Roopak Alankar – रूपक अलंकार, परिभाषा उदाहरण अर्थ हिन्दी एवं संस्कृत

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रूपक अलंकार

जब उपमेय पर उपमान का निषेध-रहित आरोप करते हैं, तब रूपक अलंकार होता है। उपमेय में उपमान के आरोप का अर्थ है–दोनों में अभिन्नता या अभेद दिखाना। इस आरोप में निषेध नहीं होता है। जैसे-

  • “यह जीवन क्या है? निर्झर है।”

इस उदाहरण में जीवन को निर्झर के समान न बताकर जीवन को ही निर्झर कहा गया है। अतएव, यहाँ रूपक अलंकार हुआ।

दूसरा उदाहरण-

बीती विभावरी जागरी !
अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।

यहाँ, ऊषा में नागरी का, अम्बर में पनघट का और तारा में घट का निषेध-रहित आरोप हुआ है। अतः, यहाँ रूपक अलंकार है।

कुछ अन्य उदाहरण :

  • मैया ! मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों।
  • चरण-कमल बन्दौं हरिराई।
  • राम कृपा भव-निसा सिरानी।
  • प्रेम-सलिल से द्वेष का सारा मल धुल जाएगा।
  • चरण-सरोज पखारन लागा।
  • प्रभात यौवन है वक्ष-सर में
    कमल भी विकसित हुआ है कैसा।
  • बंदौं गुरुपद-पदुम परागा
    सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।
  • पायो जी मैंने नाम-रतन धन पायो।
  • एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास।
  • कर जाते हो व्यथा भार लघु
    बार-बार कर-कंज बढ़ाकर।

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