मुहावरे (Muhavare) (Idioms) – Muhavare in Hindi Grammar, अर्थ सहित

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Muhavare in Hindi (मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग)

हिन्दी मुहावरे का अर्थ और वाक्य

मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग इन हिन्दी

भाषा की समृद्धि और उसकी अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है। भाषा में इनके प्रयोग से सजीवता और प्रवाहमयता आ जाती है, फलस्वरूप पाठक या श्रोता शीघ्र ही प्रभावित हो जाता है। जिस भाषा में इनका जितना अधिक प्रयोग होगा, उसकी अभिव्यक्ति क्षमता उतनी ही प्रभावपूर्ण व रोचक होगी।

मुहावरा

‘मुहावरा’ शब्द अरबी भाषा का है जिसका अर्थ है ‘अभ्यास होना’ या ‘आदी होना’। इस प्रकार मुहावरा शब्द अपने–आप में स्वयं मुहावरा है, क्योंकि यह अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर असामान्य अर्थ प्रकट करता है। वाक्यांश शब्द से स्पष्ट है कि मुहावरा संक्षिप्त होता है, परन्तु अपने इस संक्षिप्त रूप में ही किसी बड़े विचार या भाव को प्रकट करता है।

उदाहरणार्थ एक मुहावरा है– ‘काठ का उल्लू’। इसका अर्थ यह नहीं कि लकड़ी का उल्लू बना दिया गया है, अपितु इससे यह अर्थ निकलता है कि जो उल्लू (मूर्ख) काठ का है, वह हमारे किस काम का, उसमें सजीवता तो है ही नहीं। इस प्रकार हम इसका अर्थ लेते हैं– ‘महामूर्ख’ से।

हिन्दी के महत्त्वपूर्ण मुहावरे, उनके अर्थ और प्रयोग

(अ)

1. अंक में समेटना–(गोद में लेना, आलिंगनबद्ध करना)
शिशु को रोता हुआ देखकर माँ का हृदय करुणा से भर आया और उसने उसे अंक में समेटकर चुप किया।

2. अंकुश लगाना–(पाबन्दी या रोक लगाना)
राजेश खर्चीला लड़का था। अब उसके पिता ने उसका जेब खर्च बन्द
करके उसकी फ़िजूलखर्ची पर अंकुश लगा दिया है।

3. अंग बन जाना–(सदस्य बनना या हो जाना)
घर के नौकर रामू से अनेक बार भेंट होने के पश्चात् एक अतिथि ने कहा, “रामू तुम्हें इस घर में नौकरी करते हुए काफी दिन हो गए हैं, ऐसा लगता .. कि जैसे तुम भी इस घर के अंग बन गए हो।”

4. अंग–अंग ढीला होना–(बहुत थक जाना)
सारा दिन काम करते करते, आज अंग–अंग ढीला हो गया है।

5. अण्डा सेना–(घर में बैठकर अपना समय नष्ट करना)
निकम्मे ओमदत्त की पत्नी ने उसे घर में पड़े देखकर एक दिन कह ही दिया, “यहीं लेटे–लेटे अण्डे सेते रहोगे या कुछ कमाओगे भी।”

6. अंगूठा दिखाना–(इनकार करना)
आज हम हरीश के घर ₹10 माँगने गए, तो उसने अँगूठा दिखा दिया।

7. अन्धे की लकड़ी–(एक मात्र सहारा)
राकेश अपने माँ–बाप के लिए अन्धे की लकड़ी के समान है।

8. अंन्धे के हाथ बटेर लगना–(अनायास ही मिलना)
राजेश हाईस्कूल परीक्षा में प्रथम आया, उसके लिए तो अन्धे के हाथ बटेर लग गई।

9. अन्न–जल उठना–(प्रस्थान करना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले
जाना) रिटायर होने पर प्रोफेसर साहब ने कहा, “लगता है बच्चों, अब तो यहाँ से हमारा अन्न–जल उठ ही गया है। हमें अपने गाँव जाना पड़ेगा।”

10. अक्ल के अन्धे–(मूर्ख, बुद्धिहीन)
“सुधीर साइन्स (साइड) के विषयों में अच्छी पढ़ाई कर रहा था, मगर उस अक्ल के अन्धे ने इतनी अच्छी साइड क्यों बदल दी ?” सुधीर के एक मित्र ने उसके बड़े भाई से पूछा।

11. अक्ल पर पत्थर पड़ना–(कुछ समझ में न आना)
मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं, कुछ समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ।

12. अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना–(मूर्खतापूर्ण कार्य करना)
तुम हमेशा अक्ल के पीछे लट्ठ लिए क्यों फिरते हो, कुछ समझ–बूझकर काम किया करो।

13. अक्ल का अंधा/अक्ल का दुश्मन होना–(महामूर्ख होना।)
राजू से साथ देने की आशा मत रखना, वह तो अक्ल का अंधा है।

14. अपनी खिचड़ी अलग पकाना–(अलग–थलग रहना, किसी की न
मानना) सुनीता की पड़ोसनों ने उसको अपने पास न बैठता देखकर कहा, “सुनीता तो अपनी खिचड़ी अलग पकाती है, यह चार औरतों में नहीं बैठती।”

15. अपना उल्लू सीधा करना–(स्वार्थ सिद्ध करना)
आजकल के नेता सिर्फ अपना उल्लू सीधा करते हैं।

16. अपने मुँह मियाँ मिठू बनना–(आत्मप्रशंसा करना) राजू अपने मुँह .
मियाँ मिठू बनता रहता है।

17. अक्ल के घोड़े दौड़ाना–(केवल कल्पनाएँ करते रहना)
सफलता अक्ल के घोड़े दौड़ाने से नहीं, अपितु परिश्रम से प्राप्त होती है।

18. अँधेरे घर का उजाला–(इकलौता बेटा)
मयंक अँधेरे घर का उजाला है।

19. अपना सा मुँह लेकर रह जाना–(लज्जित होना)
विजय परीक्षा में नकल करते पकड़े जाने पर अपना–सा मुँह लेकर रह गया।

20. अरण्य रोदन–(व्यर्थ प्रयास)
कंजूस व्यक्ति से धन की याचना करना अरण्य रोदन है।

21. अक्ल चरने जाना–(बुद्धिमत्ता गायब हो जाना)
तुमने साठ साल के बूढ़े से 18 वर्ष की लड़की का विवाह कर दिया, लगता है तुम्हारी अक्ल चरने गई थी।

22. अड़ियल टटू–(जिद्दी)
आज के युग में अड़ियल टटू पीछे रह जाते हैं।

23. अंगारे उगलना–(क्रोध में लाल–पीला होना)
अभिमन्यु की मृत्यु से आहत अर्जुन कौरवों पर अंगारे उगलने लगा।

24. अंगारों पर पैर रखना–(स्वयं को खतरे में डालना)
व्यवस्था के खिलाफ लड़ना अंगारों पर पैर रखना है।

25. अन्धे के आगे रोना–(व्यर्थ प्रयत्न करना)
अन्धविश्वासी अज्ञानी जनता के मध्य मार्क्सवाद की बात करना अन्धे के आगे रोना है।

26. अंगूर खट्टे होना–(अप्राप्त वस्तु की उपेक्षा करना)
अजय, “सिविल सेवकों को नेताओं की चापलूसी करनी पड़ती है” कहकर, अंगूर खट्टे वाली बात कर रहा है, क्योंकि वह परिश्रम के बावजूद नहीं चुना गया।

27. अंगूठी का नगीना–(सजीला और सुन्दर)
विनय कम्पनी की अंगूठी का नगीना है।

28. अल्लाह मियाँ की गाय–(सरल प्रकृति वाला)
रामकुमार तो अल्लाह मियाँ की गाय है।

29. अंतड़ियों में बल पड़ना–(संकट में पड़ना)
अपने दोस्त को चोरों से बचाने के चक्कर में, मैं ही पकड़ा गया और मेरी ही अंतड़ियों में बल पड़ गए।

30. अन्धा बनाना–(मूर्ख बनाकर धोखा देना)
अपने गुरु को अन्धा बनाना सरल कार्य नहीं है, इसलिए मुझसे ऐसी बात मत करो।

31. अंग लगाना–(आलिंगन करना)
प्रेमिका को बहुत समय पश्चात् देखकर रवि ने उसे अंग लगा लिया।

32. अंगारे बरसना–(कड़ी धूप होना)
जून के महीने में अंगारे बरस रहे थे और रिक्शा वाला पसीने से लथपथ था।

33. अक्ल खर्च करना–(समझ को काम में लाना)
इस समस्या को हल करने में थोड़ी अक्ल खर्च करनी पड़ेगी।

34. अड्डे पर चहकना–(अपने घर पर रौब दिखाना)
अड्डे पर चहकते फिरते हो, बाहर निकलो तो तुम्हें देखा जाए।

35. अन्धाधुन्ध लुटाना–(बहुत अपव्यय करना)
उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों की बीवियाँ अन्धाधुन्ध पैसा लुटाती हैं।

36. अपनी खाल में मस्त रहना–(अपनी दशा से सन्तुष्ट रहना)
संजय 4000 रुपए कमाकर अपनी खाल में मस्त रहता है।

37. अन्न न लगना–(खाकर–पीकर भी मोटा न होना)
अभय अच्छे से अच्छा खाता है, लेकिन उसे अन्न नहीं लगता।

38. अधर में लटकना या झूलना–(दुविधा में पड़ा रह जाना)
कल्याण सिंह भाजपा में पुन: शामिल होंगे यह फैसला बहुत दिन तक अधर में लटका रहा।

39. अठखेलियाँ सूझना–(हँसी दिल्लगी करना)
मेरे चोट लगी हुई है, उसमें दर्द हो रहा है और तुम्हें अठखेलियाँ सूझ रही हैं।

40. अंग न समाना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)
सिविल सेवा में चयन से अनुराग अंग नहीं समा रहा है।

41. अंगूठे पर मारना–(परवाह न करना)
तुम अजीब व्यक्ति हो, सभी की सलाह को अंगूठे पर मार देते हो।

42. अंटी मारना–(कम तौलना)
बहुत से पंसारी अंटी मारने से बाज नहीं आते।

43. अंग टूटना–(थकावट से शरीर में दर्द होना)
दिन भर काम करा अब तो अंग टूट रहे हैं।

44. अंधेर नगरी–(जहाँ धांधली हो)
पूँजीवादी व्यवस्था ‘अंधेर नगरी’ बनकर रह गई है।

45. अंकुश न मानना–(न डरना)
युवा पीढ़ी किसी का अंकुश मानने को तैयार नहीं है।

46. अन्न का टन्न करना–(बनी चीज को बिगाड़ देना)
अभी–अभी हुए प्लास्टर पर तुमने पानी डालकर अन्न का टन्न कर दिया।

47. अन्न–जल बदा होना–(कहीं का जाना और रहना अनिवार्य हो जाना)
हमारा अन्न–जल तो मेरठ में बदा है।

48. अधर काटना–(बेबसी का भाव प्रकट करना)
पुलिस द्वारा बेटे की पिटाई करते देख पिता ने अपने अधर काट लिए।

49. अपनी हाँकना–(आत्म श्लाघा करना)
विवेक तुम हमारी भी सुनोगे या अपनी ही हाँकते रहोगे।

50. अर्श से फर्श तक–(आकाश से भूमि तक)
भ्रष्टाचार में लिप्त बाबूजी बड़ी शेखी बघारते थे, एक मामले में निलंबित होने पर वे अर्श से फर्श पर आ गए।

51. अलबी–तलबी धरी रह जाना–(निष्प्रभावी होना)
बहुत ज्यादा परेशान करोगी तो तुम्हारे घर शिकायत कर दूंगा। सारी अलबी–तलबी धरी रह जाएगी।

52. अस्ति–नास्ति में पड़ना–(दुविधा में पड़ना)
दो लड़कियों द्वारा पसन्द किए जाने पर वह अस्ति–नास्ति में पड़ा हुआ है और कुछ निश्चय नहीं कर पा रहा है।

53. अन्दर होना–(जेल में बन्द होना)
मायावती के राज में शहर के अधिकतर गुण्डे अन्दर हो गए।

54. अरमान निकालना–(इच्छाएँ पूरी करना)।
बेरोज़गार लोग नौकरी मिलने पर अरमान निकालने की सोचते हैं।

(आ)

55. आग पर तेल छिड़कना–(और भड़काना)
बहुत से लोग सुलह सफ़ाई करने के बजाय आग पर तेल छिड़कने में प्रवीण होते हैं।

56. आग पर पानी डालना–(झगड़ा मिटाना)
भारत व पाक आपसी समझबूझ से आग पर पानी डाल रहे हैं।

57. आग–पानी या आग और फूस का बैर होना–(स्वाभाविक शत्रुता होना)
भाजपा और साम्यवादी पार्टी में आग–पानी या आग और फूस का बैर है।

58. आँख लगना–(झपकी आना)
रात एक बजे तक कार्य किया, फिर आँख लग गई।

59. आँखों से गिरना–(आदर भाव घट जाना)
जनता की निगाहों से अधिकतर नेता गिर गए हैं।

60. आँखों पर चर्बी चढ़ना–(अहंकार से ध्यान तक न देना)
पैसे वाले हो गए हो, अब क्यों पहचानोगे, आँखों पर चर्बी चढ़ गई है ना।

61. आँखें नीची होना–(लज्जित होना)
बच्चों की करतूतों से माँ–बाप की आँखें नीची हो गईं।

62. आँखें मूंदना–(मर जाना)
आजकल तो बाप के आँखें मूंदते ही बेटे जायदाद का बँटवारा कर लेते हैं।

63. आँखों का पानी ढलना (निर्लज्ज होना)
अब तो तुम किसी की नहीं सुनते, लगता है, तुम्हारी आँखों का पानी ढल गया है।

64. आँख का काँटा–(बुरा होना)
मनोज मुझे अपनी आँख का काँटा समझता है, जबकि मैंने कभी उसका बुरा नहीं किया।

65. आँख में खटकना–(बुरा लगना)
स्पष्टवादी व्यक्ति अधिकतर लोगों की आँखों में खटकता है।

66. आँख का उजाला–(अति प्रिय व्यक्ति)
राज अपने माता–पिता की आँखों का उजाला है।

67. आँख मारना–(इशारा करना)
रमेश ने सुरेश को कल रात वाली बात न बताने के लिए आँख मारी।

68. आँखों पर परदा पड़ना–(धोखा होना)
शर्मा जी ने सच्चाई बताकर, मेरी आँखों से परदा हटा दिया।

69. आँख बिछाना–(स्वागत, सम्मान करना)
रामचन्द्र जी की अयोध्या वापसी पर अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में आँखें बिछा दीं।

70. आँखों में धूल डालना–(धोखा देना)
सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज़ों की आँखों में धूल डालकर, अपने आवास से निकलकर विदेश पहुँच गए।

71. आँख में घर करना–(हृदय में बसना)
विभा की छवि राज की आँखों में घर कर गई।

72. आँख लगाना– (बुरी अथवा लालचभरी दृष्टि से देखना)
चीन अब भी भारत की सीमाओं पर आँख लगाये हुए हैं।

73. आँखें ठण्डी करना–(प्रिय–वस्तु को देखकर सुख प्राप्त करना)
पोते को वर्षों बाद देखकर बाबा की आँखें ठण्डी हो गईं।

74. आँखें फाड़कर देखना–(आश्चर्य से देखना)
ऐसे आँखें फाड़कर क्या देख रही हो, पहली बार मिली हो क्या?

75. आँखें चार करना–(आमना–सामना करना)
एक दिन अचानक केशव से आँखें चार हुईं और मित्रता हो गई।

76. आँखें फेरना–(उपेक्षा करना)
जैसे ही मेरी उच्च पद प्राप्त करने की सम्भावनाएँ क्षीण हुईं, सबने मुझसे आँखें फेर ली।

77. आँख भरकर देखना–(इच्छा भर देखना)
जी चाहता है तुम्हें आँख भरकर देख लूँ, फिर न जाने कब मिलें।

78. आँख खिल उठना–(प्रसन्न हो जाना)
पिता जी ने जैसे ही अपने छोटे से बच्चे को देखा, वैसे ही उनकी आँख खिल उठी।

79. आँख चुराना–(कतराना)
जब से विजय ने अजय से उधार लिया है, वह आँख चुराने लगा है।

80. आँख का काजल चुराना–(सामने से देखते–देखते माल गायब
कर देना) विवेक के देखते ही देखते उसका सामान गायब हो गया; जैसे किसी ने उसकी आँख का काजल चुरा लिया हो।

81. आँख निकलना–(विस्मय होना)
अपने खेत में छिपा खजाना देखकर गोधन की आँख निकल आई।

82. आँख मैली करना–(दिखावे के लिए रोना/बुरी नजर से देखना)
अरुण ने अपने घनिष्ठ मित्र की मृत्यु पर भी केवल अपनी आँखें ही मैली की।

83. आँखों में धूल झोंकना–(धोखा देना)
कुछ डकैत पुलिस की आँखों में धूल झोंककर मुठभेड़ से बचकर निकल गए।

84. आँखें दिखाना–(डराने–धमकाने के लिए रोष भरी दृष्टि से देखना)
रामपाल ने अपने ढीठ बेटे को जब तक आँखें न दिखायीं, तब तक उसने उनका कहना नहीं माना।

85. आँखें तरेरना–(क्रोध से देखना)
पैसे न हो तो पत्नी भी आँखें तरेरती है।

86. आँखों का तारा–(अत्यन्त प्रिय)
इकलौता बेटा अपने माँ–बाप की आँखों का तारा होता है।

87. आटा गीला होना–(कठिनाई में पड़ना)
सुबोध को एंक के पश्चात् दूसरी मुसीबत घेर लेती है, आर्थिक तंगी में। उसका आटा गीला हो गया।

88. आँचल में बाँधना–(ध्यान में रखना)
पति–पत्नी को एक–दूसरे पर विश्वास करना चाहिए, यह बात आँचल में बाँध लेनी चाहिए।

89. आकाश में उड़ना–(कल्पना क्षेत्र में घूमना)
बिना धन के कोई व्यापार करना आकाश में उड़ना है।

90. आकाश–पाताल एक करना–(कठिन परिश्रम करना)
मैं व्यवस्था को बदलने के लिए आकाश–पाताल एक कर दूंगा।

91. आकाश–कुसुम होना–(दुर्लभ होना)
किसी सामान्य व्यक्ति के लिए विधायक का पद आकाश–कुसुम हो गया

92. आसमान सिर पर उठाना–(उपद्रव मचाना)
शिक्षक की अनुपस्थिति में छात्रों ने आसमान सिर पर उठा लिया।

93. आगा पीछा करना–(हिचकिचाना)
सेठ जी किसी शुभ कार्य हेतु चन्दा देने के लिए आगा पीछा कर रहे हैं।

94. आकाश से बातें करना–(काफी ऊँचा होना)
दिल्ली में आकाश से बातें करती बहुत–सी इमारतें हैं।

95. आवाज़ उठाना–(विरोध में कहना)
वर्तमान व्यवस्था के विरोध में मीडिया में आवाज़ उठने लगी है।

96. आसमान से तारे तोड़ना–(असम्भव काम करना)
अपनी सामर्थ्य समझे बिना ईश्वर को चुनौती देकर तुम आकाश से तारे तोड़ना चाहते हो?

97. आस्तीन का साँप–(विश्वासघाती मित्र)
राज ने निर्भय की बहुत सहायता की लेकिन वह तो आस्तीन का साँप निकला।

98. आठ–आठ आँसू रोना–(बहुत पश्चात्ताप करना)
दसवीं कक्षा में पुन: अनुत्तीर्ण होकर रमेश ने आठ–आठ आँसू रोये थे।

99. आसन डोलना–(विचलित होना)
विश्वामित्र की तपस्या से इन्द्र का आसन डोल गया।

100. आग–पानी साथ रखना–(असम्भव कार्य करना)
अहिंसा द्वारा भारत में क्रान्ति लाकर गाँधीजी ने आग–पानी साथ रख दिया।

101. आधी जान सूखना–(अत्यन्त भय लगना)
घर में चोरों को देखकर लालाजी की आधी जान सूख गई।

102. आपे से बाहर होना–(क्रोध से अपने वश में न रहना)
फ़िरोज़ खिलजी ने आपे से बाहर होकर फ़कीर को मरवा दिया।

103. आग लगाकर तमाशा देखना–(लड़ाई कराकर प्रसन्न होना)
हमारे मुहल्ले के संजीव का कार्य तो आग लगाकर तमाशा देखना है।

104. आगे का पैर पीछे पड़ना–(विपरीत गति या दशा में पड़ना)
सुरेश के दिन अभी अच्छे नहीं हैं, अब भी आगे का पैर पीछे पड़ रहा है।

105. आटे दाल की फ़िक्र होना–(जीविका की चिन्ता होना)
पढ़ाई समाप्त होते ही तुम्हें आटे दाल की फ़िक्र होने लगी है।

106. आधा तीतर आधा बटेर–(बेमेल चीजों का सम्मिश्रण)
सुधीर अपनी दुकान पर किताबों के साथ साज–शृंगार का सामान बेचना चाहता है। अनिल ने उसे समझाया आधा तीतर आधा बटेर बेचने से बिक्री कम रहेगी।

107. आग लगने पर कुआँ खोदना–(पहले से कोई उपाय न करना)
शर्मा जी ने मकान की दीवारें खड़ी करा लीं, लेकिन जब लैन्टर डलने का समय आया, तो उधार लेने की बात करने लगे। इस पर मिस्त्री झल्लाया–शर्मा जी आप तो आग लगने पर कुआँ खोदने वाली बात कर रहे हो।

108. आव देखा न ताव–(बिना सोचे–विचारे)
शिक्षक ने आव देखा न ताव और छात्र को पीटना शुरू कर दिया।

109. आँखों में खून उतरना–(अत्यधिक क्रोधित होना)
आतंकवादियों की हरकत देखकर पुलिस आयुक्त की आँखों में खून उतर आया था।

110. आग बबूला होना–(अत्यधिक क्रोधित होना)
कई बार मना करने पर भी जब दिनेश नहीं माना, तो उसके चाचा जी उस पर आग बबूला हो उठे।

111. आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटकना–(उत्तम स्थान को
त्यागकर ऐसे स्थान पर जाना जो अपेक्षाकृत अधिक कष्टप्रद हो) बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद किराना स्टोर करने पर दयाशंकर को ऐसा लगा कि वह आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटक गया है।

112. आप मरे जग प्रलय–(मृत्यु उपरान्त मनुष्य का सब कुछ छूट जाना)
रामदीन मृत्यु–शैय्या पर पड़ा अपने बेटों के कारोबार के बारे में रह–रह पूछं रहा था। उसके पास एकत्र मित्रों में से एक ने दूसरे से कहा, “आप मरे जग प्रलय, रामदीन को बेटों के कारोबार की चिन्ता अब भी सता रही है।”

113. आसमान टूटना–(विपत्ति आना)
भाई और भतीजे की हत्या का समाचार सुनकर, मुख्यमन्त्री जी पर आसमान टूट पड़ा।

114. आटे दाल का भाव मालूम होना–(वास्तविकता का पता चलना)
अभी माँ–बाप की कमाई पर मौज कर लो, खुद कमाओगे तो आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा।

115. आड़े हाथों लेना–(खरी–खोटी सुनाना)
वीरेन्द्र ने सुरेश को आड़े हाथों लिया।

(इ)

116. इधर–उधर की हाँकना–(अप्रासंगिक बातें करना)
आजकल कुछ नवयुवक इधर–उधर की हाँकते रहते हैं।

117. इज्जत उतारना–(सम्मान को ठेस पहुँचाना)
दीनानाथ से बीच बाज़ार में जब श्यामलाल ने ऊँचे स्वर में कर्ज वसूली की बात की तो दीनानाथ ने श्यामलाल से कहा, “सरेआम इज्जत मत उतारो, आज शाम घर आकर अपने रुपए ले जाना।”

118. इतिश्री करना–(कर्त्तव्य पूरा करना/सुखद अन्त होना)
अपनी दोनों कन्याओं की शादी करके रामसिंह ने अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली।

119. इशारों पर नाचना–(गुलाम बनकर रह जाना)
बहुत से व्यक्ति अपनी पत्नी के इशारों पर नाचते हैं।

120. इधर की उधर करना–(चुगली करके भड़काना)
मनोज की इधर की उधर करने की आदत है, इसलिए उस पर विश्वास मत करना।

121. इन्द्र की परी–(अत्यन्त सुन्दर स्त्री)
राजेन्द्र की पत्नी तो इन्द्र की परी लगती है।

122. इन तिलों में तेल नहीं–(किसी भी लाभ की आशा न करना)
कपिल ने कारखाने को देख सोच लिया इन तिलों में तेल नहीं और बैंक से ऋण लेकर बहन का विवाह किया।

(ई)

123. ईंट से ईंट बजाना–(नष्ट–भ्रष्ट कर देना)
असामाजिक तत्त्व रात–दिन ईंट से ईंट बजाने की सोचा करते हैं।

124. ईंट का जवाब पत्थर से देना–(दुष्ट के साथ दुष्टता करना)
दुश्मन को सदैव ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए।

125. ईद का चाँद होना–(बहुत दिनों बाद दिखाई देना)
रमेश आप तो ईद का चाँद हो गए, एक वर्ष बाद दिखाई दिए।

126. ईंट–ईंट बिक जाना–(सर्वस्व नष्ट हो जाना)
“चाचाजी का व्यापार फेल हो गया और उनकी ईंट–ईंट बिक गई।”

