भाषा – भाषा की परिभाषा, राज्यभाषा, राष्ट्रभाषा, राजभाषा और इतिहास

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भाषा की परिभाषा – Bhasha Ki Paribhasha In Hindi

Bhasha Ki Paribhasha In Hindi

भाषा की परिभाषा: इतिहास अतीत को जानने का एक साधन है। किसी समाज या राष्ट्र के इतिहास के अध्ययन के द्वारा हम उस समाज या राष्ट्र के अतीत को जान सकते हैं। अतीत का तात्पर्य उस राष्ट्र की संस्कृति और सभ्यता से है। प्रत्येक देश अथवा राष्ट्र की अस्मिता की पहचान उसकी संस्कृति और सभ्यता से की जाती है।

Bhasha Kya Hai – भाषा क्या है (What is Language in Hindi?)

हिन्दी शब्द की व्युत्पत्ति

  • वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि किसी भी प्राचीन भारतीय भाषा में ‘हिन्दी’ शब्द उपलब्ध नहीं है।
  • वस्तुत: हमारी भाषा का नाम – ‘हिन्दी’ ईरानियों की देन है। संस्कृत की स् ध्वनि फ़ारसी में ह् बोली जाती है; जैसे-सप्ताह-हफ्ताह, असुर-अहुर, सिन्धु-हिन्दू आदि।
  • भारतवर्ष की पश्चिमी सीमा के लगभग जो इतिहास प्रसिद्ध सिन्धु नदी बहती है, उसे ईरानी हिन्दू या हिन्द कहते थे। कालान्तर में सिन्धु नदी के पार का सम्पूर्ण भू-भाग हिन्द कहा जाने लगा और हिन्द की भाषा हिन्दी कहलाई।
  • मध्यकालीन अरबी तथा फ़ारसी साहित्य में भारत की संस्कृत, पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के लिए जबान-ए-हिन्दी शब्द का प्रयोग मिलता है।
  • भारत में साहित्यिक भाषाओं-संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश से भिन्न जनसामान्य की भाषा के लिए भाषा या भाखा शब्द का प्रयोग होता था; जैसे-“संसकीरत है कूप जल भाखा बहता नीर’-कबीर; “लिखि भाखा चौपाई कहै”-जायसी; “भाखा भनित मोरि मति थोरी”—तुलसी; “भाखा बोल न जानहीं जिनके कुल के दास’-केशव इत्यादि।
  • कहा जाता है कि अमीर खुसरो (1253-1325 ई.) ने सबसे पहले भाषा या भाखा के स्थान पर हिन्दी या हिन्दवी शब्द का प्रयोग किया। खुसरो के ही समय में हिन्दी और हिन्दवी शब्द मध्यदेश की भाषा के अर्थ में प्रचलित हो गए।
  • अमीर खुसरो ने ग्यासुद्दीन तुगलक के बेटे को हिन्दी या हिन्दवी की शिक्षा देने के लिए खालिकबारी नामक फ़ारसी-हिन्दी कोश की रचना की। इस ग्रन्थ में भाषा के अर्थ में हिन्दवी शब्द 30 बार और हिन्दी शब्द 5 बार आया है। भाषा के लिए हिन्दी शब्द का प्राचीनतम् प्रयोग शरफुद्दीन के ज़फ़रनामा (1424 ई.) में मिलता है।

हिन्दी भाषा का प्रादुर्भाव

  • प्राचीन भारतीय आर्यभाषा का काल 1500 ई. पू. से 500 ई. पू. तक माना गया है। इस अवधि में संस्कृत बोलचाल की भाषा थी।
  • संस्कृत भाषा के दो रूप हैं-
    • वैदिक संस्कृत
    • लौकिक संस्कृत।
  • संस्कृतकालीन बोलचाल की भाषा कालान्तर में परिवर्तित होकर पालि के रूप में विकसित हुई। इसका समय 500 ई. पू. से पहली ई. तक है। पालि का मानक रूप बौद्ध साहित्य में उपलब्ध है। • कालान्तर में पहली ई. तक आते-आते पालि की बोलचाल की भाषा विकसित होती हुई, प्राकृत के रूप में आई। इस अवधि में शौरसेनी, पैशाची, ब्राचड़, महाराष्ट्री, मागधी और अर्द्धमागधी नामक क्षेत्रीय बोलियाँ विकसित हुईं।

