक धातुओं के मिलने से या दोनों के मिलने से बनती हैं। जैसे

  • मैं तुम्हें देख लूँगा।
  • वह उठ बैठा है।
  • वह उन्हें दे आया था।

2. संयुक्त क्रिया के आद्य खंड को ‘मुख्य या प्रधान क्रिया’ और अंत्य खंड को ‘सहायक क्रिया’ कहते हैं।
जैसे-

  • वह घर चला जाता है।
  • मु. क्रि. स. क्रिया

नामधातु :
“क्रिया को छोड़कर दूसरे शब्दों से (संज्ञा, सर्वनाम एवं विशेषण) से जो धातु बनते हैं, उन्हें ‘नामधातु’ कहते हैं।” जैसे

  • पुलिस चोर को लतियाते थाने ले गई।
  • वे दोनों बतियाते चले जा रहे थे।
  • मेहमान के लिए जरा चाय गरमा देना।

नामधातु बनाने के नियम :
1. कई शब्दों में ‘आ’ कई में ‘या’ और कई में ‘ला’ के लगने से नामधातु बनते हैं। जैसे-

  • मेरी बहन मुझसे ही लजाती है। (लाज-लजाना)
  • तुमने मेरी बात झुठला दी है। (झूठ-झूठलाना)
  • जरा पंखे की हवा में ठंडा लो, तब कुछ कहना। (ठंडा-ठंडाना)

2. कई शब्दों में शून्य प्रत्यय लगाने से नामधातु बनते हैं। जैसे

  • रंग : रँगना गाँठ : गाँठना
  • चिकना : चिकनाना आदि।

3. कुछ अनियमित होते हैं। जैसे

  • दाल : दलना, चीथड़ा : चिथेड़ना आदि।

4. ध्वनि विशेष के अनुकरण से भी नामधातु बनते हैं। जैसे

  • भनभन : भनभनाना
  • छनछन : छनछनाना
  • टर्र : टरटराना/टर्राना

प्रकार (अर्थ, वृत्ति)
क्रियाओं के प्रकारकृत तीन भेद होते हैं :
1. साधारण क्रिया : वह क्रिया, जो सामान्य अवस्था की हो और जिसमें संभावना अथवा आज्ञा का भाव नहीं हो। जैसे-

  • मैंने देखा था। उसने क्या कहा?

2. संभाव्य क्रिया : जिस क्रिया में संभावना अर्थात् अनिश्चय, इच्छा अथवा संशय पाया जाय। जैसे-

  • यदि हम गाते थे तो आप क्यों नहीं रुक गए?
  • यदि धन रहे तो सभी लोग पढ़-लिख जाएँ।
  • मैंने देखा होगा तो सिर्फ आपको ही।

नोट : हेतुहेतुमद् भूत, संभाव्य भविष्य एवं संदिग्ध क्रियाएँ इसी श्रेणी में आती है।

3. आज्ञार्थक क्रिया या विधिवाचक क्रिया : इससे आज्ञा, उपदेश और प्रार्थनासूचक क्रियाओं का बोध होता है। जैसे-

  • तुम यहाँ से निकलो।
  • गरीबों की मदद करो।
  • कृपा करके मेरे पत्र का उत्तर अवश्य दीजिए।

Kriya in Hindi Worksheet Exercise with Answers PDF

1. सामान्यतया क्रिया के …………….. भेद होते हैं।
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
उत्तर :
(a) दो

2. धातु में ‘ना’ जोड़ने पर क्या बनता है?
(a) यौगिक क्रिया
(b) सामान्य क्रिया
(c) विधिवाचक क्रिया
उत्तर :
(b) सामान्य क्रिया

3. ‘जाना’ से प्रेरणार्थक रूप बनता है-
(a) जनाना
(b) जनवाना
(c) भेजना
उत्तर :
(c) भेजना

4. ‘बात’ से नामधातु बनेगा
(a) बताना
(b) बाताना
(c) बतवाना
(d) बतियाना
उत्तर :
(d) बतियाना

5. ‘मेघ बरसने लगा’ में किस तरह की क्रिया का प्रयोग हुआ है?
(a) पूर्वकालिक
(b) संयुक्त
(c) नाम धातु
उत्तर :
(b) संयुक्त

6. निम्नलिखित वाक्यों में से किसमें पूर्वकालिक क्रिया नहीं है?
(a) वह खाकर विद्यालय जाता है।
(b) वह खाकर टहलता है।
(c) वह खाकर नहाता है।
(d) वह लेटकर खाता है।
उत्तर :
(d) वह लेटकर खाता है।

7. निम्नलिखित वाक्यों में से किसमें नामधातु का प्रयोग हुआ है?
(a) चाय ठंडी हो गई है थोड़ा गरमा देना।
(b) उनकी कहानी समाप्त हो गई है।
(c) प्रदूषण काफी बढ़ गया है।
(d) पेड़-पौधे सूख चुके हैं।
उत्तर :
(a) चाय ठंडी हो गई है थोड़ा गरमा देना।

8. प्रेरणार्थक क्रिया के कितने रूप होते हैं?
(a) दो
(b) चार
(c) छह
उत्तर :
(a) दो

9. क्रिया सामान्यतया वाक्य में …….. का काम करती है।
(a) उद्देश्य
(b) विधेय
(c) अव्यय
उत्तर :
(a) उद्देश्य

10. ‘मुख्य’ क्रिया’ और ‘सहायक क्रिया’ ये दोनों किस क्रिया के अंतर्गत आती हैं।
(a) पूर्वकालिक
(b) सामान्य
(c) संयुक्त
उत्तर :
(b) सामान्य

Sangya in Hindi – संज्ञा के प्रकार, भेद और उदाहरण

sangya in hindi (संज्ञा)

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संज्ञा परिभाषा और उदाहरण वाक्य – Noun in Hindi with Examples

Sangya in Hindi for Class 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1 

  • प्रकार
  • प्रयोग
  • संज्ञा के आवश्यक धर्म
  • लिंग
  • वचन
  • कारक
  • विभिन्न परसर्गों का प्रभाव और प्रयोग
  • संज्ञा की रूप–रचना

“किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान या भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं।”
जैसे–अंशु, प्रवर, चेन्नई, भलाई, मकान आदि।
उपर्युक्त उदाहरण में, अंशु और प्रवर : व्यक्तियों के नाम
चेन्नई : स्थान का नाम
मकान : वस्तु का नाम और
भलाई : भाव का नाम है।

संज्ञा को परम्परागत रूप से (प्राचीन मान्यताओं के आधार पर) पाँच प्रकारों और आधुनिक मान्यताओं के आधार पर तीन प्रकारों में बाँटा गया है।
संज्ञा के प्रकार

जातिवाचक संज्ञा (Common Noun) : जिन संज्ञाओं से एक जाति के अन्तर्गत आनेवाले सभी व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों के नामों का बोध होता है, जातिवाचक संज्ञाएँ कहलाती हैं। जैसे

गाय : गाय कहने से पहाड़ी, हरियाणी, जर्सी, फ्रीजियन, संकर, देशी, विदेशी, काली, उजली, चितकबरी–इन सभी प्रकार की गायों का बोध होता है; क्योंकि गाय जानवरों की एक जाति हुई।

लड़का : इसमें सभी तरह और सभी जगहों के लड़के आते हैं–रामू, श्यामू, प्रखर, संकेत, मोहन, पीटर, करीम आदि–क्योंकि, मनुष्यों में एक खास अवस्थावाले मानवों की एक जाति हुई–लड़का।

नदी : इसके अंतर्गत सभी नदियाँ आएँगी–गंगा, यमुना, सरयू, कोसी, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, ह्वांगहो, टेन्नेसी, नील, दजला, फुरात वे सभी।

पहाड़ : इस जाति के अंतर्गत हिमालय, आल्प्स, फ्यूजियामा, मंदार–ये सभी पहाड़ आएँगे।

शहर : यह स्थानसूचक जातिवाचक संज्ञा है। इसके अंतर्गत तमाम शहर आएँगे–दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, मुम्बई, बेंगलुरू, वाराणसी, पटना, कानपुर, लखनऊ ये सभी।

नोट : इसी जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत आधुनिक मान्यताओं के आधार पर द्रव्यवाचक और समूहवाचक संज्ञाओं को रखा गया है।

व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun) : व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ उन्हीं वस्तुओं, व्यक्तियों, स्थानों की जातियों में से खास का नाम बताती हैं। यानी, जो संज्ञाएँ किसी विशेष वस्तु, व्यक्ति या स्थान के नामों का बोध कराए, व्यक्तिवाचक कहलाती हैं।

उदाहरण हम ऊपर की जातियों से ही खास–खास का नाम चुनते हैं–
जर्सी गाय, प्रखर कुमार, ह्वांगहो, हिमालय पर्वत, बेंगुलुरू आदि। आप देख रहे हैं कि ‘जर्सी गाय’ से एक खास प्रकार की गाय का; ‘प्रखर कुमार’ से एक खास व्यक्ति का; ‘ह्वांगहो’ से एक खास नदी का; ‘हिमालय पर्वत’ से एक खास पर्वत का और ‘बेंगलुरू’ से एक खास शहर का बोध हो रहा है। अतएव, ये सभी व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ हैं।

भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun) : जिन संज्ञाओं से पदार्थों या व्यक्तियों के धर्म, गुण, दोष, आकार, अवस्था, व्यापार या चेष्टा आदि भाव जाने जाएँ, वे भाववाचक संज्ञाएँ होती हैं। भाववाचक संज्ञाएँ अनुभवजन्य होती हैं, ये अस्पर्शी होती हैं।

उदाहरण क्रोध, घृणा, प्रेम, अच्छाई, बुराई, बीमारी, लंबाई, बुढ़ापा, मिठास, बचपन, हरियाली, उमंग, सच्चाई आदि। उपर्युक्त उदाहरणों में से आप किसी को छू नहीं सकते; सिर्फ अनुभव ही कर सकते हैं।

कुछ भाववाचक संज्ञाएँ स्वतंत्र होती हैं तो कुछ विभिन्न प्रत्ययों को जोड़कर बनाई जाती हैं। उपर्युक्त उदाहरणों को ही हम देखते हैं–

क्रोध, घृणा, प्रेम, उमंग आदि स्वतंत्र भाववाचक हैं; किन्तु अच्छाई (अच्छा + आई), बुराई (बुरा + आई), बीमारी (बीमार + ई), लम्बाई (लम्बा + आई), बुढ़ापा (बूढ़ा + पा), मिठास (मीठा + आस), बचपन (बच्चा + पन), हरियाली (हरी + आली), सच्चाई (सच्चा + आई) प्रत्ययों के जोड़ने से बनाई गई भाववाचक संज्ञाएँ हैं।

नोट : भाववाचक संज्ञाओं के निर्माण से संबंधित बातें प्रत्यय–प्रकरण में दी गई हैं।

समूहवाचक संज्ञा (Collective Noun) : सभा, संघ, सेना, गुच्छा, गिरोह, झुण्ड, वर्ग, परिवार आदि समूह को प्रकट करनेवाली संज्ञाएँ ही समूहवाचक संज्ञाएँ हैं; क्योंकि यह संज्ञा समुदाय का बोध कराती है।

द्रव्यवाचक संज्ञा (Material Noun) : जिन संज्ञाओं से ठोस, तरल, पदार्थ, धातु, अधातु आदि का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। द्रव्यवाचक संज्ञाएँ ढेर के रूप में मापी या तोली जाती हैं। ये अगणनीय हैं।

जैसे–
लोहा, सोना, चाँदी, तेल, घी, डालडा, पानी, मिट्टी, सब्जी, फल, अन्न, चीनी, आटा, चूना, आदि।

ध्यातव्य बातें:

1. रोचक बातें
‘फल’ द्रव्यवाचक संज्ञा है; क्योंकि इसे तोला जाता है। लेकिन, फल के अंतर्गत तो सभी प्रकार के फल आते हैं। इस आधार पर ‘फल’ तो जातिवाचक संज्ञा हुई न? अब फलों में यदि ‘आम’ की बात करें तो एक खास प्रकार के फल का बोध होगा। इस हिसाब से ‘आम’ को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहना चाहिए। थोड़ा–सा और आगे बढ़िए–’आम’ के अंतर्गत सभी प्रकार के आम आएँगे–सीपिया, मालदा, बंबइया, जर्दालू, सुकुल, गुलाबखास। तब तो ‘आम’ को जातिवाचक मानना उचित होगा और मालदा आम को व्यक्तिवाचक; परन्तु यदि कोई मालदा आमों में से केवल ‘दुधिया मालदा’ की बात करे तब क्या माना जाएगा? आपका स्पष्ट उत्तर होगा–व्यक्तिवाचक। अब थोड़ा नीचे से (दुधिया मालदा) ऊपर (फल) तक जाकर देखें–

‘सभा’ समूहवाचक संज्ञा है; क्योंकि यह समुदाय का बोधक है। अच्छा भई, तो ‘आम सभा’, बाल सभा आदि क्या हैं?

दर्जी आपको मापता है और डॉक्टर तोलता या आप स्वयं को तोलते हैं। आपको (मानव पाठक) क्या माना जाय–जातिवाचक? व्यक्तिवाचक? या फिर द्रव्यवाचक?

2. निष्कर्ष : संस्कृत के विद्वानों ने द्रव्यवाचक और समूहवाचक संज्ञाओं का अंतर्भाव भाववाचक में माना है तो डा० किशोरी दास बाजपेयी ने अपने व्याख्यान में निष्कर्ष निकालते हुए कहा–

“संज्ञा मात्र एक ही है–जातिवाचक संज्ञा–हम अध्ययन और समझदारी बढ़ाने के लिए तथा बच्चों को सिखाने के लिए इसके भिन्न–भिन्न प्रकारों की बातें करते हैं।”

शायद इसी उलझन के कारण आधुनिक वैयाकरणों ने आधुनिक अंग्रेजी भाषा का अनुकरण करते हुए बिल्कुल साफ़ तौर पर माना है कि संज्ञाओं को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बाँटा जाय। (यही मत मेरा भी है)–
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun)
2. गणनीय संज्ञा (Countable Noun) और
3. अगणनीय संज्ञा (Uncountable Noun)

संज्ञाओं के विशेष प्रयोग
हम पहले ही बता चुके हैं कि शब्द अनेकार्थी होते हैं और पद एकार्थी और पद भी तो निश्चित बंधन में नहीं रहते। जैसे-

वह अच्छा लड़का है।

(विशेषण)

वह लड़का अच्छा गाता है।

(क्रियाविशेषण)

तुम सारे ही आए, अच्छे कहाँ रह गए?