127. ईमान देना/बेचना–(झूठ बोलना अथवा अपने धर्म, सिद्धान्त आदि के
विरुद्ध आचरण करना) इस महँगाई के दौर में लोग अपना ईमान बेचने से भी नहीं डर रहे हैं।

(उ)

128. उँगली उठाना–(इशारा करना, आलोचना करना।)
सच्चे और ईमानदार व्यक्ति पर उँगली उठाना व्यर्थ है।

129. उँगली पर नचाना–(वश में रखना)
श्रीकृष्ण गोपियों को अपनी उँगली पर नचाते थे।।

130. उड़ती चिड़िया पहचानना–(दूरदर्शी होना)
हमसे चाल मत चलो, हम भी उड़ती चिड़िया पहचानते हैं।

131. उँगलियों पर गिनने योग्य–(संख्या में न्यूनतम/बहुत थोड़े)
भारत की सेना में उस समय उँगलियों पर गिनने योग्य ही सैनिक थे, जब उन्होंने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

132. उजाला करना–(कुल का नाम रोशन करना)
आई. ए. एस. परीक्षा में उत्तीर्ण होकर बृजलाल ने अपने कुल में उजाला कर दिया।

133. उल्लू बोलना–(उजाड़ होना)
पुराने शानदार महलों के खण्डहरों में आज उल्लू बोलते हैं।

134. उल्टी गंगा बहाना–(नियम के विरुद्ध कार्य करना)
भारत कला और दस्तकारी का सामान निर्यात करता है, फिर भी कुछ लोग विदेशों से कला व दस्तकारी का सामान मँगवाकर उल्टी गंगा बहाते हैं।

135. उल्टी खोपड़ी होना–(ऐसा व्यक्ति जो उचित ढंग के विपरीत आचरण करता हो)
“चौधरी साहब, आपका छोटा बेटा बिल्कुल उल्टी खोपड़ी का है, आज फिर वह गाँव में उपद्रव मचा आया।” वृद्ध ने चौधरी को बताया।

136. उल्टे छुरे से मूंडना–(किसी को मूर्ख बनाकर उससे धन ऐंठना या अपना काम निकालना)
यह पुरोहित यजमानों को उल्टे छुरे से मूंडने में सिद्धहस्त है।

137. उँगली पकड़ते ही पहुँचा पकड़ना–(अल्प सहारा पाकर सम्पूर्ण की
प्राप्ति हेतु उत्साहित होना) रामचन्द्र ने नौकर को एक कमरा मुफ़्त में रहने के लिए दे दिया; थोड़े समय बाद वह परिवार को साथ ले आया और चार कमरों को देने का आग्रह करने लगा। इस पर रामचन्द्र ने कहा, तुम तो उँगली पकड़ते ही पहुँचा पकड़ने की बात कर रहे हो।

138. उन्नीस बीस होना–(दो वस्तुओं में थोड़ा बहुत अन्तर होना)
दुकानदार ने बताया कि दोनों कपड़ों में उन्नीस बीस का अन्तर है।

139. उल्टी पट्टी पढ़ाना–(बहकाना)
तुम मैच खेल रहे थे और मुझे उल्टी पट्टी पढ़ा रहे हो कि स्कूल बन्द था और मैं स्कूल से दोस्त के घर चला गया था।

140. उड़न छू होना–(गायब हो जाना)
रीता अभी तो यहीं थी, मिनटों में कहाँ उड़न छू हो गई।

141. उबल पड़ना–(एकदम गुस्सा हो जाना)
सक्सेना साहब तो थोड़ी–सी बात पर ही उबल पड़ते हैं।

142. उल्टी माला फेरना–(अहित सोचना)
अपने दोस्त के नाम की उल्टी माला फेरना बुरी बात है।

143. उखाड़ पछाड़ करना–(त्रुटियाँ दिखाकर कटूक्तियाँ करना)
उखाड़ पछाड़ करने में ही तुम निपुण हो, लेकिन त्रुटियाँ दूर करना तुम्हारे वश की बात नहीं है।

144. उम्र का पैमाना भर जाना–(जीवन का अन्त नज़दीक आना)।
वह अब बूढ़ा हो गया है, उसकी उम्र का पैमाना भर गया।

145. उरद के आटे की तरह ऐंठना–(क्रोध करना)
आप बहल पर उरद के आटे की तरह ऐंठ रहे हो, उसका कोई दोष नहीं है।

146. ऊँचे नीचे पैर पड़ना–(बुरे काम में फँसना)
अनुज में बहुत–सी गन्दी आदतें आ गई हैं, उसके पैर ऊँचे–नीचे पड़ने लगे हैं।

147. ऊँट की चोरी झुके–झुके–(किसी निन्दित, किन्तु बड़े कार्य को गुप्त
ढंग से करने की चेष्टा करना) हमारे नेताओं ने घोटाला करने की चेष्टा करके उँट की चोरी झुके–झुके को सिद्ध कर दिया है।

148. ऊँट का सुई की नोंक से निकलना–(असम्भव होना)
पूँजीवादी व्यवस्था में आम जनता का जीवन सुधरना ऊँट का सुई की नोंक से निकलना है।

149. ऊधौ का लेना न माधौ का देना–(किसी से किसी प्रकार का सम्बन्ध न
रखना) वह बेचारा दीन–दुनिया से इतना तंग आ गया है कि अब वह सबके साथ ‘ऊधो का लेना, न माधौ का देना’ की तरह का व्यवहार करने लगा है।

(ए)

150. एक ही लकड़ी से हाँकना–(अच्छे–बुरे की पहचान न करना)
कुछ अधिकारी सभी कर्मचारियों को एक ही लकड़ी से हाँकते हैं।

151. एक ही थैली के चट्टे–बट्टे होना–(सभी का एक जैसा होना)
आजकल के सभी नेता एक ही थैली के चट्टे–बट्टे हैं।

152. एड़ियाँ घिसना / रगड़ना–(सिफ़ारिश के लिए चक्कर लगाना)
इस दौर में अच्छे पढ़े–लिखे लोगों को भी नौकरी ढूँढने के लिए एड़ियाँ घिसनी पड़ती हैं।

153. एक म्यान में दो तलवारें–(एक वस्तु या पद पर दो शक्तिशाली
व्यक्तियों का अधिकार नहीं हो सकता) विद्यालय की प्रबन्ध–समिति ने दो–दो प्रधानाचार्यों की नियुक्ति करके एक म्यान में दो तलवारों वाली बात कर दी है।

154. एक ढेले से दो शिकार–(एक कार्य से दो उद्देश्यों की पूर्ति करना)
पुलिस दल ने बदमाशों को मारकर एक ढेले से दो शिकार किए। उन्हें पदोन्नति मिली और पुरस्कार भी मिला।

155. एक की चार लगाना–(छोटी बातों को बढ़ाकर कहना)
रमेश तुम तो अब हर बात में एक की चार लगाते हो।

156. एक आँख से देखना–(सबको बराबर समझना)
राजा का कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों को एक आँख से देखे।

157. एड़ी–चोटी का पसीना एक करना–(घोर परिश्रम करना)
रिक्शे वाले एड़ी–चोटी पसीना एक कर रोजी कमाते हैं।

158. एक–एक नस पहचानना–(सब कुछ समझना)
मालिक और नौकर एक–दूसरे की एक–एक नस पहचानते हैं।

159. एक घाट पानी पीना–(एकता और सहनशीलता होना)
राजा कृष्णदेवराय के समय शेर और बकरी एक घाट पानी पीते थे।

160. एक पंथ दो काज–(एक कार्य के साथ दूसरा कार्य भी पूरा करना)
आगरा में मेरी परीक्षा है, इस बहाने ताजमहल भी देख लेंगे। चलो मेरे तो एक पंथ दो काज हो जाएंगे।

161. एक और एक ग्यारह होते हैं–(संघ में बड़ी शक्ति है)
भाइयों को आपस में लड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि एक और एक ग्यारह होते हैं।

162. ऐसी–तैसी करना–(दुर्दशा करना)
“भीमा मुझे बचा लो, वरना वह मेरी ऐसी–तैसी कर देगा।” लल्लूराम ने भीमा के पास जाकर गुहार की।

163. ऐबों पर परंदा डालना–(अवगुण छुपाना)
प्राय: लोग झूठ–सच बोलकर अपने ऐबों पर परदा डाल लेते हैं।

(ओ)

164. ओखली में सिर देना–(जानबूझकर अपने को जोखिम में डालना)
“अपने से चार गुना ताकतवर व्यक्ति से उलझने का मतलब है, ओखली में सिर देना, समझे प्यारे।” राजू ने रामू को समझाते हुए कहा।

165. ओस पड़ जाना–(लज्जित होना)
ऑस्ट्रेलिया से एक दिवसीय श्रृंखला बुरी तरह हारने से भारतीय टीम पर ओस पड़ गई।

166. ओले पड़ना–(विपत्ति आना)
देश में पहले भूकम्प आया फिर अनावृष्टि हुई; अब आवृष्टि हो रही है। सच में अब तो चारों ओर से सिर पर ओले ही पड़ रहे हैं।

(औ)

167. औने–पौने करना–(जो कुछ मिले उसे उसी मूल्य पर बेच देना)
रखे रखे यह कूलर अब खराब हो गया है, इसको तुरन्त ही औने–पौने में कबाड़ी के हाथ बेच दो।

168. औंधे मुँह गिरना–(पराजित होना)
आज अखाड़े में एक पहलवान ने दूसरे पहलवान को ऐसा दाँव मारा कि वह औंधे मुँह गिर गया।

169. औंधी खोपड़ी–(मूर्खता)
वह तो औंधी खोपड़ी है उसकी बात का क्या विश्वास।

170. औकात पहचानना–(यह जानना कि किसमें कितनी सामर्थ्य है)
“हमारे अधिकारी तुम जैसे नेताओं की औकात पहचानते हैं। चलिए, बाहर निकलिए।” चपरासी ने छोटे नेताओं को ऑफिस से भगाते हुए कहा।

171. और का और हो जाना–(पहले जैसा ना रहना, बिल्कुल बदल जाना)
विमाता के घर आते ही अनिल के पिताजी और के और हो गए।

(क)

172. कंधा देना–(अर्थी को कंधे पर उठाकर अन्तिम संस्कार के लिए श्मशान ले जाना)
नगर के मेयर की अर्थी को सभी नागरिकों ने कंधा दिया।

173. कंचन बरसना–(अधिक आमदनी होना)
आजकल मुनाफाखोरों के यहाँ कंचन बरस रहा है।

174. कच्चा चिट्ठा खोलना–(सब भेद खोल देना)
घोटाले में अपना हिस्सा न पाने पर सह–अभियुक्त ने पुलिस के सामने सारे राज उगल दिए थे।

175. कच्चा खा/चबा जाना–(पूरी तरह नष्ट कर देने की धमकी देना)
जब से दोनों मित्र अशोक और नरेश की लड़ाई हुई है, तब से दोनों एक–दूसरे को ऐसे देखते हैं, जैसे कच्चा चबा जाना चाहते हों।

176. कब्र में पाँव लटकना–(वृद्ध या जर्जर हो जाना/मरने के करीब होना)
“सुनीता के ससुर की आयु काफ़ी हो गई है। अब तो उनके कब्र में पाँव लटक गए हैं।” सोनी ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए कहा।

177. कलेजे पर पत्थर रखना–(धैर्य धारण करना)
गरीब और कमजोर श्यामा को गाँव का चौधरी सबके सामने खरी–खोटी सुना गया, जिसको उसने कलेजे पर पत्थर रखकर सुना लिया।

178. कढ़ी का सा उबाल–(मामूली जोश)
उत्सवों पर उत्साह कढ़ी का सा उबाल बनकर रह गया है।

179. कलम का धनी–(अच्छा लेखक)
प्रेमचन्द कलम के धनी थे।

180. कलेजे का टुकड़ा–(बहुत प्यारा)
सार्थक मेरे कलेजे का टुकड़ा है।

181. कलेजा धक से रह जाना–(डर जाना)
जंगल से गुजरते वक्त शेर को देखकर मेरा कलेजा धक से रह गया।

182. कलेजे पर साँप लोटना–(ईर्ष्या से कुढ़ना)
भारतवर्ष की उन्नति देखकर चीन के कलेजे पर साँप लोटता है।

183. कलेजा ठण्डा होना–(मन को शान्ति मिलना)
आशीष इन्जीनियर बन गया, माँ का कलेजा ठण्डा हो गया।

184. कली खिलना–(खुश होना)
बहुत पुराने मित्र आपस में मिले तो कली खिल गई।

185. कलेजा मुँह को आना–(दुःख होना)
घायल की चीत्कार सुनकर कलेजा मुँह को आता हैं।

186. कंधे से कंधा छिलना–(भारी भीड़ होना)
दशहरा के त्योहार पर लगे मेले में इतनी भीड़ थी कि लोगों के कंधे–से–कंधे छिल गए।

187. कान में तेल डालना–(चुप्पी साधकर बैठे रहना)
राजेश से किसी बात को कहने का क्या लाभ; वह तो कान में तेल डाले बैठा रहता है।

188. किए कराए पर पानी फेरना–(बिगाड़ देना)
औरंगजेब ने मराठों से उलझकर अपने किए कराए पर पानी फेर दिया।

189. कान भरना–(चुगली करना)
मंथरा ने कैकेई के कान भरे थे।

190. कान का कच्चा–(किसी भी बात पर विश्वास कर लेना)
जहाँ अधिकारी कान का कच्चा होता है वहाँ सीधे, सरल, ईमानदार कर्मचारियों को परेशानी होती है।

191. कच्ची गोली खेलना–अनुभवहीन होना।
तुम हमें नहीं ठग सकते, हमने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं।

192. काँटों पर लेटना–(बेचैन होना)
दुर्घटनाग्रस्त पुत्र जब तक घर नहीं आया, तब तक पूरा परिवार काँटों पर लोटता रहा।

193. काँटा दूर होना–(बाधा दूर होना)
राजीव के दूसरे प्रकाशन में जाने से बहुतों के रास्ते का काँटा दूर हो गया।

194. कोढ़ में खाज होना–(एक दुःख पर दूसरा दुःख होना)
मंगली बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहा था। ऊपर से भयंकर रूप से बीमार हो गया। यह तो सचमुच कोढ़ में खाज होना ही है।

195. काटने दौड़ना–(चिड़चिड़ाना/क्रोध करना)
विनीता बहुत कमजोर हो गई है। जरा–जरा सी बात पर काटने को दौड़ती है।

196. कान गरम करना–(दण्ड देना)
शरारती बच्चों के तो कान गरम करने पड़ते हैं।

197. काम तमाम करना–(मार डालना)
भीम ने दुर्योधन का काम तमाम कर दिया।

198. कीचड़ उछालना–(बदनाम करना)
नेताओं का कार्य एक–दूसरे पर कीचड़ उछालना रह गया है।

199. कट जाना–(अलग होना)
मेरी कड़वी बातें सुनकर वह मुझसे कट गया।

200. कदम उखड़ना–(भाग खड़े होना)
कारगिल में बोफोर्स तोपों की मार से शत्रु के पैर उखड़ गए।

201. कान कतरना–(अधिक होशियार हो जाना)
राम चालाकी में बड़े–बड़ों के कान कतरता है।

202. काफूर होना–(गायब हो जाना)
पेन किलर लेते ही मेरा दर्द काफूर हो गया।

203. काजल की कोठरी–(कलंक लगने का स्थान)
मेरठ में कबाड़ी बाज़ार रेड लाइट एरिया काजल की कोठरी है, उधर जाने’ से बदनामी होगी।

204. कूप मण्डूक–(सीमित ज्ञान)
झोला छाप डॉक्टरों पर अधिक विश्वास मत करो, ये तो कूप मण्डूक होते हैं।

205. किस्मत फूटना–(बुरे दिन आना)
सीता का हरण करके तो रावण की किस्मत ही फूट गई।

206. कुत्ते की दुम–(वैसे का वैसा)
वह तो कुत्ते की दुम है, कभी सीधा नहीं होगा।

207. कुएँ में ही भाँग पड़ना–(सभी लोगों की मति भ्रष्ट होना)
दंगों में तो लगता है, कुएँ में ही भाँग पड़ जाती है।

208. कौड़ी के मोल–(व्यर्थ होकर रह जाना)
अब भी समय है, आँखे खोलो अन्यथा कौड़ी के मोल बिकोगे।

209. कान में डाल देना–(सुना देना या अवगत कराना)
विनय ने लड़की के बाप के कान में डाल दिया कि वह मोटर साइकिल लेना चाहता है।

210. काला नाग–(खोटा या घातक व्यक्ति)
मुकेश से बचकर रहना, वह तो काला नाग है।

211. किरकिरा हो जाना–(विघ्न पड़ना)
कुछ लोगों द्वारा शराब पीकर हुड़दंग मचाने से पिकनिक का मजा किरकिरा हो गया।

212. काया पलट जाना–(और ही रूप हो जाना)
पिछले कुछ वर्षों में मेरठ की काया ही पलट गई है।

213. कुआँ खोदना–(हानि पहुँचाना)
जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है, वह स्वयं उसी में गिरता है।

214. कूच कर जाना–(चले जाना)
सेना 12 बजे कूच कर गई।

215. कौड़ी–कौड़ी पर जान देना–(कंजूस होना)
लाला रामप्रकाश कौड़ी–कौड़ी पर जान देता है, उससे मदद की आशा मत करो।

216. काले कोसों–(बहुत दूर)
लड़के की नौकरी काले कोसों दूर लगी है, उसका आना भी नहीं होता।

217. कुत्ते की मौत मरना–(बुरी मौत मरना)
कुपथ पर चलने वाले कुत्ते की मौत मरते हैं।

218. कलम तोड़ देना/कर रख देना–(प्रभावपूर्ण लेखन करना)
वायसराय ने कहा, महादेव लेखन में कलम तोड़ देते हैं।

219. कसर लगना–(हानि या क्षति होना)
सेठ जी के पूछने पर उनके मुंशी ने बताया कि इस सौदे में उनको दस लाख रुपए की कसर लग गई।

220. कमर कसना–(तैयार होना)
अरुण ने पी. सी. एस. परीक्षा के लिए कमर कस ली है।

221. कलई खुलना–(भेद खुलना या रहस्य प्रकट होना)
रामू ने जब मुन्ना की कलई खोल दी, तो उसका चेहरा फीका पड़ गया।

222. कसौटी पर कसना–(परखना)
श्याम परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरा।

223. कहते न बनना–(वर्णन न कर पाना)
“मुझे सुधीर की बीमारी का इतना दुःख है कि मुझसे कहते नहीं बन पा रहा है।” राधा ने अपनी सहेली को बताया।

224. कागजी घोड़े दौड़ाना–(केवल लिखा–पढ़ी करते रहना)
नौकरी चाहिए तो पहले अच्छी पढ़ाई करो। यों ही घर बैठे कागजी घोड़े दौड़ाने से कोई बात नहीं बनने वाली।

225. कान पर जूं तक न रेंगना–(बिलकुल ध्यान न देना)
दुष्ट व्यक्ति को चाहे जितना समझाओ, उसके कान पर तक नहीं रेंगती।

226. कागज काले करना–(अनावश्यक लिखना)
प्रश्न का उपयुक्त उत्तर दीजिए, कागज काले करने से क्या लाभ?

227. काठ मार जाना–(स्तब्ध रह जाना)
टी. टी. के अन्दर घुसते ही बिना टिकट यात्रियों को काठ मार गया।

228. कान काटना–(पराजित करना)
रमेश अपने वाक्चातुर्य से अनेक लोगों के कान काट चुका है।

229. कान खड़े होना–(आशंका या खटका होने पर चौकन्ना होना)
आधी रात के समय कुत्तों को भौंकता देखकर, चौकीदार के कान खड़े हो गए।

230. कान खाना/खा जाना–(ज़्यादा बातें करके कष्ट पहुँचाना)
तुम्हारे मोहल्ले के बच्चे तो बड़े बदतमीज़ हैं, इतना शोरगुल करते हैं कि कान खा जाते हैं।

231. कालिख पोतना–(बदनामी करना)
“पर पुरुष से प्रेम करके उसने मुँह पर कालिख पोत ली।”

232. किताब का कीड़ा–(हर समय पढ़ाई में लगा रहने वाला)
एकाग्रता के अभाव में किताबी कीड़े भी परीक्षा में असफल हो जाते हैं।

233. किराए का टटू होना–(कम मजदूरी वाला अयोग्य व्यक्ति)
सेठ बनारसीदास का नौकर उनके लिए हमेशा किराए का टटू साबित होता है, क्योंकि वह बस उतना ही कार्य करता है, जितना कहा जाता है।

234. किला फ़तेह करना–(विजय पाना/विकट या कठिन कार्य पूरा कर डालना)
निशानेबाजी की प्रतियोगिता में विजयी होकर अरविन्द ने किला फ़तेह करने जैसी मिसाल कायम की।

235. किस्सा खड़ा करना–(कहानी गढ़ना)
स्मिथ और कविता शुरू में इसलिए कम मिला करते थे कि कहीं लोग उन्हें एक साथ देखकर कोई किस्सा न खड़ा कर दें।

236. कील काँटे से लैस–(पूरी तरह तैयार)
एवरेस्ट पर चढ़ने वाला भारतीय दल पूरी तरह से कील काँटे से लैस था।

237. कुठाराघात करना–(तीव्र या ज़ोरदार प्रहार करना)
धर्मवीर ने अपने शत्रु पर इतना ज़ोरदार कुठाराघात किया कि वह एक ही बार में बेहोश हो गया।

238. कूच का डंका बजना–(सेना का युद्ध के लिए निकलना)
सेनापति ने जिस समय कूच का डंका बजाया, तो सैनिक युद्ध स्थल की तरफ़ दौड़ गए।

239. कोल्हू का बैल होना–(निरन्तर काम में लगे रहना)
भाई साहब थोड़ा–बहुत आराम भी कर लिया करो, आप तो कोल्हू का बैल हो रहे हैं।

240. कौए उड़ाना–(बेकार के काम करना)
“जब से नौकरी छूटी है हम तो कौए उड़ाने लगे।” सुमित ने अपने एक मित्र से अफसोस जाहिर करते हुए कहा।

241. कंगाली में आटा गीला–(अभाव में भी अभाव)
रतन के पास इस समय पैसा नहीं है, मकान के टैक्स ने उसका कंगाली में आटा गीला कर दिया है।

(ख)

242. खरी–खोटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)
परीक्षा में फेल होने पर रमेश को खरी–खोटी सुननी पड़ी।

243. ख्याली पुलाव पकाना–(कल्पनाएँ करना)
मूर्ख व्यक्ति ही सदैव ख्याली पुलाव पकाते हैं, क्योंकि वे कुछ करने से पहले ही अपने ख्यालों में खो जाते हैं।

244. खाक में मिलना–(पूर्णत: नष्ट होना)
“राजन क्यों रो रहे हो ?” उसके एक मित्र ने पूछा, तो उसने रोते हुए जवाब दिया, “हमारा माल जहाज में आ रहा था, वह समुद्र में डूबा गया, मैं तो अब खाक में मिल गया।”

245. खाक छानना–(दर–दर भटकना)
आज के युग में अच्छे–अच्छे लोग बेरोज़गारी के कारण खाक छान रहे हैं।

246. खालाजी का घर–(जहाँ मनमानी चले)
मनमानी करने की आदत छोड़ दो क्योंकि यहाँ के कुछ नियम–कानून हैं, इसे ‘खालाजी का घर’ मत बनाओ।

247. खिचड़ी पकाना–(गुप्त मन्त्रणा करना)
राजनीति में कौन किसका दोस्त और कौन किसका दुश्मन है; अन्दर ही अन्दर एक–दूसरे के विरुद्ध खिचड़ी पकती रहती है।

248. खीरा–ककड़ी समझना–(दुर्बल और तुच्छ समझना)
“रणभूमि में अपने दुश्मन को हमेशा खीरा–ककड़ी समझकर उस पर टूट पड़ना चाहिए।” कमाण्डर अपने सैनिकों को समझा रहे थे।

249. खून–पसीना एक करना–(कठिन परिश्रम करना)
हमारे किसान खून–पसीना एक करके अन्न पैदा करते हैं।

250. खेल–खेल में–(आसानी से)
आजकल लोग खेल–खेल में एम. ए. पास कर लेते हैं।

251. खेत रहना–(युद्ध में मारा जाना)
“कारगिल युद्ध में ‘बी फॉर यू’ टुकड़ी के केवल दो सैनिक ही खेत रहे थे।’ टुकड़ी के कमाण्डर ने अपने अधिकारी को बताया।

252. खोपड़ी को मान जाना–(बुद्धि का लोहा मानना)
सभी विरोधी दल श्री नरेन्द्र मोदी की खोपड़ी को मान गए।

253. खून खौलना–(गुस्सा चढ़ना)
कारगिल पर पाकिस्तान के कब्जे से भारतीय सैनिकों का खून खौल उठा।

254. खून सवार होना–(किसी को मार डालने के लिए उद्यत होना)
रमेश के सिर पर खून सवार हो गया जब उसने देखा कि कुछ लड़के उसके भाई को मार रहे थे।

255. खरा खेल फर्रुखाबादी–(निष्कपट व्यवहार)
राजीव तो सभी से खरा खेल फर्रुखाबादी खेलता है।

256. खुले हाथ–(उदारता से)
बहुत से धनी लोग खुले हाथ से दान देते हैं।

257. खून खुश्क होना–(भयभीत होना)
सेना को देख आतंकवादियों का भय से खून खुश्क हो जाता है।