Bhasha Ki Paribhasha In Hindi 1

  • आगे चलकर प्राकृत की विभिन्न बोलियाँ विकसित होती गईं, जो अपभ्रंश की बोलियों के रूप में प्रस्तुत हुईं। अपभ्रंश का समय 500 ई. से 1000 ई. तक माना गया है।
  • अपभ्रंश और पुरानी हिन्दी के मध्य का समय संक्रान्ति काल कहा गया है।
  • चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने राजा मुंज को पुरानी हिन्दी का प्रथम कवि माना है।
  • अपभ्रंश को रामचन्द्र शुक्ल ने प्राकृताभास तथा चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने पुरानी हिन्दी कहा है।
  • अपभ्रंश की उत्तरकालीन अवस्था ‘अवहट्ठ’ के नाम से जानी जाती है। अवहट्ठ में विद्यापति ने कीर्तिलता और कीर्तिपताका की रचना की है।
  • ‘दोहा’ (दूहा) मूलतः अपभ्रंश भाषा का ही छन्द है।

अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का विकास-

Bhasha Ki Paribhasha In Hindi 2

खड़ी बोली हिन्दी का विकास

खड़ी बोली हिन्दी का विकास मुख्य रूप से निम्न युगों में हुआ है-
(i) भारतेन्दु पूर्व युग

  • शुद्ध खड़ी बोली (हिन्दवी) के पुराने नमूने अमीर खुसरो और बन्दा नवाज़ गेसूदराज की रचनाओं में मिलते हैं।
  • हिन्दी का वास्तविक आरम्भ 1000 ई. से माना जाता है, तब से आज तक के समय को तीन कालों में विभाजित किया गया है-आदिकाल (1000 से 1400 ई. तक), मध्यकाल (1400 से 1800 ई. तक) और आधुनिक काल (1800 से अब तक)।
  • हिन्दी के विकास में सर्वप्रथम फोर्ट विलियम कॉलेज कलकत्ता का योगदान रहा है। इसके आचार्य जॉन गिलक्राइस्ट ने भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासकों को हिन्दी सिखाने के लिए उन्होंने एक व्याकरण और एक शब्द कोश की रचना की।
  • गिलक्राइस्ट की देख-रेख में अनेक पुस्तकों के अनुवाद और मौलिक रचनाएँ भी प्रकाशित हुईं। इसी सन्दर्भ में इंशा अल्ला खाँ, लल्लू लाल, सदल मिश्र और सदासुखलाल का योगदान अविस्मरणीय है।
  • इंशा अल्ला खाँ ने रानी केतकी की कहानी ठेठ बोलचाल की भाषा में लिखी। लल्लू लाल की 14 रचनाएँ बताई जाती हैं। प्रेमसागर उनकी प्रसिद्ध कृति है। सदल मिश्र ने नासिकेतोपाख्यान (1803 ई.), अध्यात्मरामायण और रामचरित्र की रचना की। सदासुखलाल ने अपने सहयोगियों की तुलना में कम लिखा है, सुखसागर इनकी प्रसिद्ध रचना है।
  • हिन्दी के विकास में पत्र-पत्रिकाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतेन्दु पूर्व काल में हिन्दी का पहला समाचार-पत्र उदंत मार्तण्ड (1826 ई.) कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। 1828 ई. में कलकत्ता से बंगदूत का प्रकाशन आरम्भ हुआ, जिसे 1829 ई. में सरकार ने बन्द करवा दिया।
  • राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने बनारस अखबार (1844 ई.) का प्रकाशन आरम्भ किया, इसकी भाषा हिन्दुस्तानी थी। इसकी उर्दू शैली के विरोध में सुधाकर पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ। इसी क्रम में कलकत्ता से समाचार सुधावर्षण (1854 ई.) नामक दैनिक का प्रकाशन आरम्भ हुआ। पंजाब से नवीनचन्द्र राय ने ज्ञान प्रकाशिनी पत्रिका निकाली।
  • राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द’ ने विद्यालयों के लिए अनेक पाठ्य-पुस्तकों की रचना करके हिन्दी के विकास और प्रचार में योगदान दिया। राजा लक्ष्मण सिंह ने 1861 ई. में आगरा से प्रजाहितैषी नामक समाचार-पत्र प्रकाशित किया। इन्होंने संस्कृत गर्भित शुद्ध हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया।
  • ‘राजा लक्ष्मण सिंह’ ने ‘शकुन्तला नाटक’ का अनुवाद संस्कृत से खड़ी बोली में किया।
  • ईसाई पादरियों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए हिन्दी को माध्यम बनाया, इससे हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बड़ी सहायता मिली।
  • 1817 ई. में कलकत्ता बुक सोसायटी और 1833 ई. के लगभग आगरा स्कूल बुक सोसायटी की स्थापना हुई। इससे विभिन्न विषयों की पुस्तकों का प्रकाशन हुआ।