(सर्वनाम)

अच्छों को जाने दो।

(संज्ञा)

हम देख रहे हैं कि एक ही पद अपने नाम को बदल रहा है। नामों में यह बदलाव प्रयोग के कारण होता है।

जब पद अपने नामों को बदल लेते हैं तो क्या संज्ञा प्रयोग के आधार पर अपने नामों व प्रकारों को बदल नहीं सकती? कुछ उदाहरणों को देखें :

जातिवाचक से व्यक्तिवाचक में बदलाव

निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें

  1. गाँधी को राष्ट्रपिता कहा गया है।
  2. मेरे दादाजी पुरी यात्रा पर निकले हैं।
  3. गुरुजी का व्याकरण आज भी प्रामाणिक है।
  4. वह व्यक्ति देवी का अनन्य भक्त है।
  5. गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की।

उपर्युक्त उदाहरणों में रेखांकित पद जाति की बात न कहकर खास–खास व्यक्ति एवं स्थान की बातें करते हैं। इसे इस प्रकार समझें–
गाँधी : जातिवाचक संज्ञा–इसके अंतर्गत करमचन्द गाँधी, महात्मा गाँधी, इंदिरा गाँधी, फिरोज गाँधी, राजीव गाँधी, संजय गाँधी, मेनका गाँधी, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, वरुण गाँधी आदि–आदि आते हैं; परन्तु उक्त वाक्य में ‘गाँधी’ का प्रयोग सिर्फ मोहनदास करमचन्द गाँधी (महात्मा गाँधी) हुआ है।

पुरी : यह भी जातिवाचक संज्ञा है। इसके अंतर्गत तमाम पुरियाँ (नगर) जैसे– जगन्नाथपुरी, पावापुरी, अलकापुरी आती हैं; परन्तु उक्त वाक्य में केवल जगन्नाथपुरी के लिए पुरी का प्रयोग हुआ है।
इसी तरह, गुरुजी से : कामता प्रसाद गुरु।
देवी से : दुर्गा
गोस्वामी से : तुलसीदास का बोध होता है।
इसी प्रकार, ‘संवत्’ का प्रयोग : विक्रमी संवत् के लिए
‘भारतेन्दु’ का प्रयोग : हरिश्चन्द्र के लिए ‘मालवीय’ का
प्रयोग : मदनमोहन के लिए और
‘नेहरू’ का प्रयोग : पं० जवाहर लाल के लिए होता है।

स्पष्ट है कि जब कोई जातिवाचक संज्ञा किसी विशेष व्यक्ति/स्थान/वस्तु के लिए प्रयुक्त हो, तब वह जातिवाचक होते हुए भी व्यक्तिवाचक बन जाती है।

साधारणतया जातिवाचक संज्ञा का प्रयोग एकवचन और बहुवचन दोनों में होता है; किन्तु व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञाएँ प्रायः एकवचन में ही प्रयुक्त होती हैं–यह बात पूर्णतः सत्य नहीं है। निम्नलिखित उदाहरणों को देखें

1. पं० नेहरू बहुत बड़े राजनीतिज्ञ थे। यहाँ ‘नेहरू’ तो व्यक्तिवाचक संज्ञा है फिर भी बहुवचन क्रिया का प्रयोग हुआ है; क्योंकि सम्मानार्थ व्यक्तिवाचक संज्ञा का बहुवचन में भी प्रयोग होता है। यह बात भी पूर्णतया सत्य नहीं है। ये उदाहरण देखें–
(a) ईश्वर तेरा भला करे।
(b) उसका पिता बीमार है।

यहाँ ‘ईश्वर’ और ‘पिता’ का प्रयोग आदरणीय होते हुए भी एकवचन में हुआ है।

‘ईश्वर’ का प्रयोग तो एकवचन में ही होता है; परन्तु अपने पिता के लिए बहुवचन क्रिया लगाई जाती है। जैसे–मेरे पिताजी विभिन्न भाषाओं के जानकार हैं। इसी तरह शिक्षक का प्रयोग एकवचन एवं बहुवचन दोनों में होता है

शिक्षक हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
पोषाहार–योजना से शिक्षक भी बेईमान हो गया है।

व्यक्तिवाचक से जातिवाचक संज्ञा में बदलाव

नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दें

  1. इस दुनिया में रावणों/कंसों की कमी नहीं।
  2. एक ऐसा समय भी था, जब हमारे देश में घर–घर सीता और सावित्री थीं।
  3. इस देश में हरिश्चन्द्र घटते जा रहे हैं।
  4. परीक्षा समाप्त होते ही वह कुम्भकरण बन बैठा।
  5. कालिदास को नाट्यजगत् का शेक्सपीयर माना जाता है।
  6. समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा गया है।
  7. आल्प्स पर्वत यूरोप का हिमालय है।

उपर्युक्त उदाहरणों में रावण, कंस, सीता, सावित्री, हरिश्चन्द्र, कुम्भकरण, शेक्सपीयर नेपोलियन और हिमालय का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के रूप में हुआ है।

जब कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा एक व्यक्ति/वस्तु/स्थान विशेष के गुण की प्रसिद्धि के कारण उस गुणवाले सभी पदार्थों के लिए प्रयुक्त होती है; तब ऐसी अवस्था में वह जातिवाचक बन जाती है।

व्यक्तिवाचक संज्ञा संसार में अकेली होती है; लेकिन वह जातिवाचक के रूप में प्रयुक्त होकर कई हो जाती है।

भाववाचक का जातिवाचक में परिवर्तन भाववाचक संज्ञा का प्रयोग बहुवचन में नहीं होता (भाववाचक रूप में); किन्तु जब उसका रूप बहुवचन बन जाता है, तब वह भाववाचक न रहकर जातिवाचक बन जाती है। नीचे लिखे उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें-

  1. आजकल भारतीय पहनावे बदल गए हैं।
  2. अच्छाइयों को ग्रहण करो और बुराइयों का त्याग।
  3. छात्रों को अपनी लिखावटों पर ध्यान देना चाहिए।
  4. लाहौर में बम धमाकों से सर्वत्र चिल्लाहट सुनाई पड़ रही थीं।
  5. मानवों के दिलों में ईर्ष्याएँ बढ़ती जा रही हैं।
  6. उसके सपनों का सौदागर आया है।
  7. मनुष्य मनुष्यताओं से विहीन अनादृत होता है।

उपर्युक्त उदाहरणों में रेखांकित पद भाववाचक से जातिवाचक बन गए हैं। संज्ञाओं के कार्य

वाक्य में दो भाग अनिवार्य रूप से होते हैं–उद्देश्य और विधेय। यदि वाक्य में उद्देश्य नहीं रहे तो वाक्य सार्थक नहीं हो सकेगा। वाक्य के परमावश्यक तत्त्व–योग्यता, आकांक्षा और आसत्ति –नष्ट हो जाएँगे। नीचे लिखे वाक्यों पर गंभीरतापूर्वक विचार करें-

  1. दौड़ता है। – कौन?
  2. महँगा है। – क्या?
  3. महान् राष्ट्र है। – कौन/क्या?
  4. कठिन नहीं है। – क्या?
  5. सस्ता हो गया है। – क्या?

क्या उपर्युक्त वाक्यों से अर्थ की पूर्णता स्पष्ट होती है? नहीं न?

अब इन्हीं वाक्यों के निम्नलिखित रूप देखें-

  1. प्रवर दौड़ता है। – प्रवर (संज्ञा) उद्देश्य
  2. सोना महँगा है?- सोना (संज्ञा) उद्देश्य
  3. भारत महान् राष्ट्र है।- भारत (संज्ञा) उद्देश्य
  4. गणित कठिन नहीं है। – गणित (संज्ञा) उद्देश्य
  5. कपड़ा सस्ता हो गया है। – कपड़ा (संज्ञा) उद्देश्य

अर्थात् संज्ञा वाक्य में उद्देश्य का काम कर वाक्य को सार्थक बना देती है।
अब इन वाक्यों को देखें-

  1. वह पढ़ता है। – क्या?
  2. माता–पिता गए हैं। – कहाँ?
  3. उसने छड़ी से पीटा। – किसे किसको?
  4. पेट्रोल से चलती है। – क्या?
  5. वह परीक्षा में अच्छा लाया। – क्या?

उपर्युक्त वाक्यों में भी आकांक्षा शेष रह जाती है। यदि क्रमशः किताब, बाजार, कुत्ते को, गाड़ी, अंक आदि संज्ञाएँ रहें तो वाक्य इस प्रकार बनकर सार्थक हो जाएँगे :

  1. वह किताब पढ़ता है।
  2. माता–पिता बाजार गए हैं।
  3. उसने छड़ी से कुत्ते को पीटा।
  4. पेट्रोल से गाड़ी चलती है।
  5. वह परीक्षा में अच्छा अंक लाया।

स्पष्ट है कि संज्ञाएँ वाक्य को सार्थकता प्रदान करती हैं।

संज्ञा के आवश्यक धर्म संज्ञा के तीन आवश्यक धर्म अथवा लक्षण माने गए हैं :

  1. संज्ञा का लिंग
  2. संज्ञा का वचन और
  3. संज्ञा का कारक।

यदि कोई पद संज्ञा है तो उसका निश्चित लिंग, वचन (एकवचन या बहुवचन) और कारकीय संबंध होगा। अतएव, संज्ञा का रूपान्तरण तीन स्तरों पर होता है–लिंग, वचन और कारक।

Karak in Hindi | कारक परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

Karak in Hindi

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Karak in Hindi – Karak Ki Paribhasha, Bhed, Udaharan(Examples) in Hindi Grammar

कारक क्या होता है? What is the Karak

परिभाषा, चिह्न, प्रकार, परसगों का प्रयोग, संज्ञा एवं सर्वनामों पर कारक का प्रभाव–अभ्यास

“जो क्रिया की उत्पत्ति में सहायक हो या जो किसी शब्द का क्रिया से संबंध बताए वह ‘कारक’ है।”
जैसे–माइकल जैक्सन ने पॉप संगीत को काफी ऊँचाई पर पहुँचाया।

यहाँ ‘पहुँचाना’ क्रिया का अन्य पदों माइकल जैक्सन, पॉप संगीत, ऊँचाई आदि से संबंध है। वाक्य में ‘ने’, ‘को’ और ‘पर’ का भी प्रयोग हुआ है। इसे कारक–चिह्न या परसर्ग या विभक्ति–चिह्न कहते हैं। यानी वाक्य में कारकीय संबंधों को बतानेवाले चिह्नों को कारक–चिह्न अथवा परसर्ग कहते हैं। हिन्दी में कहीं–कहीं कारकीय चिह्न लुप्त रहते हैं।

जैसे–
घोड़ा दौड़ रहा था।
वह पुस्तक पढ़ता है।

आदि। यहाँ ‘घोड़े’ ‘वह’ और ‘पुस्तक’ के साथ कारक–चिह्न नहीं है। ऐसे स्थलों पर शून्य चिह्न माना जाता है। यदि ऐसा लिखा जाय : घोड़ा ने दौड़ रहा था।

उसने (वह + ने) पुस्तक को पढ़ता है।

तो वाक्य अशुद्ध हो जाएँगे; क्योंकि प्रथम वाक्य की क्रिया अपूर्ण भूत की है। अपूर्णभूत में ‘कर्ता’ के साथ ने चिह्न वर्जित है। दूसरे वाक्य में क्रिया वर्तमान काल की है। इसमें भी कर्ता के साथ ने चिह्न नहीं आएगा। अब यदि ‘वह पुस्तक को पढ़ता है’ और ‘वह पुस्तक पढ़ता है’ में तुलना करें तो स्पष्टतया लगता है कि प्रथम वाक्य में ‘को’ का प्रयोग अतिरिक्त या निरर्थक हैं; क्योंकि वगैर ‘को’ के भी वाक्य वही अर्थ देता है। हाँ, कहीं–कहीं ‘को’ के प्रयोग करने से अर्थ बदल जाया करता है।

जैसे–

वह कुत्ता मारता है : जान से मारना
वह कुत्ते को मारता है : पीटना

  1. कर्ता कारक
  2. कर्म कारक
  3. करण कारक
  4. सम्प्रदान कारक
  5. संबंध कारक
  6. अधिकरण कारक
  7. संबोधन कारक

हिन्दी भाषा में कारकों की कुल संख्या आठ मानी गई है, जो निम्नलिखित हैं–

कारक – परसर्ग/विभक्ति

1. कर्ता कारक – शून्य, ने (को, से, द्वारा)
2. कर्म कारक – शून्य, को
3. करण कारक – से, द्वारा (साधन या माध्यम)
4. सम्प्रदान कारक – को, के लिए
5. अपादान कारक – से (अलग होने का बोध)
6. संबंध कारक – का–के–की, ना–ने–नी; रा–रे–री
7. अधिकरण कारक – में, पर
8. संबोधन कारक – हे, हो, अरे, अजी…….