258. खाल उधेड़ना–(कड़ा दण्ड देना)
यदि तुमने फिर चोरी की तो खाल उधेड़ दूंगा।

259. खून के चूंट पीना–(बुरी लगने वाली बात को सह लेना)
ससुराल में अपने घरवालों के विषय में आपत्तिजनक बातें सुनकर राधिका खून के चूंट पीकर रह गयी थी।

260. खून पीना–(तंग करना/मार डालना)
साहूकार ने तो किसानों का खून पी लिया है।

261. खून सफेद हो जाना–(दया न रह जाना)
उस पर अनेक हत्या, अपहरण जैसे अभियोग हैं, उसे जघन्य कृत्य करने में संकोच नहीं है, क्योंकि उसका खून सफेद हो गया है।

262. खूटे के बल कूदना–(कोई सहारा मिलने पर अकड़ना)
छोटे–मोटे गुण्डे किसी खूटे के बल ही कूदते हैं।

(ग)

263. गले का हार होना–(अत्यन्त प्रिय होना)
तुलसीदास द्वारा कृत रामचरितमानस जनता के गले का हार है।

264. गड़े मुर्दे उखाड़ना–(पुरानी बातों पर प्रकाश डालना)
आजकल पाकिस्तान गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रहा है, मगर भारत बड़े सब्र से काम ले रहा है।

265. गिरगिट की तरह रंग बदलना–(किसी बात पर स्थिर न रहना)
राजनीति में लोग गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं।

266. गुरु घण्टाल–(बहुत धूर्त)
आपकी लापरवाही से आपका लड़का गुरु घण्टाल हो गया है।

267. गुस्सा नाक पर रहना–(जल्दी क्रोधित हो जाना)
“जब से मीना की शादी हुई है तब से तो उसकी नाक पर ही गुस्सा रहने लगा।” मीना की सहेलियाँ आपस में बातें कर रही थीं।

268. गूलर का फूल–(असम्भव बात/अदृश्य होना)
आजकल बाजार में शुद्ध देशी घी मिलना गूलर का फूल हो गया है।

269. गाँठ बाँधना–(याद रखना)
यह मेरी बात गाँठ बाँध लो, जो परिश्रम करेगा, वही सफलता प्राप्त करेगा।

270. गुदड़ी का लाल–(असुविधाओं में उन्नत होने वाला)
डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम गुदड़ी के लाल थे।

271. गोबर गणेश–(बुद्ध)
आज के युग में गोबर गणेश लोगों की गुंजाइश नहीं है।

272. गाल फुलाना–(रूठना)
बच्चों को पढ़ाई करने को कहो, तो गाल फुला लेते हैं।

273. गँवार की अक्ल गर्दन में–(मूर्ख को दण्ड मिले, तभी होश में आता है।)
बहुत समझाने पर तुमने जुआ, चोरी, शराब पीने की आदत नहीं छोड़ी। जब पुलिस ने जमकर पीटा तभी तुमने यह बुरी आदतें छोड़ी। सचमुच तुमने साबित कर दिया, गँवार की अक्ल गर्दन में रहती है।

274. गीदड़–भभकी–(दिखावटी क्रोध)
हम उसे अच्छी तरह जानते हैं, हम उसकी गीदड़ भभकियों से डरने वाले नहीं हैं।

275. गागर में सागर भरना–(थोड़े में बहुत कुछ कहना)
बिहारी जी ने बिहारी सतसई में गागर में सागर भर दिया है।

276. गाल बजाना–(डींग हाँकना)।
तुम्हारे पास धेला नहीं, पता नहीं क्यों गाल बजाते फिरते हो।

277. गोल कर जाना–(गायब कर देना)
चालाक व्यक्ति सही बातों का उत्तर गोल कर जाते हैं।

278. गढ़ जीतना–(कठिन कार्य पूरा होना)
मनोज का पी. सी. एस. में चयन हो गया, समझो उसने गढ़ जीत लिया।

279. गुस्सा पी जाना–(क्रोध रोकना)
व्यापारी गुस्सा पीना भली–भाँति जानता है।

(घ)

280. घड़ों पानी पड़ना–(बहुत लज्जित होना)
कल्लू बहुत अकड़ रहा था, साहब के डाँटने पर उस पर घड़ों पानी पड़ गया।

281. घर फूंक तमाशा देखना–(अपना नुकसान करके आनन्द मनाना)
घर फूंक तमाशा देखने वालों को कष्ट उठाना पड़ता है।

282. घाट–घाट का पानी पीना–(बहुत अनुभव प्राप्त करना)
मुझसे चाल मत चलो, मैं घाट–घाट का पानी पी चुका हूँ।

283. घाव पर नमक छिड़कना–(दुःखी को और दुःखी करना)
रामू अस्वस्थ तो था ही, परीक्षा में असफलता की सूचना ने घाव पर नमक छिड़क दिया।

284. घास छीलना–(व्यर्थ समय बिताना)
हमने पढ़कर परीक्षा उत्तीर्ण की है, घास नहीं खोदी है।

285. घात लगाना–(ताक में रहना/उचित अवसर की प्रतीक्षा में रहना)
पुलिस के हटते ही उपद्रवियों ने घात लगाकर दुर्घटना करने वाली बस पर हमला कर दिया।

286. घी के दीए जलाना–(खुशियाँ मनाना)
पृथ्वीराज की मृत्यु सुनकर जयचन्द ने घी के दीए जलाए।

287. घोड़े बेचकर सोना–(निश्चिन्त होकर सोना)
परीक्षा के बाद सभी छात्र कुछ दिन घोड़े बेचकर सोते हैं।

288. घोड़े दौड़ाना–(अत्यधिक कोशिश करना)
माया ने निहाल से दुश्मनी लेकर अपने खूब घोड़े दौड़ा लिए, लेकिन वह अभी तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी।

289. घी खिचड़ी होना–(खूब मिल–जुल जाना)
रिश्तेदारों को घी खिचड़ी होकर रहना चाहिए।

290. घर का न घाट का–(कहीं का नहीं)
राजीव तुम पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते तो अच्छा होता। नौकरी के चक्कर में ‘न घर का न घाट का’ वाली स्थिति होने की आशंका अधिक है।

291. घर में गंगा बहना–(अनायास लाभ प्राप्त होना)
मनोज के पास पाँच भैंसे हैं, दूध की कोई कमी नहीं, घर में गंगा बहती है।

292. घिग्घी बँधना–(डर के कारण बोल न पाना)
पुलिस के सामने चोर की घिग्घी बँध गई।

293. घोड़े पर चढ़े आना–(उतावली में होना)
जब आते हो घोड़े पर चढ़े आते हो, थोड़ा सब्र करो, सौदा मिलेगा।

294. घट में बसना–(मन में बसना)
ईश्वर तो प्रत्येक व्यक्ति के घट में बसता है।

295. घर काटे खाना–(मन न लगना/सूनापन अखरना)
भूकम्प में उसका सर्वनाश हो चुका था, अब तो अभागे को घर काटे खाता है।

296. घाव हरा करना–(भूले दुःख की याद दिलाना)
मेरे अतीत को छेडकर तमने मेरा घाव हरा कर दिया।

297. घुटने टेकना–(अपनी हार/असमर्थता स्वीकार करना)
भारतीय क्रिकेट टीम के समक्ष टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया ने घुटने टेक दिए।

298. घूरे के दिन फ़िरना–(कमज़ोर आदमी के अच्छे दिन आना)
विधवा ने मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को पाला। अब बच्चे कामयाब हो गए हैं, तो अच्छा कमा रहे हैं। सच है घूरे के दिन भी फ़िरते हैं।

299. चक जमाना–(पूरी तरह से अधिकार या प्रभुत्व स्थापित होना)
चन्द्रगुप्त मौर्य ने सम्पूर्ण आर्यावर्त पर चक जमा लिया था।

300. चंगुल में फँसना–(मीठी–मीठी बातों से वश में करना)
आजकल बाबा लोग सीधे–सादे लोगों को चंगुल में फँसा लेते हैं।

301. चाँदी का जूता मारना–(रिश्वत या घूस देना)
आजकल सरकारी कार्यालयों में बिना चाँदी का जूता मारे काम नहीं हो पाता है।

302. चाँद पर थूकना–(भले व्यक्ति पर लांछन लगाना)
महात्मा गाँधी की बुराई करना चाँद पर थूकना है।

303. चित्त पर चढ़ना–(सदा स्मरण रहना)
अनुज का दिमाग बहुत तेज है, उसके चित्त पर जो बात चढ़ जाती है, फिर वह उसे कभी नहीं भूलता।

304. चादर से बाहर पाँव पसारना–(सीमा के बाहर जाना)
चादर से बाहर पैर पसारने वाले लोग कष्ट उठाते हैं।

305. चुल्लू भर पानी में डूब मरना–(शर्म के मारे मुँह न दिखाना)
आप इतने सभ्य परिवार के होते हुए भी दुष्कर्म करते हैं, आपको चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।

306. चूलें ढीली करना–(अधिक परिश्रम के कारण बहुत थकावट होना)
इस लेखन कार्य ने तो मेरी चूलें ही ढीली कर दीं।

307. चुटिया हाथ में होना–(संचालन–सूत्र हाथ में होना, पूर्णतः नियन्त्रण में होना)
“भागकर कहाँ जाएगा, उसकी चुटिया हमारे हाथ में है।” शत्रु के घर में उसे न पाकर चौधरी रणधीर ने उसकी पत्नी के सामने झल्लाकर कहा।

308. चेरी बनाना/बना लेना–(दास या गुलाम बना लेना)
“हमारे गाँव का प्रधान इतना शातिर दिमाग का है कि वह सभी जरूरतमन्द लोगों को चेरी बना लेता है।

309. चूना लगाना–(धोखा देना)
प्राय: विश्वासपात्र लोग ही चूना लगाते हैं।

310. चारपाई से लगना–(बीमारी से उठ न पाना)
ध्रुव की दुर्घटना क्या हुई, वह तो चारपाई से ही लग गया।

311. चण्डाल चौकड़ी–(निकम्मे बदमाश लोग)
राजनीति में प्राय: चण्डाल चौकड़ी नेता को घेरे रहती है।

312. चाँद खुजलाना–(पिटने की इच्छा होना)
विनय तुम सुबह से शरारत कर रहे हो, लगता है तुम्हारी चाँद खुजला रही है।

313. चार दिन की चाँदनी–(कम दिनों का सुख)
दीपावली में खूब बिक्री हो रही है, दुकानदारों की तो चार दिन की चाँदनी है।

314. चचा बनाकर छोड़ना–(खूब मरम्मत करना)
ग्रामीणों ने चोर को चचा बनाकर छोड़ा।

315. चल बसना–(मर जाना)
लम्बी बीमारी के पश्चात् बाबा जी चल बसे !

316. चींटी के पर निकलना–(मरने के दिन निकट आना)
आजकल संजीव पुलिस से भिड़ने लगा है, लगता है चींटी के पर निकल आए हैं।

317. चोली दामन का साथ–(अत्यन्त निकटता)
पुलिस और पत्रकारों का तो चोली दामन का साथ है।

318. चैन की बंशी बजाना–(मौज़ करना)
जो लोग कम ही उम्र में काफी धन अर्जित कर लेते हैं, वे बाकी की ज़िन्दगी चैन की बंशी बजा सकते हैं।

319. चिराग तले अँधेरा–(अपना दोष स्वयं दिखाई नहीं देता)
शाकाहार का उपदेश देते हो और घर में मांसाहारी भोजन बनता है, सच है चिराग तले अँधेरा।

320. चोर की दाढ़ी में तिनका–(अपराधी सदैव सशंक रहता है)
अपराधी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के मन में हमेशा एक खटका बना रहता है मानो “चोर की दाढ़ी में तिनका’ हो।

321. चार चाँद लगना–(शोभा बढ़ जाना)
किसी पार्टी में ऐश्वर्य राय के पहुँच जाने से पार्टी में चार चाँद लग जाते हैं।

322. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना–(आश्चर्य)
रिश्वत लेते पकड़े जाने पर सिपाही के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।

323. चूड़ियाँ पहनना–(कायर होना)।
चूड़ियाँ पहनकर बैठने से काम नहीं चलेगा, कुछ बदलने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।

(छ)

324. छक्के छूटना–(हिम्मत हारना)
आन्दोलनकारियों ने अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए।

325. छप्पर फाड़कर देना–(अनायास ही धन की प्राप्ति)
ईश्वर किसी–किसी को छप्पर फाड़कर देता है।

326. छाती पर मूंग दलना–(निरन्तर दुःख देना)
वह कई वर्षों से घर में निठल्ला बैठकर अपने पिताजी की छाती पर – मूंग दल रहा है।

327. छाती भर आना–(दिल पसीजना)
दुर्घटनाग्रस्त सोहन को मृत्यु–शैय्या पर तड़पते देखकर उसके मित्र चिंटू की छाती भर आई।

328. छाँह न छूने देना–(पास तक न आने देना)
मैं बुरे आदमी को अपनी छाँह तक छूने नहीं देता।

329. छठी का दूध याद दिलाना–(संकट में डाल देना)
भारतीयों ने, पाकिस्तानी सेना को छठी का दूध याद दिला दिया।

330. छूमन्तर होना–(गायब हो जाना)
मेरा पर्स यहीं रखा था, पता नहीं कहाँ छूमन्तर हो गया।

331. छक्के छुड़ाना–(हिम्मत पस्त करना)
भारतीय खिलाड़ियों ने विपक्षी टीम के छक्के छुड़ा दिए।

332. छक्का –पंजा भूलना–(कुछ भी याद न रहना)
अधिकारी को देखते ही कर्मचारी छक्के–पंजे भूल गए।

333. छाती ठोंकना–(साहस दिखाना)
अन्याय के खिलाफ़ छाती ठोंककर खड़े होने वाले कितने लोग होते हैं।

(ज)

334. जान के लाले पड़ना–(जान पर संकट आ जाना)
नौकरी छूटने से उसके तो जान के लाले पड़ गए।

335. जबान कैंची की तरह चलना–(बढ़–चढ़कर तीखी बातें करना)
कर्कशा की जबान कैंची की तरह चलती है।

336. जबान में लगाम न होना–(बिना सोचे समझे बिना लिहाज के बातें करना)
मनोहर इतना असभ्य है कि उसकी जबान में लगाम ही नहीं है।

337. जलती आग में घी डालना–(क्रोध भड़काना)
धनुष टूटा देखकर परशुराम क्रोधित थे ही कि लक्ष्मण की बातों ने जलती आग में घी डालने का काम कर दिया।

338. जड़ जमना–(अच्छी तरह प्रतिष्ठित या प्रस्थापित होना)
अब तो नेता ने पार्टी में अपनी जड़ें जमा ली हैं। पार्टी उन्हें इस बार उच्च पद पर नियुक्त करेगी।

339. जान में जान आना–(चैन मिलना)
खोया हुआ बेटा मिला तो माँ की जान में जान आई।

340. जहर का चूँट पीना–(कड़ी और कड़वी बात सुनकर भी चुप रहना)
निर्बल व्यक्ति शक्तिशाली आदमी की हर कड़वी बात को ज़हर के घूट की तरह पी जाता है।

341. जिगरी दोस्त–(घनिष्ठ मित्र)
राम और श्याम जिगरी दोस्त हैं।

342. ज़िन्दगी के दिन पूरे करना–(कठिनाई में समय बिताना)।
आज के युग में किसान और मज़दूर अपनी ज़िन्दगी के दिन पूरे कर रहे हैं।

343. जीती मक्खी निगलना–(जान बूझकर अन्याय सहना)
आप जैसे समझदार को जीती मक्खी निगलना शोभा नहीं देता।

344. जी चुराना–(किसी काम या परिश्रम से बचने की चेष्टा करना)
पढ़ने–लिखने से मैंने एक दिन के लिए भी कभी जी नहीं चुराया।

345. ज़मीन पर पैर न रखना–(अकड़कर चलना)
जब से राजेश नायब तहसीलदार हुआ, वह ज़मीन पर पैर नहीं रखता।

346. जोड़–तोड़ करना–(उपाय करना)
अब तो जोड़–तोड़ की राजनीति करने वालों की कमी नहीं है।

347. जली–कटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)
रमेश का कटाक्ष सुनकर सुरेश ने उसे खूब जली–कटी सुनाई थी।

348. जूतियाँ चाटना–(चापलूसी करना)।
स्वाभिमानी व्यक्ति किसी की जूतियाँ नहीं चाटता।

349. जान हथेली पर रखना–(प्राणों की परवाह न करना)
सेना के जवान जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करते हैं।

350. जितने मुँह उतनी बातें–(एक ही विषय पर अनेक मत होना)
ताजमहल के सौन्दर्य के विषय में जितनी मुँह उतनी बातें हैं।

351. जी खट्टा होना–(विरत होना)
पुत्र के व्यवहार से पिता का जी खट्टा हो गया।

352. जामे से बाहर होना–(अति क्रोधित होना)
राजेश को यदि सरकण्डा कहो तो वह जामे से बाहर हो जाता है।

353. ज़हर की पुड़िया–(मुसीबत की जड़)
उसकी बातों पर मत जाना, वह तो ज़हर की पुड़िया है।

354. जोंक होकर लिपटना–(बुरी तरह पीछे पड़ना)
किसान के ऊपर साहूकार का ऋण जोंक की तरह लिपट जाता है।

355. जी भर आना–(दुःखी होना)
संजय की मृत्यु का समाचार सुनकर मेरा जी भर आया।

356. जहर उगलना–(कड़वी बातें करना)
तुम जहर उगलकर किसी से अपना कार्य नहीं करा सकते।

357. झण्डा गड़ना–(अधिकार जमाना)
दुनिया में उन्हीं लोगों के झण्डे गड़े हैं, जो अपने देश पर कुर्बान होते हैं।

358. झकझोर देना–(हिला देना/पूर्णत: त्रस्त कर देना)
पिता की मृत्यु, ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया।

359. झाँव–झाँव होना–(जोरों से कहा–सुनी होना)
इन दो गुटों के बीच झाँव–झाँव होती रहती है।

360. झाडू फिरना/फिर जाना–(नष्ट करना)
वार्षिक परीक्षा के दौरान मार्ग–दुर्घटना में घायल होने के कारण राकेश की सारी मेहनत पर झाडू फिर गयी।

361. झुरमुट मारना–(बहुत से लोगों का घेरा बनाकर खड़े होना)
युद्ध में सैनिक जगह–जगह झुरमुट मारकर लड़ रहे हैं।

362. झूमने लगना–(आनन्द–विभोर हो जाना)
ऋद्धि के भजनों को सुनकर सभागार में उपस्थित सभी लोग झूम उठे।

(ट)

363. टिप्पस लगाना–(सिफारिश करवाना)
आजकल मामूली काम के लिए मन्त्रियों से टिप्पस लगवाए जाते हैं।

364. टूट पड़ना–(आक्रमण करना)
भारत की सेना पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़ी और उसका विनाश कर दिया।

365. टेढ़ी खीर–(कठिन काम या बात)
हिमालय के शिखर पर चढ़ना टेढ़ी खीर है।

366. टका–सा जवाब देना–(साफ़ इनकार कर देना)
अटल जी ने अमेरिका को टका–सा जवाब दे दिया कि भारतीय सेना इराक नहीं जाएगी।

367. टाट उलटना–(दिवाला निकलना)
चाँदी की कीमत में एकाएक गिरावट आने से उसे भारी घाटा उठाना पड़ा और अन्तत: उसकी टाट ही उलट गई।

368. टोपी उछालना–(बेइज्जती करना)
तुमने अपने पिता की टोपी उछालने में कोई कमी नहीं की है।

369. टाँग अड़ाना–(व्यवधान डालना)
बहुत से लोगों को दूसरों के काम में टाँग अड़ाने की बुरी आदत होती है।

370. टाँय–टाँय फिस होना–(काम बिगड़ जाना)
व्यावहारिक बुद्धि के अभाव से मुहम्मद तुगलक की सारी योजनाएँ टाँय–टाँय फिस हो गईं।

371. ठण्डे कलेजे से–(शान्त होकर/शान्त भाव से)
जनाब एक बार ठण्डे कलेजे से फिर सोच लीजिएगा, हमारी बात बन सकती

372. दूंठ होना–(निष्प्राण होना).
अब तो उसका समस्त परिवार दूंठ होने पर आया है।

373. ठन–ठन गोपाल–(पैसा पास न होना)
अधिक खर्च करने वालों की हालत यह होती है कि महीने के अन्त में ठन–ठन गोपाल हो जाते हैं।

374. ठौर–ठिकाने लगना–(आश्रय मिलना)
अजनबी को किसी भी शहर में जल्दी से ठौर–ठिकाना नहीं मिलता।

375. ठीकरा फोड़ना–(दोष लगाना)
राजनीतिक दल नाकामी का ठीकरा एक–दूसरे के सिर पर फोड़ते रहते हैं।

(ड)

376. डंक मारना–(घोर कष्ट देना)
वह मित्र सच्चा मित्र कभी नहीं हो सकता, जो अपने मित्र को डंक मारता हो।

377. डंड पेलना–(निश्चिन्ततापूर्वक जीवनयापन करना)
बाप लाखों की सम्पत्ति छोड़ गए हैं, बेटा राम डंड पेल रहे हैं।

378. डाली देना–(अधिकारियों को प्रसन्न रखने के लिए कुछ भेंट देना)
घुसपैठिए अधिकारियों को डाली देकर ही सीमा पार कर सकते हैं।

379. डींग मारना–(अनावश्यक बातें कहना)
काम करने वाला व्यक्ति डींग नहीं मारता।

380. डूबना–उतराना–(संशय में रहना)
अपने कमरे में अकेली पड़ी मानसी रात–भर गहरे सोच–विचार में डूबती–उतराती रही।

381. डंका बजना–(ख्याति होना)
सचिन तेन्दुलकर का डंका दुनिया में बज रहा है

382. डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाना–(बहुमत से अलग रहना)
राजेश सदा अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाता है।

383. डाढ़ी पेट में होना–(छोटी उम्र में ही बहुत ज्ञान होना)
आवेश के पेट में तो डाढ़ी है।

384. डेढ़ बीता कलेजा करना–(अत्यधिक साहस दिखाना)
सेना के जवान युद्ध क्षेत्र में डेढ़ बीता कलेजा करके जाते हैं।

385. ढंग पर चढ़ना–(प्रभाव या वश में करना)
प्रभात ने सुरेश को ऐसे चक्रव्यूह में फँसाया कि उसे ढंग पर चढ़ा दिया।

386. ढोंग रचना–(किसी को मूर्ख बनाने के लिए पाखण्ड करना)।
चतुर लोग अपना काम निकालने के लिए कई प्रकार के ढोंग रच लेते हैं।

387. ढिंढोरा पीटना–(प्रचार करना)
तुम्हें कोई बात बताना ठीक नहीं, तुम तो उसका ढिंढोरा पीट दोगे।

388. ढाई दिन की बादशाहत–(थोड़े समय के लिए पूर्ण अधिकार
मिलना) जहाँदारशाह की तो ढाई दिन की बादशाहत रही थी।

(त)

389. तंग आ जाना–(परेशान हो जाना)
उनकी रोज़–रोज़ की किलकिल से तो मैं तंग आ गया हूँ।

390. तकदीर का खेल–(भाग्य में लिखी हई बात)
अमीरी–गरीबी, यह सब तकदीर का खेल है।

391. तबलची होना–(सहायक के रूप में होना)
चाटुकार और स्वार्थी कर्मचारी अपने अधिकारी के तबलची बनकर रहते

392. ताक पर रखना–(व्यर्थ समझकर दूर हटाना)
परीक्षा अब समीप है और तुमने अपनी सारी पढ़ाई ताक पर रख दी।

393. तीसमार खाँ बनना–(अपने को शूरवीर समझ बैठना)
गोपी अपने को तीसमार खाँ समझता था और जब गाँव में चोर आए, तो वह घर से बाहर नहीं निकला।

394. तिल का ताड़ बनाना–(किसी बात को बढ़ा–चढ़ाकर कहना)
सुरेश हमेशा हर बात का तिल का ताड़ बनाया करता है।

395. तार–तार होना–(पूरी तरह फट जाना)
तुम्हारी कमीज तार–तार हो गई है, अब तो इसे पहनना छोड़ दो।

396. तेली का बैल–(हर समय काम में लगे रहना)
अनिल तो तेली के बैल की तरह काम करता रहता है।

397. तुर्की–ब–तुर्की बोलना–(जैसे को तैसा)
मैं आपसे शिष्टतापूर्वक बोल रहा हूँ, यदि आप और गलत बोले तो मैं तुर्की– ब–तुर्की बोलूँगा।

398. तीन–तेरह करना–(पृथक्ता की बात करना)
पाकिस्तान में ही अलगाववादी नेता पाकिस्तान को तीन तेरह करने की बात करते हैं।

399. तीन–पाँच करना–(टाल–मटोल करना)
आप मुझसे तीन–पाँच मत कीजिए, जाकर प्रधानाचार्य से मिलिए।

400. तालू से जीभ न लगना–(बोलते रहना)
शीला की तो तालू से जीभ ही नहीं लगती हर समय बोलती ही रहती है।

401. तूती बोलना–(रौब जमाना)
मायावती की बसपा में तूती बोलती है।

402. तेल की कचौड़ियों पर गवाही देना–(सस्ते में काम करना)
सुनील ने लालाजी से कहा कि आप अधिक पैसे भी नहीं देना चाहते और खरा काम चाहते हैं। भला तेल की कचौड़ियों पर कौन गवाही देगा।

403. तालू में दाँत जमना–(विपत्ति या बुरा समय आना)
पहले मुकेश की नौकरी छूट गई फिर बीबी–बच्चे बीमार हो गए। लगता है उनके तालू में दाँत जम गए हैं।

404. तेवर चढ़ना–(गुस्सा होना)
अपने पिताजी का अपमान होते देखकर राजीव के तेवर चढ़ गए थे।

405. तारे गिनना–(रात को नींद न आना)
रघु, राजीव की प्रतीक्षा में रात–भर तारे गिनता रहा।

406. तलवे चाटना–(खुशामद करना)
चुनाव की घोषणा होते ही चन्दा पाने के लिए राजनीतिक दल के नेता पूँजीपतियों के तलवे चाटने लगते हैं।

(थ)

407. थाली का बैंगन–(ढुलमुल विचारों वाला/सिद्धान्तहीन व्यक्ति)
सूरज थाली का बैंगन है, उससे हमेशा बचकर रहना।

408. थुड़ी–थुड़ी होना–(बदनामी होना)
शेरसिंह के दुराचार के कारण पूरे गाँव में उसकी थुड़ी–थुड़ी हो गई।

409. थैली का मुँह खोलना–(खुले दिल से व्यय करना)
बेटी के विवाह में सुलेखा ने थैली का मुँह खोल दिया था।

410. थूककर चाटना–(कही हुई बात से मुकर जाना)।
कल्याण सिंह ने थूककर चाट लिया और भाजपा में पुनः प्रवेश कर लिया।

411. थाह लेना–(किसी गुप्त बात का भेद जानना)
शर्मा जी की थाह लेना आसान नहीं है, वे बहुत गहरे इनसान हैं।

(द)

412. दंग रह जाना–(अत्यधिक चकित रह जाना)
अन्त में अर्जुन और कर्ण का भीषण युद्ध हुआ, दोनों का युद्ध देखकर सारे। लोग दंग रह गए।

413. दाँतों तले उँगली दबाना–(आश्चर्यचकित होना)
शिवाजी की वीरता देखकर औरंगजेब ने दाँतों तले उँगली दबा ली।

414. दाल में काला होना–(संदेह होना)
राम और श्याम को एकान्त में देखकर मैंने समझ लिया कि दाल में। काला है।

415. दुम दबाकर भागना/भाग जाना/भाग खड़े होना–(चुपचाप भाग
जाना) घर में तीसमार खाँ बनता है और बाहर कमज़ोर को देखकर भी दुम दबाकर भाग जाता है।

416. दूध का दूध और पानी का पानी–(पूर्ण न्याय करना)
आजकल न्यायालयों में दूध का दूध और पानी का पानी नहीं हो पाता है।

417. दो नावों पर सवार होना–(दुविधापूर्ण स्थिति में होना या खतरे में
डालना) श्यामलाल नौकरी करने के साथ–साथ यूनिवर्सिटी की परीक्षा की तैयारी करते हुए सोच रहा था कि क्या उसके लिए दो नावों पर सवारी करना उचित रहेगा?