(ii) भारतेन्दु युग

  • भारतेन्दु को आधुनिकता का प्रवर्तक साहित्यकार माना जाता है। इन्होंने हिन्दी की विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन किया। 1850 ई. से 1900 ई. तक की अवधि को भारतेन्दु युग कहते हैं।
  • भारतेन्दु ने राजा शिवप्रसाद ‘सितारे हिन्द’ की अरबी, फ़ारसी प्रधान हिन्दी और राजा लक्ष्मण सिंह की संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के बीच का मार्ग निकाला, हिन्दी खड़ी बोली के विकास में भारतेन्दु जी का योगदान हरिश्चन्द्र मैगज़ीन (1873 ई.), हरिश्चन्द्र चन्द्रिका और बालाबोधिनी (1874 ई.) पत्रिकाओं के निबन्धों में द्रष्टव्य है।
  • भारतेन्दु मण्डल के रचनाकारों का मूलस्वर नवजागरण है। इसके प्रमुख रचनाकार हैं-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, पं. प्रताप नारायण मिश्र, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, बालकृष्ण भट्ट, अम्बिका दत्त व्यास, राधाचरण गोस्वामी, ठा. जगमोहन सिंह, लाला श्रीनिवास दास, सुधाकर द्विवेदी, राधाकृष्ण आदि।
  • हिन्दी के विकास में काशीनागरी प्रचारिणी सभा (1893 ई.) और इण्डियन प्रेस प्रयाग का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। नागरी प्रचारिणी सभा की प्रेरणा से इण्डियन प्रेस प्रयाग द्वारा जून, 1900 में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ हुआ। इसके प्रथम सम्पादक चिन्तामणि घोष थे।

(iii) द्विवेदी युग

  • पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी वर्ष 1903 में सरस्वती पत्रिका के सम्पादक नियुक्त हुए। सरस्वती पत्रिका को बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक चरण का विश्वकोश कहा गया है।
  • वर्ष 1900 से 1920 तक की अवधि को द्विवेदी युग कहा जाता है। इस युग को डॉ. नगेन्द्र ने जागरण सुधार काल कहा है।
  • पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरल और शुद्ध भाषा के प्रयोग पर विशेष बल दिया। वे लेखकों/कवियों की रचनाओं की वर्तनी और व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियों को स्वयं संशोधित कर देते थे और उन्हें शुद्ध लिखने हेतु प्रेरित करते थे।
  • द्विवेदी युग के प्रमुख कवि-मैथिलीशरण गुप्त, रामचरित उपाध्याय, अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, नाथूराम शर्मा ‘शंकर’, सियारामशरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी, जगन्नाथ दास रत्नाकर, राय देवी प्रसाद पूर्ण, गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’, रामनरेश त्रिपाठी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ इत्यादि हैं।