कर्ता कारक

“जो क्रिया का सम्पादन करे, ‘कर्ता कारक’ कहलाता है।” अर्थात् कर्ता कारक क्रिया (काम) करता है। जैसे–
आतंकवादियों ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा है।
इस वाक्य में ‘आतंक मचाना’ क्रिया है, जिसका सम्पादक ‘आतंकवादी’ है यानी कर्ता कारक ‘आतंकवादी’ है।
कर्ता कारक का परसर्ग ‘शून्य’ और ‘ने’ है। जहाँ ‘ने’ चिह्न लुप्त रहता है, वहाँ कर्ता का शून्य चिह्न माना जाता है।
जैसे–
पेड़–पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं।
यहाँ पेड़–पौधे में ‘शून्य चिह्न’ है।

कर्ता कारक में ‘शून्य’ और ‘ने’ के अलावा ‘को’ और से/द्वारा चिह्न भी लगया जाता है।
जैसे–
उनको पढ़ना चाहिए।
उनसे पढ़ा जाता है।
उनके द्वारा पढ़ा जाता है।
कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग :

सकर्मक क्रिया रहने पर सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्णभूत, संदिग्ध भूत एवं हेतुहेतुमद् भूत में कर्ता के आगे ‘ने’ चिह्न आता है। जैसे–

  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना। (सामान्य भूत)
  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना है। (आ० भूत)
  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना था। (पूर्ण भूत)
  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होगा। (सं०भूत)
  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होता। (हेतु… भूत)

नीचे लिखे वाक्यों के कर्ता कारकों में ‘ने’ चिह्न लगाकर वाक्यों का पुनर्गठन करें :
1. मैं उसे इशारा किया; मगर वह बोलता ही चला गया।
2. मैं उसे एकबार पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता ही गया।
3. वह कहा था कि उसने चोरी नहीं की है।
4. वह देखा कि परा पल बाढ में डबा है।
5. आँधी अपना विकराल रूप धारण किया।
6. दुश्मन के सैनिक देखा और गोलियाँ बरसाने लगा।
7. मैं तो आपको तभी बताया था। 8. तुम इससे कुछ अलग सोचा।।
9. जिस समय आप आवाज़ दी, मैं तैयार हो चुका था।
10. सच–सच बताओ, तुम उसे किस बात पर पीटे?
11. पहले वह मुझे गाली दिया फिर मैं।
12. मैं उसे बार–बार समझाया।
13. यह फिल्म में कई बार देखी है।
14. पाकिस्तान विश्वकप जीता।
15. इस नौकरी से पहले वह तीन नौकरियाँ छोड़ा है।
16. गार्ड हरी झंडी दिखाया और गाड़ी चल पड़ी।
17. वह जाने से पहले भोजन किया था।
18. आप मुझसे पूछे ही नहीं इसलिए मैं नहीं बताया।
19. रोगी पानी माँगा, मगर नर्स अनसुनी कर दी।
20. उस दिन पिताजी मुझसे पूछे ही नहीं।

‘भूलना’ क्रिया के कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता। जैसे–
वह तो भूले थे हमें, हम भी उन्हें भूल गए।
आप अपना संकल्प न भूले होंगे।

‘लाना’ क्रिया भी अपने साथ कर्ता के ‘ने’ चिह्न का निषेध करती है। लाना–’ले’ और ‘आना’ के संयोग से बनी है। पहले इसका रूप ‘ल्याना’ था, बाद में ‘लाना’ हो गया। चूँकि इसका अंतिम खंड अकर्मक है, इसलिए इसका प्रयोग होने पर कर्ता कारक में ‘ने’ चिह्न नहीं आता है। जैसे–
पिताजी बच्चों के लिए मिठाई लाए।
श्यामू पीछे हो लिया।

बोलना, समझना, बकना, जनना (जन्म देना), सोचना और पुकारना क्रियाओं के कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न विकल्प से आता है।
जैसे–

  • महाराज बोले। – (प्रेमसागर)
  • वह झूठ बोला। – (पं० अम्बिका प्र० बाजपेयी)
  • रामचन्द्रजी ने झूठ नहीं बोला। – (पं० रामजी लाल शर्मा)
  • उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला। – (बाल–विनोद)
  • उसने कई बोलियाँ बोलीं। – (पं० अ० प्र० बाजपेयी)
  • हम तुम्हारी बात नहीं समझे।
  • मैंने आपकी बात नहीं समझी।
  • हम न समझे कि यह आना है या जाना तेरा। – (भट्ट जी)
  • तुम बहुत बके। तुमने बहुत बका। – (पं० अंबिकादत्त)
  • भैंस पाड़ा जनी है। भैंस ने पाड़ा जना। – (पं० अंबिकादत्त)
  • बकरी तीन बच्चे जनी। – (पं० केशवराम भट्ट)
  • चित्रांगदा ने तुझे जना। – (लाला भगवान दीन)
  • आमंत्रित कर सूर्यदेव को मैंने मन में, मंत्रशक्ति से तुझे जना था पिता–भवन में। – (मैथिलीशरण गुप्त)
  • उसने यह बात सोची।।  वह यह बात सोचा।। – (पं० केशवराम भट्ट)
  • पूतना पुकारी। चोबदार पुकारा–करीम खाँ निगाह रू–ब–रू – (राजा शिवप्रसाद)
  • सत्पुरुषों ने जिसको बारंबार पुकारा, अच्छा है।
  • जिसने गली में तुमको पुकारा। – (पं० केशवराम भट्ट)

नोट : पं० केशवराम भट्ट ने स्पष्ट कहा है कि कर्म लुप्त रहने पर ‘ने’ भी लुप्त रहता है, नहीं तो नहीं। बात ऐसी है कि हमारे विद्वानों और साहित्यकारों ने कर्म रहने पर भी कहीं तो कर्ता के साथ ‘ने’ का प्रयोग किया है कहीं नहीं किया।

सजातीय कर्म लेने के कारण जो अकर्मक क्रिया सकर्मक हो जाती है, उसके कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न नहीं आता; किन्तु कोई–कोई ऐसी कुछ क्रियाओं के साथ भूतकाल के अपूर्णभूत को छोड़ अन्य भेदों में लाते भी हैं। जैसे–
सिपाही कई लड़ाइयाँ लड़ा।
वह शेर की बैठक बैठा। – (पं० कामता प्र० गुरु)
मैं क्रिकेट खेला। – (पं० अ० दत्त व्यास)
उसने टेढ़ी चाल चली। मैंने बड़े खेल खेले। – (पं० अंबिका प्र० बाजपेयी)

उसने चौपड़ खेली। नहाना, थूकना, छींकना और खाँसना : ये अकर्मक क्रियाएँ हैं फिर भी अपने साथ कर्ता को ‘ने’ चिह्न लाने के लिए बाध्य करती हैं। यानी इन क्रियाओं के प्रयोग होने पर भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग अवश्यमेव होता है। जैसे–

  • मैंने सर्दी के कारण छींका है।
  • आज आपने नहाया क्यों नहीं?
  • दादाजी ने जोर से खाँसा था,
  • तभी तो मम्मी अंदर चली गई।
  • यह जहाँ–तहाँ किसने थूका है?

उक्त चारों अकर्मक क्रियाओं के अलावा अन्य किसी अकर्मक क्रिया के रहने पर कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता।
जैसे–
वह अभी–अभी आया है।
मैं वहाँ कई बार गया हूँ।
बच्चा अभी तो सोया था।

संयुक्त क्रिया के सभी खंड सकर्मक रहने की स्थिति में भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे–
सालिम अली ने पक्षियों को देख लिया था।
मैंने इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है।

परन्तु, नित्यताबोधक सकर्मक संयुक्त क्रिया का कर्ता ‘ने’ चिह्न कभी नहीं लाता है।
जैसे–
वे बार–बार गिना किये, हाथ कुछ न लगा। (भारतेन्दु)
वह चित्र–सी चुपचाप खड़ी सुना की। (पं० अ० व्यास)
इस दृश्य को पाण्डव सामने बैठे देखा किए (बाल भारत)
हजरत भी कल कहेंगे कि हम क्या किए। (पं० केशवराम भट्ट)

यदि संयुक्त अकर्मक क्रिया का अंतिम खण्ड ‘डालना’ हो तो उक्त भूतकालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न अवश्य आता है? किन्तु यदि अंतिम खंड ‘देना’ हो तो ‘ने’ चिह्न विकल्प से आता है।
जैसे–
उसने रातभर जाग डाला। – (पं० अ० दत्त व्यास)
जब मानसिंह चढ़ आए तब पठानों की सेना चल दी। – (पं० केशवराम भट्ट)
श्रीकृष्ण मथुरा चल दिए। – (प्रेम सागर)
मैं अपना–सा मुँह लेकर चल दिया। – (विद्यार्थी)

मुस्करा देना, हँस देना, रो देना : इन क्रियाओं के कर्ता ‘ने’ चिह्न निश्चित रूप से लाते हैं। जैसे–
मोहन ने नारद को देखकर मुस्करा दिया।
आकर के मेरी कब्र पर तुमने जो मुस्करा दिया।
बिजली छिटक के गिर पड़ी और सारा कफन जला दिया। – (हबीब पेंटर)
मुकद्दर ने रो दिया हाथ मलकर।। – (पं० केशवराम भट्ट)

संकेत में संयुक्त क्रिया के अन्त में ‘होना’ का हेतुहेतुमद्भूत रूप ‘ने’ चिह्न के साथ भी प्रयुक्त होता है। जैसे
यदि संजीव ने पढ़ा होता तो अवश्य सफल होता।
यदि भाई जी आए थे तो आपने रोक लिया होता।

प्रेरणार्थक रूप बन जाने पर सभी क्रियाएँ सकर्मक हो जाती हैं और सभी प्रेरणार्थक क्रियाओं के रहने पर सामान्य, आसन्न, पूर्ण, संदिग्ध आदि भूतकालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न आता है।
जैसे–
राजू श्रीवास्तव ने सबों को हँसाया।
माँ ने पत्र भिजवाया है।
पुत्र ने प्रणाम कहलवाया है।
अच्छे अंकों ने राहुल को सम्मान दिलाया।
कठिन मेहनत ने हर्ष को डॉक्टर बनाया था।

वर्तमान एवं भविष्यत् कालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता। जैसेमैं भी वह उपन्यास पढूँगा।

तुम वह नाटक–संग्रह पढ़ते होगे। सालिम अली पक्षियों को पक्षी की निगाह से देखते हैं। अपूर्ण भूतकाल की क्रिया रहने पर कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता है। जैसे
वह तरुमित्रा का प्रतिनिधित्व कर रहा था।
जब मि० ग्लााड चलते थे, तब पेड़े–पौधे तक सहम जाते थे।
पूरी लंका जल रही थी और विभीषण भजन कर रहे थे।

‘चुकना’ क्रिया रहने पर भूतकाल में भी कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता है।
जैसे–
मैं भात खा चुका/हूँ/था/ होता। वह देख चुका था।
सलोनी यह संग्रह पढ़ चुकी होगी

क्रिया पर कर्ता के चिहनों का प्रभाव :
1. चिह्न–रहित (‘ने’ चिह्न–रहित) कर्ता की क्रिया का रूप कर्ता के लिंग–वचन के अनुसार – होता है।
जैसे–
उड़ान भरता एक वायुयान नीचे गिर गया था।
आज भी सुपुत्र माता–पिता की सेवा को अपना कर्तव्य मानते हैं।
वह अपने कैरियर के प्रति बेहद चिंतित है।

उक्त उदाहरणों में हम देख रहे हैं कि कर्ता का शून्य चिह्न है यानी उसके साथ ‘ने’ नहीं है और कर्म के रहने पर भी क्रिया कर्त्तानुसार ही हुई है।

2. यदि वाक्य में एक ही लिंग–वचन के कई चिह्न–रहित कर्ता ‘और’, ‘तथा’, एवं, ‘व’ – आदि से जुड़े हों तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन हो जाती है। यानी
कई कर्ता (‘ने’ रहित एक ही लिंग) + क्रिया बहुवचन (समान लिंग)
जैसे–
आरती, शालू और मेघा अष्टम वर्ग में पढ़ती हैं।
शरद्, अंकेश और अभिनव नवम वर्ग में पढ़ते हैं।

3. यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक चिह्न–रहित कर्ता हों तो क्रिया बहुवचन के सिवा लिंग में अंतिम कर्ता के अनुसार होगी। जैसे–
एक घोड़ा, दो गदहे और बहुत–सी बकरियाँ मैदान में चर रही हैं।
एक बकरी, दो गदहे और चार घोड़े मैदान में चरते हैं।

4. यदि अंतिम कर्ता एकवचन हो तो क्रिया एकवचन और बहुवचन दोनों होती है।
जैसे–
तुम्हारी बकरियाँ, उसकी घोड़ी और मेरा बैल उस खेत में चरता हैचरते हैं। – (पं० अंबिकादत्त व्यास)

5. यदि चिह्न–रहित अनेक कर्त्ता परस्पर किसी विभाजक (या, अथवा, वा आदि) से जुड़े हों तो क्रिया अंतिम कर्ता के लिंग–वचन के अनुसार होती है।
जैसे–
मेरी बेटी या उसका बेटा पर्यावरण को महत्त्व नहीं देता।
स्थिति ऐसी है कि मोनू की गाय या मेरा बैल बिकेगा।

6. यदि चिन–रहित अनेक कर्ताओं और क्रियाओं के बीच में कोई समुदायवाचक शब्द आए तो क्रिया, लिंग और वचन में समुदायवाचक शब्द के अनुसार होगी।
जैसे–
अमरीका–तालिबान की लड़ाई में बच्चे, बूढ़े, जबान, औरतें सबके सब प्रभावित हुए।

7. आदर के लिए एकवचन कर्ता के साथ बहुवचन क्रिया का प्रयोग होता है, यदि कर्ता चिह्न–रहित हो तो जैसे–
पिताजी आनेवाले हैं। दादाजी रोज सुबह टहलने जाते हैं।
दादीजी चश्मा पहनकर बहुत सुन्दर लगती हैं।

8. यदि चिह्न–रहित अनेक कर्ताओं से बहुवचन का अर्थ निकले तो क्रिया बहुवचन और यदि एकवचन का अर्थ निकले तो क्रिया एकवचन होती है; चाहे कर्ताओं के आगे समूहवाचक शब्द हों अथवा नहीं हों।
जैसे–
2007 की बाढ़ के कारण खेती–बाड़ी घर–द्वार, धन–दौलत मेरा सब चला गया।
शिक्षक की प्रेरक बातें सुन मेरा उत्साह, धैर्य और आनंद बढ़ता चला गया।

9. जब कोई स्त्री या पुरुष अपने परिवार की ओर से या किसी समुदाय की ओर से जिसमें स्त्री–पुरुष दोनों हों, कुछ कहता है तब वह स्त्री हो या पुरुष (कहनेवाला) अपने लिए पुँ० बहुवचन क्रिया का प्रयोग करता है।
जैसे–
ब्राह्मणी ने कुंती से कहा, “न जाने हम बकासुर के अत्याचार से कब और कैसे छुटकारा पाएँगे?”

10. चिहन–रहित मुख्य कर्ता के अनुसार क्रिया होती है, विधेय के अनुसार नहीं।
जैसे–
लड़की बीमारी के कारण सूखकर काठ हो गई।
वह लड़का आजकल लड़की बना हुआ है।
यह भाग्य का ही फेरा है कि अर्जुन विराट नगर में बृहन्नला बन गया
औरतें भी आदमी कहलाती हैं, जनाब!