418. द्वार झाँकना–(दान, भिक्षा आदि के लिए किसी के दरवाजे पर जाना)
आप जैसे वेदपाठी ब्राह्मण, गुरु–दक्षिणा के लिए हमारे पास आएँ और यहाँ से निराश लौटकर किसी का द्वार झाँके, यह नहीं हो सकता।

419. दिन–रात एक करना–(प्रयास करते रहना)
श्यामलाल ने अपने मित्र गोपी को उन्नति करते देख कह ही दिया–“अब तो तुमने दिन–रात एक कर रखे हैं, तभी तो उन्नति कर रहे हो।”

420. दिमाग दिखाना–(अहम् भाव प्रदर्शित करना)
“क्या बताऊँ दोस्त, लड़के वाले तो आजकल बड़े दिमाग दिखा रहे हैं।” अपने एक मित्र के पूछने पर दिलावर ने बताया।

421. दिन दूनी रात चौगुनी होना–(बहुत शीघ्र उन्नति करना)
अरिहन्त प्रकाशन दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।

422. दूध का धुला होना–(बहुत पवित्र होना)
तुम भी दूध के धुले नहीं हो, जो मुझ पर दोष लगा रहे हो।

423. दाँत काटी रोटी–(घनिष्ठ मित्रता)
किसी समय मेरी उससे दाँत काटी रोटी थी।

424. दाना पानी उठना–(जगह छोड़ना)
विकास की तबदीली हो गई है, यहाँ से उसका दाना पानी उठ गया है।

425. दिल का गुबार निकालना–(मन की बात कह देना)
अजय ने सुनील को बुरा–भला कहा जिससे उसके दिल का गुबार निकल
गया।

426. दिन पहाड़ होना–(कार्य के अभाव में समय गुजारना)
जून के महीने में दिन पहाड़ हो जाते हैं।

427. दाहिना हाथ–(बहुत बड़ा सहायक होना)
अमर सिंह मुलायम सिंह का दाहिना हाथ था।

428. दमड़ी के तीन होना–(सस्ते होना)
अब वह जमाना गया जब दमड़ी के तीन सन्तरे मिलते थे।

429. दिन में तारे दिखाई देना–(बुद्धि चकराने लगना)
यदि ज़्यादा बोले तो ऐसा थप्पड़ मारूंगा दिन में तारे दिखाई देने लगेंगे।

430. दम भरना–(भरोसा करना)
अब तो तुम मुसीबत में फँसे हो, कहाँ है वे तुम्हारे सभी दोस्त, जिनका तुम दम भरते थे?

431. दिमाग आसमान पर चढ़ना–(बहुत घमण्ड होना)
कभी–कभी उसका दिमाग आसमान पर चढ़ जाता है।

432. दर–दर की ठोकरें खाना–(बहुत कष्ट उठाना)
पूँजीवादी व्यवस्था में करोड़ों बेरोज़गार दर–दर की ठोकरें खा रहे हैं।

433. दाँत खट्टे करना–(पराजित करना)
भारत ने आस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के टेस्ट सीरीज में दाँत खट्टे कर दिए।

434. दिल भर आना–(शोकाकुल होना या भावुक होना)
संजय की मृत्यु का समाचार सुनकर दिल भर आया

435. दाँत पीसकर रह जाना–(क्रोध रोक लेना)
चीन के खिलाफ अमेरिका दाँत पीसकर रह जाता है।

436. दिनों का फेर होना–(भाग्य का चक्कर)
पहले गोयल साहब से कोई सीधे मुँह बात नहीं करता था, आज पैसा आ गया तो हर कोई उनके आगे–पीछे घूम रहा है। यही तो दिनों का फेर है।

437. दिल में फफोले पड़ना–(अत्यन्त कष्ट होना)
रमेश के पुन: अनुत्तीर्ण होने पर उसके दिल में फफोले पड़ गए हैं।

438. दाल जूतियों में बँटना–(अनबन होना)
पड़ोसी से पहले जैन साहब की घुटती थी, बच्चों में लड़ाई हो गई, तो अब दाल जूतियों में बँटने लगी।

439. देवता कूच कर जाना–(घबरा जाना)
पुलिस की पूछताछ से पहले ही नौकर के देवता कूच कर गए।

440. दो दिन का मेहमान –(जल्दी मरने वाला)
उसकी दादी बहुत बीमार हैं, लगता है बस दो दिन की मेहमान हैं।

441. दमड़ी के लिए चमड़ी उधेड़ना–(छोटी–सी बात के लिए अधिक माँग
करना या दण्ड देना) मात्र एक कप का प्याला टूट गया तो तुमने उसे बुरी तरह मारा, इस पर पड़ोसी ने कहा तुम्हें दमड़ी के लिए चमड़ी उधेड़ना शोभा नहीं देता।

442. दुम दबाकर भागना–(डरकर कुत्ते की भाँति भागना)
पुलिस के आने पर चोर दुम दबाकर भाग गए।

443. दूध के दाँत न टूटना–(ज्ञान व अनुभव न होना)
अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे हैं और चले हो बड़े–बड़े काम करने।

(ध)

444. धोती ढीली होना–(घबरा जाना)
जंगल में भालू देखते ही उसकी धोती ढीली हो गई।

445. धौंस जमाना–(रौब दिखाना/आतंक जमाना)
गाँव के एक अमीर और रौबदार आदमी को, गाँव के ही एक खुशहाल (खाते–पीते) व्यक्ति ने अपनी दुकान पर आतंक जमाते देखा तो कहा “चौधरी साहब आप अपना रौब गाँव वालों को ही दिखाया करो, मेरी दुकान पर आकर किसी प्रकार की धौंस न जमाया करो।”

446. ध्यान टूटना–(एकाग्रता भंग होना)
गुरु जी एकान्त कमरे में बैठे ध्यानमग्न थे। छोटे बालक के कमरे में प्रवेश करने तथा वहाँ की वस्तुओं को उठा–उठाकर इधर–उधर करने की खट–पट की आवाज़ से उनका ध्यान टूट गया।

447. ध्यान रखना–(देखभाल करना/सावधान रहना)
“प्रीति जरा हमारे बच्चों का ध्यान रखना। मैं मन्दिर जा रही हूँ।” अनामिका ने अपनी पड़ोसन को सजग करते हुए कहा।

448. धज्जियाँ उड़ाना–(दुर्गति)
सचिन ने शोएब अख्तर की गेंदबाजी की धज्जियाँ उड़ा दीं।

449. धूप में बाल सफ़ेद होना–(अनुभवहीन होना)
मैं तुम्हारा मुकदमा जीतकर रहूँगा, ये बाल कोई धूप में सफेद नहीं किए हैं।

(न)

450. नंगा कर देना–(वास्तविकता प्रकट करना/असलियत खोलना)
रघु और दौलतराम का झगड़ा होने पर उन्होंने सरेआम एक–दूसरे को नंगा कर दिया।

451. नंगे हाथ–(खाली हाथ)
“मनुष्य संसार में नंगे हाथ आता है और नंगे हाथ ही जाता है। इसलिए उसे चाहिए कि वह किसी के साथ बेईमानी या दुराचार न करे।” अपने प्रवचनों में गुरु महाराज लोगों को उपदेश दे रहे थे।

452. नमक–मिर्च लगाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना)
चुगलखोर व्यक्ति नमक–मिर्च लगाकर ही कहते हैं।

453. नुक्ता–चीनी करना–(छिद्रान्वेषण करना)
“तुमसे कितनी बार कह चुका हूँ कि तुम मेरे काम में नुक्ता–चीनी मत किया करो।”

454. निन्यानवे के फेर में पड़ना–(धन संग्रह की चिन्ता में पड़ना)
व्यापारी तो हमेशा निन्यानवे के फेर में लगे रहते हैं।

455. नौ दो ग्यारह होना–(भाग जाना)
चोर मकान में चोरी कर नौ दो ग्यारह हो गए।

456. नाच नचाना–(मनचाही करना)
रमेश और सुरेश दोनों मिलकर राकेश को नाच नचाते हैं।

457. नाक भौं चढ़ाना–(असन्तोष प्रकट करना)
सोनिया गाँधी के गठबन्धन पर भाजपा नाक भौं चढ़ा रही है।

458. नीला–पीला होना–(गुस्सा होना)
मालिक तो मज़दूरों पर प्राय: नीला–पीला होते रहते हैं।

459. नाको–चने चबाना–(बहुत तंग होना)
लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों को नाको चने चबवा दिए।

460. नीचा दिखाना–(अपमानित करना)
चुनाव से पूर्व भाजपा और कांग्रेस एक–दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं।

461. नाक में नकेल डालना–(वश में करना)
प्रतिपक्ष ने अपनी मांगों को लेकर केन्द्र सरकार की नाक में नकेल डाल रखी है।

462. नमक अदा करना–(उपकारों का बदला चुकाना)
जयसिंह ने शिवाजी को हराकर औरंगजेब का नमक अदा कर दिया।

463. नाक कटना–(इज्जत चली जाना)
आज तुमने बदतमीज़ी करके सबकी नाक कटवा दी।

464. नाक रगड़ना–(बहुत विनती करना)
सरकारी कर्मचारी रिश्वत वाली सीट प्राप्ति के लिए अधिकारियों के आगे नाक रगड़ते हैं।

465. नकेल हाथ में होना–(वश में होना)
उत्तर भारत में साधारणतया घर की नकेल पुरुष के हाथों में होती है।

466. नहले पर दहला मारना–(करारा जवाब देना)

467. नानी याद आना–(मुसीबत का एहसास होना)
इन्जीनियरिंग की पढ़ाई करते–करते तुम्हें नानी याद आ गई।

468. नाक का बाल होना–(अत्यन्त प्रिय होना)
मनोज तो नेता जी की नाक का बाल है।

469. नस–नस पहचानना–(किसी के अवांछित व्यवहार को विस्तार से जानना)
मालिक और मज़दूर एक–दूसरे की नस–नस को पहचानते हैं।

470. नाव में धूल उड़ाना–(व्यर्थ बदनाम करना)
मेरे विषय में सब लोग जानते हैं, तुम बेकार में नाव में धूल उड़ाते हो।

(प)

471. पत्थर की लकीर होना–(स्थिर होना या दृढ़ विश्वास होना)
मेरी बात पत्थर की लकीर समझो।

472. पहाड़ टूट पड़ना–(मुसीबत आना)
वर्षा में मकान गिरने की सूचना पाकर राम पर पहाड़ टूट पड़ा।

473. पाँचों उँगली घी में होना–(पूर्ण लाभ में होना)
कृपाशंकर ने जब से गल्ले का व्यापार किया, तब से उसकी पाँचों उँगली घी में हैं।

474. पानी उतर जाना–(लज्जित हो जाना)
लड़के का कुकृत्य सुनकर सेठ जी का पानी उतर गया।

475. पेट में दाढ़ी होना–(चालाक होना)
मुल्ला जी से कोई लाभ नहीं उठा पाएगा, उनके तो पेट में दाढ़ी है।

476. पेट का पानी न पचना–(अत्यन्त अधीर होना)
“बिना गाली दिए तेरे पेट का पानी नहीं पचता क्या?” बार–बार गाली देते देखकर सोहन ने अपने एक मित्र को टोका।

477. पीठ में छुरा भोंकना–(विश्वासघात करना)
जयन्ती लाल ने अपनी पहचान के शराबी, जुआरी लड़के से श्यामलाल की। बेटी की शादी कराकर, दोस्ती के नाम पर श्यामलाल की पीठ में छुरा भोंकने का–सा कार्य कर दिया।

478. पैरों पर खड़ा होना–(स्वावलम्बी होना)
मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जब तक अपने पैरों पर खड़ा नहीं होऊँगा शादी नहीं करूंगा।

479. पानी–पानी होना–(शर्मसार होना)
जब रामपाल की करतूतों की पोल खुली तो वह पानी–पानी हो गया।

480. पगड़ी रखना–(इज़्ज़त रखना)
लाला जी ने फूलचन्द की लड़की की शादी में रुपए देकर उनकी पगड़ी रख ली।

481. पेट में चूहे दौड़ना–(भूख लगना)
जल्दी से खाना दे दो, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।

482. पाँव उखड़ जाना–(पराजित होकर भाग जाना)
हैदर अली की सेना के समक्ष अंग्रेज़ों के पैर उखड़ गए।

483. पत्थर पर दूब जमना–(अप्रत्याशित घटित होना)
मैंने इण्टर में हिन्दी में विशेष योग्यता लाकर पत्थर पर दूब जमा दी।

484. पापड़ बेलना–(विषम परिस्थितियों से गुज़रना)
सरकारी तो क्या प्राइवेट नौकरी पाने के लिए भी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।

485. पेट का हल्का–(बात को अपने तक छिपा न सकने वाला)
नीरज से कोई रहस्य मत बताना, वह तो पेट का हल्का है।

486. पटरी बैठना–(अच्छे सम्बन्ध होना)
अजीब इनसान हो, तुम्हारी पटरी किसी से नहीं बैठती।

487. पीठ पर हाथ रखना–(पक्ष मज़बूत बनाना)
तुम्हारी पीठ पर विधायक जी का हाथ है, इसीलिए इतराते फ़िरते हो।

488. पाँव तले जमीन खिसकना–(घबरा जाना)
तुम्हारे न आने से मेरे तो पाँव तले ज़मीन खिसक गई थी।

489. पाँव फूंक–फूंक कर रखना–(सतर्कता से कार्य करना)
प्राइवेट नौकरी कर रहे हो, ज़रा पाँव फूंक–फूंक कर रखो।

490. पीठ दिखाना–(पराजय स्वीकार करना)
भारतीय सैनिक युद्ध में पीठ नहीं दिखाते।

491. पानी में आग लगाना–(असम्भव कार्य करना)
सम्राट अशोक ने लगभग पूरे भारत पर शासन किया, वह पानी में आग लगाने की क्षमता रखता था।

492. पंख न मारना–(पहुँच न होना)
अयोध्या के चारों ओर ऐसी सुरक्षा व्यवस्था थी कि परिन्दा भी पर न मार सके।

(फ)

493. फ़रिश्ता निकलना–(बहुत भला और परोपकारी सिद्ध होना)
“जिसको तुम अपना दुश्मन समझती थी, उसने तुम्हारे बेटे की नौकरी लगवा दी। देखा, वह बेचारा कितना बड़ा फरिश्ता निकला हमारे लिए।”

494. फिकरा कसना–(व्यंग्य करना)
“तुम तो हमेशा ही मुझ पर फिकरे कसती रहती हो, दीदी को कुछ नहीं कहती।”

495. फीका लगना–(घटकर या हल्का प्रतीत होना)
“तुम्हारी बात में वजन तो था, लेकिन रामशरण की बात के सामने तुम्हारी बातफीकी पड़ गई।

496. फूटी आँखों न भाना–(बिल्कुल अच्छा न लगना)
पृथ्वीराज जयचन्द को फूटी आँख भी नहीं भाते थे।

497. फूला न समाना–(बहुत प्रसन्न होना)
पुत्र की उन्नति देखकर माता–पिता फूले नहीं समाते हैं।

498. फूल सूंघकर रह जाना–(अत्यन्त थोड़ा भोजन करना)
गोयल साहब इतना कम खाते हैं, मानो फूल सूंघकर रह जाते हों।

499. फूंक–फूंक कर कदम रखना–(अत्यन्त सतर्कता के साथ काम करना)
इतिहास साक्षी है कि पाकिस्तान से कोई भी समझौता करते समय भारत को फूंक–फूंक कर पाँव रखने होंगे।

500. फूलकर कुप्पा होना–(बहुत प्रसन्न होना)
संतू ने जब सुना कि उसकी बेटी ने उत्तर प्रदेश में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए हैं, तो वह खुशी के मारे फूलकर कुप्पा हो गया।

501. फावड़ा चलाना–(मेहनत करना)
मजदूर फावड़ा चलाकर अपनी रोजी–रोटी कमाता है।

502. फूंक मारना–(किसी को चुपचाप बहकाना)
लीडर ने मजदूरों में क्या फूंक मार दी, जिससे उन्होंने हड़ताल कर दी।

503. फट पड़ना–(एकदम गुस्से में हो जाना)
संजय किसी बात पर कई दिनों से मुझसे नाराज़ था, आज जाने क्या हुआ फट पड़ा।

504. बंटाधार होना–(चौपट या नष्ट होना)
हृदय प्रताप के व्यापार का ऐसा बंटाधार हुआ कि वह आज तक नहीं पनप पाया।

505. बहती गंगा में हाथ धोना–(बिना प्रयास ही यश पाना)
जीवन में कभी–कभी बहती गंगा में हाथ धोने के अवसर मिल जाते हैं।

506. बाग–बाग होना–(अति प्रसन्न होना)
गिरिराज लोक सेवा आयोग परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ, तो उसके परिवार वाले बाग–बाग हो उठे।

507. बीड़ा उठाना–(दृढ़ संकल्प करना)
क्रान्तिकारियों ने भारत को आज़ाद कराने के लिए बीड़ा उठा लिया है।

508. बेपर की उड़ाना–(अफवाहें फैलाना/निराधार बातें चारों ओर
करते फिरना) “कुछ लोग बेपर की उड़ाकर हमारी पार्टी को बदनाम करना चाहते हैं। अत: मेरा अनुरोध है कि कोई भी सज्जन ऐसे लोगों की बातों में न आएँ।” नेताजी मंच पर खड़े जनता को सम्बोधित कर रहे थे।

509. बट्टा लगाना–(दोष या कलंक लगना)
रिश्वत लेते पकड़े जाने पर अधिकारी की शान में बट्टा लग गया।

510. बाल–बाल बचना–(बिल्कुल बच जाना)
चन्द्रबाबू नायडू नक्सलवादी हमले में बाल–बाल बचे थे।

511. बाल बाँका न होना–(कुछ भी हानि या कष्ट न होना)
जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।

512. बालू में से तेल निकालना–(असम्भव को सम्भव कर देना)
बढ़ती महँगाई को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब महंगाई को दूर करना बालू में से तेल निकालने के समान हो गया है।

513. बाँछे खिलना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)
लड़का पी. सी. एस. हो गया तो सक्सेना साहब की बाँछे खिल गईं।

514. बखिया उधेड़ना–(भेद खोलना)
मनोज ने सबके सामने संजय की बखिया उधेड़कर रख दी।

515. बच्चों का खेल–(सरल काम)
भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम में शामिल होना कोई बच्चों का खेल नहीं है।

516. बाएँ हाथ का खेल–(अति सरल काम)
अर्द्धशतक लगाना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल था।

517. बात का धनी होना–(वचन का पक्का होना)
राजीव ने कह दिया तो समझो वह नहीं जाएगा, वह अपनी बात का धनी है।

518. बेसिर पैर की बात करना–(व्यर्थ की बातें करना)
गिरीश मोहन तो बेसिर पैर की बात करता है।

519. बछिया का ताऊ–(मूर्ख)
शिवकुमार से यह काम नहीं होगा, वह तो बछिया का ताऊ है।

520. बड़े घर की हवा खाना–(जेल जाना)
राजू अपने अपराध के कारण ही बड़े घर की हवा खा रहा है।

521. बेदी का लोटा–(ढुलमुल)
मनोज की बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए, वह तो बेपेंदी का लोटा है।

522. बल्लियाँ उछलना–(बहुत खुश होना)
अपने अरिहन्त प्रकाशन में सेलेक्शन की बात सुनकर वह बल्लियाँ उछलने लगा।

523. बावन तोले पाव रत्ती–(बिल्कुल ठीक हिसाब)
खचेडू पंसारी का हिसाब बावन तोले पाव रत्ती रहता है।

524. बाज़ार गर्म होना–(काम–धंधा तेज़ होना)
आजकल कालाबाज़ारी का बाज़ार गर्म है।

525. बात ही बात में–(तुरन्त)
बात ही बात में उसने तमंचा निकाल लिया।

526. बरस पड़ना–(अति क्रुद्ध होकर डाँटना)
पवन ने गलत बण्डल बाँध दिया तो सेठ जी उस पर बरस पड़े।

527. बात न पूछना–(आदर न करना)
रमेश ने सिनेमा देखने जाने से पहले पिता जी से नहीं पूछा।

528. बिल्ली के गले में घण्टी बाँधना–(स्वयं को संकट में डालना)
प्रधानाचार्य ने स्कूल का बहुत पैसा खाया है, लेकिन प्रश्न यह है कि प्रबन्धन से शिकायत करके बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाँधे।

(भ)

529. भण्डा फोड़ना–(रहस्य खोलना/भेद प्रकट करना)
अनीता और सुचेता में मनमुटाव होने पर अनीता ने सुचेता की एक गुप्त और महत्त्वपूर्ण बात का भण्डाफोड़ कर यह ज़ाहिर कर दिया कि अब वह उसकी कट्टर दुश्मन है।

530. भविष्य पर आँख होना–(आगे का जीवन सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना)
मेरे बेटे ने एम. बी. ए. की परीक्षा पास कर ली है, परन्तु मेरी आँखें अब भी उसके भविष्य पर लगी रहती हैं।

531. भिरड़ के छत्ते में हाथ डालना–(जान–बूझकर बड़ा संकट अपने पीछे
लगाना) “तुमने इतने बड़े परिवार के व्यक्ति को पीटकर अच्छा नहीं किया। समझो, तुमने भिरड़ के छत्ते में हाथ डाल दिया।”

532. भीगी बिल्ली बनना–(डर जाना)
पुलिस की आहट पाते ही चोर भीगी बिल्ली बन जाते हैं।

533. भूमिका निभाना–(निष्ठापूर्वक अपने काम का निर्वाह करना)
अमिताभ बच्चन ने भारतीय सिनेमा में अपने अभिनय की जो भूमिका निभाई है, वह देखते ही बनती है।

534. भेड़ियां धसान–(अंधानुकरण)
हमारा गाँव भेड़िया धसान का सशक्त उदाहरण है।

535. भाड़े का टटू–(पैसे लेकर ही काम करने वाला)
चुनावों में भाड़े के टटुओं की तो मौज आ जाती है।

536. भाड़ झोंकना–(समय व्यर्थ खोना)
दिल्ली में रहकर कुछ नहीं सीखा, वहाँ क्या भाड़ झोंकते रहे।

537. भैंस के आगे बीन बजाना–(बेसमझ आदमी को उपदेश)
अनपढ़ व अन्धविश्वासी लोगों से मार्क्सवाद की बात करना भैंस के आगे बीन बजाना है।

538. भागीरथ प्रयत्न करना–(कठोर परिश्रम)
स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए भारतीयों ने भागीरथ प्रयत्न किया।

(म)

539. मुख से फूल झड़ना–(मधुर वचन बोलना)
प्रशान्त की क्या बुराई करें, उसके तो मुख से फूल झड़ते हैं।

540. मन के लड्डू खाना–(व्यर्थ की आशा पर प्रसन्न होना)
‘मन के लड्डू खाने से काम नहीं चलेगा, यथार्थ में कुछ काम करो।

541. मन ही मन में रह जाना–(इच्छाएँ पूरी न होना)
धन के अभाव में व्यक्ति की इच्छाएँ मन ही मन में रह जाती हैं।

542. माथे पर शिकन आना–(मुखाकृति से अप्रसन्नता/रोष आदि प्रकट
होना) जब मैंने उसके माथे पर शिकन देखी, तो मैं तभी समझ गया था कि मेरे प्रति उसके मन में चोर है।

543. मीठी छुरी चलाना–(प्यार से मारना/विश्वासघात करना)
सेठ दुर्गादास इतनी मीठी छुरी चलाता है कि सामने वाले को उसकी किसी बात का बुरा ही नहीं लगता है और वह कटता चला जाता है।

544. मुँह पर नाक न होना–(कुछ भी लज्जा या शर्म न होना)।
कुछ लोग राह चलते गन्दी बातें करते रहते हैं, क्योंकि उनके मुँह पर नाक नहीं होती।

545. मुट्ठी गरम करना–(रिश्वत देना)
सरकारी कर्मचारियों की बिना मुट्ठी गर्म किए काम नहीं चलता है।

546. मन मैला करना–(खिन्न होना)
क्या समय आ गया है किसी के हित की बात कहो तो वह मन मैला कर लेता है।

547. मुट्ठी में करना–(वश में करना)
अपनी धूर्तता और मक्कारी के चलते मेरे छोटे भाई ने माँ को मुट्ठी में कर रखा है।

548. मुँह की खाना–(हार जाना/अपमानित होना)
अमेरिका को वियतनाम युद्ध में मुँह की खानी पड़ी।

549. मीन मेख निकालना–(त्रुटि निकालना)
आलोचक का कार्य किसी भी रचना में मीन मेख निकालना रह गया

550. मुँह में पानी आना–(लालच भरी दृष्टि से देखना/खाने हेतु लालच)
राजमा देखकर मुँह में पानी आ जाता है।

551. मंच पर आना–(सामना)
गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटकर मंच पर आकर अंग्रेज़ों को सबक सिखाया।

552. मिट्टी का माधो–(मूर्ख)
अतुल की बात का क्या विश्वास करना वह तो मिट्टी का माधो है।

553. मक्खी नाक पर न बैठने देना–(इज़्ज़त खराब न होने देना)
पहले राजीव नाक पर मक्खी नहीं बैठने देता था। अब उसे इसकी कोई परवाह ही नहीं है।

554. मोहर लगा देना–(पुष्टि करना)
डायरेक्टर साहब ने मेरी पक्की नौकरी पर मोहर लगा दी है।

555. मीठी छुरी चलाना–(विश्वासघात करना)
मनोज से बचकर रहना, वह मीठी छुरी चलाता है।

556. मुँह बनाना–(खीझ प्रकट करना)
मैडम ने जब विकास को डाँटा तो वह मुँह बनाने लगा।

557. मुँह काला करना–(कलंकित करना)
आज तुमने फिर वही कुकर्म करके मुँह काला करवाया है।

558. मैदान मारना–(विजय प्राप्त करना)
भारत ने टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध मैदान मार लिया।

559. मुहर्रमी सूरत–(शोक मनाने वाला चेहरा)
इतने दिन बाद मिले हो, क्या कारण है जो ये मुहर्रमी सूरत बना रखी है?

