Gan Dhatu Roop In Sanskrit – गण धातु के रूप की परिभाषा, भेद और उदाहरण – (संस्कृत व्याकरण)

गण धातु के रूप – Gan Dhatu Roop In Sanskrit

गण धातु रूप: गण यह मूल में वैदिक शब्द था। वहाँ ‘गणपति’ और ‘गणनांगणपति’ शब्द प्रयोग में आए हैं। इस शब्द का सीधा अर्थ समूह था। देवगण, ऋषिगण पितृगण-इन समस्त पदों में यही अर्थ अभिप्रेषित है।

वैदिक मान्यता के अनुसार सृष्टि मूल में अव्यक्त स्रोत से प्रवृत्त हुई है। वह एक था, उस एक का बहुधा भाव या गण रूप में आना ही विश्व है। सृष्टिरचना के लिए गणतत्व की अनिवार्य आवश्यकता है। नानात्व से ही जगत् बनता है। बहुधा, नाना, गण इन सबका लक्ष्य अर्थ एक ही था। वैदिक सृष्टिविद्या के अनुसार मूलभूत एक प्राण सर्वप्रथम था, वह गणपति कहा गया। उसी से प्राणों के अनेक रूप प्रवृत्त हुए जो ऋषि, पितर, देव कहे गए। ये ही कई प्रकार के गण है। जो मूलभूत गणपति था वही पुराण की भाषा में गणेश कहा जाता है।

गण (=गिनना) – Gan (=Ginana, Count)

लट् लकार (वर्तमानकाल) – Lat Lakar (Present Tense)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष गणयति गणयतः गणयन्ति
मध्यम पुरुष गणयसि गणयथः गणयथ
उत्तम पुरुष गणयामि गणयावः गणयामः

लृट् लकार (सामान्य भविष्यत्काल) – Lrit Lakar (Normal Future Tense)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष गणयिष्यति गणयिष्तः गणयिष्यन्ति
मध्यम पुरुष गणयिष्यसि गणयिष्यथः गणयिष्यथ
उत्तम पुरुष गणयिष्यामि गणयिष्यावः गणयिष्यामः

लुङ् लकार (हतुहेतुमद्वि भष्यत्काल) – Lud Lakar (Help Past Tense)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष अगणयिष्यत् अगणयिष्यताम् अगणयिष्यत
मध्यम पुरुष अगणयिष्यः अगणयिष्यन् अगणयिष्याव
उत्तम पुरुष अगणयिष्यम् अगणयिष्यतम् अगणयिष्याम

लङ् लकार (अनद्यतन भूतकाल) – Lad Lakar Anadhatan (Past Tense)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष अगणयत् अगणयताम् अगणयन्
मध्यम पुरुष अगणयः अगणयतम् अगणयत
उत्तम पुरुष अगणयम् अगणयाव अगणयाम

लोट् लकार (आदेशवाचक) – Lot Lakar (Commander)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष गणयतु गणयताम् गणयन्तु
मध्यम पुरुष गणय गणयतम् गणयत
उत्तम पुरुष गणयानि गणयाव गणयाम

विधिलिङ् लकार (अनुज्ञावाचक) – Vidhilid Lakar (License)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष गणयेत् गणयेताम् गणयेयुः
मध्यम पुरुष गणयेः गणयेतम् गणयेत
उत्तम पुरुष गणयेयम् गणयेव गणयेम

गण धातु के रूप विशेष- ‘गण’ धातु के समान ही निम्नांकित धातुओं की रूपावलि भी चलती है

पाल + णिच् +पाल् + अय + तितिप्=पाल् + इ + तिपालयति (पालन करता है।)
पूज + णिच् + तिप्पूज + इ + तिपूज् + अय + तिपूजयति (पूजता है।)
रच् + णिच् + तिप्रच् + इ + तिरच् + अय + तिरचयति (रचना करता है।)
सूच + णिच् + तिप्सूच् + इ + तिसूचु + अय + तिसूचयति (सूचित करता है।)
दण्ड् + णि + तिपदण्ड् + इ + तिदण्ड् + अय + तिदण्डयति (दण्ड देता है।)

Leave a Comment