11. यदि कर्ता चिन–युक्त हो (‘ने’ से जुड़ा) और वाक्य कर्म–रहित तो क्रिया पुं० एकवचन होती है। जैसे–
मेरी माँ ने कहा था।
पिताजी ने देखा था।
शिक्षकों ने पढ़ाया होगा।
कवि ने कहा है।
किसी विद्वान् ने सच ही कहा है कि…

निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थानों में व्यक्तिवाचक या अन्य संज्ञाओं का प्रयोग करते हुए वाक्य पूरे करें :
1. ……….. ने ………. को पहले ही समझाया था, लेकिन ………. ने मेरी बात मानी ही नहीं।
2. ये सब बातें ……… ने ही बतायी थीं।
3. ……. ने ………. से क्या कहा था?
4. वे लोग शिकायत कर रहे थे ……… ने जरूर गाली दी होगी।
5. ………. ने जो भी कहा है पुत्र के भले के लिए ही कहा।
6. ……………. ने स्पष्ट कह दिया था कि अब मरीज को यहाँ आने की आवश्यकता नहीं है।
7. ……………. ने तय कर लिया था कि उसपर मुकदमा चलना ही चाहिए।
8. ……………. ने चोर को मकान में घुसते देखा और सीटी बजाने लगा।
9. ……………. ने जिस काम के लिए आरुणि से कहा था उसने वह काम कर दिखाया।
10. ……………. ने अपना अज्ञातवास भी बखूबी पूरा किया।
11. ……………. ने गीता में सच ही कहा है कि हमें निरंतर अपना काम करते रहना चाहिए।
12. ……………. ने ऐसी सजा सुनाई कि सभी ताली बजाने लगे।
13. क्या ……….. ने तेरे साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया है? उसपर केस कर बता देना चाहिए कि दहेज लेना और देना दोनों गैरकानूनी हैं।
14. इसका अर्थ यह हुआ कि …..’ने अपनी पत्नी पर चरित्रहीनता का झूठा आरोप लगाया है।
15. ……… ने कहा, “बेटा ! कोई ऐसा काम मत कर कि दुनिया तुम पर थू–थू करे।’
16. एक ……..’ ने ही मित्र को धोखा दिया है।
17. ……… ने इस बारे में क्या बताया था? और तूने परीक्षा में क्या कर दिखाया। छिः! लानत है तुमको।
18. ………. ने प्रश्न किया कि पेड़–पौधे के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?
19. ……….. ने कई फतिंगे एक साथ पकड़े।
20. ……. ने ठीक ही कहा था कि जो डर गया वह मर गया।।

कर्म कारक

“जिस पर क्रिया (काम) का फल पड़े, ‘कर्म कारक’ कहलाता है।”
जैसे–तालिबानियों ने पाकिस्तान को रौंद डाला।
सुन्दर लाल बहुगुना ने ‘चिपको आन्दोलन’ चलाया।
इन दोनों वाक्यों में ‘पाकिस्तान’ और ‘चिपको आन्दोलन’ कर्म हैं; क्योंकि ‘रौंद डालना’ और ‘चलाना’ क्रिया से प्रभावित हैं।
कर्म कारक का चिह्न ‘को’ है; परन्तु जहाँ ‘को’ चिह्न नहीं रहता है, वहाँ कर्म का शून्य चिह्न माना जाता है। जैसे
वह रोटी खाता है।
भालू नाच दिखाता है।

इन वाक्यों में ‘रोटी’ और ‘नाच’ दोनों के चिह्न–रहित कर्म हैं–

कभी–कभी वाक्यों में दो–दो कर्मों का प्रयोग भी देखा जाता है, जिनमें एक मुख्य कर्म और दूसरा गौण कर्म होता है। प्रायः वस्तुबोधक को मुख्य कर्म और प्राणिबोधक को गौण कर्म माना जाता है।

जैसे–
क्रिया पर कर्म का प्रभाव :
1. यदि वाक्य में कर्म चिह्न–रहित (शून्य) रहे और कर्त्ता में ‘ने’ लगा हो तो क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार होती है।
जैसे–
कवि ने कविता सुनाई।
माँ ने रोटी खिलाई।
मैंने एक सपना देखा।
तिलक ने महान् भारत का सपना देखा था।
गुलाम अली ने एक अच्छी ग़ज़ल सुनाई थी।
बन्दर ने कई केले खाए हैं।
बच्चों ने चार खिलौने खरीदे होंगे।

2. यदि वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों चिह्न–युक्त हों तो क्रिया सदैव पुं० एकवचन होती है।
जैसे–
स्त्रियों ने पुरुषों को देखा था।
चरवाहों ने गायों को चराया होगा।
शिक्षक ने छात्राओं को पढ़ाया है।
गाँधी जी ने सत्य और अहिंसा को महत्त्व दिया है।

3. क्रिया की अनिवार्यता प्रकट करने के लिए कर्ता में ‘ने’ की जगह ‘को’ लगाया जाता है और क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार होती है।
जैसे–
उस माँ को बच्चा पालना ही होगा।
अंशु को एम. ए. करना ही होगा।
नूतन को पुस्तकें खरीदनी होंगी।

4. अशक्ति प्रकट करने के लिए कर्त्ता में ‘से’ चिह्न लगाया जाता है और कर्म को चिह्नरहित। ऐसी स्थिति में क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार ही होती है।
जैसे–
रामानुज से पुस्तक पढ़ी नहीं जाती।
उससे रोटी खायी नहीं जाती है।
शीला से भात खाया नहीं जाता था।

5. यदि कर्ता चिह्न–युक्त हो, पहला कर्म भी चिह्न–युक्त हो और दूसरा कर्म चिह्न–रहित रहे तो क्रिया दूसरे कर्म (मुख्य कर्म) के अनुसार होती है।
जैसे–
माता ने पुत्री को विदाई के समय बहुत धन दिया।
पिता ने पुत्री को पुत्र को बधाई दी।

निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करें :

  1. माँ ने बच्चे को जगाई और कही कि नहा–धोकर स्कूल के लिए तैयार हो जाओ ताकि समय .. पर स्कूल पहुँच सको और अपने पढ़ाई में लग जाओ।
  2. पिताजी ने मुस्कराते हुए कहे कि सपूत को ऐसा ही होना चाहिए, जो सदैव इस बात के लिए चिंतित रहे कि उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य न होने पाए जिससे पिता को सिर नीचे करना पड़े।
  3. कवयित्री ने कविता पाठ करते हुए कही
    “हम ज्यों–ज्यों बढ़ते जाते हैं;
    त्यों–त्यों ही घटते जाते हैं।’
  4. सोनपुर में पशु–मेला लगा था। एक किसान ने अपने छोटी बहन से कही कि मुझे दो बैल खरीदना है; तुम मेरे लिए रोटियाँ बना दो और पप्पू से कहो कि वह भी हमारे साथ चले।
  5. सरकार ने घोषणा किया कि हम अगली पंचवर्षीय योजना में शिक्षा और कृषि को बहुत अधिक महत्त्व देंगे। कौआ की आँख तेज होती है तभी तो वह पलक झपकते बच्चा के हाथ से रोटी का टुकड़ा ले भागता है।
  6. प्रवर ने तो रोटियाँ खायी, तुमने क्या खायी है?।
  7. एक मित्र ने अपने अन्य मित्र को बधाई दिया और कहा कि आपका बेटा परीक्षा पास किया है; मिठाई खिलाइए।
  8. जो लोग अंधा होता है, उसे भ्रष्टाचार नहीं दिखता
  9. गोरा चमड़ीवाले को काला पोशाक बहुत फबता है।

करण कारक

“वाक्य में जिस साधन या माध्यम से क्रिया का सम्पादन होता है, उसे ही ‘करण–कारक’ कहते हैं।”

अर्थात् करण कारक साधन का काम करता है। इसका चिह्न ‘से’ है, कहीं–कहीं ‘द्वारा’ का प्रयोग भी किया जाता है।

जैसे–
चाहो, तो इस कलम से पूरी कहानी लिख लो।
पुलिस तमाशा देखती रही और अपहर्ता बलेरो से लड़की को ले भागा।
छात्रों को पत्र के द्वारा परीक्षा की सूचना मिली।

उपर्युक्त उदाहरणों में कलम, बलेरो और पत्र करण कारक हैं।
कभी–कभी वाक्य में करण का चिह्न लुप्त भी रहता है, वहाँ भ्रमित नहीं होना चाहिए, सीघे क्रिया के साधन खोजने चाहिए; जैसे–किससे या किसके द्वारा काम हुआ अथवा होता है? उदाहरण–
मैं आपको आँखों देखी खबर सुना रहा हूँ। किससे देखी? आँखों से (करण)
आज भी संसार में करोड़ों लोग भूखों मर रहे हैं। (भूखों–करण कारक)
करीम मियाँ ने दो दो जवान बेटों को अपने हाथों दफनाया। (हाथों करण कारण)

प्रेरक कर्ता कारक में भी करण का ‘से’ चिह्न देखा जाता है। जैसे–
यदि शत्रुओं से तेरा नाम न जपवाऊँ तो मैं विष्णुगुप्त चाणक्य नहीं।
अहमदाबाद जाते हो तो मेरा प्रस्ताव लोगों से मनवा के छोड़ना।

क्रिया की रीति या प्रकार बताने के लिए भी ‘से’ चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
धीरे से बोलो, दीवार के भी कान होते हैं।
जहाँ भी रहो, खुशी से रहो, यही मेरा आशीर्वाद है।

सम्प्रदान कारक

“कर्ता कारक जिसके लिए या जिस उद्देश्य के लिए क्रिया का सम्पादन करता है, वह ‘सम्प्रदान कारक’ होता है।”
जैसे–
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़–पीड़ितों के लिए अनाज और कपड़े बँटवाए।

इस वाक्य में ‘बाढ़–पीड़ित’ सम्प्रदान कारक है; क्योंकि अनाज और कपड़े बँटवाने का काम उनके लिए ही हुआ।

सम्प्रदान कारक का चिह्न ‘को’ भी है; लेकिन यह कर्म के ‘को’ की तरह नहीं ‘के लिए’ का बोध कराता है। जैसे–
गृहिणी ने गरीबों को कपड़े दिए। माँ ने बच्चे को मिठाइयाँ दीं।
इन उदाहरणों में गरीबों को ……… गरीबों के लिए और बच्चे को ……… बच्चे के लिए की ओर संकेत है।
प्रथम उदाहरण में एक और बात है ……. जब कोई वस्तु किसी को हमेशा–हमेशा के लिए (दान आदि अर्थ में) दी जाती है तब वहाँ ‘को’ का प्रयोग होता है जो ‘के लिए’ का बोध कराता है। प्रथम उदाहरण में गरीबों को कपड़े दान में दिए गए हैं। इसलिए ‘गरीब’ सम्प्रदान कारक का उदाहरण हुआ।

यदि ‘गरीबों’ की जगह ‘धोबी’ का प्रयोग किया जाय तो वहाँ ‘को’, ‘के लिए’ का बोधक नहीं होगा। नमस्कार आदि के लिए भी सम्प्रदान कारक का चिह्न ही लगाया जाता है।
जैसे–
पिताजी को प्रणाम। (पिताजी के लिए प्रणाम)
दादाजी को नमस्कार ! (दादाजी के लिए नमस्कार)

‘को’ और ‘के लिए’ के अतिरिक्त ‘के वास्ते’ और ‘के निमित्त’ का भी प्रयोग होता है।
जैसे–
रावण के वास्ते ही रामावतार हुआ था। यह चावल पूजा के निमित्त है।
‘को’ का विभिन्न रूपों में प्रयोग और भ्रम :

नीचे लिखे वाक्यों पर गौर करें
यह कविता कई भावों को प्रकट करती है।
फल को खूब पका हुआ होना चाहिए।
वे कवियों पर लगे हुए कलंक को धो डालें।
लोग नहीं चाहते थे कि वे यातनाओं को झेलें।

अब इन वाक्यों को देखें
यह कविता कई भाव प्रकट करती है।
फल खूब पका हुआ होना चाहिए।

इसी तरह उपर्युक्त वाक्यों से ‘को’ हटाकर उन्हें पढ़ें और दोनों में तुलना करें। आप पाएँगे कि ‘को’ रहित वाक्य ज्यादा सुन्दर हैं; क्योंकि इन वाक्यों में ‘को’ का अनावश्यक प्रयोग हुआ है।

कुछ वाक्यों में ‘को’ के प्रयोग से या तो अर्थ ही बदल जाता है या फिर वह बहुत ही भ्रामक हो जाता है। नीचे लिखे वाक्यों को देखें
प्रकृति ने रात्रि को विश्राम के लिए बनाया है।
भ्रामक भाव– (प्रकृति ने रात्रि इसलिए बनाई है कि वह विश्राम करे)
प्रकृति ने रात्रि विश्राम के लिए बनाई है।
सामान्य भाव–(प्रकृति ने रात्रि जीव–जन्तुओं के विश्राम के लिए बनाई है)

कुछ लोग ‘पर’, ‘से’, ‘के लिए’ और ‘के हाथ’ के स्थान पर भी ‘को’ का प्रयोग कर बैठते हैं।
नीचे लिखे वाक्यों में ‘को’ की जगह उपर्युक्त चिह्न लगाएँ–
1. वह इस व्याकरण की असलियत हिन्दी जगत् को प्रकट कर दे।
2. वह प्रत्येक प्रश्न को वैज्ञानिक ढंग पर विश्लेषण करने का पक्षपाती था।
3. इनको इन्कार कर वह स्वराज्य क्या खाक लेगा।
4. उनको समझौते की इच्छा थी।
5. सरकारी एजेंटों को तुम अपना माल मत बेचो।
6. स्त्री को ‘स्त्री’ संज्ञा देकर पुरुष को छुटकारा नहीं।
7. मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ जो आपको अधिकारपूर्वक कह सकूँ।
8. मैं अध्यक्ष को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को निवेदन करता हूँ।
9. भारतीयों के आन्दोलन को जोरदार समर्थन प्राप्त था।
10. उन्होंने भवन की कार्रवाई को देखा था।
11. उस पुस्तक को तो मैंने यों ही रहने दी।
12. वे सन्तान को लेकर दुःखी थे।
13. वह खेल को लेकर व्यस्त था।
14. इस विषय को लेकर दोनों राष्ट्रों में बहुत मतभेद है।