560. मक्खी मारना–(बेकार बैठे रहना)
तुम घर पर बैठे–बैठे मक्खी मारते हो कुछ काम धाम क्यों नहीं करते?

561. माथे पर शिकन न आना–(कष्ट में थोड़ा भी विचलित न होना)
रामप्रकाश ने सरेआम अपने बच्चों के हत्यारे को कचहरी में मार डाला, पकड़े जाने पर भी उसके माथे पर शिकन न आई।

562. म्याऊँ का ठौर पकड़ना–(खतरे में पड़ना)
शहर के गुण्डे से पंगा लेकर तुमने म्याऊँ का ठौर पकड़ा है।

563. मुँह पकड़ना–(बोलने न देना)
मारने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है बोलने वाले का मुँह नहीं पकड़ा जाता है।

564. मुँह धो रखना–(आशा रखना)
वह हमेशा अच्छा काम ही करेगा तुम मुँह धो रखो।

(य)

565. यम की यातना–(असह्य कष्ट)
सैनिकों ने घुसपैठिये की इतनी पिटाई की कि उसे “यम की यातना” नज़र आने लगी।

566. यमराज का द्वार देख आना–(मरकर जीवित हो जाना)
नेपाल में आए जानलेवा भूकम्प से बच निकल आना, यमराज का द्वार देख आने के समान था।

567. युग बोलना–(बहुत समय बाद होना)
आज रात आसमान में दो चाँद–से प्रतीत होना युग बोलने के समान है।

568. युधिष्ठिर होना–(अत्यन्त सत्य–प्रिय होना)
महात्मा विदुर वास्तव में, मन–वचन और कर्म से युधिष्ठिर थे।

569. रफूचक्कर होना–(भाग जाना)
पुलिस के आने की सूचना पाकर दस्यु दलं रफूचक्कर हो गया।

570. रँगा सियार–(धोखेबाज़ होना)
आजकल बहुत से साधु वेशधारी रँगे सियार बनकर ठगने का काम करते हैं।

571. राई का पहाड़ बनाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना)
भूषण ने अपने काव्य में राई का पहाड़ बना दिया है।

572. रातों की नींद हराम होना–(चिन्ता, भय, दु:ख, आदि के कारण रातभर नींद न आना)
“क्या बताऊँ दोस्त, एक गरीब बाप के सम्मुख उसकी जवान बेटी की शादी की चिन्ता, उसकी रातों की नींद हराम कर देती है।”

573. रीढ़ टूटना–(आधारहीन रहना)
इकलौते जवान बेटे की अचानक मृत्यु पर गंगाराम को लगा जैसे उसकी रीढ़ टूट गई हो।

574. रंग बदलना–(बदलाव होना)
पूँजीवादी व्यवस्था में मनुष्य बेहद स्वार्थी हो गया है, अत: कौन कब रंग बदल ले, पता नहीं।

575. रोंगटे खड़ा होना–(भय से रोमांचित हो जाना)
घर में बड़ा साँप देखकर अमर के रोंगटे खड़े हो गए।

576. रास्ते पर लाना–(सुधार करना)
राजीव को रास्ते पर लाना बहुत कठिन है। मेहनतकश वर्ग रो–धोकर अपने दिन काट रहा है।

578. रंग में भंग होना–(आनन्द में विघ्न आना)
बराती के गोली छोड़ने से लड़के का चाचा मर गया, जिससे रंग में भंग हो गई।

579. रास्ता नापना–(चले जाना)
खाओ पियो और यहाँ से रास्ता नापो।

580. रंग लाना–(हालात पैदा करना)
मेहनत रंग लाती है, ये सच है।

(ल)

581. लंगोटी बिकवाना–(दरिद्र कर देना)
शंकर ने अपने शत्रु जसबीर को अदालत के ऐसे चक्रव्यूह में फँसाया कि उस बेचारे की लंगोटी तक बिक गई है।

582. लकीर का फकीर होना–(रूढ़िवादी होना)।
पढ़े–लिखे समाज में भी बहुत से लकीर के फकीर हैं।

583. लेने के देने पड़ना–(लाभ के बदले हानि)
व्यापार में कभी–कभी लेने के देने पड़ जाते हैं।

584. लासा लगाना–(किसी को. फँसाने की युक्ति करना)
जमुनादास ने सुखीराम को तो ठग लिया है। अब वह अब्दुल करीम को लासा लगाने की कोशिश कर रहा है।

585. लोहे के चने चबाना–(कठिनाइयों का सामना करना)
किसी पुस्तक के प्रणयन में लेखक को लोहे के चने चबाने पड़ते हैं, तब सफलता मिलती है।

586. लौ लगाना–(प्रेम में मग्न हो जाना/आसक्त हो जाना)
सारे बुरे कामों को छोड़कर भीमा ने ईश्वर से लौ लगा ली है। अब वह किसी की तरफ को देखता तक नहीं है।

587. ललाट में लिखा होना–(भाग्य में लिखा होना)
वह कम उम्र में विधवा हो गई, ललाट में लिखे को कौन बदल सकता है।

588. लंगोटिया यार–(बचपन का मित्र)
अतुल तो मेरा लंगोटिया यार है।

589. लम्बी तानकर सोना–(निष्क्रिय होकर बैठना)
राजनीति में लम्बी तानकर सोने से काम नहीं चलेगा, बढ़ने के लिए मेहनत करनी होगी।

590. लाल–पीला होना–(गुस्से में होना)
महेन्द्र ने प्रश्न गलत कर दिया तो भइया लाल–पीला होने लगे।

591. लंगोटी में फाग खेलना–(दरिद्रता में आनन्द लूटना)
कवि, लेखक और साहित्यकार तो लंगोटी में फाग खेलते हैं।

592. लल्लो–चप्पो करना–(चिकनी–चुपड़ी बातें करना)
क्लर्क, लल्लो–चप्पो करके अधिकारियों से अपना काम करा लेते हैं।

593. लहू के आँसू पीना–(दुःख सह लेना)
विभा की शादी के पश्चात् राज लहू के आँसू पीकर रह गया, उसने उफ़ तर्क नहीं की।

594. लुटिया डुबोना–(कार्य खराब कर देना)
गोर्बाच्योव ने संशोधनवादी नीति पर चलकर साम्यवाद की लुटिया डुबो दी।

595. वकालत करना–(पक्ष का समर्थन करना)
“मैंने अपने पिता की वकालत इसलिए नहीं की, क्योंकि वे मुझसे भी भरी पंचायत में झूठ बुलवाना चाहते थे।”

596. वक्त की आवाज़–(समय की पुकार)
गरीबी और शोषण को नष्ट करके ही संसार दोषमुक्त हो सकता है। यही वक्त की आवाज़ है।

597. वारी जाऊँ–(न्योछावर हो जाना)
काफी समय बाद सैनिक बेटे को देखकर माँ ने उसकी बलाएँ उतारते हुए कहा–“मैं वारी जाऊँ बेटे, तुम युग–युग जियो।”

598. विधि बैठना–(युक्ति सफल होना/संगति बैठना)
इस बार तो ओमप्रकाश की विधि बैठ गई, उसका कारोबार दिन दूना, रात चौगुना बढ़ता जा रहा है।

599. विष उगलना–(क्रोधित होकर बोलना)
सामान्य बातों में विष उगलना अच्छी बात नहीं है।

600. विष की गाँठ–(उपद्रवी)
देवेन्द्र तो विष की गाँठ है।

601. विष घोलना–(गड़बड़ पैदा करना)
विभीषण ने राम को रावण के सभी रहस्य बताकर विष घोलने का कार्य किया।

(श्र), (श)

602. श्रीगणेश करना–(कार्य आरम्भ करना)
आज गुरुवार है, आप कार्य का श्रीगणेश करें।

603. शहद लगाकर चाटना–(किसी व्यर्थ की वस्तु को सँभालकर रखना)
सेठ दीनदयाल बड़ा कंजूस है। वह व्यर्थ की वस्तु को भी शहद लगाकर चाटता है।

604. शैतान के कान कतरना/काटना–(बहुत चालाक होना)
देवेन्द्र है तो लड़का पर शैतान के कान कतरता है।

605. शान में बट्टा लगाना–(शान घटना)
साइकिल की सवारी करने में आजकल के युवाओं की शान में बट्टा लगता

606. शेर की सवारी करना–(खतरनाक कार्य करना)
रोज प्रेस से रात को दो बजे आना शेर की सवारी करना है।

607. शिकंजा कसना–(नियन्त्रण और कठोर करना)
भारत ने अपने सैनिकों पर शिकंजा कस दिया है कि कोई भी घुसपैठिया किसी भी समय सीमा पर दिखाई दे, तो उसे तुरन्त गोली मार दी जाए।

608. शेर और बकरी का एक घाट पर पानी पीना–(ऐसी स्थिति होना जिसमें दुर्बल को सबल का कुछ भी भय न हो)
सम्राट अशोक के काल में शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पिया करते थे।

(स)

609. सफ़ेद झूठ–(सर्वथा असत्य)
चुनाव के समय नेता सफेद झूठ बोलते हैं।

610. साँप को दूध पिलाना–(शत्रु पर दया करना)
साँप को दूध पिलाकर केवल विष बढ़ाना है।

611. साँप सूंघना–(निष्क्रिय या बेदम हो जाना)
कक्षा में बहुत शोर–गुल हो रहा था, परन्तु गुरु जी के आते ही सभी बच्चे ऐसे हो गए जैसे उन्हें साँप सूंघ गया हो।

612. सिर आँखों पर–(विनम्रता तथा सम्मानपूर्वक ग्रहण करना)
विनय इतना आज्ञाकारी बालक है कि वह अपने बड़ों के प्रत्येक आदेश को अपने सिर आँखों पर रखता है।

613. सिर ऊँचा करना–(सम्मान बढ़ाना)
पी. सी. एस. परीक्षा उत्तीर्ण करके महेश ने अपने माता–पिता का सिर ऊँचा कर दिया।

614. सोने की चिड़िया–(बहुत कीमती वस्तु)
पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।

615. सिर उठाना–(विरोध करना)
व्यवस्था के खिलाफ सिर उठाने की हिम्मत विरलों में ही होती है।

616. सिर पर भूत सवार होना–(धुन लग जाना)
राजीव को कार्ल मार्क्स बनने का भूत सवार है।

617. सिर मुंडाते ओले पड़ना–(काम शुरू होते ही बाधा आना)
छत्तीसगढ़ में भाजपा ने चुनाव का प्रचार शुरू ही किया था कि जूदेव भ्रष्टाचार काण्ड में फँस गए, तब कांग्रेस ने चुटकी ली सिर मुंडाते ही ओले पड़े।

618. सिर पर हाथ होना–(सहारा होना)
जब तक माँ–बाप का सिर पर हाथ है, मुझे क्या चिन्ता है।

619. सिर झुकाना–(पराजय स्वीकार करना)
भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्तानी सेना ने सिर झुका दिया।

620. सिर खपाना–(व्यर्थ ही सोचना)
बुद्धिजीवी को सुबह से शाम तक सिर खपाना पड़ता है, तब रोटी मिलती है।

621. सिर पर कफ़न बाँधना–(बलिदान देने के लिए तैयार होना)
क्रान्तिकारियों ने सिर पर कफ़न बाँधकर देश को आजाद कराने का प्रयास किया।

622. सिर गंजा करना–(बुरी तरह पीटना)
अपराधी के हेकड़ी दिखाते ही पुलिस अधिकारी ने उसका सिर गंजा कर दिया था।

623. सिर पर पाँव रखकर भागना–(तुरन्त भाग जाना)
घर में जाग होते ही चोर सिर पर पाँव रखकर भाग गया।

624. साँप छछूदर की गति होना–(असमंजस की दशा होना)
अपने वचन का पालन करने और पुत्र बिछोह उत्पन्न होने की स्थिति में राजा दशरथ की साँप छछूदर की गति हो गई थी।

625. समझ पर पत्थर पड़ना–(विवेक खो देना)
क्या तुम्हारी समझ पर पत्थर पड़ गया है जो रेलवे की नौकरी छोड़ रहे हो।

626. साँच को आँच नहीं–(सच बोलने वाले को किसी का भय नहीं)।
ईमानदार व्यक्ति पर कितने भी आरोप लगाओ वह डरेगा नहीं, सच है साँच को आँच नहीं।

627. सूरज को दीपक दिखाना–(किसी व्यक्ति की तुच्छ प्रशंसा करना)
महर्षि वशिष्ठ के सम्मान में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने के समान।

628. संसार से उठना–(मर जाना)
बाबा को संसार से उठे तो वर्षों हो गए।

629. सब्जबाग दिखाना–(लालच देकर बहकाना)
सब्जबाग दिखाकर ही रमेश ने सुरेश के दस हज़ार लिए थे।

630. सिट्टी–पिट्टी गुम होना–(होश उड़ जाना)
कर्मचारी बैठे हुए गप–शप कर रहे थे, सेठ को देखते ही सबकी सिट्टी–पिट्टी गुम हो गई।

631. सिक्का जमाना–(प्रभाव स्थापित करना)
वह हर जगह अपना सिक्का जमा लेता है।

632. सेमल का फूल होना–(अल्पकालीन प्रदर्शन)
कबीरदास ने मानव शरीर को सेमल का फूल कहा है।

633. सूखते धान पर पानी पड़ना–(दशा सुधरना)
बेहद गरीबी में वह दिन काट रहा था, लड़के की अच्छी कम्पनी में नौकरी लगी तो सूखे धान पर पानी पड़ गया।

634. सुई की नोंक के बराबर–(ज़रा–सा)
पाण्डवों ने दुर्योधन से पाँच गाँव माँगे थे, लेकिन उसने बिना युद्ध के सुई . की नोंक के बराबर भी भूमि देने से इनकार कर दिया।

635. हवाई किले बनाना—(कोरी कल्पना करना)
बिना कर्म किए हवाई किले बनाना व्यर्थ है।

636. हाथ खाली होना–(पैसा न होना)
महीने के अन्त में अधिकांश सरकारी कर्मचारियों के हाथ खाली हो जाते हैं।

637. हथियार डालना–(संघर्ष बन्द कर देना)
मैंने व्यवस्था के खिलाफ हथियार नहीं डाले हैं।

638. हक्का–बक्का रह जाना—(अचम्भे में पड़ जाना)
राज अपने चाचा जी को ट्रेन में देखकर हक्का–बक्का रह गया।

639. हाथ खींचना–(सहायता बन्द कर देना)
सोवियत रूस के विखण्डन के पश्चात् देश के साम्यवादियों की मदद से
रूस ने हाथ खींच लिए।

640. हाथ का मैल–(तुच्छ और त्याज्य वस्तु)
पैसा तो हाथ का मैल है, फिर आ जाएगा, आप क्यों परेशान हो?

641. हाथ को हाथ न सूझना–(घना अँधेरा होना)
इस बार इतना कोहरा पड़ा कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।

642. हाथ–पैर मारना–(कोशिश करना)
मैंने बहुत हाथ–पैर मारे लेकिन कलेक्टर बनने में सफलता नहीं मिली।

643. हाथ डालना–(शुरू करना)
अंबानी जी जिस प्रोजेक्ट में हाथ डालते हैं, उसमें सफलता मिलती है।

644. हाथ साफ़ करना–(बेइमानी से लेना या चोरी करना)
तुम्हारी हाथ साफ करने की आदत अभी गई नहीं है।

645. हाथों हाथ रखना–(देखभाल के साथ रखना)
यह वस्तु मेरी माँ ने मुझे दी थी जिसे मैं हाथों हाथ रखता हूँ।

646. हाथ धो बैठना–(किसी व्यक्ति या वस्तु को खो देना)
यदि तुमने उसे अधिक परेशान किया तो उससे हाथ धो बैठोगे।

647. हाथों के तोते उड़ जाना–(होश हवास खो जाना)।
शिवानी के छत से गिरने से मेरे तो हाथों के तोते उड़ गए।

648. हाथ पीले कर देना—(लड़की की शादी कर देना)
प्रोविडेण्ट का पैसा मिले तो लड़की के हाथ पीले करूँ।

649. हाथ–पाँव फूल जाना—(डर से घबरा जाना)
अच्छे वकील की पूछताछ से बड़े–बड़ों के हाथ–पाँव फूल जाते हैं।

650. हाथ मलना या हाथ मलते रह जाना–(पश्चात्ताप करना)
क्रोध में तुमने अपना घर तो जला ही दिया अब हाथ मलने से क्या लाभ?

651. हाथ पर हाथ धरे रहना–(बेकाम रहना)
हाथ पर हाथ धरे रहकर बैठने से तो लड़की का विवाह नहीं होगा, उसके लिए तो आपको प्रयास करना होगा।

652. हाथी के पैर में सबका पैर–(बड़ी चीज के साथ छोटी का साहचर्य)
जब प्रधानमन्त्री इस्तीफ़ा दे देता है, तो मन्त्रिमण्डल स्वयं समाप्त हो जाता है, क्योंकि हाथी के पैर में सबका पैर होता है।

653. हाल पतला होना–(दयनीय दशा होना)
उसका व्यापार ढीला चल रहा है। अत: उसका हाल पतला है।

मुहावरा मध्यान्तर प्रश्नावली

1. मुहावरा है
(a) एक वाक्यांश
(b) एक पूर्ण वाक्य
(c) निरर्थक शब्द समूह
(d) सार्थक शब्द समूह
उत्तर :
(a) एक वाक्यांश

2. ‘मुहावरा’ शब्द है
(a) अरबी भाषा का
(b) फ़ारसी भाषा का
(c) उर्दू भाषा का
(d) हिन्दी भाषा का
उत्तर :
(a) अरबी भाषा का

3. मुहावरे का प्रयोग वाक्य में किया जाता है
(a) भाषा में सजीवता लाने के लिए
(b) भाषा का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए.
(c) भाषा को आकर्षक बनाने के लिए
(d) भाषा में आडम्बर या चमत्कार के लिए
उत्तर :
(a) भाषा में सजीवता लाने के लिए

4. मुहावरे का अक्षय कोष है
(a) हिन्दी और उर्दू भाषा के पास
(b) हिन्दी और फ़ारसी भाषा के पास
(c) हिन्दी और अरबी भाषा के पास
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(a) हिन्दी और उर्दू भाषा के पास

5. ‘आधा तीतर आधा बटेर मुहावरे’ का अर्थ है।
(a) आधी–आधी चीजों को साथ रखना
(b) बेमेल चीजों का सम्मिश्रण
(c) सुमेल चीजों को बटोरना
(d) आधी–आधी चीजों को मिलाकार एक करना।
उत्तर :
(b) बेमेल चीजों का सम्मिश्रण

6. ‘कलेजे पर पत्थर रखना’ का अर्थ है
(a) घोर दुःख या शोक को कठोर हृदय के साथ सहन करना
(b) पहले जैसा न रहना
(c) धोखा खाना
(d) क्रोध में आकर किसी को मिटा देना
उत्तर :
(a) घोर दुःख या शोक को कठोर हृदय के साथ सहन करना

7. ‘गुदड़ी का लाल’ मुहावरे का अर्थ है
(a) असुविधाओं में उन्नत होने वाला
(b) गरीबी में घिरा होना
(c) गुदड़ी का लाल रंग का होना
(d) महत्त्वपूर्ण व्यक्ति होना
उत्तर :
(a) असुविधाओं में उन्नत होने वाला

8. ‘तीन तेरह करना’ मुहावरे का अर्थ है
(a) जैसे को तैसा
(b) पृथक्ता की बात करना
(c) गुस्सा करना
(d) पूरी तरह फट जाना
उत्तर :
(b) पृथक्ता की बात करना

9. ‘बाग–बाग होना’ मुहावरे का अर्थ है।
(a) मेहनत करना
(b) अति प्रसन्न होना
(c) असम्भावित कार्य करना
(d) मधुर वचन बोलना
उत्तर :
(b) अति प्रसन्न होना

10. राई का पहाड़ बनाना
(a) बढ़ा चढ़ा कर कहना
(b) असम्भव कार्य करना
(c) कलंकित करना
(d) पुष्टि करना
उत्तर :
(a) बढ़ा चढ़ा कर कहना

कहावतें

‘कहावतें’ हिन्दी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है, ‘कही हुई बातें।’ यदि हम इसके अर्थ पर विचार करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक कही हुई बात कहावत नहीं होती, बल्कि जिस कहावत में जीवन के अनुभव का सार–संक्षेपण चमत्कृत ढंग से किया जाए, उसे कहावत के अन्तर्गत माना जाता है।

उदाहरणार्थ रवीश ने कहा, “मैं अकेला ही कुआँ खोद लूँगा।” इस पर सभी ने रवीश की हँसी उड़ाते हुए कहा, व्यर्थ की बातें करते हो, “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता”। यहाँ कहावत का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है “एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता।”

कहावत को सूक्ति, सुभाषित और लोकोक्ति भी कहते हैं। इनमें से कहावत शब्द ही उपयुक्त है, क्योंकि सूक्ति या सुभाषित का अर्थ है–सुन्दर उक्ति या बात। लोकोक्ति शब्द इसलिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि लोकोक्ति का अर्थ– लोक(जनसाधारण) की उक्ति होता है।

मुहावरा और कहावत में अन्तर

मुहावरा कहावत

मुहावरा एक वाक्यांश होता है।कहावत एक वाक्य होता है।
मुहावरे का स्वतन्त्र रूप में प्रयोग होता है।कहावत का स्वतन्त्र रूप में प्रयोग नहीं होता।
मुहावरे में उद्देश्य, विधेय का बन्धन नहीं होता लेकिन अर्थ की स्पष्टता के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।कहावत में उद्देश्य और विधेय का पूर्ण विधान होता है इसलिए अर्थ स्वतः स्पष्ट हो जाता है।
मुहावरे किसी बात को कहने का विचार अथवा अनुभव का मूल है।कहावत उस कथन में व्यक्त किए गए तरीका अथवा पद्धति है।
मुहावरा में काल, वचन तथा पुरुष के प्रकार का परिवर्तन नहीं होता।कहावत में उसके रूप में किसी अनुरूप परिवर्तन हो जाता है।
मुहावरा का प्रयोग लाक्षणिक अर्थ अथवा अप्रस्तुत व्यंजना के लिए होता है।कहावतं का प्रयोग प्रायः अन्योक्ति व्यक्त करने के लिए होता है।

हिन्दी की कुछ प्रचलित कहावतें, उनके अर्थ और प्रयोग

(अ)