(iv) छायावाद युग

  • छायावाद युग (वर्ष 1918 से 1936) को हिन्दी साहित्य में भक्ति काव्य के बाद स्थान दिया जाता है। छायावादी काव्य में प्रसाद जी ने यदि प्रकृति को मिलाया, निराला ने मुक्तक छन्द दिया, पन्त जी ने शब्दों को सरस बनाया, तो महादेवी ने उसमें प्राण डाले।
  • छायावाद युग में माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, सुभद्राकुमारी चौहान, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, सोहनलाल द्विवेदी, सियारामशरण गुप्त, श्यामनारायण पाण्डेय, गुरुभक्त सिंह इत्यादि ने अन्य काव्य प्रवृत्तियों में साहित्य सृजन करके हिन्दी को समृद्ध किया।

(v) प्रगतिवाद युग

  • हिन्दी साहित्य में वर्ष 1936 से 1942 तक की अवधि को प्रगतिवाद के नाम से जाना जाता है। प्रगतिवाद के आदि प्रवर्तक कार्ल मार्क्स हैं। राजनीति में जो मार्क्सवाद है, साहित्य में वही प्रगतिवाद है।
  • प्रगतिवादी कवियों में सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, त्रिलोचन शास्त्री, रांगेय राघव, शिवमंगल सिंह सुमन, डॉ. रामविलास शर्मा आदि हैं।

(vi) प्रयोगवाद युग

  • प्रयोगवाद शब्द का प्रचलन अज्ञेय द्वारा सम्पादित तारसप्तक से माना जाता है। अज्ञेय ने तारसप्तक के कवियों को ‘राहों का अन्वेषी’ कहा है। प्रयोगवाद सबसे अधिक अस्तित्ववाद से प्रभावित है। समकालीन समीक्षा में अज्ञेय को अस्तित्ववादी घोषित किया गया है।
  • नई कविता के प्रमुख तत्त्व अनुभूति की सच्चाई और बुद्धिमूलक यथार्थवादी दृष्टि है। नई कविता पत्रिका का प्रकाशन वर्ष 1954 में इलाहाबाद से हुआ। इसके सम्पादक डॉ. जगदीश गुप्त थे।
  • हिन्दी हमारे देश की समृद्ध भाषा है। इसमें साहित्य की सभी विधाओं- नाटक, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, आत्मकथा, जीवनी, रिपोर्ताज, यात्रा-साहित्य, पत्र-साहित्य इत्यादि में साहित्य सृजन हो
    रहा है।
  • दक्षिण में राष्ट्रकूटों और यादवों का राज्य स्थापित होने पर वहाँ हिन्दी का खूब प्रचार-प्रसार हुआ। मुस्लिम साम्राज्य के विस्तार के साथ ही हिन्दी भाषा आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रदेशों में प्रसारित हुई। स्वाधीनता संग्राम आन्दोलन की भाषा हिन्दी होने से हिन्दी का पूरे देश में व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ।