अब ‘को’ के प्रयोग संबंधी कुछ नियमों पर विचार करें :
1. जहाँ कर्म अनुक्त रहे वहाँ ‘को’ का प्रयोग करना चाहिए। जैसे–
बन्दर आमों को बड़े चाव से खाता है।
खगोलशास्त्री तारों को देख रहे हैं।
कुछ राजनेताओं ने ब्राह्मणों को बहुत सताया है।

2. व्यक्तिवाचक, अधिकारवाचक और व्यापार कर्तृवाचक में ‘को’ का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
मेघा को पढ़ने दो।
फैक्ट्री के मालिक को समझाना चाहिए।
अपने सिपाही को बुलाओ।
वह अपने नौकर को कभी–कभी मारता भी है।

3. गौण कर्म या सम्प्रदान कारक में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे–
पूतना कृष्ण को दूध पिलाने लगी।
मैंने उसको पुस्तक खरीद दी। (उसके लिए)
उसने भूखों को अन्न और नंगों को वस्त्र दिए।

4. आना, छजना, पचना, पड़ना, भाना, मिलना, रुचना, लगना, शोभना, सुहाना, सूझना, होना और चाहिए इत्यादि के योग में ‘को’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
उन्हें याद आती है, आपकी प्रेरक बातें।
उसको भोजन नहीं पचता है।
दिल को कल क्या पड़ी, बात ही बिगड़ गई।
उसको क्या पड़ा है, बिगड़ता तो मेरा है न।
दशरथ को राम के बिछोह में कुछ नहीं भाता था।
मजदूरों को उनका स्वत्व कब मिलेगा?
बच्चों को मिठाई बहुत रुचती है।

5. निमित्त, आवश्यकता और अवस्था द्योतन में ‘को’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
राम शबरी से मिलने को आए थे।
पिताजी स्नान को गए हैं।
अब मुझको पढ़ने जाना है।
उनको यहाँ फिर–फिर आना होगा। 6. योग्य, उपयुक्त, उचित, आवश्यक, नमस्कार, धिक्कार और धन्यवाद के योग में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे
स्वच्छ वायु–सेवन आपको उपयोगी होगा। विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य रखना उचित है। मुझको वहाँ जाना आवश्यक है। श्री गणेश को नमस्कार। आज भी पापी को धिक्कार है।
इस सहयोग के लिए आपको बहुत–बहुत धन्यवाद।

7. समय, स्थान और विनिमय–द्योतक में ‘को’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
पंजाब मेल भोर को आएगी।
वह घोड़ा कितने को दोगे?
कल रात को अच्छी वर्षा हुई थी।

नोट : ऐसी जगहों पर ‘में’ और ‘पर’ का भी प्रयोग होता है।

8. समाना, चढ़ना, खुलना, लगाना, होना, डरना, कहना और पूछना क्रियाओं के योग में भी ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे–
आपको भूत समाया है जो ऐसी–वैसी हरकतें कर रहे हैं।
उस विद्यार्थी को पढ़ाई का भूत चढ़ा है।
वह किसी काम का नहीं, उसको आग लगाओ।
तुमको एक बात कहता हूँ, किसी से मत कहना।

नोट : ‘होना’ क्रिया के साथ अस्तित्व अर्थ में ‘को’ के बदले ‘के’ भी लाया जाता है।
सुधीर जी के पुत्र हुआ है।
उसके दाढ़ी नहीं है।
चली थी बर्थी किसी पर,
किसी के आन लगी।

9. निम्नलिखित अवस्थाओं में ‘को’ प्रायः लुप्त रहता है; परन्तु विशेष अर्थ में स्वराघात के बदले कहीं–कहीं आता भी है, छोटे–छोटे जीवों एवं अप्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ। जैसे–
उसने बिल्ली मारी है।
किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे, हे राम! ……मगर एक जुगनू चमकते जो देखा मैंने.. ……..
वह सुबह आया है।

अपादान कारक
“वाक्य में जिस स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु की पृथकता अथवा तुलना का बोध होता है, वहाँ अपादान कारक होता है।”

यानी अपादान कारक से जुदाई या विलगाव का बोध होता है। प्रेम, घृणा, लज्जा, ईर्ष्या, भय और सीखने आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए अपादान कारक का ही प्रयोग किया जाता है; क्योंकि उक्त कारणों से अलग होने की क्रिया किसी–न–किसी रूप में जरूर होती है। जैसे–

पतझड़ में पीपल और ढाक के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं।
वह अभी तक हैदराबाद से नहीं लौटा है। मेरा घर शहर से दूर है।
उसकी बहन मुझसे लजाती है।
खरगोश बाघ से बहुत डरता है।
नूतन को गंदगी से बहुत घृणा है।
हमें अपने पड़ोसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
मैं आज से पढ़ने जाऊँगा।

‘से’ का प्रयोग

‘से’ चिह्न ‘करण’ एवं ‘अपादान’ दोनों कारकों का है; किन्तु प्रयोग में काफी अंतर है। करण कारक का ‘से’ माध्यम या साधन के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि अपादान का ‘से’ जुदाई या अलग होने या करने का बोध कराता है। करण का ‘से’ साधन से जुड़ा रहता है।
जैसे–
वह कलम से लिखता है। (साधन)
उसके हाथ से कलम गिर गई। (हाथ से अलग होना)

1. अनुक्त और प्रेरक कर्ता कारक में ‘से’ का प्रयोग होता है–
जैसे–
मुझसे रोटी खायी जाती है। (मेरे द्वारा)
आपसे ग्रंथ पढ़ा गया था। (आपके द्वारा)

मुझसे सोया नहीं जाता।
वह मुझसे पत्र लिखवाती है।

2. क्रिया करने की रीति या प्रकार बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे–
धीरे (से) बोलो, कोई सुन लेगा।
जहाँ भी रहो, खुशी से रहो।

3. मूल्यवाचक संज्ञा और प्रकृति बोध में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है। जैसे–
कल्याण कंचन से मोल नहीं ले सकते हो।
छूने से गर्मी मालूम होती है।
वह देखने से संत जान पड़ता है।

4. कारण, साथ, द्वारा, चिह्न, विकार, उत्पत्ति और निषेध में भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे–
आलस्य से वह समय पर न आ सका।
दया से उसका हृदय मोम हो गया।
गर्मी से उसका चेहरा तमतमाया हुआ था।
जल में रहकर मगर से बैर रखना अच्छी बात नहीं।
वह एक आँख से काना और एक पाँव से लँगड़ा जो ठहरा।
आप–से–आप कुछ भी नहीं होता, मेहनत करो, मेहनत।
दौड़–धूप से नौकरी नहीं मिलती, रिश्वत के लिए भी तैयार रहो।

5. अपवाद (विभाग) में ‘से’ का प्रयोग अपादान के लिए होता है।
जैसे–
वह ऐसे गिरा मानो आकाश से तारे।
वह नजरों से ऐसे गिरा, जैसे पेड़ से पत्ते।

6. पूछना, दुहना, जाँचना, कहना, पकाना आदि क्रियाओं के गौण कर्म में ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
मैं आपसे पूछता हूँ, वहाँ क्या–क्या सुना है?
भिखारी धनी से कहीं जाँचता तो नहीं है?
मैं आपसे कई बार कह चुकी हूँ।
बाबर्ची चावल से भात पकाता है।

7. मित्रता, परिचय, अपेक्षा, आरंभ, परे, बाहर, रहित, हीन, दूर, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, अतिरिक्त, लज्जा, बचाव, डर, निकालना इत्यादि शब्दों के योग में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है।
जैसे–
संजय भांद्रा अपने सभी भाइयों से अलग है।
उनको इन सिद्धांतों से अच्छा परिचय है।
धन से कोई श्रेष्ठ नहीं होता, विद्या से होता है।
बुद्धिमान शत्रु बुद्धिहीन मित्रों से कहीं अच्छा होता है।
मानव से तो कुत्ता भला जो कम–से–कम गद्दारी तो नहीं करता।
घर से बाहर तक खोज डाला, कहीं नहीं मिला।
विद्या और बुद्धि से हीन मानव पशु से भी बदतर है।
अभी भी मँझधार से किनारा दूर है।
यदि मैं पोल खोल दूं तो तुम्हें दोस्तों से भी शर्माना पड़ेगा।
भला मैं तुमसे क्यों डरूँ, तुम कोई बाघ हो जो खा जाओगे।
अन्य लोगों को मैदान से बाहर निकाल दीजिए तभी मैच देखने का आनंद मिलेगा।

8. स्थान और समय की दूरी बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
अभी भी गरीबों से दिल्ली दूर है।
आज से कितने दिन बाद आपका आगमन होगा?

9. क्रियाविशेषण के साथ भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
आप कहाँ से टपक पड़े भाई जान?
किधर से आगमन हो रहा है श्रीमान का?

10. पूर्वकालिक क्रिया के अर्थ में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
उसने पेड़ से बंदूक चलाई थी। – (पेड़ पर चढ़कर)
कोठे से देखो तो सब कुछ दिख जाएगा। – (कोठे पर चढ़कर)

कुछ स्थलों पर ‘से’ लुप्त रहता है–
जैसे–
बच्चा घुटनों चलता है।
खिल गई मेरे दिल की कली आप–ही–आप।
आपके सहारे ही तो मेरे दिन कटते हैं।
साँप–जैसे प्राणी पेट के बल चलते हैं।
दूधो नहाओ, पूतो फलो। किसके मुँह खबर भेजी आपने?
इस बात पर मैं तुम्हें जूते मारता।
आप हमेशा इस तरह क्यों बोलते हैं?

संबंध कारक

“वाक्य में जिस पद से किसी वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ का दूसरे व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ से संबंध प्रकट हो, ‘संबंध कारक’ कहलाता है।”
जैसे–
अंशु की बहन आशु है।
यहाँ ‘अंशु’ संबंध कारक है।

यों तो संबंध और संबोधन को कारक माना ही नहीं जाना चाहिए, क्योंकि इसका संबंध क्रिया से किसी रूप में नहीं होता। हाँ, कर्ता से अवश्य रहता है।
जैसे–
भीम के पुत्र घटोत्कच ने कौरवों के दाँत खट्टे कर दिए।

उक्त उदाहरण में हम देखते हैं कि क्रिया की उत्पत्ति में अन्य कारकों की तरह संबंध सक्रिय नहीं है।

फिर भी, परंपरागत रूप से संबंध को कारक के भेदों में गिना जाता रहा है। इसका एकमात्र चिह्न ‘का’ है, जो लिंग और वचन से प्रभावित होकर ‘की’ और ‘के’ बन जाता है। इन उदाहरणों को देखें–
गंगा का पुत्र भीष्म बाण चलाने में बड़े–बड़ों के कान काटते थे।
नदी के किनारे–किनारे वन–विभाग ने पेड़ लगवाए।
मेनका की पुत्री शकुन्तला भरत की माँ बनी।

जब सर्वनाम पर संबंध कारक का प्रभाव पड़ता है, तब ना–ने–नी’ और ‘रा–रे–री’ हो जाता है।
जैसे–
अपने दही को कौन खट्टा कहता है?
मेरे पुत्र और तेरी पुत्री का जीवन सुखमय हो सकता है।

संबंध कारक के चिह्नों के प्रयोग से कई स्थलों पर अर्थभेद भी हो जाया करता है।

निम्नलिखित उदाहरण देखें–
उसके बहन नहीं है। – (उसको बहन नहीं है)
उसकी बहन नहीं है। – (यानी दूसरे की बहन है, उसकी नहीं)

‘का–के–की’ का प्रयोग
सम्पूर्णता, मूल्य, समय, परिमाण, व्यक्ति, अवस्था, दर, बदला, केवल, स्थान, प्रकार, योग्यता, शक्ति, साथ, भविष्य, कारण, आधार, निश्चय, भाव, लक्षण, शीघ्रता आदि के लिए संबंध कारक के चिह्नों का प्रयोग होता है।

जैसे–
सात रुपये की थाली, नाचे घरवाली। (लोकोक्ति)
एक हाथ का साँप, फिर भी बाप–रे–बाप !
चार दिनों की चाँदनी फिर अँधरी रात।
राजा का रंक राई का पर्वत।
सबके–सब चले गए रह गए केवल तुम। – (शिवमंगल सिंह सुमन)
अचंभे की बात सुनने योग्य ही होती है।
अब यह विपत्ति की घड़ी टलनेवाली ही है।
राह का थका बटोही गहरी नींद सोता है।
आज भी दूध–का–दूध और पानी–का–पानी होता है।
दिन का सोना और रात का करवटें बदलना कभी अच्छा नहीं होता।
बात की बात में बात निकल आती है।

तुल्य, अधीन, समीप और आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, बाहर, बायाँ, दायाँ, योग्य अनुसार, प्रति, साथ आदि शब्दों के योग में भी संबंध के चिह्न आते हैं।
जैसे–
मेरे पीछे मेरा पूरा कुनबा है।
फल सर्वदा कर्म के अधीन रहा है।
नदी की ओर बढ़ो, वह तुम्हें मिल जाएगा।
सोनिया काँग्रेस का दायाँ हाथ है।
पति के साथ क्या तुम खुश हो?
तुम्हें माता कब की पुकार रही है। – (तुम्हें माता कब से पुकार रही है।)

यदि विशेष्य उपमान हो तो उपमेय में संबंध का चिह्न प्रयुक्त होगा। जैसे–
वह दया का सागर है।
प्रेम का बंधन बड़ा मजबूत होता है।
कर्म की फाँस कभी गलफाँस नहीं होती, जनाब!