1. अंधों में काना राजा–मूल् के मध्य कुछ चतुर।
निरक्षरों के मध्य कुछ पढ़ा–लिखा आदमी अंधों में काना राजा के समान होता है।

2. अंधेर नगरी चौपट राजा–अन्याय का बोलबाला।
अयोग्य अधिकारी होने पर सभी कामों में धांधली चलती है, ठीक ही कहा
गया है; अंधेर नगरी चौपट राजा।

3. अंधा बाँटे रेवड़ी फिर–फिर अपनों को दे–स्वार्थी व्यक्ति पक्षपात करता है।
वर्तमान समय में नेतागण अंधा बाँटे रेवड़ी फिर–फिर अपनों को दे वाली उक्ति चरितार्थ करते हैं।

4, अंधी पीसे कुत्ता खाय–जब कार्य कोई करे उसका फायदा दूसरा व्यक्ति
उठाए। मजदूर परिश्रम करता है, लेकिन लाभ पूँजीपति कमाता है। सच है– अंधी पीसे कुत्ता खाय।

5. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता–अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर
सकता है। शत्रुओं के बीच अकेले मत जाओ, क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है।

6. अपनी–अपनी ढपली, अपना–अपना राग–मनमानी।
संगठन के अभाव में लोग अपनी–अपनी ढपली, अपना–अपना राग अलापते हैं।

7. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत–अवसर निकल
जाने के बाद पछताना व्यर्थ होता है। साल भर तो पढ़ाई नहीं की, अब असफल होने पर रोते हो, इससे क्या लाभ? अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।

8. अपनी करनी पार उतरनी–अपने किए का फल भोगना।
जीवन में सफल होने के लिए स्वयं परिश्रम करो, क्योंकि अपनी करनी पार उतरनी।

9. अधजल गगरी छलकत जाए–कम ज्ञान, धन, सम्मान वाले व्यक्ति
अधिक प्रदर्शन करते हैं। जब कोई अल्पज्ञ अधिक बकवास करता है, तब यह कहावत कही जाती है।

10. अक्ल बड़ी या भैंस–शारीरिक बल से बौद्धिक बल अधिक अच्छा
होता है। किसान पहले बहुत परिश्रम करता था, लेकिन उत्पादन कम था। अब उन्नत बीज, खाद व उपकरणों की सहायता से अधिक उत्पादन करता है। सच है अक्ल बड़ी या भैंस।

11. अन्त भला तो सब भला–परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ अच्छा
माना जाता है। भारतीय क्रिकेट टीम कशमकश के पश्चात् पाकिस्तान दौरे पर गई और विजयी रही, सच है अन्त भला तो सब भला।

12. अंधे की लकड़ी–बेसहारे का सहारा।
राजकुमार पिता की अंधे की लकड़ी है।

13. अटकेगा सो भटकेगा–दुविधा या सोच विचार में पड़ोगे तो काम नहीं होगा।
मैं तैयारी करूँगा, चयन होगा या नहीं भूलकर तैयारी करो। कहावत है, जो अटकेगा सो भटकेगा।

14. अपना हाथ जगन्नाथ–स्वयं का काम स्वयं करना अच्छा होता है।
लाला जी ने पहले खाना बनाने के लिए महाराज रखा हुआ था, लेकिन वह अच्छा खाना नहीं बनाता था, ऊपर से सामान चुरा लेता था। अब लालाजी स्वयं खाना बना रहे हैं। सच कहावत है, अपना हाथ जगन्नाथ।

15. अपनी पगड़ी अपने हाथ–अपने सम्मान को बनाए रखना अपने ही
हाथ में है। अपने से छोटे से भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए अन्यथा वे भी। अपमान कर सकते हैं। इसलिए कहावत है अपनी पगड़ी अपने हाथ।

16. अपना रख पराया चख–निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग।
अपना रख पराया चख अब तो संजय की प्रकृति हो गई है।

17. अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ–बड़े बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो सकते हैं।
मैं सदैव अपने बाबा से किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य को करने से पहले सलाह लेता हूँ और कार्य सफल होता है। सच है अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।

18. अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी–दोनों साथियों में एक से अवगुण।
शोभित में निर्णय लेने की क्षमता नहीं है, पत्नी भी बुद्धिहीन है। अत: दोनों मिलकर कोई कार्य सही नहीं कर पाते। सच है अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी।

19. अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है–कटु वचन सत्य होने पर भी बुरा लगता है।
लाला जी परचून की दुकान करते हैं और सब चीजों में मिलावट करते हैं। जब कोई ग्राहक उनसे मिलावटी कह देता है, तो वे भड़क उठते हैं। इसलिए कहावत है अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।

20. अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता–अपनी चीज को कोई बुरा नहीं बताता।
सब्जी वाला खराब और बासी सब्जियों को भी ताजी और अच्छी सब्जियाँ बनाकर बेच जाता है, कोई कहे भी तो मानता नहीं है। सच है अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता है।

21. अपनी चिलम भरने को मेरा झोंपड़ा जलाते हो–अपने अल्प लाभ के लिए दूसरे की भारी हानि करते हो।
आज ऐसा समय आ गया है अधिकांश व्यक्ति अपनी चिलम भरने के लिए दूसरे का झोंपड़ा जलाने में गुरेज नहीं करते।

22. अभी दिल्ली दूर है–अभी कसर है।
ग्यासुद्दीन तुगलक सूफी निजामुद्दीन औलिया को दण्ड देना चाहता था और तेजी से दिल्ली की ओर बढ़ रहा था। इस पर औलिया ने कहा अभी दिल्ली दूर है।

23. अब की अब के साथ, जब की जब के साथ–सदा वर्तमान की ही चिन्ता करनी चाहिए।
भगवान महावीर ने वर्तमान को अच्छा बनाने का उपदेश दिया, भविष्य अपने आप सुधर जाएगा। सच है अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।

24. अस्सी की आमद नब्बे खर्च–आय से अधिक खर्च।
आजकल अधिकांश परिवारों का हाल है, अस्सी की आमद नब्बे खर्च।

25. अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना–पूर्ण स्वतन्त्र होना।
मैं अपने कार्य में किसी का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करता। कहावत है अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।

26. अपने झोपड़े की खैर मनाओ–अपनी कुशल देखो।
मुझे क्या धमकी दे रहे हो अपने झोपड़े की खैर मनाओ।

27. अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज–अपने घर की बात दूसरों से कहने पर बदनामी होती है।
पहले तो तुमने अपने घर की बातें दूसरे से बता दीं, अब तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं। कहावत भी है, अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज।

28. अटका बनिया देय उधार–स्वार्थी और मज़बूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।
कारखाने में श्रमिकों की हड़ताल होने से कारखाना मालिक अकुशल श्रमिकों को भी दुगुनी–तिगुनी मजदूरी दे रहा है। कहावत सही है–अटका बनिया देय उधार।

29. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है–अपने घर में, क्षेत्र में सभी जोर बताते हैं।
यहाँ क्या अकड़ दिखाते हो, अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।

30. अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष–हममें ही कमजोरी हो तो
बताने वालों का क्या दोष लड़का बेरोजगार है, सारा दिन आवारागर्दी करता है, लोग ताना न मारें तो क्या करें। जब अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष।

31. अढाई दिन की बादशाहत–थोड़े दिन की शान–शौकत।
शत्रुघ्न सिन्हा मन्त्री पद से हटा दिए गए, अढ़ाई दिन की बादशाहत भी समाप्त हो गई।

(आ)

32. आँख का अंधा नाम नयनसुख–नाम के विपरीत गुण।
उसके पास रहने की जगह नहीं है, नाम है पृथ्वीलाल। ठीक ही कहा गया है आँख का अंधा नाम नयनसुख।

33. आँख के अंधे गाँठ के पूरे–मूर्ख किन्तु धनी।
आजकल आँख के अंधे गाँठ के पूरे व्यक्ति मुकदमेबाज़ी अधिक करते हैं।

34. आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास–जब कोई व्यक्ति किसी अच्छे कार्य के लिए जाता है, किन्तु बुरे कामों में फँस जाता है; तब यह कहावत कही जाती है।
कार्यकर्ता आए थे नेता संग चुनाव प्रचार को लेकिन जुआ खेलने लगे; इस पर नेताजी को कहना पड़ा, आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।

35. आगे नाथ न पीछे पगहा–बिल्कुल स्वतन्त्र।
रहीम की बराबरी मत करो, क्योंकि उसके आगे नाथ न पीछे पगहा।

36. आटे के साथ घुन भी पिस जाता है–अपराधी की संगति से निरपराध भी दण्ड का भागी बनता है।
संजय जुआरियों के पास खड़ा था, पुलिस उसे भी ले गई। सच है आटे के साथ घुन भी पिस जाता है।

37. आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै—अधिक लोभ करने से हानि ही होती है।
कुछ लोग अधिक लाभ के लालच में आकर दूसरा व्यापार करते हैं। इसका फल यह होता है कि उन्हें लाभ के बदले हानि होती है, ठीक ही कहा गया है–आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै।

38. आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे–जिधर जाएँ उधर ही मुसीबत।
जरदारी आतंकवाद को समाप्त करते हैं, तो कट्टरपंथी उन्हें चैन नहीं लेने देंगे और नहीं करते तो अमेरिका नहीं बैठने देगा। कहावत भी है आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे।

39. आई मौज़ फ़कीर की दिया झोपड़ा फूंक–मौजी और विरक्त आदमी।
राजन ने खूब पैसा व्यापार में कमाया, लेकिन मुकदमेबाज़ी में सारा उड़ा दिया। कहावत भी है आई मौज़ फ़कीर की दिया झोपड़ा फूंक।

40. आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत–कोई कार्य स्वयं तो न करे पर दूसरों को सीख दे।
नेताजी कार्यकर्ताओं से जेल जाने की पुरजोर अपील कर रहे थे लेकिन स्वयं नहीं जा रहे थे। इस पर एक कार्यकर्ता ने कहा नेता जी यह तो आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत वाली बात हो गई

41. आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर–सबको मरना है।
आज आदमी धन के लिए दूसरे की जान का दुश्मन बना हुआ है जबकि वह जानता है, आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर।

42. आदमी पानी का बुलबुला है–मनुष्य जीवन नाशवान है।
आदमी का जीवन तो पानी का बुलबुला है जाने कब फूट जाए।

43. आम के आम गुठलियों के दाम–दुहरा फायदा।
कम्पीटीशन की तैयारी हेतु मैंने नोट्स तैयार किए थे, बाद में पुस्तक के रूप में छपवा दिए। मेरे तो आम के आम गुठलियों के दाम हो गए।

44. आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम–अपने मतलब की बात
करो। राम ने अजय को दस हज़ार रुपए माँगने पर उधार दिए तो वह पूछने लगा कि तुम्हारे पास ये पैसे कहाँ से आए। इस पर राम ने कहा तुम आम खाओ पेड़ गिनने से क्या काम।

45. आदमी की दवा आदमी है–मनुष्य ही मनुष्य की सहायता कर सकता है।
भोला ने नदी में डूबते आदमी को बचाया तो सभी कहने लगे, आदमी की दवा आदमी है।

46. आ पड़ोसन लड़ें–बिना बात झगड़ा करना।
रीना से ज्यादा बातचीत ठीक नहीं, उसकी आदत तो आ पड़ोसन लड़ें वाली है।

47. आसमान पर थूका मुँह पर आता है–बड़े लोगों की निन्दा करने से अपनी ही बदनामी होती है।
महात्मा गाँधी की बुराई करना आसमान पर थूकना है।

48. आठ कनौजिये नौ चूल्हे–अलगाव की स्थिति।
पूँजीवादी व्यवस्था में समाज इतना स्वार्थी हो गया है कि आठ कनौजिय नौ चूल्हे वाली स्थिति दिखाई देती है।

49. आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा–कमाया तो खाया नहीं तो भूखे।
फेरी वाले का क्या, यदि कुछ माल बिक जाता है तो खाना खा लेता है वरना भूखा सो जाता है। सच है, आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा।

50. आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ–आजीवन किसी चीज़ से पिण्ड न छूटना।
दमे की बीमारी के विषय में कहा जाता है आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ।

51. इतना खाएँ जितना पचे–सीमा के अन्दर कार्य करना चाहिए।
तुम सभी लोगों से पैसे उधार लेते रहते हो और खर्च कर देते हो। इससे तो तुम कर्ज में डूब जाओगे। सच है, इतना खाएँ जितना पचे।

52. इस हाथ दे उस हाथ ले–कर्म का फल शीघ्र मिलता है।
दूसरों का सम्मान करने से स्वयं को सम्मान मिलता है, ठीक ही है–इस हाथ दे उस हाथ ले।

53. इसके पेट में दाढ़ी है–उम्र कम बुद्धि अधिक।
अक्षित की बात क्या करनी उसके तो पेट में दाढ़ी है।

54. इधर न उधर, यह बला किधर–अचानक विपत्ति आ जाना।
गाड़ी से अलीगढ़ जा रहे थे कि रास्ते में जाम लगा पाया और लोगों ने घेर लिया, तब पिताजी को कहना पड़ा–इधर न उधर, यह बला किधर।।

55. इमली के पात पर दण्ड पेलना–सीमित साधनों से बड़ा कार्य करने का
प्रयास करना। लाला जी को कोई जानता नहीं और सांसद बनने के लिए खड़े हो रहे हैं। वे नहीं जानते कि इमली के पात पर दण्ड पेल रहे हैं।

56. इन तिलों में तेल नहीं किसी भी लाभ की सम्भावना न होना।
मैं जानता था इन तिलों में तेल नहीं है, इसलिए मैंने तुमसे उधार नहीं लिया और बाज़ार से लेकर काम चला रहा हूँ।

57. इधर कुआँ उधर खाई–हर तरफ़ मुसीबत।
मुशर्रफ आतंकवाद को समाप्त करे तो कट्टरपंथी चैन न लेने दे और न करे तो अमेरिका। सच है मुशर्रफ के लिए तो इधर कुआँ उधर खाई।

(ई)

58. ईंट की देवी माँगे का प्रसाद–जैसा व्यक्ति वैसी आवभगत।
इंग्लैण्ड में जैसा स्वागत मोदी जी का हुआ किसी अन्य का नहीं। सच है ईंट की देवी, माँगे का प्रसाद।

59. ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया–संसार में कहीं दुःख है कहीं
सुख है। किसी घर घी दूध की बहार है और किसी घर सूखी रोटी भी नहीं है, ठीक ही कहा गया है–ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।

(उ)

60. उसी की जूती उसी का सिर–जिसकी करनी उसी को फल मिलता है।
शर्मा जी मुझे प्रधानाचार्य से कहकर आठवीं कक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन प्रधानाचार्य ने उन्हें ही आठवीं कक्षा दे दी। इसे कहते हैं उसी की जूती उसी का सिर।

61. उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी–दुविधा में पड़ना।
बीमारी में दफ़्तर जाओ तो बीमारी बढ़ने का भय, ना जाओ तो छुट्टी होने का भय। सच है उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी।

62. उल्टे बाँस बरेली को विपरीत कार्य करना।
किशोर गाँव जाते वक्त शहर से शुद्ध देसी घी लेकर गाँव पहुँचा तो पिताजी ने कहा, भई वाह तुम तो उल्टे बाँस बरेली को ले आए।

(ऊ)

63. ऊँट किस करवट बैठता है–न जाने भविष्य में क्या होगा।
आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस या भाजपा में कौन जीतेगा, देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है।

64. ऊधौ का लेन न माधौ का देन––किसी से कोई वास्ता न रखना।
मेरा क्या है रिटायरमेन्ट के पश्चात् मौज का जीवन गुजारूँगा, न ऊधौ का लेन न माधौ का देन।

(ए)

65. एक अनार सौ बीमार–एक ही वस्तु के अनेक आकांक्षी।
लोकसभा चुनाव में टिकट एक प्रत्याशी को मिलना है लेकिन टिकट माँगने वाले अनेक हैं। यहाँ तो एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।

66. एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा–दोहरा कटुत्व।
सुधा एक तो पढ़ने में कमज़ोर है और दूसरे शिक्षकों के प्रति उसका व्यवहार ठीक नहीं है, ऐसे लोगों के लिए कहा गया है–एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।

67. एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है–अच्छे समाज को एक बुरा व्यक्ति कलंकित कर देता है।
सेठ जी के परिवार में एक लड़का डकैत निकल गया, जिससे पूरा परिवार बदनाम हो गया। ठीक ही कहा गया है, एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है।

68. एक हाथ से ताली नहीं बजती–झगड़े में दोनों पक्षों की गलती होती है,
इसलिए कहा गया है–एक हाथ से ताली नहीं बजती।

69. एक पन्थ दो काज/एक ढेले से दो शिकार–एक उपाय से दो कार्यों का होना।
रामू हिन्दी विषय में एम. ए. की तैयारी कर रहा था, उसने साहित्यरत्न का। भी फॉर्म भर दिया, इस प्रकार उसके एक पन्थ दो काज हो गए।

70. एक आँख से रोवे, एक आँख से हँसे–दिखावटी रोना।
दादी की मृत्यु पर बुआ एक आँख से रो रही थी और एक आँख से हँस रही थी।

71. एक टकसाल के ढले हैं–सब एक जैसे हैं।
फैक्ट्री के कर्मचारियों को क्या कहोगे सब एक टकसाल के ढले हैं।

72. एक मुँह दो बात–अपनी बात से पलट जाना।
पहले आप कह रहे थे, मैं तुम्हें सम्पादक बनाऊँगा अब कह रहे हो उपसम्पादक बनाऊँगा। ये तो आप एक मुँह दो बात वाली बात कर रहे हो।

73. एक और एक ग्यारह होते हैं—एकता में बल है।
हमें मिलकर रहना चाहिए अन्यथा लोग लाभ उठा लेंगे। कहावत भी है–एक और एक ग्यारह होते हैं।

74. ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय–बूढ़ा और बेकार आदमी दूसरे पर बोझ हो जाता है।
भटनागर साहब बूढ़े हो गए और ठीक से कार्य नहीं कर पाते थे। अत: सेठ ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। सच है ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय।

(ओ)

75. ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना–जब कार्य करना ही है तो आने वाली कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए।
टेस्ट क्रिकेट प्लेयर बनना चाहते हो तो छोटी–मोटी चोट से मत घबराओ। कहावत भी है ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना।

76. ओछे की प्रीति बालू की भीति–दुष्ट व्यक्तियों की मित्रता क्षणिक होती है कृष्ण के आड़े वक्त में सोनू ने उसकी मदद नहीं की, बल्कि उसे हानि पहुँचाने का प्रयास किया। जबकि दोनों में मित्रता थी। सच है ओछे की प्रीति बालू की भीति।

77. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती–बहुत कम वस्तु से आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती।
शिवकुमार ने सेठ जी से लड़की के ब्याह हेतु 50. हजार रुपये माँगे, लेकिन सेठ जी ने दो हजार रुपये देने की बात कही, इस पर शिवकुमार बोला, “सेठ जी, ओस चाटे प्यास नहीं बुझती।”

(क)

78. कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कम्बल भीगे पानी–उल्टी बात कहना।
जब भी तुमसे कोई बात कही जाती है तो तुम कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कम्बल भीगे पानी वाली कहावत चरितार्थ कर देते हो।

79. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा–इधर–उधर की सामग्री एकत्र करके कोई रचना करना।
आजकल लोग इधर–उधर की पुस्तकों से सामग्री लेकर पी. एच. डी. कर लेते हैं, ठीक ही कहा गया है–कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।

80. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली–अत्यधिक अन्तर।
बृहस्पति तो एक धनी बाप का पुत्र है और तुम एक मजदूर के बेटे हो, उसकी बराबरी कैसे करोगे? कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली।

81. काठ की हाण्डी बार–बार नहीं चढ़ती–अन्याय बार–बार नहीं चलता।
महेश बिना टिकट यात्रा के अपराध में पकड़ा ही गया, ठीक ही कहा गया है काठ की हाण्डी बार–बार नहीं चढ़ती

82. कर सेवा खा मेवा–अच्छे कार्य का फल अच्छा मिलता है।
सुनील ने अजय से कहा, “मेहनत से प्रकाशन में कार्य करो तरक्की पा जाओगे’ कहावत सच है कर सेवा खा मेवा।

83. कभी घना–घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना–जो मिले
उसी में सन्तुष्ट रहना चाहिए। तुम्हें जो काम मिले उतने में ही सन्तुष्ट रहते हो। तुम्हारे लिए कहावत सच है कभी घना–घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना।

84. कब्र में पाँव लटकाए बैठा है–मरने वाला है।
वो कब्र में पाँव लटकाए बैठे हैं, लेकिन मजाक भद्दी करते हैं।

85. कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता–ऊपरी वेशभूषा से किसी के अवगुण
नहीं छिप जाते। विवेक साइकिल चोर है लेकिन सूट–बूट में रहता है। लोग उसे जानते हैं इसलिए उससे कतराते हैं। सच है कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता।

86. कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय–दुष्ट व्यक्ति की प्रकृति
में कोई परिवर्तन नहीं होता उसे चाहे कितनी ही सीख दी जाए। संजय को मैंने बहुत समझाया कि शराब और जुआ छोड़ दे पर वह नहीं माना। सच है कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय।

87. कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता जाता है–महान् व्यक्ति छोटी–सी नुक्ता–चीनी पर ध्यान नहीं देता है।
साधु महाराज पर सड़क पर गुजरते समय कुछ लोग छींटाकशी कर रहे थे, लेकिन वे निरन्तर बढ़ते जा रहे। वहाँ ये कहावत चरितार्थ हो रही थी कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता जाता है।

88. काम का ना काज का दुश्मन अनाज का–निकम्मा व्यक्ति।
वह 30 वर्ष का हो गया, बेरोज़गार है। अतः सभी उसे कहते हैं काम का ना काज का दुश्मन अनाज का।

89. कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवै–अधिक धन चिन्ता का कारण
होता है। सेठ रामलाल सारी रात जागते रहते हैं, चोरों के भय से उन्हें नींद नहीं आती। सच है कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवे।

90. कहे खेत की, सुने खलिहान की–कहा कुछ गया और समझा कुछ गया।
तुम भी बिल्कुल नमूने हो, कहे खेत की, सुनते हो खलिहान की।

91. काम को काम सिखाता है–काम करते–करते आदमी होशियार हो जाता है।
जब दिनेश इस प्रकाशन में आया था प्रूफ रीडिंग से अनजान था, लेकिन काम को काम सिखाता है, आज वह ट्रेंड प्रूफ रीडर हो गया।

92. कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता–हठी पुरुष समझाने से दूसरों का कहना नहीं मानता।
लड़की के सगे सम्बन्धियों ने लड़के के पिता से खाना खाने का अनुरोध किया लेकिन नहीं माना तब लड़के के ताऊ ने कहा, कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता।

93. कोऊ नृप होय हमें का हानी—किसी के पद, धन या अधिकार मिलने से हम पर कोई प्रभाव नहीं होता।
कांग्रेस की सरकार आए या भाजपा की इससे हमें क्या फ़र्क पड़ता है। हमारे लिए तो कोऊ नृप होय हमें का हानि वाली कहावत चरितार्थ होती है।

94. कौआ चला हंस की चाल–दूसरों की नकल पर चलने से असलियत
नहीं छिपती तथा हानि उठानी पड़ती है। छोटे से प्रेस मालिक ने बड़े प्रकाशकों की नकल करते हुए मॉडल पेपर निकाल दिए लेकिन वे नहीं बिके जिससे भारी नुकसान उठाना पड़ा। जिनके पैसे डूब गए उन्हें कहना पड़ा कौआ चला हंस की चाल।।

95. कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती है–लाभ जहाँ से होता है, वहीं खर्च हो जाता है।
आशीष की नौकरी दिल्ली में लगी वहाँ पर मकान तथा अन्य खर्चे इतने अधिक हैं कि बचत नहीं हो पाती। सच है कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती है।

96. कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता–कोई अपने माल को खराब नहीं कहता।
सब्जी वाले बासी सब्जी को भी ताजी बताकर बेचते हैं। कहावत सच है कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता।

97. कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है–सफ़ाई सबको पसन्द होती है।
तुम्हारी कुर्सी पर कितनी धूल जमी है। कैसे आदमी हो तुम, कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है।

98. किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान–स्वाभिमान की रक्षा नौकरी में नहीं हो सकती।
सेठ ने डाँट दिया तो क्या नौकरी छोड़ दोगे, किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान।

99. कखरी लरका गाँव गोहार–वस्तु के पास होने पर दूर–दूर उसकी
तलाश करना। अच्छी संगीत पार्टी के लिए शर्मा जी दिल्ली तक गए, लेकिन मेरठ में ही कम पैसों में अच्छी संगीत पार्टी मिल गई, तब मित्र बोले कि कखरी लरका गाँव गोहार।

100. कोयले की दलाली में हाथ काले–बुरी संगति का परिणाम बुरा होता है।
वह जुआरियों के लिए बीड़ी सिगरेट ला देता है। अत: एक दिन जब पुलिस ने उन्हें पकड़ा तो उसे भी हड़काया। सच है कोयले की दलाली में हाथ काले।

101. काला अक्षर भैंस बराबर–निरक्षर व्यक्ति।
राजेश से पत्र लिखवाने की कह रहे हो; उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।

102. कानी के ब्याह को सौ जोखो–पग–पग पर बाधाएँ।
लोकेश के चुगली करने पर राधा का रिश्ता टूट गया, इस पर रामकली बोली, “बड़ी मुश्किल से रिश्ता हुआ था, सच कहावत है–कानी के ब्याह को सौ जोखो।”