हिन्दी के विकास से सम्बन्धित संस्थाएँ
Bhasha Ki Paribhasha In Hindi 3

राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास

  • जिस भाषा में शासन का कामकाज सम्पादित होता है, उसे राजभाषा कहते हैं। अशोक के समय में पालि राजभाषा थी।
  • राजस्थान में ग्यारहवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य पुरावलेखों से पता चलता है कि उस समय हिन्दी मिश्रित संस्कृत राजभाषा थी।
  • मुहम्मद गोरी से लेकर अकबर तक हिन्दी राजभाषा थी। अकबर के शासनकाल में मन्त्री टोडरमल के आदेश से फ़ारसी राजभाषा घोषित की गई।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1833 ई. तक फ़ारसी को राजभाषा बनाए रखा।
  • ब्रिटिश शासन में लॉर्ड मैकॉले के प्रयास से अंग्रेज़ी राजभाषा के पद पर सुशोभित हुई।
  • राष्ट्रीय चेतना के विकास के साथ ही हिन्दी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा बनाने की जोरदार माँग उठी।
  • पं. मदनमोहन मालवीय के सतत प्रयत्नों से वर्ष 1901 में संयुक्त प्रान्त की कचहरी की भाषा के रूप में हिन्दी को उर्दू के समान अधिकार मिला।
  • भारतवर्ष के लिए हिन्दी भाषा का नाम सबसे पहले पं. ‘मदनमोहन मालवीय ने सुझाया।
  • संविधान सभा में हिन्दी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव गोपाल स्वामी आयंगर ने प्रस्तुत किया। भारतीय संविधान में हिन्दी को 14 सितम्बर, 1949 को मान्यता प्रदान की गई। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार, संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है।
  • संविधान के अनुच्छेद 344 में राजभाषा सम्बन्धी आयोग और संसद की समिति का उल्लेख है। संविधान के अनुच्छेद 344(1) के अनुसार, राष्ट्रपति ने 7 जून, 1955 को राजभाषा आयोग के गठन का आदेश जारी किया।
  • संविधान के अनुच्छेद 344(4) के अनुसार, राजभाषा आयोग की सिफारिशों की जाँच के लिए एक समिति गठित की गई, जिसमें लोकसभा के 20 तथा राज्यसभा के 10, इस प्रकार कुल 30 सदस्य थे।
  • राजभाषा आयोग के प्रथम अध्यक्ष बाल गंगाधर खरे थे। आयोग की प्रथम बैठक 15 जुलाई, 1955 को हुई थी।
  • संविधान का अनुच्छेद 345 राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं में किसी एक या अनेक या हिन्दी को शासकीय प्रयोजनों के लिए अंगीकृत करने से सम्बन्धित है।
  • संविधान के अनुच्छेद 346 के अनुसार एक राज्य तथा दूसरे राज्य के मध्य तथा राज्य व संघ के मध्य संचार की भाषा वही होगी, जो उस समय संघ की राजभाषा होगी।
  • संविधान के अनुच्छेद 347 में किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में विशेष उपबन्ध उल्लिखित हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा का उल्लेख है।
  • संविधान के अनुच्छेद 349 में भाषा सम्बन्धी विधियों के अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया का उल्लेख हुआ है।
  • संविधान के अनुच्छेद 350 में शिकायतों को दूर करने के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा का उल्लेख हुआ है।
  • संविधान के अनुच्छेद 350(क) में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाओं का उल्लेख हुआ है।
  • संविधान के अनुच्छेद 350(ख) में भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए राष्ट्रपति द्वारा विशेष अधिकारी की नियुक्ति का उल्लेख हुआ है।
  • संविधान की अष्टम सूची [अनुच्छेद 344 (1) और 351] में 22 भाषाएँ सम्मिलित हैं।

राजभाषा के विकास से सम्बन्धित संस्थाएँ
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अष्टम सूची में सम्मिलित 22 भाषाएँ

  1. आरम्भ में 14 भाषाओं को इस सूची में सम्मिलित किया गया, जो निम्न हैं-
    • असमिया
    • बांग्ला
    • गुजराती
    • हिन्दी
    • कन्नड़
    • कश्मीरी
    • मलयालम
    • मराठी
    • उड़िया
    • पंजाबी
    • संस्कृत
    • तमिल
    • तेलुगू
    • उर्दू।
  2. 21वें संशोधन के अन्तर्गत वर्ष 1967 में सिन्धी भाषा
    • को शामिल किया गया। 71वें संशोधन के अन्तर्गत वर्ष 1992 में कोंकणी
    • मणिपुरी
    • नेपाली
    • भाषाओं को शामिल किया गया। 92वें संशोधन के अन्तर्गत वर्ष 2003 में बोडो
    • डोगरी
    • मैथिली
    • संथाली
    • भाषाओं को शामिल किया गया।
  3. संविधान के अनुच्छेद 351 में हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेशों का उल्लेख है। भारत की राजभाषा हिन्दी एवं अंग्रेज़ी दोनों हैं, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 120 की धारा 1 भाग 17 के अनुसार अनुच्छेद 348 के उपबन्धों के अधीन संसद का कार्य हिन्दी या अंग्रेज़ी में किया जाता है। संविधान में आश्वासन दिया गया था कि वर्ष 1965 से सारा कामकाज हिन्दी में होगा, परन्तु सरकारी नीतियों के कारण ऐसा न हो सका। वर्ष 1963 और वर्ष 1967 में राजभाषा अधिनियम द्वारा हिन्दी के साथ ही अंग्रेज़ी को सदा के लिए राजभाषा बना दिया गया।