कभी–कभी गौण कर्म में भी संबंध का चिह्न आता है।
जैसे–
कोई गधा तुम्हारे लात मारे।

उन शब्दों के योग में भी संबंध–चिह्न आता है जो कृदंतीय शब्दों के कर्ता या कर्म के अर्थों में आ सके।
जैसे–
मुझे तो लगता है कि तुम उसी के आने से भागे जाते हो।
क्या हुआ जग के रूठे से?
खिचड़ी के खाते ही लगा जी मिचलाने।

नोट : कहीं–कहीं संबंधी लुप्त रहता है।
जैसे–
तुम सबकी सुन लेते हो अपनी कहाँ कहते हो।
मन की मन ही माँझ रही। – (सूरदास)
यह कभी नहीं होने का है।
मैं तेरी नहीं सुनूँगा।

अधिकरण कारक

“वाक्य में क्रिया का आधार, आश्रय, समय या शर्त ‘अधिकरण’ कहलाता है।”
आधार को ही अधिकरण माना गया है। यह आधार तीन तरह का होता है–स्थानाधार, समयाधार और भावाधार। जब कोई स्थानवाची शब्द क्रिया का आधार बने तब वहाँ स्थानाधिकरण होता है। जैसे–
बन्दर पेड़ पर रहता है।
चिड़ियाँ पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं।
मछलियाँ जल में रहती हैं।
मनुष्य अपने घर में भी सुरक्षित कहाँ रहता है।

जब कोई कालवाची शब्द क्रिया का आधार हो तब वहाँ कालाधिकरण होता है।
जैसे–
मैं अभी दो मिनटों में आता हूँ।

जब कोई क्रिया ही क्रिया के आधार का काम करे, तब वहाँ भावाधिकरण होता है।
जैसे–
शरद पढ़ने में तेज है।
राजलक्ष्मी दौड़ने में तेज है।

कहीं–कहीं अधिकरण कारक के चिह्न (में, पर) लुप्त भी रहते हैं।
जैसे–
आजकल वह राँची रहता है।
मैं जल्द ही आपके दफ्तर पहुँच रहा हूँ।
ईश्वर करे. आपके घर मोती बरसे।

कहीं–कहीं अधिकरण का चिह्न रहने पर भी वहाँ अन्य कारक होते हैं।
जैसे–
आजकल के नेता लोग रुपयों पर बिकते हैं। – (रुपयों के लिए’ भाव है)
‘में’ और ‘पर’ का प्रयोग
1. निर्धारण, कारण, भीतर, भेद, मूल्य, विरोध, अवस्था और द्वारा अर्थ में अधिकरण का चिह्न आता है।
जैसे–
स्थलीय जीवों में हाथी सबसे बड़ा पशु है।
पहाड़ों में हिमालय सबसे बड़ा और ऊँचा है।
पाकिस्तान और तालिबान में कोई फर्क नहीं है।

2. अनुसार, सातत्य, दूरी, ऊपर, संलग्न और अनंतर के अर्थों में और वार्तालाप के प्रसंग में ‘पर’ चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे–
नियत समय पर काम करो और उसका मीठा फल खाओ।
घोड़े पर चढ़नेवाला हर कोई घुड़सवार नहीं हो जाता।
यहाँ से पाँच किलोमीटर पर गंगा बहती है।
इस पर वह क्रोध से बोला और चलते बना .
मैं पत्र–पर–पत्र भेजता रहा और तुम चुपचाप बैठे रहे।

3. गत्यर्थक धातुओं के साथ में’ और ‘पर’ दोनों आते हैं।
जैसे–
वह डेरे पर गया होगा।
मैं आपकी शरण में आया हूँ।

उक्त वाक्यों का वैकल्पिक रूप है।
वह डेरे को गया होगा।
मैं आपकी शरण को आया हूँ।

निम्नलिखित वाक्यों में ‘में’ की जगह ‘पर’ लिखें, क्योंकि इनमें ‘में’ भद्दा लग रहा है–
1. उसकी दृष्टि चित्र में गड़ी है।
2. वह पुस्तक में आँखें गाड़े है।
3. कन्या की हत्या में उन्हें आजीवन जेल हुई।
4. नाजायज शराब में मुरारि की गिरफ्तारी हुई।
5. हमारी भाषा में अंग्रेजी का बड़ा प्रभाव है।
6. उनकी माँग में सभी लोगों की सहानुभूति है।
7. भ्वाइस ऑफ अमरीका में यह समाचार बताया गया है।
8. सड़क में भारी भीड़ थी।
9. उस स्थान में पहले से कई व्यक्ति मौजूद थे।
10. उन्होंने सेठ के चरणों में पगड़ी रख दी।

संबोधन कारक

“जिस संज्ञापद से किसी को पुकारने, सावधान करने अथवा संबोधित करने का बोध हो, ‘संबोधन’ कारक कहते हैं।”

संबोधन प्रायः कर्ता का ही होता है, इसीलिए संस्कृत में स्वतंत्र कारक नहीं माना गया है। संबोधित संज्ञाओं में बहुवचन का नियम लागू नहीं होता और सर्वनामों का कोई संबोधन नहीं होता, सिर्फ संज्ञा पदों का ही होता है।

नीचे लिखे वाक्यों को देखें–
भाइयो एवं बहनो! इस सभा में पधारे मेरे सहयोगियो ! मेरा अभिवादन स्वीकार करें। हे भगवान् ! इस सड़ी गर्मी में भी लोग कैसे जी रहे हैं।
बच्चो ! बिजली के तार को मत छूना।
देवियो और सज्जनो ! इस गाँव में आपका स्वागत है।

नोट : सिर्फ संबोधन कारक का चिह्न संबोधित संज्ञा के पहले आता है।
संज्ञा एवं सर्वनाम पदों की रूप रचना

उल्लेखनीय है कि संज्ञा और सर्वनाम विकारी होते हैं और इसके रूप लिंग–वचन तथा कारक – के कारण परिवर्तित होते रहते हैं। नीचे कुछ संज्ञाओं एवं सर्वनामों के रूप दिए जा रहे हैं

1. अकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘फूल’
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – फूल/फूल ने – फूल/फूलों ने
(०/को) कर्म – फूल/फूल को – फूलों को
(से/द्वारा) करण – फूल/फूल से/ के द्वारा – फूलों से/ के द्वारा
(को के लिए) सम्प्रदान – फूल को/ के लिए – फूलों को/ के लिए
(से) अपादान – फूल से – फूलों से
(का–के–की) संबंध – फूल का/के/की – फूलों का/ के की
(में पर) अधिकरण – फूल में/पर – फूलों में/ पर
(हे/हो अरे) संबोधन – हे फूल ! – हे फूलो !

2. अकारान्त स्त्री० संज्ञा : ‘बहन’
कारक (परसगी – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – बहन/बहन ने – बहनें/बहनों ने
(०/को) कर्म – बहन/बहन को – बहनों को
(से/द्वारा) करण – बहन से/के द्वारा – बहनों से/ के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – बहन को/ के लिए – बहनों को/के लिए
(से) अपादान – बहन से – बहनों से
(का–के–की) संबंध – बहन का/ केकी – बहनों का/ केकी
(में/पर) अधिकरण – बहन में/ पर – बहनों में पर
(हे/हो…) संबोधन – हे बहन ! – हे बहनो !

3. अकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘लड़का’
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – लड़का/लड़के ने – लड़के/लड़कों ने
(०/को) कर्म – लड़के को – लड़कों को
(से/द्वारा) करण – लड़के से/के द्वारा – लड़कों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – लड़के को/के लिए – लड़कों को/ के लिए
(से) अपादान – लड़के से – लड़कों से
(का–के–की) संबंध – लड़के का/के की – लड़कों का/ केकी
(में/पर) अधिकरण – लड़के में/पर – लड़कों में/पर
(हे/हो/…) संबोधन – हे लड़के ! – हे लड़को !

4. अकारान्त स्त्री० संज्ञा : ‘माता’
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – माता/माता ने – माताएँ/माताओं ने
(०/को) कर्म – माता/माता को – माताओं को
(से/द्वारा) करण – माता से/के द्वारा – माताओं से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – माता को/के लिए – माताओं को के लिए
(से) अपादान – माता से – माताओं से
(का–के–की) संबंध – माता का/के/की – माताओं का/के की
(में/पर) अधिकरण – माता में/पर – माताओं में/पर
(हे/हो/…) संबोधन – हे माता ! – हे माताओ !

5. इकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘कवि’
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – कवि/कवि ने – कवि/कवि ने
(०/क) कर्म – कवि/कवियों ने कवि/कवि को – कवि/कवियों ने कवि/कवि को
(से/द्वारा) करण – कवि/कवियों को कवि से/के द्वारा – कवि/कवियों को कवि से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – कवियों से/के द्वारा कवि को/के लिए – कवियों से/के द्वारा कवि को/के लिए
(से) अपादान – कवियों को/के लिए कवि से – कवियों को/के लिए कवि से
(का–के–की) संबंध – कवियों से कवि का/के की – कवियों से कवि का/के की
(में/पर) अधिकरण – कवियों का/के/की कवि में/पर – कवियों का/के/की कवि में/पर
(हे/हो/…) संबोधन – – कवियों में/पर हे कवि ! – हे कवियो !

6. इकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘शक्ति’
कारक (परसम) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – शक्ति/शक्ति ने – शक्तियों ने/शक्तियाँ
(०/को) कर्म – शक्ति/शक्ति को – शक्तियों को/शक्तियाँ
(से/द्वारा) करण – शक्ति से/के द्वारा – शक्तियों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – शक्ति को/के लिए – शक्तियों को/के लिए
(से) अपादान – शक्ति से – शक्तियों से
(का–के–की) संबंध – शक्ति का/के की – शक्तियों का/के की
(में/पर) अधिकरण – शक्ति में/पर – शक्तियों में/पर
(हे/हो…) संबोधन – हे शक्ति ! – हे शक्तियो !

7. ईकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘धोबी’
एकवचन में सभी रूप : धोबी ने / को से / के द्वारा को के लिए / से / का के। की / में पर हे धोबी !
बहुवचन में सभी रूप : धोबियों ने को / से के द्वारा / को के लिए से का के की / में पर हे धोबियो !

8. ईकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘बेटी’
एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – बेटी ने/बेटी – बेटियाँ/बेटियों ने
(०/को) कर्म बेटी को – बेटियों को
(से/द्वारा) करण – बेटी से/के द्वारा– बेटियों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – बेटी को/के लिए – बेटियों को/के लिए
(से) अपादान – बेटी से – बेटियों से
(का–के–की) संबंध – बेटी का/के/की – बेटियों का/के/की
(में/पर) अधिकरण – बेटी में/पर – बेटियों में पर
(हे/अरी) संबोधन – अरी बेटी ! – अरी बेटियो !

9. उकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘साधु’ एकवचन में सभी रूप : साधु ने / को से के द्वारा को के लिए से का के की में पर / हे साधु !
बहुवचन में सभी रूप : साधुओं ने / को से के द्वारा को के लिए / से का के। की। में पर हे साधुओ!

10. उकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘वस्तु’
कारक (परसग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – वस्तु/वस्तु ने – वस्तुएँ/वस्तुओं ने
(०/को) कर्म – वस्तु/वस्तु को – वस्तुओं को
(से/द्वारा) करण – वस्तु से/के द्वारा – वस्तुओं को/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – वस्तु को/के लिए– वस्तुओं को/के लिए
(से) अपादान – वस्तु से – वस्तुओं से
(का–के–की) संबंध – वस्तु का/के/की – वस्तुओं का/के/की
(में/पर) अधिकरण – वस्तु में/पर – वस्तुओं में/पर
(हे/हो/अरी) संबोधन – अरी वस्तु !– अरी वस्तुओ !

11. ऊकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘भालू’ एकवचन में सभी : भालू ने / को / से / के द्वारा / को के लिए / से का / के की। में पर हे भालू !
बहुवचन में सभी : साधुओं ने को / से के द्वारा को के लिए से का / के की / में पर हे साधुओ !

12. ऊकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘बहू’
कारक (परसगी) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – बहू ने/बहू – बहुएँ/बहुओं ने
(०/को) कर्म – बहू को बहू – बहुएँ/बहुओं को
(से/द्वारा) करण – बहू से/के द्वारा – बहुओं से के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – बहू को/के लिए – बहुओं को/के लिए
(से) अपादान – बहू से – बहुओं से
(का–के–की) संबंध – बहू का/के की – बहुओं का/के/की
(में/पर) अधिकरण – बहू में/पर – बहुओं में/पर
(अरी/हे…) संबोधन – हे बहू ! – हे बहुओ !

13. ‘मैं’ सर्वनाम का रूप
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – मैं/मैंने – हम/हमने
(०/को) कर्म – मुझे/मुझको – हमें हमको
(से/द्वारा) करण – मुझसे/मेरे द्वारा – हमें हमारे द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – मुझको/मेरे लिए – हमको/हमारे लिए
(से) अपादान – मुझसे – हमसे
(का–के–की) संबंध – मेरा/मेरे/मेरी – हमारा/हमारे हमारी
(में/पर) अधिकरण – मुझ में/मुझ पर – हम में/हम पर
(हे/हो/अरे) संबोधन – x – x

इसी तरह अन्य सर्वनामों के रूप देखें :

तू + ने – :तूने – वह + ने – :उसने/उन्होंने
तू + को – :तुझको – यह + को – :इसको/इसे/इनको
तू + रा/रे/री – :तेरा/तेरे/तेरी – यह + में – :इसमें इनमें
तू + में – :तुझमें – कोई – :सभी कारक–चिह्ण के साथ किसी
तुम + ने – :तुमने – कुछ – :सभी चिह्नों के साथ अपरिवर्तित
तु + को – :तुमको/तुम्हें – कौन + ने – :किसने
तुम + रा/रे/री – :तुम्हारा/तुम्हारे तुम्हारी – कौन + को – :किसे/किसको
वह + ने – :उसने/उन्होंने – जो – :जिस/’जिन’ के रूप में परिवर्तित
वह + का/के की – :उसका/उसके उसकी/उनका/उनमें उनकी
वह + में – :उसमें/उनमें

Karak in Hindi Worksheet Exercise Questions with Answers PDF

1. ‘राम अयोध्या से वन को गए। इस वाक्य में ‘से’ किस कारक का बोधक है?
(a) करण
(b) कर्ता
(c) अपादान
उत्तर :
(c) अपादान

2. ‘मछली पानी में रहती है’ इस वाक्य में किस कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?
(a) संबंध
(b) कर्म
(c) अधिकरण
उत्तर :
(c) अधिकरण

3. ‘राधा कृष्ण की प्रेमिका थी’ इस वाक्य में की’ चिह्न किस कारक की ओर संकेत करता है?
(a) करण
(b) संबंध
(c) कर्ता
उत्तर :
(b) संबंध