(ख)

103. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है–जब कोई व्यक्ति अपने साथी
के अनुसार आचरण करने लगता है तब यह कहावत कही जाती है।

104. खुदा गंजे को नाखून नहीं देता–अयोग्य को अधिकार नहीं मिलता।
अकर्मण्य व्यक्ति को अधिकार नहीं मिल पाते हैं, क्योंकि खुदा गंजे को नाखून नहीं देता।

105. खेत खाए गदहा, मारा जाए जुलाहा–जब किसी व्यक्ति के अपराध पर दण्ड किसी अन्य को मिलता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।

106. खोदा पहाड़ निकली चुहिया–अधिक कार्य का अत्यल्प फल।
भाजपा के शीर्ष नेताओं ने यू. पी. में लोकसभा चुनावों में बहुत परिश्रम किया लेकिन बहुमत नहीं ले पाई। सच में यह कहावत चरितार्थ हो गई खोदा पहाड़ निकली चुहिया।

107. खाक डाले चाँद नहीं छिपता–अच्छे आदमी की निंदा करने से कुछ नहीं बिगड़ता।
महात्मा गाँधी की निंदा करना अनुचित है। खाक डाले चाँद नहीं छिपता।

108. खुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती–कोई नहीं जानता कि भगवान कब, कैसे, क्यों दण्ड देता है।
तुम गरीबों का घोर शोषण करते हो, जानते नहीं खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती।

109. खग ही जाने खग की भाषा–सब अपने–अपने सम्पर्क के लोगों का हाल समझते हैं।
व्यापारी एक–दूसरे से इशारे ही इशारों में बात कर लेते हैं और आम इनसान कुछ नहीं समझ पाता। सच है खग ही जाने खग की भाषा।

110. खरी मजूरी चोखा काम–पूरी मज़दूरी देने पर ही काम अच्छा होता है।
अच्छे फैक्ट्री मालिक खरी मजूरी चोखा काम की नीति में विश्वास करते हैं।

111. खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे–खिसियाहट में क्रोधवश लोग अटपटा कार्य करते हैं।
अधिकारी से डाँट खाने के पश्चात् क्लर्क चपरासी से जाड़े में कोल्ड ड्रिंक लाने की हुज्जत करने लगा। इस पर साथी ने कहा खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे।

112. खुशामद से ही आमद है–खुशामद से ही धन आता है।
आजकल का समय खुशामद से ही आमद का है।

113. खेती, खसम लेती है–कोई काम अपने हाथ से करने पर ही ठीक होता है।
रोज घर जल्दी चले आते हो, ऐसे तो व्यापार ठप्प हो जाएगा। जानते हो खेती, खसम लेती है।

114. खूटे के बल बछड़ा कूदे–किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है।
मैं जानता हूँ तुम किस खूटे के बल कूद रहे हो, मैं उसे भी देख लूँगा।

(ग)

115. गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज–बनावटी त्याग।
स्वामी जी प्याज नहीं खाते, परन्तु प्याज की पकौड़ियाँ खाँ लेते हैं, ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है—गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज।

116. गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास–जो व्यक्ति सामने आए उसकी प्रशंसा करना। कुछ लोगों की आदत होती है कि उनके सामने जो व्यक्ति आता है उसी की प्रशंसा करने लगते हैं, ऐसे लोगों के लिए ही कहा जाता
है–गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास।

117. गाँठ का पूरा आँख का अंधा–पैसे वाला तो है पर है मुर्ख।
आज के युग में गाँठ का पूरा आँख का अंधे की तलाश किसे नहीं है।

118. गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त—जिसका काम है वो आलस्य में रहे और
दूसरे फुर्ती दिखाएँ। मास्टर जी तुम्हें पास कराने के लिए पूरी मेहनत कर रहे हैं और तुम बिल्कुल भी पढ़ने में मन नहीं लगा रहे, ये तो गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त वाली बात हो गई।

119. गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचे–भला करने वाले के साथ दुष्टता करना।
आजकल बहुत बुरा समय आ गया है। लोग गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचते हैं।

120. गए रोज़े छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी–अपनी मुसीबत से पीछा छुड़ाने
की इच्छा से प्रयत्न करते–करते नई विपत्ति का आ जाना।। शर्मा जी मेहमान आने के भय से घूमने गए। वहाँ उनके समधी मिल गए और उनका स्वागत करना पड़ा। गए रोज़े छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी।

121. गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता है किसी भी उपाय से स्वभाव
नहीं बदलता। उससे तुम्हारा विवाह नहीं हुआ अच्छा हुआ। वो तो बहुत अहंकारी औरत है। कहावत है गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता।

122. गीदड़ की शामत आए तो गाँव की ओर भागे–विपत्ति में बुद्धि काम
नहीं करती। लाला परमानन्द के यहाँ आयकर विभाग का छापा पड़ा तो उस कमरे में चल दिए जहाँ अकूत धन और कागज़ रखे हुए थे। इसे देख आयकर वाले बोले गीदड़ की शामत आए तो गाँव की ओर भागे।

123. गरजै सो बरसै नहीं–डींग हाँकने वाले काम नहीं करते।
राजेश ने कहा था कि वह आई. ए. एस. बनके दिखाएगा। इस पर मित्र ने कहा, जो गरजै सो बरसै नहीं।

(घ)

124. घर का भेदी लंका ढावे–रहस्य जानने वाला बड़ा घातक होता है।
जयचन्द ने मुहम्मद गोरी से मिलकर घर का भेदी लंका ढावे उक्ति को चरितार्थ कर दिया।

125. घोड़ा. घास से यारी करे तो खाए क्या–व्यापार में रिश्तेदारी नहीं
निभाई जाती। जो जिस वस्तु का व्यापार करता है, उसमें लाभ न ले तो, उसका खर्च कैसे चले। इसीलिए कहा गया है कि घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या।

126. घोड़ों को घर कितनी दूर–पुरुषार्थी के लिए सफलता सरल है।
आशीष रात में कार चलाकर नैनी से लखनऊ आया तो ससुर साहब ने चिन्ता जतायी। इस पर आशीष ने कहा घोड़ों को घर कितनी दूर।

127. घोड़े को लात, आदमी को बात–दुष्ट से कठोरता का और सज्जन से नम्रता का व्यवहार करें।
सुनील घोड़े को लात, आदमी को बात वाली नीति में विश्वास करता है।

128. घायल की गति घायल जाने–जो कष्ट भोगता है वही दूसरे के कष्ट को समझ सकता है।
गरीब आदमी कैसे अभाव में अपना जीवन गुजारता है। यह गरीब व्यक्ति ही समझ सकता है। सच है घायल की गति घायल जाने।

129. घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध—किसी आदमी की प्रतिष्ठा अपने निवास स्थान पर कम होती है।
वह मेरठ में तो एक साधारण से प्रकाशन में था, लेकिन दिल्ली जाकर बहुत बड़े प्रकाशन में उच्च पद पर पहुँच गया है। सच है घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध।

130. घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते–घर में आने वाले का सत्कार करना चाहिए।
शिवानी जाओ चाय नाश्ता ले जाओ। भले ही यह व्यक्ति हमारा विरोधी है। जानती नहीं घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते।

131. घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा–उन्नति करके आदमी अपना ही भला करता है।
कल तक नेताजी पर साइकिल नहीं थी। विधायक होते ही उन पर ऐश–ओ–आराम की सभी वस्तुएँ आ गईं। कहावत भी है घोड़े की दुम बढ़ेगी, तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा।

132. घर की मुर्गी दाल बराबर–अपने घर के गुणी व्यक्ति का सम्मान न करना।
जब मुझे बीरबल साहनी पुरस्कार प्रदान किया गया तब घर के लोगों में ऐसा उत्साह नहीं देखा गया, जैसा दिखना चाहिए। सच “घर की मुर्गी दाल बराबरा”।

133. घर खीर तो बाहर भी खीर–सम्पन्नता में सर्वत्र प्रतिष्ठा मिलती है।
इतना जान लो कि जब तुम्हारा पेट भरा रहेगा तभी दूसरे लोग खाने के लिए पूछेगे। सच, “घर खीर तो बाहर भी खीर।”

(च)

134. चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय–बहुत कंजूस होना।
जो व्यक्ति बहुत कंजूस होते हैं उनके लिए कहा जाता है–चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।

135. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात–अल्प समय के लिए लाभ।
नैनीताल के होटल वाले गर्मी में पर्यटकों से अधिक से अधिक पैसा कमाने का प्रयास करते हैं, क्योंकि मौसम निकलने के बाद ऐसा अवसर कहाँ? ठीक ही कहा गया है–चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।

136. चोर की दाढ़ी में तिनका–अपराधी सदा शंकित रहता है।
कथा—एक दरोगा जी चोरी के मामले पर विचार कर रहे थे। जिन–जिन लोगों पर शक था, वे सभी सामने खड़े थे। थोड़ी देर बाद दरोगा जी ने कहा–जो चोर है उसकी दाढ़ी में तिनका है: ह सुनकर सभी लोग ज्यों, के त्यों खड़े रहे, लेकिन जो चोर था वह अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर कर देखने लगा कि कहीं मेरी दाढ़ी में तिनका तो नहीं है। दरोगा जी तुरन्त ताड़ गए कि कौन चोर है। यह कहावत इसी कथा से निकली हुई प्रतीत होती है।

137. चौबे गए छब्बे बनने, दूबे बनकर आए–लाभ के बदले हानि।
जब कोई व्यक्ति लाभ की आशा से कोई कार्य करता है और उसमें हानि हो जाती है, तब यह कहावत चरितार्थ होती है।

138. चोर के पैर नहीं होते–अपराधी अशक्त होता है।
जब पुलिस ने कड़ाई से रविन्द्र से पूछताछ की तो उसने स्वीकार कर लिया कि उसने ही चोरी की है। सच कहावत है चोर के पैर नहीं होते।

139. चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता–निर्लज्ज पर उपदेशों का असर नहीं
पड़ता। गिरीश मोहन को चाहे कितना समझा लो, डांट लो, शर्मिन्दा कर लो; लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता है। चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता कहावत उस पर चरितार्थ होती है।

140. चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी–शाम होते ही सोने लगना।
अब राज के घर जाना बेकार है वह तो चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी वालों में है।

141. चूहों की मौत बिल्ली का खेल–किसी को कष्ट देकर मौज़ करना।
कालाबाज़ारियों को अधिक से अधिक लाभ से मतलब है चाहे कितने ही लोग भूख से मर जाएँ। कहावत है चूहों की मौत बिल्ली का खेला,

142. चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं–घमण्ड करने से नाश होता
सुबोध तुम्हें घमण्ड हो गया। यह मत भूलो चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं।

143. चूहे का बच्चा बिल खोदता है–जाति स्वभाव में परिवर्तन नहीं होता।
बबलू लकड़ी का मकान बनाता है, उसके पिता बिल्डर हैं। सच है चूहे का बच्चा बिल खोदता है।

144. चोरी और सीना जोरी–दोषी भी हो घुड़की भी दे।
पहले जैन साहब से दस हजार रुपए उधार ले गए, माँगने पर कहते हो . दिए ही नहीं। पुलिस में रिपोर्ट कर दूंगा कि तुम कालाबाजारी करते हो। तुम्हारी नीति सही है चोरी और सीना जोरी।

145. चोर–चोर मौसरे भाई–एक पेशे वाले आपस में नाता जोड़ लेते हैं।
यदि आज किसी विभाग के सरकारी कर्मचारी, भ्रष्ट व्यापारी और उद्योगपति के छापा मारते हैं, तो वे सब एक होकर उसका विरोध करने लगते हैं। सच है चोर–चोर मौसरे भाई।

146. चुपड़ी और दो–दो–अच्छी चीज और वह भी बहुतायत में।
राज का पी. सी. एस. में चयन हो गया और उसे पोस्टिंग भी मुज़फ़्फ़रनगर में मिल गई। यही तो है चुपड़ी और दो–दो।

147. चोरी का माल मोरी में—गलत ढंग से कमाया धन यों ही बर्बाद होता है।
परचून की दुकान वाले ने मिलावट करके लाखों रुपया कमाया लेकिन कुछ पैसा बीमारी में लग गया बाकी चोर चोरी करके चले गए, तब पड़ोसी बोले चोरी का माल मोरी में।

148. छछुन्दर के सिर पर चमेली का तेल–किसी व्यक्ति को ऐसी वस्तु की प्राप्ति हो, जिनके लिए वह सर्वथा अयोग्य हो।
उसे हिन्दी भाषा का तनिक भी जान नहीं था, किन्तु वह हिन्दी विषय का प्रवक्ता बन गया। यह तो, “छछुन्दर के सिर पर चमेली का तेल” के समान है।

149. छोटा मुँह बड़ी बात– छोटे लोगों का बढ़–चढ़कर बोलना।
राकेश सामान्य–सा चपरासी है, किन्तु अपने अधिकारियों से ऐसे रौब झाड़ते हुए बात करता है, जैसे– “छोटा– मुँह बड़ी बात।”

(ज)

150. जल में रहकर मगर से बैर–बड़ों से शत्रुता नहीं चलती।
उमेश तुमने अपने अधिकारी से बिगाड़ क्यों की? जल में रहकर मगर से बैर नहीं चलेगा।

151. जब तक साँस तब तक आस–आशा जीवनपर्यन्त बनी रहती है।
डॉक्टर को बुलाकर दिखा दीजिए जब तक साँस तब तक आस।

152. जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि–कवि की कल्पना अनन्त होती है।
कालिदास और भवभूति जैसे कवियों की रचनाओं को पढ़कर कहा जा सकता है–जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि।

153. जान है तो जहान है–जीवन ही सब कुछ है।
कथा है–किसी गाँव के तालाब में एक सियार डूब रहा था। गाँव के लोग उसे देख रहे थे। डूबता सियार चिल्लाने लगा, अरे बचाओ ! सारा जहान डूबा जा रहा है। गाँव वालों ने सोचा सियार शगुनी जानवर होता है, अवश्य ही कोई विशेष बात कह रहा होगा। ऐसा सोचकर गाँव वालों ने उसे पानी से निकाला और जहान डूबने की बात पूछी। सियार ने उत्तर दिया–जब मैं डूबा जा रहा था तो मेरे लिए सारा जहान डूबा जा रहा था। जान है तो जहान है, जान नहीं तो जहान नहीं। तभी से यह कहावत चल पड़ी–जान है तो जहान है।

154. जिसकी लाठी उसकी भैंस–जबर्दस्त का बोल–बाला।
आजकल नेतागण गुण्डागर्दी के बलबूते चुनाव जीतकर जिसकी लाठी उसकी भैंस कहावत को चरितार्थ करते हैं।

155. जहँ–जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ–तहँ होवै बन्टाधार—मनहूस आदमी हर काम को बनाने के बजाय उसमें विघ्न ही डालता है।
उसे शादी में लाइट की व्यवस्था का जिम्मा मत सौंपना उस पर तो जहँ–जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ–तहँ बन्टाधार कहावत चरितार्थ होती है।

156, जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात–लालच में कोई काम करना।
पूँजीवादी व्यवस्था में बहुत से बेरोज़गार जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात वाली नीति पर चलने लगे हैं।

157. जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई–स्वयं दुःख भोगे बिना दूसरे के दर्द का एहसास नहीं होता।
वो गरीब है इसलिए तुम उसका मज़ाक उड़ा रहे हो कि उसके जूते फटे हैं। सच कहावत है जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई।

158. जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या सवेरा नहीं होता—किसी एक की वजह से
संसार का काम नहीं रुकता। तुम यदि प्रकाशन से चले गए तो प्रकाशन क्या बन्द हो जाएगा। कहावत नहीं सुनी जहाँ मुर्गा नहीं होता तो क्या सवेरा नहीं होता।

159. जाय लाख रहे साख–इज्जत रहनी चाहिए व्यय कुछ भी हो जाए।
मेरा तो एक सूत्रीय सिद्धान्त में विश्वास है जाय लाख रहे साख।

160. जान बची लाखो पाए–किसी झंझट से मुक्ति।
दंगे में शर्मा जी फँस गए। किसी तरह पुलिस की मदद से निकले तो कहने लगे जान बची लाखो पाए।

161. जान मारे बनिया पहचान मारे चोर–बनिया और चोर जान पहचान वाले को ही ज़्यादा ठगते हैं।
बनिये ने इस महीने मुझसे सामान में दो सौ रुपए अधिक ले लिए, जबकि वो हमें अच्छी तरह जानता है। इस पर मैडम बोली जानते नहीं जान मारे बनिया पहचान मारे चोर।

162. जिन ढूंढा तिन पाइया गहरे पानी पैठ–जो संकल्पशील होते हैं, वे कठिन परिश्रम करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं।

163. जस दूल्हा तस बनी बरात–जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी।
जैसे बिजली विभाग का इंजीनियर भ्रष्ट है वैसे ही उसके कार्यालय के अन्य कर्मचारी भ्रष्ट हैं। कहावत सच है, जस दूल्हा तस बनी बरात।

164. जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ–दोनों एक समान।
मायावती भाजपा और कांग्रेस को जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ कहती हैं।

165. जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया–बदनामी भी हुई और लाभ भी नहीं मिला।
तुमने उस लड़की से प्यार किया उसने धोखा दिया और किसी और से शादी कर ली। तुमने तो जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया वाली कहावत चरितार्थ कर दी।

166. जहाँ जाय भूखा वहाँ पड़े सूखा–दुःखी कहीं भी आराम नहीं पा सकता।
गरीबी से तंग आकर विराट भाई के पास रहने के लिए चला गया पर वहाँ पता लगा कि कुछ दिन पहले घर चोरी हो गई। वह सोचने लगा–जहाँ जाए भूखा वहाँ पड़े सूखा।

167. जड़ काटते जाना और पानी देते रहना–ऊपर से प्रेम दिखाना, अप्रत्यक्ष में
हानि पहुँचाते रहना। प्रशान्त जब मुझसे मिलता है हँसकर प्रेम से बात करता है लेकिन पीछे भाई साहब से मेरी बुराई करता है। जब मुझे पता चला तो मैंने उससे कहा कि तुम जड़ काटते हो ऊपर से पानी देते हो।

168. जितने मुँह उतनी बातें––एक ही बात पर भिन्न–भिन्न कथन।
तुम अपने काम में ध्यान लगाओ। लोगों का काम तो कहना है जितने मुँह उतनी बातें।

169. जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा–जो मन में है वह प्रकट होगा ही।
मित्रता का दम भरने वाला प्रशान्त जब भाई के सामने ज़हर उगलने लगा तो मैंने कहा–जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा, आखिर तुम्हारी असलियत पता चल ही गई।

170. जैसा करोगे वैसा भरोगे–अपनी करनी का फल मिलता है।
निर्दोष लोगों की हत्या करने वालों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया। कहावत सच है जैसा करोगे वैसा भरोगे।

171. जैसा मुँह वैसा थप्पड़–जो जिसके योग्य हो उसे वही मिलता है।
शादी में मौसी और मामी को मम्मी ने बढ़िया साड़ियाँ दी जबकि बुआओं को साधारण साड़ी दी। कहावत सच है जैसा मुँह वैसा थप्पड़।

172. जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश–निकम्मा आदमी घर में हो या बाहर कोई अन्तर नहीं।
पहले नवनीत घर पर रहता था तो भी कुछ नहीं कमाता था, जब दिल्ली गया तो दोस्त के घर पर उसके टुकड़ों पर रहने लगा। जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश।

173. जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा–जितना खर्च करोगे वस्तु उतनी ही अच्छी मिलेगी।
आप ₹ 200 में सिल्क की शानदार साड़ी माँग रही हो। इतने में तो साधारण साड़ी आएगी। बहन जी जितना गुड़ डालोगी, उतना ही मीठा होगा।

174. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना—जो उपकार करे उसका अहित करना।
मुझ पर ऐसा इल्ज़ाम लगाना तुम्हें शोभा नहीं देता। मैं जिस थाली में खाता हूँ उसी में छेद नहीं करता।

175. जिसका खाइये उसका गाइये–जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लें।
आजकल लोग इतने समझदार हो गए हैं कि जिसका खाते हैं उसका गाते हैं।

176. जिसका काम उसी को साजै–जो काम जिसका है वही उसे ठीक तरह
से कर सकता है। एक दिन शिवानी बिजली का प्लग सही करने लगी तो वह रहा सहा भी खराब हो गया। इस पर मैंने कहा जिसका काम उसी को साजै।

177. जितनी चादर देखो उतने पैर पसारो–अपनी आमदनी के हिसाब से खर्च करो।
सुबोध एक ही सप्ताह में सारी तनख्वाह खर्च कर देता है फिर लोगों से उधार लेता रहता है। एक दिन साहब ने कहा सुबोध जितनी चादर हो उतने पैर पसारने चाहिए।

178. ज्यों–ज्यों भीजे कामरी त्यों–त्यों भारी होय–जैसे–जैसे समय बीतता है
जिम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं। राजीव के एक बच्चा हो जाने के पश्चात् उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं। कहावत है ज्यों–ज्यों भीजे कामरी त्यों–त्यों भारी होय।

179. जैसा देश वैसा भेष–किसी स्थान का पहनावा, उस क्षेत्र विशेष के अनुरूप होता है।
जब मैं घर से बाहर शहर जाता हूँ, तो पैंट–शर्ट पहनता हूँ और जब गाँव में रहता हूँ तो कुर्ता–पायजामा पहनता हूँ, सच है जैसा देश वैसा भेष।

(झ)

180. झूठ के पाँव नहीं होते– झूठ बोलने वाला एक बात पर नहीं टिकता।
न्यायालय में पैरवी के दौरान एक ही गवाह के तरह–तरह के बयान से न्यायाधीश बौखला गया। वह समझ गया था, “झूठ के पाँव नहीं होते।”

181. झोंपड़ी में रह, महलों का ख़्वाब देखें–सामर्थ्य से बढ़कर चाह रखना ‘झोपड़ी में रह, महलों का ख़्वाब देखें’ कहावत उन लोगों पर सटीक बैठती है, जो पूरी तरह से अर्थाभाव में जीते हैं, किन्तु मालदार सेठ बनने का ख़्वाब देखते हैं।

(ट)

182. टके की मुर्गी नौ टके महसूल–कम कीमती वस्तु अधिक मूल्य पर देना।
जब किसी वस्तु के मूल्य से अधिक उस पर खर्च हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।

183. टके का सब खेल–“धन–दौलत से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं।”
आज के युग में जो चाहो, पैसा देकर हथिया लिया जा सकता है, क्योंकि भ्रष्टाचार के ज़माने में ‘टके का सब खेल’ है।

(ठ)

184. ठोक बजा ले चीज़, ठोक बजा दे दाम–अच्छी वस्तु का अच्छा मूल्य।
यह तो बाज़ार है–यहाँ कुछ वस्तुएँ सस्ती हैं तो कुछ महँगी भी, यानि जैसी चीज़ वैसा दाम। ऐसे में तो ‘ठोक बजा ले चीज़, ठोक बजा दे दाम’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।

185. ठोकर लगे तब आँख खुले—“कुछ गँवाकर ही अक्ल आती है।
तुम अपने को कितना ही समझदार कह लो, लेकिन जब तक ठोकर नहीं लगती आँख नहीं खुलती।

(ड)

186. डण्डा सबका पीर–सख्ती करने से लोग नियंत्रित होते हैं।
कक्षा में राहुल नाम का छात्र बहुत शरारती था, लेकिन जब से अध्यापकों ने थोड़ी सी सख़्ती क्या की, वह अनुशासन में रहता है, क्योंकि ‘डण्डा सबका पीर’ होता है।

187. डायन को दामाद प्यारा–अपना सबको प्यारा होता है।
यदि तुम उस नेता के लड़के की शिकायत करोगे तो क्या वह तुम्हारी सुनेगा, क्योंकि ‘डायन को दामाद प्यारा’ होता है।

188. ढाक के तीन पात–सदैव एक–सी स्थिति में रहने वाला।
वास्तव में, जो योगी होता है, उसके लिए न तो हर्ष है और न विषाद, वह तो एक ही स्थिति में रहता है ‘ढाक के तीन पात’ की तरह।

189. ढोल के भीतर पोल/ढोल में पोल–केवल ऊपरी दिखावा।
कविता अंग्रेज़ी में कुछ भी बोलती रहती है, अभी उससे पूछो कि ‘सेन्टेंस’ कितने प्रकार के होते हैं ‘तब ढोल के भीतर पोल’ दिखना शुरू हो जाएगा।

(त)

190. तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता–मर्मभेदी बात आजीवन नहीं भूलती।
किसी को हृदय विदारक शब्द मत कहो, क्योंकि वे आजीवन याद रहते हैं, इसीलिए कहा गया है कि तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता।

191. तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले–जब कोई व्यक्ति किसी की सहायता करता है और जलन अन्य व्यक्ति को होती है।
लाला रामप्रसाद को रोजाना दान पुण्य करते देख पड़ोसी उन्हें पाखण्डी कहते हैं। सच है तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले।

192. तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटोही होवे जैसा—बिना स्त्री के पुरुष का कोई ठिकाना नहीं।
जब से विकास की पत्नी उसे छोड़कर गई है तब से उसकी दशा तो तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बताऊ होवे जैसा वाली हो गई है।