हिन्दी की उपभाषाएँ, बोलियाँ और उनके क्षेत्र पश्चिमी क्षेत्र में हिन्दी की पाँच बोलियाँ

पश्चिमी क्षेत्र में हिन्दी की पाँच बोलियाँ निम्नलिखित हैं-

(i) खड़ी बोली/कौरवी का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है। इसका क्षेत्र देहरादून का मैदानी भाग, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, दिल्ली का कुछ भाग, बिजनौर, रामपुर तथा मुरादाबाद हैं। खड़ी बोली के लिए सुनीतिकुमार चटर्जी ने जनपदीय हिन्दुस्तानी शब्द का प्रयोग किया है। खड़ी बोली आकार बहुला है।

(ii) ब्रजभाषा का विकास शौरसेनी अपभ्रंश के मध्यवर्ती रूप से हुआ है। यह आगरा, मथुरा, अलीगढ़, धौलपुर, मैनपुरी, एटा, बदायूँ, बरेली तथा उनके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती हैं। ब्रजभाषा साहित्य और लोक साहित्य दोनों दृष्टियों से बहुत सम्पन्न है। यह कृष्ण भक्ति की एकमात्र भाषा है। लगभग सारा रीतिकालीन साहित्य ब्रजभाषा में लिखा गया है। साहित्यिक दृष्टि से यह हिन्दी भाषा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बोली है।

साहित्यिक महत्त्व के कारण ही इसे ब्रजबोली नहीं, ब्रजभाषा कहा जाता है। सूरदास, नन्ददास, रहीम, रसखान, बिहारी, मतिराम, भूषण, देव, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ इत्यादि ब्रजभाषा के अमर कवि हैं। साथ ही, तुलसीदास जी ने भी अपनी कुछ रचनाएँ ब्रजभाषा में की हैं; जैसे–कवितावली, विनयपत्रिका आदि। ब्रजभाषा देश के बाहर ताज्जुबेकिस्तान में बोली जाती है, जिसे ताज्जुबेकी ब्रजभाषा कहा जाता है।

(iii) बाँगरू या हरियाणी का विकास उत्तरी शौरसेनी अपभ्रंश के पश्चिमी रूप से हुआ है। इसका क्षेत्र हरियाणा तथा दिल्ली का देहाती भाग है। हरियाणी भाषा आकार बहुला है।
(iv) बुन्देली का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। इसका क्षेत्र झाँसी, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, ओरछा, सागर, नरसिंहपुर, सिवनी, होशंगाबाद तथा उनके आस-पास के क्षेत्र हैं। बुन्देली भाषा ओकार बहुला है।
(v) कन्नौजी का भी विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। इसके क्षेत्र इटावा, फर्रुखाबाद, शाहजहाँपुर, कानपुर, हरदोई, पीलीभीत हैं। कन्नौजी भाषा ओकार बहुला है।

पूर्वी क्षेत्र में हिन्दी की तीन बोलियाँ पूर्वी क्षेत्र में हिन्दी की तीन बोलियाँ निम्नलिखित हैं-

(i) अवधी का उद्भव अर्द्धमागधी अपभ्रंश से हुआ है। इसके क्षेत्र लखनऊ, इलाहाबाद, फतेहपुर, मिर्जापुर (अंशतः), उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, खीरी, फैजाबाद, गोण्डा, बस्ती, बहराइच, बाराबंकी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ आदि हैं।

अवधी में साहित्य तथा लोक साहित्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। प्रबन्ध काव्य परम्परा का विकास विशेष रूप से अवधी में ही हुआ है। सूफी काव्य तथा रामभक्ति काव्य की रचना अवधी में हुई है। मुल्ला दाऊद, कुतुबन, मंझन, जायसी, तुलसीदास, नारायणदास, जगजीवन साहब, रघुनाथ दास, राम सनेही आदि इसके सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। अवधी में लिखा गया सर्वप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘रामचरित मानस’ है। भारत के बाहर फिज़ी में अवधी बोलने वालों की संख्या अच्छी खासी है।