4. ‘गरीबों को दान दो’ ‘गरीब’ किस कारक का उदाहरण है?
(a) कर्म
(b) करण
(c) सम्प्रदान
उत्तर :
(c) सम्प्रदान

5. ‘बालक छुरी से खेलता है’ छुरी किस कारक की ओर संकेत करता है?
(a) करण
(b) अपादान
(c) सम्प्रदान
उत्तर :
(a) करण

6. सम्प्रदान कारक का चिह्न किस वाक्य में प्रयुक्त हुआ है?
(a) वह फूलों को बेचता है।
(b) उसने ब्राह्मण को बहुत सताया था।
(c) प्यासे को पानी देना चाहिए।
उत्तर :
(c) प्यासे को पानी देना चाहिए।

7. इन वाक्यों में से किसमें करण कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?
(a) लड़की घर से निकलने लगी है
(b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं
(c) पहाड़ से नदियों निकली हैं
उत्तर :
(b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं

8. किस वाक्य में कर्म–कारक का चिह्न आया है?
(a) मोहन को खाने दो
(b) पिता ने पुत्र को बुलाया
(c) सेठ ने नंगों को वस्त्र दिए
उत्तर :
(b) पिता ने पुत्र को बुलाया

9. अपादान कारक किस वाक्य में आया है?
(a) हिमालय पहाड़ सबसे ऊँचा है
(b) वह जाति से वैश्य है
(c) लड़का छत से कूद पड़ा था
उत्तर :
(c) लड़का छत से कूद पड़ा था

10. इनमें से किस वाक्य में ‘से’ चिह्न कर्ता के साथ है?
(a) वह पानी से खेलता है
(b) मुझसे चला नहीं जाता
(c) पेड़ से पत्ते गिरते हैं
उत्तर :
(b) मुझसे चला नहीं जाता

Visheshan in Hindi | विशेषण शब्द (Shabd), भेद (Bhed), प्रकार और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

visheshan in hindi

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विशेषण परिभाषा  – Visheshan in Hindi Examples (Udaharan) – Hindi Grammar

  • परिभाषा
  • प्रकार
  • प्रविशेषण
  • तुलनाबोधक विशेषण

“जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता अथवा हीनता बताए, ‘विशेषण’ कहलाता है और वह संज्ञा या सर्वनाम ‘विशेष्य’ के नाम से जाना जाता है।”

नीचे लिखे वाक्यों को देखें-

  • अच्छा आदमी सभी जगह सम्मान पाता है।
  • बुरे आदमी को अपमानित होना पड़ता है।

उक्त उदाहरणों में ‘अच्छा’ और ‘बुरा’ विशेषण एवं ‘आदमी’ विशेष्य हैं। विशेषण हमारी जिज्ञासाओं का शमन (समाधान) भी करता है। उक्त उदाहण में ही-
कैसा आदमी? – अच्छा/बुरा

विशेषण न सिर्फ विशेषता बताता है; बल्कि वह अपने विशेष्य की संख्या और परिमाण (मात्रा) भी बताता है।

जैसे-

  • पाँच लड़के गेंद खेल रहे हैं। (संख्याबोधक)

इस प्रकार विशेषण के चार प्रकार होते हैं-

  1. गुणवाचक विशेषण
  2. संख्यावाचक विशेषण
  3. परिमाणवाचक विशेषण
  4. सार्वनामिक विशेषण

1. गुणवाचक विशेषण

“जो शब्द, किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, स्थिति, स्वभाव, दशा, दिशा, स्पर्श, गंध, स्वाद आदि का बोध कराए, ‘गुणवाचक विशेषण’ कहलाते हैं।”

गुणवाचक विशेषणों की गणना करना मुमकिन नहीं; क्योंकि इसका क्षेत्र बड़ा ही विस्तृत हुआ करता है।

जैसे-

  • गुणबोधक : अच्छा, भला, सुन्दर, श्रेष्ठ, शिष्ट,
  • दोषबोधक : बुरा, खराब, उदंड, जहरीला, …………….
  • रंगबोधक : काला, गोरा, पीला, नीला, हरा, …………….
  • कालबोधक : पुराना, प्राचीन, नवीन, क्षणिक, क्षणभंगुर, …………….
  • स्थानबोधक : चीनी, मद्रासी, बिहारी, पंजाबी, …………….
  • गंधबोधक : खुशबूदार, सुगंधित, …………….
  • दिशाबोधक : पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी, दक्षिणी, …………….
  • अवस्था बोधक : गीला, सूखा, जला, …………….
  • दशाबोधक : अस्वस्थ, रोगी, भला, चंगा, …………….
  • आकारबोधक : मोटा, छोटा, बड़ा, लंबा, …………….
  • स्पर्शबोधक : कठोर, कोमल, मखमली, …………….
  • स्वादबोधक : खट्टा, मीठा, कसैला, नमकीन …………….

गुणवाचक विशेषणों में से कुछ विशेषण खास विशेष्यों के साथ प्रयुक्त होते हैं। उनके प्रयोग से वाक्य बहुत ही सुन्दर और मज़ेदार हो जाया करते हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-

  1. इस चिलचिलाती धूप में घर से निकलना मुश्किल है।
  2. इस मोहल्ले का बजबजाता नाला नगर निगम की पोल खोल रहा है।
  3. मुझे लाल-लाल टमाटर बहुत पसंद हैं।
  4. शालू के बाल बलखाती नागिन-जैसे हैं।

नोट : उपर्युक्त वाक्यों में चिलचिलाती ………. धूप के लिए, बजबजाता ………. नाले के लिए, लाल-लाल …….. टमाटर के लिए और बलखाती ………… नागिन के लिए प्रयुक्त हुए हैं। ऐसे विशेषणों को ‘पदवाचक विशेषण’ कहा जाता है।

क्षेत्रीय भाषाओं में जहाँ के लोग कम पढ़े-लिखे होते हैं, वे कभी-कभी उक्त विशेषणों से भी जानदार विशेषणों का प्रयोग करते देखे गए हैं।
जैसे-

  • बहुत गहरे लाल के लिए : लाल टुह-टुह
  • बहुत सफेद के लिए : उज्जर बग-बग/दप-दप
  • बहुत ज्यादा काले के लिए : कार खुट-खुट/करिया स्याह
  • बहुत अधिक तिक्त के लिए : नीम हर-हर
  • बहुत अधिक हरे के लिए : हरिअर/हरा कचोर/हरिअर कच-कच
  • बहुत अधिक खट्टा के लिए : खट्टा चुक-चुक/खट्टा चून
  • बहुत अधिक लंबे के लिए : लम्बा डग-डग
  • बहुत चिकने के लिए : चिक्कन चुलबुल
  • बहुत मैला/गंदा : मैल कुच-कुच
  • बहुत मोटे के लिए : मोटा थुल-थुल
  • बहुत घने तारों के लिए : तारा गज-गज
  • बहुत गहरा दोस्त : लँगोटिया यार
  • बहुत मूर्ख के लिए : मूर्ख चपाट/चपाठ

नीचे दिए गए विशेषणों से उपयुत विशेषण चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

  • मूसलाधार, प्राकृतिक, आलसी, बासंती, तेजस्वी, साप्ताहिक, टेढ़े-मेढ़े, धनी, ओजस्वी, शर्मीली, भाती, पीले-पीले, लजीज, बर्फीली, काले-कजरारे, बलखाती, पर्वतीय, कड़कती, सुनसान, सुहानी, वीरान, पुस्तकीय, बजबजाता, चिलचिलाती,
  1. ………… धूप को जो चाँदनी देते बना।
  2. उसके ……… घाव से मवाद रिस रहा है।
  3. ………… बादलों को उमड़ते-घुमड़ते देख कृषक प्रसन्न हो उठे।
  4. ……बरसता पानी, जरा न रुकता लेता दम।
  5. उस बालक का चेहरा बड़ा ………… था।
  6. आज माँ ने बड़ा ……….. भोजन बनाया है।
  7. कई मुहल्लों की गलियाँ बच्चों के बिना ……….. हो गईं।
  8. ………. प्रदेशों की यात्रा बहुत ही आनन्दप्रद होती है।
  9. उन वादियों की …… सुषमा बड़ी चित्ताकर्षक है।
  10. रविवार को ….. अवकाश रहता है।
  11. वह लड़की बहुत ………… है।
  12. जोरों की ……….. हवा चलने लगी।
  13. ……… बिजली से आँखें धुंधिया गईं।
  14. ………… ज्ञान से व्यावहारिक ज्ञान अधिक प्रामाणिक होता है।
  15. ……….. व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं होते।
  16. ये ………. रास्ते उन्हीं बस्तियों की ओर जाते हैं।
  17. ……….. गाय अपने बछड़े के लिए परेशान है।
  18. चतरा जिले की ……….. घाटियाँ बड़ी डरावनी हैं।
  19. ………. हवा के स्पर्शन से मन उत्फुल्ल हो जाता है।
  20. बगैर शोषण के कोई ………….. नहीं होता।
  21. ………….. रसीले आम देख लार टपकने लगी।
  22. उसकी ……….. कमर देख म्यूजिकल फीलिंग होती है।
  23. …………….. चाँदनी रातें बड़ी मनभावन होती हैं।
  24. कहो तो तेरी ………. छुट्टी भी रद्द करवा दूँ।

2. संख्यावाचक विशेषण

“वह विशेषण, जो अपने विशेष्यों की निश्चित या अनिश्चित संख्याओं का बोध कराए, ‘संख्यावाचक विशेषण’ कहलाता है।”
जैसे-
उस मैदान में पाँच लड़के खेल रहे हैं।
इस कक्षा के कुछ छात्र पिकनिक पर गए हैं।

उक्त उदाहरणों में ‘पाँच’ लड़कों की निश्चित संख्या एवं ‘कुछ’ छात्रों की अनिश्चित संख्या बता रहे हैं।
निश्चित संख्यावाचक विशेषण भी कई तरह के होते हैं-
1. गणनावाचक : यह अपने विशेष्य की साधारण संख्या या गिनती बताता है। इसके भी दो प्रभेद होते हैं-
(a) पूर्णांकबोधक/पूर्ण संख्यावाचक : इसमें पूर्ण संख्या का प्रयोग होता है।
जैसे-
चार छात्र, आठ लड़कियाँ …………

(b) अपूर्णांक बोधक/अपूर्ण संख्यावाचक : इसमें अपूर्ण संख्या का प्रयोग होता है।
जैसे-
सवा रुपये, ढाई किमी. आदि।

2. क्रमवाचक : यह विशेष्य की क्रमात्मक संख्या यानी विशेष्य के क्रम को बतलाता है। इसका प्रयोग सदा एकवचन में होता है।
जैसे-
पहली कक्षा, दूसरा लड़का, तीसरा आदमी, चौथी खिड़की आदि।

3. आवृत्तिवाचक : यह विशेष्य में किसी इकाई की आवृत्ति की संख्या बतलाता है।
जैसे-
दुगने छात्र, ढाई गुना लाभ आदि।

4. संग्रहवाचक : यह अपने विशेष्य की सभी इकाइयों का संग्रह बतलाता है।
जैसे-
चारो आदमी, आठो पुस्तकें आदि।

5. समुदायवाचक : यह वस्तुओं की सामुदायिक संख्या को व्यक्त करता है।
जैसे-
एक जोड़ी चप्पल, पाँच दर्जन कॉपियाँ आदि।

6. वीप्सावाचक : व्यापकता का बोध करानेवाली संख्या को वीप्सावाचक कहते हैं। यह दो प्रकार से बनती है—संख्या के पूर्व प्रति, फी, हर, प्रत्येक इनमें से किसी के पूर्व प्रयोग से या संख्या के द्वित्व से।

जैसे-
प्रत्येक तीन घंटों पर यहाँ से एक गाड़ी खुलती है।
पाँच-पाँच छात्रों के लिए एक कमरा है।

कभी-कभी निश्चित संख्यावाची विशेषण भी अनिश्चयसूचक विशेषण के योग से अनिश्चित संख्यावाची बन जाते हैं।
जैसे-
उस सभा में लगभग हजार व्यक्ति थे।

आसपास की दो निश्चित संख्याओं का सह प्रयोग भी दोनों के आसपास की अनिश्चित संख्या को प्रकट करता है।

जैसे-
मुझे हजार-दो-हजार रुपये दे दो।

कुछ संख्याओं में ‘ओं’ जोड़ने से उनके बहुत्व यानी अनिश्चित संख्या की प्रतीति होती है।
जैसे-
सालों बाद उसका प्रवासी पति लौटा है।
वैश्विक आर्थिक मंदी का असर करोड़ों लोगों पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।

3. परिमाणवाचक विशेषण

”वह विशेषण जो अपने विशेष्यों की निश्चित अथवा अनिश्चित मात्रा (परिमाण) का बोध कराए, ‘परिमाणवाचक विशेषण’ कहलाता है।”

इस विशेषण का एकमात्र विशेष्य द्रव्यवाचक संज्ञा है।
जैसे-
मुझे थोड़ा दूध चाहिए, बच्चे भूखे हैं।
बारात को खिलाने के लिए चार क्विटल चावल चाहिए।

उपर्युक्त उदाहरणों में थोड़ा’ अनिश्चित एवं ‘चार क्विटल’ निश्चित मात्रा का बोधक है। परिमाणवाचक से भिन्न संज्ञा शब्द भी परिमाणवाचक की भाँति प्रयुक्त होते हैं।
जैसे-
चुल्लूभर पानी में डूब मरो।
2007 की बाढ़ में सड़कों पर छाती भर पानी हो गया था।

संख्यावाचक की तरह ही परिमाणवाचक में भी ‘ओं’ के योग से अनिश्चित बहुत्व प्रकट होता है।
जैसे-
उस पर तो घड़ों पानी पड़ गया है।

4. सार्वनामिक विशेषण

हम जानते हैं कि विशेषण के प्रयोग से विशेष्य का क्षेत्र सीमित हो जाता है। जैसे— ‘गाय’ कहने से उसके व्यापक क्षेत्र का बोध होता है; किन्तु ‘काली गाय’ कहने से गाय का क्षेत्र सीमित हो जाता है। इसी तरह “जब किसी सर्वनाम का मौलिक या यौगिक रूप किसी संज्ञा के पहले आकर उसके क्षेत्र को सीमित कर दे, तब वह सर्वनाम न रहकर ‘सार्वनामिक विशेषण’ बन जाता है।”