193. तू डाल–डाल, मैं पात–पात–एक से बढ़कर दूसरा चालाक।
मनोज से संजय ने ₹ 10 हजार उधार लिए। माँगने पर वह आनाकानी करता था। एक दिन मनोज उसका कम्प्यूटर उठा लाया और पैसे देने पर ही देने की बात कही। इसे कहते हैं तू डाल–डाल, मैं पात–पात।

194. तख्त या तख्ता–शान से रहना या भूखो मरना।
उसकी आदत तो, तख्त या तख्ता वाली है।

195. तुम्हारे मुँह में घी–शक्कर–तुम्हारी बात सच हो।
उसने मुझे लड़का होने की दुआ दी, मैंने उससे कहा तुम्हारे मुँह में घी–शक्कर।

196. तेल देखो तेल की धार देखो–सावधानी और धैर्य से काम लो।
चुनाव की घोषणा होते ही तुम जीत के दावे करने लगे। पहले तेल देखो तेल की धार देखो।

197. तलवार का खेत हरा नहीं होता–अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता।
तुम जो कर रहे हो वो ठीक नहीं है, तलवार का खेत हरा नहीं होता।

198. थूक से सत्तू सानना– कम सामग्री से काम पूरा करना।
इतने बड़े यज्ञ के लिए दस किलो घी तो थूक से सत्तू सानने के समान है।

199. थोथा चना बाजे घना–अकर्मण्य अधिक बात करता है।
राजेश के आश्वासन की क्या आशा करना, वह तो थोथा चना बाजे घना है। आपके लिए करेगा कुछ नहीं और बातें दुनिया भर की करेगा।

200. थोड़ी पूँजी धणी को खाय–अपर्याप्त पूँजी से व्यापार में घाटा होता है।
सुबोध ने गेंद बनाने की फैक्ट्री लगायी, कच्चा माल उधार लेने लगा जो महँगा मिला, इस कारण उसे घाटा उठाना पड़ा। सच है थोड़ी पूँजी धणी को खाय।

(द)

201. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम–अस्थिर–विचार वाला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पाता है।
इस वर्ष तुमने न तो बी. एड. का फार्म भरा और न एम. ए. का ही, वही हाल हुआ कि दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।

202. दूध का जला छाछ भी फूंक–फूंककर पीता है—ठोकर खाने के बाद आदमी सावधान हो जाता है।
किसी काम में हानि हो जाने पर दूसरा काम करने में भी डर लगता है। भले ही उसमें डर की सम्भावना न हो, ठीक ही कहा गया है–दूध का जला छाछ (मट्ठा) भी फूंक–फूंककर पीता है।

203. दूर के ढोल सुहावने–दूर से ही कुछ चीजें अच्छी लगती हैं।
तुम दोनों दूर–दूर रहो वरना लड़ाई होगी, क्योंकि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

204. दाल भात में मूसलचन्द–दो के बीच अनावश्यक व्यक्ति का हस्तक्षेप करना।
अजय और सुनील मित्र हैं, दोनों में घुटकर बातचीत होती रहती है, लेकिन विनय उनकी बातचीत में हस्तक्षेप करता है तब उससे कहना ही पड़ता है, दाल भात में मूसलचन्द मत बनो।

205. दाने–दाने पर मुहर–हर व्यक्ति का अपना भाग्य।
मैं और सचिन नाश्ता कर रहे थे, इतने में अनिल आ गया तो मैंने कहा दाने–दाने पर मुहर होती है।

206. दाम संवारे काम–पैसा सब काम करता है।
जब राजीव इंग्लैण्ड से भारत आया तो सब कुछ बदला–सा नजर आया इस पर साथियों ने कहा दाम संवारे सबई काम।

207. दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है–जिससे कुछ पाना होता है, उसकी
धौंस डपट सहन करनी पड़ती है।

208. दूध पिलाकर साँप पोसना–शत्रु का उपकार करना।
तुम राजेन्द्र को अपने यहाँ लाकर दूध पिलाकर साँप पोसना कहावत को चरितार्थ न करना।

209. दूसरे की पत्तल लम्बा–लम्बा भात–दूसरे की वस्तु अच्छी लगती है।
तुम्हें मेरी सरकारी नौकरी अच्छी लग रही है। मुझे तुम्हारा व्यापार, जिससे खूब आय है। सच कहावत है दूसरे की पत्तल लम्बा–लम्बा भात।

210. दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे—किसी तरफ़ के न होना।
उसने सरकारी नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ा। वह चुनाव हार गया। इस प्रकार दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे।

211. दो मुल्लों में मुर्गी हलाल–दो को दिया काम बिगड़ जाता है।
भाई साहब इस प्रोजेक्ट को दो लोगों को मत दीजिए, दो मुल्लों में मुर्गी हलाल हो जाती है।

(ध)

212. धन्ना सेठ के नाती बने हैं अपने को अमीर समझते हैं।
जेब में सौ रुपए नहीं रहते वैसे अपने को धन्ना सेठ के नाती बनते हैं।

213. धूप में बाल सफेद नहीं किए हैं–सांसारिक अनुभव बहुत है।
तुम हमें बहकाने की कोशिश मत करो, ये बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं।

(न)

214. नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा–जिसके पास कुछ है ही नहीं, वह क्या अपने पर खर्च करेगा और क्या दूसरों पर।
बेरोज़गार अजय के साले की शादी है। कैसे नए कपड़े बनवाए, कैसे लेन–देन की व्यवस्था करे। सच कहावत है नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा।

215. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी–काम न करने के उद्देश्य से असम्भव बहाने बनाना।
कथा–कोई राधा नाम की वेश्या थी। उसका नृत्य बहुत प्रसिद्ध हो गया था, लेकिन उसे उतना अच्छा नाचना नहीं आता था। इसलिए जब कोई व्यक्ति उसे नाचने के लिए बुलाता तो वह यही कह देती थी कि नौ मन तेल का चिराग जलाओ, तब नाचूँगी। लोग न तो नौ मन तेल इकट्ठा कर पाते और न उसका नाच–गाना ही हो पाता। इस प्रकार जब कोई व्यक्ति काम न करने के उद्देश्य से असम्भव बहाने बनाने लगता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।

216. नाच न आवे आँगन टेढ़ा–जब कोई व्यक्ति दूसरों के दोष निकालकर अपनी अयोग्यता को छिपाने का प्रयास करता है।
तुम आउट हो गए और दोष अम्पायर को दे रहे हो। तुम तो नाच न आवे आँगन टेढ़ा कहावत चरितार्थ कर रहे हो।

217. नीम न मीठा होय सींचो गुड़ घी–से–बुरे लोगों का स्वभाव नहीं
बदलता, प्रयाग चाहे जैसा किया जाए।

218. नाक दबाने से मुँह खुलता है–कठोरता से कार्य सिद्ध होता है।
शाह आलम साहब, नाक दबाने से मुँह खुलता है, नीति में विश्वास करते

219. नक्कारखाने में तूती की आवाज–बड़ों के बीच में छोटे आदमी की
कौन सुनता है। व्यवस्था परिवर्तन चाहने वालों की आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह गई है।

220. नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ–नौ ब्याह–झूठी बड़ाई।
निर्भय हर जगह अपनी धन–दौलत का गुणगान करता रहता है। एक दिन अजय ने उससे कह दिया नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ–नौ ब्याह।

221. नदी नाव संयोग–कभी–कभी मिलना।
अरे आज तुम इतने दिन बाद मिल गए, ये तो नदी नाव संयोग वाली कहावत चरितार्थ हो गई।

222. नकटा बूचा सबसे ऊँचा–निर्लज्ज आदमी सबसे बड़ा है।
निर्भय से जीतना असम्भव है। उस पर तो नकटा बूचा सबसे ऊँचा वाली कहावत लागू होती है।

223. नेकी कर और कुएँ में डाल–भलाई का काम करके फल की आशा मत करो।
मेरा तो सिद्धान्त है नेकी कर और कुएँ में डाल। इसलिए जिसकी मदद होती है कर देता हूँ।

224. नौ नकद, न तेरह उधार–नकद का काम उधार के काम से अच्छा है।
व्यापार में लाला जी पैसे तो आपको नकद देने पड़ेंगे। हमारा प्रकाशन नौ नकद न तेरह उधार की कहावत में विश्वास करता है।

225. नया नौ दिन पुराना सौ दिन–पुरानी चीजें ज्यादा दिन चलती हैं।
मैंने एक साइकिल अभी–अभी एक वर्ष पूर्व ली थी तभी खराब हो गई, लेकिन पन्द्रह वर्ष पहले ली गई हीरो साइकिल अभी सही चल रही है।

(प)

226. पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी–पत्नी देखती है कि मेरे पति के पास कितना धन है और माँ देखती है कि मेरे बेटे का पेट अच्छी तरह भरा है या नहीं।
अभय जब ऑफिस से घर आता है तो पत्नी कोई–न–कोई फरमाइश कर पैसे माँगती है, जबकि माँ पूछती बेटा तूने दिन में क्या खाया, आ खाना खा ले। कहावत सच है, पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी।

227. पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल–योग्यतानुसार कार्य न मिलना।
उमेश पी–एच डी. है, लेकिन क्लर्की करता है, इसलिए कहा गया है–पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल।

228. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं–पराधीनता सदैव दुःखदायी होती है।
तुलसीदास जी ने कहा है–पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं। करि विचार देखहु मन माँही।

229. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं—सभी के गुण समान नहीं होते,
उनमें कुछ न कुछ अन्तर होता है। रामलाल के तीन बेटे सरकारी अधिकारी हैं और दो बेटे क्लर्क। सच है पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती।

230. पराये धन पर लक्ष्मी नारायण–दूसरे के धन पर गुलछरें उड़ाना।
तुम तो पराये धन पर लक्ष्मी नारायण बन रहे हो।

231. पाँचों सवारों में मिलना–अपने को बड़े व्यक्तियों में गिनना।
वह भले ही पैसे वाला न हो लेकिन पाँचों सवारों में मिलना चाहता है।

232. पानी पीकर जात पूछते हो–काम करने के बाद उसके अच्छे–बुरे पहलुओं पर विचार करना।
पहले लड़की की शादी अनजान घर में कर दी अब पूछ रहे हो लोग कैसे हैं? आप तो पानी पीकर जात पूछने वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हो।

(फ)

233. फ़कीर की सूरत ही सवाल है—फ़कीर कुछ माँगे या न माँगे, यदि सामने आ जाए तो समझ लेना चाहिए कि कुछ माँगने ही आया।
शर्मा जी जब घर आते हैं कुछ न कुछ माँगकर ले जाते हैं। जब वे परसों घर आए तो मैंने दो सौ रुपए दे दिए। बीवी ने पूछा बिना माँगे क्यों दिए तो कहा फ़कीर की सूरत ही सवाल है।

234. फलेगा सो झड़ेगा– उन्नति के पश्चात् अवनति अवश्यम्भावी है
एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अवनति होती है, क्योंकि फलेगा सो झड़ेगा।

(ब)

235. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद–जब कोई व्यक्ति ज्ञान के अभाव में किसी वस्तु की कद्र नहीं करता है।
मनीष को साम्यवाद समझा रहे हो। बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।

236. बद अच्छा बदनाम बुरा–बुरे कर्मों की अपेक्षा कलंकित होना अधिक बुरा है।
मंजर एक बार चोरी करते पकड़ा गया तब से पूरा मुहल्ला उसे चोर समझता है जबकि उस मुहल्ले में अनेक चोर हैं, जो पकड़े नहीं गए। सच है बद अच्छा बदनाम बुरा।

237. बनिया मीत न वेश्या सती–बनिया किसी का मित्र नहीं होता और वेश्या चरित्रवान नहीं होती।
शर्मा जी पड़ोस के बनिये चन्द्रप्रकाश के साझे में और वेश्या से प्यार में लुटकर अपने को बर्बाद कर बैठे तो लोगों ने कहा बनिया मीत न वेश्या सती।

238. बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय–जो कुछ हो चुका है उसे भूलकर भविष्य के लिए सँभल जाना चाहिए।
तुम पिछले दो वर्ष से पी. सी. एस. में सलेक्ट नहीं हो रहे। निराश न हो, इस वर्ष जमकर मेहनत करो। कहावत भी है, बीती ताहि बिसार द्रे आगे की सुधि लेया

239. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते होय–बुरे कर्मों का परिणाम अच्छा नहीं हो सकता।
आज तक गुण्डागर्दी करते रहे, अब समाज में सम्मान पाना चाहते हैं, यह कैसे सम्भव है? क्योंकि बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते खाय।

(भ)

240. भीगी बिल्ली बताना–बहाना बनाना।
यह कहावत ऐसे आलसी नौकर की कथा पर आधारित है, जो अपने मालिक की बात को किसी न किसी बहाने टाल दिया करता था। एक बार रात के समय मालिक ने कहा, “देखो बाहर पानी तो नहीं बरस रहा है? नौकर ने कहा, “हाँ बरस रहा है।’ मालिक ने पूछा “तुम्हें कैसे मालूम हुआ?” नौकर ने कहा, “अभी एक बिल्ली मेरे पास से निकली थी, उसका शरीर मैंने टटोला, तो वह भीगी थी।”

241. भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी–जब कोई स्वतन्त्र प्रकृति का व्यक्ति बुरी तरह से गृहस्थी के चक्कर में पड़ जाता है।
राजू शादी के पश्चात् नेतागिरी भूल गया। सच है भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी।

242. भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय–मूर्ख अच्छी वस्तु की कद्र नहीं करते, मूों को उपदेश देना व्यर्थ है।
भारत में मार्क्सवाद की शिक्षा देना ऐसा ही है जैसे भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय।

(म)

243. मन चंगा तो कठौती में गंगा–यदि मन शुद्ध है तो तीर्थाटन आवश्यक नहीं है।
मनुष्य मन से पवित्र है तो सभी तीर्थ उसके पास हैं। अतः भक्त रविदास ने कहा है–मन चंगा तो कठौती में गंगा।

244. मान न मान मैं तेरा मेहमान–जब कोई व्यक्ति जबर्दस्ती किसी पर बोझा बनता है तब यह कहावत कही जाती है।

245. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक सीमित क्षेत्र तक पहुँच।
वह अधिक से अधिक ग्राम प्रधान के पास जाएगा, मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक।

246. मेरी ही बिल्ली और मुझसे म्याऊँ–जब कोई व्यक्ति अपने आश्रयदाता को
आँख दिखाता है तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।

(य)

247. यह मुँह और मसूर की दाल–जब कोई व्यक्ति अपनी योग्यता से अधिक पाने की अभिलाषा करता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
सुधा एम. ए. द्वितीय श्रेणी में है और वाइस चान्सलर बनने के ख्वाब देखती. है, ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है–यह मुँह और मसूर की दाल।

(र)

248. रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई–स्वाभिमानी व्यक्ति बुरी अवस्था को प्राप्त होने पर भी अपनी शान नहीं छोड़ता है।
अमेरिका ने सद्दाम को पकड़ लिया पर उसने कुछ नहीं बताया न दबा। सच है रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई।

149. राम नाम जपना, पराया माल अपना– ऊपर से भक्त, भीतर से ठग होना आज के अधिकतर साधु–संत अपने बुरे कामों से जनमानस को मूर्ख बनाकर ‘राम नाम जपना, पराया माल अपना’ वाली नीति को चरितार्थ कर ठग रहे हैं।

(ल)

250. लकड़ी के बल बन्दर नाचे–दुष्ट लोग भय से ही काम करते हैं। अत: कहा गया है–लकड़ी के बल बन्दर नाचे।

(व)

251. वही मन, वही चालीस सेर–बात एक ही है, दोनों बातों में कोई अन्तर नहीं।
मैंने तुम्हारी पुस्तक तुम्हारे घर में दे दी है विश्वास न हो तो अपने भाई से पूछ लो या फिर घर जाकर देख लो, क्योंकि “वही मन, वही चालीस सेर।”

(श)

252. शक्ल चुडैल की, मिज़ाज परियों का–बेकार का नखरा।
निशा कुछ हद तक तो गुणवान है, परन्तु कभी–कभी ऊटपटाँग बातें करती है। तब कहना पड़ता है, “शक्ल चुडैल की मिज़ाज परियों का।”

253. शेख़ी सेठ की, धोती भाड़े की—कुछ न होने पर भी बड़प्पन दिखाना।
सेठ पन्नालाल अपने व्यापार में सारा धन लगाकर पूरी तरह से खोखले हो चुके हैं फिर भी उनका हाल ‘शेखी सेठ की, धोती भाड़े की’ के समान है।

(स)

254. सब धान बाइस पंसेरी–अच्छे–बुरे को एक समान समझना।
अयोग्य अधिकारी अच्छे–बुरे सभी कर्मचारियों को समान मानकर सब धान बाइस पंसेरी तौलते हैं।

255. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता–सर्वत्र सीधेपन से काम नहीं चलता है।
अशोक की जब तक पिटाई नहीं होगी तब तक नहीं पड़ेगा, ठीक ही कहा गया है सीधी उँगली से घी नहीं निकलता।

256. सूरदास खल काली कामरि चढ़े न दूजौ रंग–दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता।
अलीजान को लोगों ने बहुत समझाया, किन्तु उस पर कोई असर नहीं हुआ, ठीक कहा गया है–सूरदास खल काली कामरि चढ़े न दूजौ रंग।

257. सौ सुनार की एक लुहार की—निर्बल की सौ चोटों की अपेक्षा बलवान की एक चोट काफी होती है।।
मनोज मेरी भाईसाहब से रोज़ शिकायत करता था। एक दिन मैंने भाईसाहब से शिकायत कर दी, बच्चे को नौकरी बचानी भारी पड़ गई। तब साथी बोले सौ सुनार की एक लुहार की।

258. हाथ कंगन को आरसी क्या–प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता।
अरे बहस क्यों करते हो पुस्तक में देख लो, हाथ कंगन को आरसी क्या?

259. होनहार बिरवान के होत चीकने पात–बचपन से ही अच्छे लक्षणों का दिखाई देना।
राहुल और सचिन बचपन से ही अच्छा क्रिकेट खेलते थे जिस कारण वह अच्छे खिलाड़ी बनकर उभरे हैं कहा जा सकता है कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात।’

मुहावरे और कहावते मध्यान्तर प्रश्नावली

1. कहावत को कहते हैं
(a) लोकोक्ति, (सूक्ति, सुभाषित), कही हुई बातें
(b) बढ़ा–चढ़ा कर कहना
(c) छोटे से वाक्यांश में कुछ कहना
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(a) लोकोक्ति, (सूक्ति, सुभाषित), कही हुई बातें

2. ‘एक अनार सौ बीमार’ कहावत का अर्थ है
(a) अत्यन्त कम
(b) हर हाल में मुसीबत
(c) एक ही वस्तु के अनेक आकांक्षी
(d) दुहरा फायदा
उत्तर :
(c) एक ही वस्तु के अनेक आकांक्षी

3. ‘जल में रहकर मगर से बैर’ कहावत का अर्थ है
(a) अपराधी हमेशा शंकित रहता है
(b) बड़ों से शत्रुता नहीं चलती
(c) मगरमच्छ से दुश्मनी
(d) जल में मगर के साथ रहना
उत्तर :
(b) बड़ों से शत्रुता नहीं चलती

4. ‘जस दूल्हा तस बनी बारात’ कहावत का अर्थ है
(a) जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लें
(b) जो जिसके योग्य हो उसे वही मिलता है
(c) लालच में कोई काम करना
(d) जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी
उत्तर :
(d) जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी

5. ‘नाच न आवे आँगन टेढ़ा’ कहावत का अर्थ है
(a) बुरे लोगों का स्वभाव नहीं बदलता
(b) नाचने का मन नहीं होना
(c) अपने दोष (अयोग्यता) को छिपाने के लिए दूसरों के दोष निकालना
(d) सीधे आँगन में नाचने की इच्छा
उत्तर :
(c) अपने दोष (अयोग्यता) को छिपाने के लिए दूसरों के दोष निकालना

6. ‘दूध का दूध पानी का पानी’ कहावत का अर्थ है
(a) दूध में पानी मिला होना
(b) असम्भव कार्य हो जाना
(c) दो को दिया काम बिगड़ जाता है
(d) ठीक–ठाक न्याय हो जाना
उत्तर :
(d) ठीक–ठाक न्याय हो जाना

7. ‘दूर के ढोल सुहावने’ कहावत का अर्थ है
(a) ढोल को दूर रखना
(b) ढोल को अपने पास से हटा देना
(c) दूर की वस्तु अच्छी लगना
(d) ढोल के बारे में दूर की सोचना
उत्तर :
(c) दूर की वस्तु अच्छी लगना

8. ‘पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल’ कहावत का अर्थ है।
(a) फ़ारसी पढ़े–लिखे तेल बेचते हैं
(b) कुदरत के खेल में फ़ारसी तेल बेचते हैं
(c) योग्यतानुसार कार्य न मिलना
(d) सभी के गुण समान नहीं होते
उत्तर :
(c) योग्यतानुसार कार्य न मिलना

9. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय
(a) बबूल का पेड़ आम के पेड़ जैसा होता है
(b) बबूल का पेड़ आम के पेड़ से अच्छा होता है
(c) बुरे कर्मों की अपेक्षा कलंकित होना अधिक बुरा है
(d) बुरे कर्मों का परिणाम, अच्छा नहीं हो सकता
उत्तर :
(d) बुरे कर्मों का परिणाम, अच्छा नहीं हो सकता

10. ‘यह मुँह और मसूर की दाल’ कहावत का अर्थ है
(a) मसूर की दाल का महँगा होना
(b) मूर्ख अच्छी वस्तु की कद्र नहीं करते
(c) अपने को बड़े व्यक्तियों में गिनना
(d) अपनी योग्यता से अधिक पाने की उम्मीद
उत्तर :
(d) अपनी योग्यता से अधिक पाने की उम्मीद

मुहावरे और कहावते वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली

1. अन्धे की लाठी होना (आर. आर. बी. (कोलकाता) ए.एस.एम. परीक्षा 2010)
(a) अन्धे आदमी के हाथ में लाठी देना
(b) अन्धे और लकड़ी का साथ–साथ होना
(c) अन्धा व्यक्ति लाठी चलाने में निपुण होता है
(d) असहाय का एकमात्र सहारा होना
उत्तर :
(d) असहाय का एकमात्र सहारा होना

2. आग में घी डालना (राजस्थान बी.एस.टी.सी./एन.टी.टी. 2010)
(a) यज्ञ करना
(b) मूल्यवान वस्तु को नष्ट करना
(c) किसी के क्रोध को भड़काना
(d) शुभ वस्तु पर अड़चन पड़ना
उत्तर :
(c) किसी के क्रोध को भड़काना

3. उँगली पर नचाना (उ.प्र. बी.एड. परीक्षा 2010)
(a) किसी की इच्छानसार चलना
(b) अपनी इच्छानुसार चलाना
(c) थोड़ा सा सहारा पाना
(d) आरोप लगाना
उत्तर :
(b) अपनी इच्छानुसार चलाना

4. उन्नीस–बीस होना (उ.प्र. बी.एड. परीक्षा 2011)
(a) अत्यधिक अन्तर होना
(b) एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना
(c) पक्षपात करना
(d) बाह्य समानता और आन्तरिक विषमता
उत्तर :
(b) एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना

5. दाँतों तले उँगली दबाना (उपनिरीक्षक भर्ती परीक्षा 2014/ उ.प्र. बी.एड. परीक्षा 2009/ एस.एस.सी. स्टेनोग्राफर ग्रेड सी/डी परीक्षा 2010)
(a) आश्चर्य करना
(b) हीनता प्रकट करना
(c) बहुत हैरान होना
(d) मुसीबत में पड़ना
उत्तर :
(a) आश्चर्य करना

6. ‘भई गति साँप छछंदर केरी’ (उ.प्र. बी.एड. परीक्षा 2011)
(a) शिकार की स्थिति
(b) आक्रामक स्थिति
(c) हास्यास्पद स्थिति
(d) असमंजस की स्थिति
उत्तर :
(c) हास्यास्पद स्थिति

7. ‘कठोर परिश्रम के बिना जीवन में सफलता नहीं मिलती’ इस सन्देश की व्यंजक उक्ति इनमें से है।
(a) बालू से तेल निकालना
(b) खोदा पहाड़ निकली चुहिया
(c) जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ
(d) नौ दिन चले अढ़ाई कोस
उत्तर :
(c) जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ

8. ‘विपत्ति के समय थोड़ी–सी सहायता भी बहुत बड़ी होती है’ इस भाव की व्यंजक पंक्ति है। (आर.पी.एस.सी. पुलिस सब–इंस्पेक्टर परीक्षा 2011)
(a) चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात
(b) आम के आम गुठलियों के दाम
(c) चुपड़ी और दो–दो
(d) डूबते को तिनके का सहारा
उत्तर :
(d) डूबते को तिनके का सहारा

9. ‘नाक पर सुपारी तोड़ना’ का अर्थ है (आर.पी.एस.सी. पुलिस सब–इंस्पेक्टर परीक्षा 2011)
(a) इज्जत उतार देना
(b) असम्भव कार्य करना
(c) बहुत परेशान करना
(d) घृणा प्रकट करना
उत्तर :
(c) बहुत परेशान करना

10. ‘मखमली जूते मारना’ का आशय है (आर.पी.एस.सी. पुलिस सब–इंस्पेक्टर परीक्षा 2011)
(a) व्यंग्य करना
(b) विद्वान् का अपमान करना
(c) सौम्य व्यक्ति को प्रताड़ित करना
(d) मधुर बातों से लज्जित करना
उत्तर :
(d) मधुर बातों से लज्जित करना

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