(ii) बघेली का उद्भव अर्द्धमागधी अपभ्रंश के ही एक क्षेत्रीय रूप से हुआ है। इसके क्षेत्र रीवा, सतना, शहडोल, मैहर और उसके आस-पास हैं।
(iii) छत्तीसगढ़ी का उद्भव अर्धमागधी अपभ्रंश के दक्षिणी रूप से हुआ है। इसके क्षेत्र सरगुजा, कोरबा, बिलासपुर, रायगढ़, खैरागढ़, रायपुर, दुर्ग, राजनन्दगाँव, कांकेर आदि हैं।

राजस्थानी क्षेत्र में हिन्दी की चार बोलियाँ राजस्थानी क्षेत्र में हिन्दी की चार बोलियाँ निम्नलिखित हैं

  1. पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी) का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। इसके क्षेत्र जोधपुर, मेवाड़, सिरोही, जैसलमेर, बीकानेर आदि हैं।
  2. पूर्वी राजस्थानी (जयपुरी या ढूँढाड़ी) इसके क्षेत्र जयपुर, अजमेर, किशनगढ़ आदि हैं।
  3. उत्तरी राजस्थानी (मेवाती) यह अलवर, गुड़गाँव, भरतपुर तथा उसके आस-पास बोली जाती है। इसकी एक मिश्रित बोली अहीरवाटी है, जो गुड़गाँव, दिल्ली तथा करनाल के पश्चिमी क्षेत्रों में बोली जाती है।
  4. दक्षिणी राजस्थानी (मालवी) यह इन्दौर, उज्जैन, देवास, रतलाम, भोपाल, होशंगाबाद तथा उसके आस-पास बोली जाती हैं।

पहाड़ी क्षेत्र में हिन्दी की दो बोलियाँ
पहाड़ी क्षेत्र में हिन्दी की बोलियाँ निम्न दो भागों में विभाजित हैं-

  • पश्चिमी पहाड़ी जौनसार, सिरमौर, शिमला, मण्डी, चम्बा के आस-पास क्षेत्र में बोली जाती हैं,
  • मध्यवर्ती पहाड़ी कुमाऊँनी तथा गढ़वाली क्रमशः कुमाऊँ, गढ़वाल (उत्तराखण्ड) क्षेत्र में बोली जाती है।

बिहार क्षेत्र में हिन्दी की तीन बोलियाँ बिहार क्षेत्र में हिन्दी की तीन बोलियाँ निम्नलिखित हैं

  1. मगही मागधी अपभ्रंश से विकसित हुई है। यह पटना, गया, पलामू, हजारीबाग, मुंगेर, भागलपुर और इसके आस-पास बोली जाती हैं।
  2. भोजपुरी मागधी अपभ्रंश के पश्चिमी रूप से विकसित हुई है। इसके क्षेत्र बनारस, जौनपुर, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, बस्ती, शाहाबाद, चम्पारण, सारन तथा उसके आस-पास हैं। हिन्दी क्षेत्र की बोलियों में भोजपुरी बोलने वाले सर्वाधिक हैं। भोजपुरी हिन्दी की वह बोली है, जिसमें सर्वाधिक फिल्में बनी हैं। वर्तमान में दूरदर्शन द्वारा इसके अनेक धारावाहिक प्रसारित हो रहे हैं। भोजपुरी अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की बोली है, भारत के बाहर सूरीनाम, फिजी, मॉरिशस, गुयाना, त्रिनिदाद में इस बोली का प्रसार है। भोजपुरी में लिखित साहित्य नगण्य है। इसके रचनाकार भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर, भोजपुरी का भारतेन्दु कहा जाता है।
  3. मैथिली मागधी अपभ्रंश के मध्यवर्ती रूप से विकसित हुई है। इसके क्षेत्र दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, मुंगेर और इसके आस-पास हैं। मगही तथा मैथिली लोक साहित्य की दृष्टि से बहुत सम्पन्न भाषाएँ हैं। मैथिली में साहित्य रचना प्राचीनकाल से होती आई है। विद्यापति. ने मैथिली को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया। इसके अतिरिक्त. नागार्जुन, गोविन्द दास, रणजीत लाल, हरिमोहन झा, राजकमल चौधरी ‘स्वरगंधा’ मैथिली के प्रमुख साहित्यकार हैं।