जैसे-
यह गाय है। वह आदमी है।

इन वाक्यों में ‘यह’ एवं ‘वह’ गाय तथा आदमी की निश्चितता का बोध कराने के कारण निश्चयवाचक सर्वनाम हुए; किन्तु यदि ‘यह’ एवं ‘वह’ का प्रयोग इस रूप में किया जाय-
यह गाय बहुत दूध देती है।
वह आदमी बड़ा मेहनती है।

तो ‘यह’ और ‘वह’ ‘गाय’ एवं आदमी के विशेषण बन जाते हैं। इसी तरह अन्य उदाहरणों को देखें-
1. वह गदहा भागा जा रहा है।
2. जैसा काम वैसा ही दाम, यही तो नियम है।
3. जितनी आमद है उतना ही खर्च भी करो।

वाक्यों में विशेषण के स्थानों के आधार पर उन्हें दो भागों में बाँटा गया है-
1. सामान्य विशेषण : जिस विशेषण का प्रयोग विशेष्य के पहले हो, वह ‘सामान्य विशेषण’ कहलाता है।
जैसे
काली गाय बहुत सुन्दर लगती है।
मेहनती आदमी कहीं भूखों नहीं मरता।

2. विधेय विशेषण : जिस विशेषण का प्रयोग अपने विशेष्य के बाद हो, वह ‘विधेय विशेषण’ कहलाता है।
जैसे-
वह गाय बहुत काली है।
आदमी बड़ा मेहनती था।

प्रविशेषण या अंतरविशेषण
विशेषण तो किसी संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताता है; परन्तु कुछ शब्द विशेषण एवं क्रियाविशेषण (Adverb) की विशेषता बताने के कारण ‘प्रविशेषण’ या अंतरविशेषण’ कहलाते हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें-

1. विश्वजीत डरपोक लड़का है। (विशेषण)
विश्वजीत बड़ा डरपोक लड़का है। (प्रविशेषण)

2. सौरभ धीरे-धीरे पढ़ता है। (क्रियाविशेषण)
सौरभ बहुत धीरे-धीरे पढ़ता है। (प्रविशेषण)

उपर्युक्त वाक्यों में ‘बड़ा’, ‘डरपोक’ विशेषण की और ‘बहुत’ शब्द ‘धीरे-धीरे’ क्रिया विशेषण की विशेषता बताने के कारण ‘प्रविशेषण’ हुए।
नीचे लिखे वाक्यों में प्रयुक्त प्रविशेषणों को रेखांकित करें :

1. बहुत कड़ी धूप है, थोड़ा आराम तो कर लीजिए।
2. पिछले साल बहुत अच्छी वर्षा होने के कारण फसल भी काफी अच्छी हुई।
3. ऐसा अवारा लड़का मैंने कहीं नहीं देखा है।
4. वह किसान काफी मेहनती और धनी है।
5. बहुत कमजोर लड़का काफी सुस्त हो जाता है।
6. गंगा का जल अब बहुत पवित्र नहीं रहा।
7. चिड़िया बहुत मधुर स्वर में चहचहा रही है।
8. बचपन बड़ा उम्दा होता है।
9. साहस जिन्दगी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण है।
10. हँसती-मुस्कराती प्राकृतिक सुषमा कितनी प्रदूषित हो चुकी है!

विशेषणों की तुलना (Comparison of Adjectives)
“जिन विशेषणों के द्वारा दो या अधिक विशेष्यों के गुण-अवगुण की तुलना की जाती है, उन्हें ‘तुलनाबोधक विशेषण’ कहते हैं।”

तुलनात्मक दृष्टि से एक ही प्रकार की विशेषता बतानेवाले पदार्थों या व्यक्तियों में मात्रा का अन्तर होता है। तुलना के विचार से विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैं

1. मूलावस्था (Positive Degree) : इसके अंतर्गत विशेषणों का मूल रूप आता है। इस अवस्था में तुलना नहीं होती, सामान्य विशेषताओं का उल्लेख मात्र होता है।
जैसे-
अंशु अच्छी लड़की है।
आशु सुन्दर है।

2. उत्तरावस्था (Comparative Degree) : जब दो व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच अधिकता या न्यूनता की तुलना होती है, तब उसे विशेषण की उत्तरावस्था कहते हैं।
जैसे-
अंशु आशु से अच्छी लड़की है।
आशु अंशु से सुन्दर है।

उत्तरावस्था में केवल तत्सम शब्दों में ‘तर’ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे-

  • सुन्दर + तर > सुन्दरतर
  • महत् + तर > महत्तर
  • लघु + तर > लघुतर
  • अधिक + तर > अधिकतर
  • दीर्घ + तर > दीर्घतर

हिन्दी में उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए ‘से’ और ‘में’ चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
बच्ची फूल से भी कोमल है।
इन दोनों लड़कियों में वह सुन्दर है।

विशेषण की उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए ‘के अलावा’, ‘की तुलना में’, ‘के मुकाबले’ आदि पदों का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे-
पटना के मुकाबले जमशेदपुर अधिक स्वच्छ है।
संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी कम कठिन है।
आपके अलावा वहाँ कोई उपस्थित नहीं था।

3. उत्तमावस्था (Superlative Degree) : यह विशेषण की सर्वोत्तम अवस्था है। जब दो से अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच तुलना की जाती है और उनमें से एक को श्रेष्ठता या निम्नता दी जाती है, तब विशेषण की उत्तमावस्था कहलाती है।
जैसे-
कपिल सबसे या सबों में अच्छा है।
दीपू सबसे घटिया विचारवाला लड़का है।

तत्सम शब्दों की उत्तमावस्था के लिए ‘तम’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे-

  • सुन्दर + तम > सुन्दरतम
  • महत् + तम > महत्तम।
  • लघु + तम > लघुतम
  • अधिक + तम > अधिकतम
  • श्रेष्ठ + तम > श्रेष्ठतम

‘श्रेष्ठ’, के पूर्व, ‘सर्व’ जोड़कर भी इसकी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है।
जैसे-
नीरज सर्वश्रेष्ठ लड़का है।

फारसी के ‘ईन’ प्रत्यय जोड़कर भी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है।
जैसे-
बगदाद बेहतरीन शहर है।

विशेषणों की रचना
विशेषण पदों की रचना प्रायः सभी प्रकार के शब्दों से होती है। शब्दों के अन्त में ई, इक, . मान्, वान्, हार, वाला, आ, ईय, शाली, हीन, युक्त, ईला प्रत्यय लगाने से और कई बार अंतिम
प्रत्यय का लोप करने से विशेषण बनते हैं।

  • ‘ई’ प्रत्यय : शहर-शहरी, भीतर-भीतरी, क्रोध-क्रोधी ‘इक’
  • प्रत्यय : शरीर-शारीरिक, मन—मानसिक, अंतर-आंतरिक ‘मान्’
  • प्रत्यय : श्री–श्रीमान्, बुद्धि—बुद्धिमान्, शक्ति-शक्तिमान् ‘वान्’
  • प्रत्यय : धन-धनवान्, रूप-रूपवान्, बल-बलवान् ‘हार’ या ‘हार’
  • प्रत्यय : सृजन-सृजनहार, पालन-पालनहार ‘वाला’
  • प्रत्यय : रथ रथवाला, दूध-दूधवाला ‘आ’
  • प्रत्यय : भूख-भूखा, प्यास-प्यासा ‘ईय’
  • प्रत्यय : भारत-भारतीय, स्वर्ग–स्वर्गीय ‘ईला’
  • प्रत्यय : चमक-चमकीला, नोंक-नुकीला ‘हीन’
  • प्रत्यय : धन-धनहीन, तेज-तेजहीन, दया—दयाहीन
  • धातुज : नहाना—नहाया, खाना-खाया, खाऊ, चलना—चलता, बिकना—बिकाऊ
  • अव्ययज : ऊपर-ऊपरी, भीतर-भीतर-भीतरी, बाहर–बाहरी

संबंध की विभक्ति लगाकार—लाल रंग की साड़ी, तेज बुद्धि का आदमी, सोनू का घर, गरीबों की दुनिया।

नोट : विशेषण पदों के निर्माण से संबंधित बातों की विस्तृत चर्चा ‘प्रत्यय-प्रकरण’ में की जा चुकी है। विशेषणों का रूपान्तर

विशेषण का अपना
लिंग-वचन नहीं होता। वह प्रायः अपने विशेष्य के अनुसार अपने रूपों को परिवर्तित करता है। हिन्दी के सभी विशेषण दोनों लिंगों में समान रूप से बने रहते हैं; केवल आकारान्त विशेषण स्त्री० में ईकारान्त हो जाया करता है।

अपरिवर्तित रूप
1. बिहारी लड़के भी कम प्रतिभावान् नहीं होते।
2. बिहारी लड़कियाँ भी कम सुन्दर नहीं होती।
3. वह अपने परिवार की भीतरी कलह से परेशान है।
4. उसका पति बड़ा उड़ाऊ है।
5. उसकी पत्नी भी उड़ाऊ ही है।

परिवर्तित रूप
1. अच्छा लड़का सर्वत्र आदर का पात्र होता है।
2. अच्छी लड़की सर्वत्र आदर की पात्रा होती है।
3. बच्चा बहुत भोला-भाला था।
4. बच्ची बहुत भोली-भाली थी।
5. हमारे वेद में ज्ञान की बातें भरी-पड़ी हैं।
6. हमारी गीता में कर्मनिरत रहने की प्रेरणा दी गई है।
7. महान आयोजन महती सभा
8. विद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं।
9. विदुषी स्त्री समादरणीया होती है।
10. राक्षस मायावी होता था।
11. राक्षसी मायाविनी होती थी।

जिन विशेषण शब्दों के अन्त में ‘इया’ रहता है, उनमें लिंग के कारण रूप-परिवर्तन नहीं होता।
जैसे-
मुखिया, दुखिया, बढ़िया, घटिया, छलिया।
दुखिया मर्दो की कमी नहीं है इस देश में।
दुखिया औरतों की भी कमी कहाँ है इस देश में।

उर्दू के उम्दा, ताजा, जरा, जिंदा आदि विशेषणों का रूप भी अपरिवर्तित रहता है।
जैसे-
आज की ताजा खबर सुनो।
पिताजी ताजा सब्जी लाये हैं।
वह आदमी अब तलक जिंदा है।
वह लड़की अभी तक जिंदा है।

सार्वनामिक विशेषणों के रूप भी विशेष्यों के अनुसार ही होते हैं।
जैसे-
जैसी करनी वैसी भरनी
यह लड़का—वह लड़की
ये लड़के-वे लड़कियाँ

जो तद्भव विशेषण ‘आ’ नहीं रखते उन्हें ईकारान्त नहीं किया जाता है। स्त्री० एवं पुं० बहुवचन में भी उनका प्रयोग वैसा ही होता है।

जैसे
ढीठ लड़का कहीं भी कुछ बोल जाता है।
ढीठ लड़की कुछ-न-कुछ करती रहती है।
वहाँ के लड़के बहुत ही ढीठ हैं।

जब किसी विशेषण का जातिवाचक संज्ञा की तरह प्रयोग होता है तब स्त्री.- पुं. भेद बराबर स्पष्ट रहता है।
जैसे-
उस सुन्दरी ने पृथ्वीराज चौहान को ही वरण किया।
उन सुन्दरियों ने मंगलगीत प्रारंभ कर दिए।

परन्तु, जब विशेषण के रूप में इनका प्रयोग होता है तब स्त्रीत्व-सूचक ‘ई’ का लोप हो जाता है।
जैसे-
उन सुन्दर बालिकाओं ने गीत गाए।
चंचल लहरें अठखेलियाँ कर रही हैं।
मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही थी।

जिन विशेषणों के अंत में ‘वान्’ या ‘मान्’ होता है, उनके पुँल्लिंग दोनों वचनों में ‘वान्’ या ‘मान्’ और स्त्रीलिंग दोनों वचनों में ‘वती’ या ‘मती’ होता है।
जैसे-
गुणवान लड़का : गुणवान् लड़के
गुणवती लड़की : गुणवती लड़कियाँ
बुद्धिमान लड़का : बुद्धिमान लड़के
बुद्धिमती लड़की : बुद्धिमती लड़कियाँ

Visheshan in Hindi Worksheet Exercise with Answers PDF

1. जो शब्द किसी संज्ञा की विशेषता बताए वह-
(a) विशेष्य है
(b) विशेषण है
(c) क्रियाविशेषण है
उत्तर :
(b) विशेषण है

2. विशेषण के मुख्यतः ………….. प्रकार हैं।
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
उत्तर :
(c) चार

3. प्रविशेषण शब्द किसकी विशेषता बताता है?
(a) संज्ञा एवं सर्वनाम की
(b) संज्ञा एवं विशेषण की
(c) संज्ञा, सर्वनाम एवं विशेषण की
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(a) संज्ञा एवं सर्वनाम की

4. ‘मोटा’ एक ………… विशेषण है।
(a) गुणवाचक
(b) संख्यावाचक
(c) परिमाणवाचक
उत्तर :
(a) गुणवाचक

5. ‘हंस’ एक ………….. पत्रिका है।
(a) दैनिक
(b) मासिक
(c) वार्षिक
उत्तर :
(b) मासिक

6. ‘सा’ के प्रयोग से किस तरह के विशेषण का बोध होता है?
(a) गुणवाचक
(b) सार्वनामिक
(c) तुलनाबोधक
उत्तर :
(c) तुलनाबोधक

7. ‘पवित्रता’ से विशेषण बनेगा
(a) पवित्र
(b) पवित्रात्मा
(c) दोनों
उत्तर :
(a) पवित्र

8. विशालकाय दैत्य दौड़ा। इसमें कौन सा पद विशेषण है?
(a) विशालकाय
(b) दैत्य
(c) दौड़ा
उत्तर :
(a) विशालकाय

9. ‘सुन्दर’ विशेषण का रूप स्त्रीलिंग में होगा
(a) सुन्दरी
(b) सुन्दरा
(c) सुन्दर
उत्तर :
(a) सुन्दरी

10. विशेषण का लिंग
(a) विशेष्य के अनुसार होता है
(b) स्वतंत्र रहता है
(c) पुँल्लिंग होता है
(d) स्त्रीलिंग होता है।
उत्तर :
(a) विशेष्य के अनुसार होता है