हिन्दी भाषा की लिपि

  • भारत में लिपि की प्राचीनता का सबसे पुष्ट प्रमाण सिन्धु घाटी की सभ्यता में मिलता है। नागरी अथवा देवनागरी का सर्वप्रथम उल्लेख आठवीं सदी के गुजराती राजा जयभट्ट के लेख में मिलता है। देवनागरी हिन्दी भाषा की लिपि है।
  • प्राचीन भारतीय लिपियों में ब्राह्मी लिपि सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। इसके प्राचीनतम नमूने बस्ती जिले के पिपरावा के स्तूप तथा अजमेर जिले के बड़ली गाँव में प्राप्त शिलालेखों में मिलते हैं। हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
  • डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी ने भारतीय भाषाओं के लिए देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि का प्रस्ताव किया था। इसी प्रकार अबुल कलाम आजाद ने हिन्दी भाषा के लिए रोमन लिपि का समर्थन किया था। देवनागरी में सुधारों का आरम्भिक प्रयत्न महादेव गोविन्द रानाडे ने किया।

हिन्दी का अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप-

  • हिन्दी विश्व की महान् भाषाओं में से एक है। जनसंख्या की दृष्टि से चीनी और अंग्रेजी के बाद इस समय संसार में हिन्दी बोलने वालों की संख्या सर्वाधिक है।
  • सोवियत संघ, अमेरिका, जापान, इंग्लैण्ड, पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, रूमानिया, फ्रांस, अफ्रीका इत्यादि देशों में अन्य भाषा के रूप में हिन्दी अध्यापन के प्रति रुचि बढ़ रही है। मॉरिशस के अभिमन्यु अनन्त ने चौदह उपन्यास और लगभग दो सौ कहानियों की रचना की है। इनके उपन्यासों में लाल पसीना (1977) सर्वश्रेष्ठ है। अभिमन्यु अनन्त को मॉरिशस का प्रेमचन्द कहा जाता है।
  • फिज़ी, मॉरिशस, नेपाल, सूरीनाम, त्रिनिदाद, म्यांमार आदि देशों में हिन्दी की अनेक पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही हैं। म्यांमार में ब्रह्मदेश नामक पत्रिका विगत कई वर्षों से प्रकाशित हो रही है। फिज़ी सरकार का सूचना विभाग शंख नामक पत्रिका का प्रकाशन कर रहा है।
  • फिज़ी में जोगिन्दर सिंह कम्बल को फिज़ी का प्रेमचन्द कहा जाता है। इन्होंने सबेरा (वर्ष 1976), धरती मेरी माता (वर्ष 1978), करवट (वर्ष 1979) आदि उपन्यास और इन्सान जाग उठा (वर्ष 1959), देखो वे दीप (वर्ष 1960), आजादी की किरणें (वर्ष 1970), हीर राँझा (वर्ष 1971) आदि श्रेष्ठ नाटकों की रचना की है।

विश्व हिन्दी सम्मेलन
Bhasha Ki Paribhasha In Hindi 5
विश्व हिन्दी सम्मेलन का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाना और हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना है। अब तक निम्नलिखित सम्मेलन सम्पन्न हुए हैं

भाषा की परिभाषा वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली

1. मध्यकालीन अरबी तथा फ़ारसी साहित्य में भारत की भाषाओं के लिए किस शब्द का प्रयोग मिलता है?
(a) रेख्ता
(b) दूहा
(c) जबान-ए-हिन्द
(d) हिन्दी
उत्तर :
(c) जबान-ए-हिन्द

2. ‘खालिकबारी’ किसकी रचना है? (यू.जी.सी. नेट/जे. आर. एफ. जून 2009)
(a) खालिक खलक
(b) रहीम
(c) अमीर खुसरो
(d) अकबर
उत्तर :
(c) अमीर खुसरो

3. खड़ी बोली हिन्दी में सर्वप्रथम रचना करने वाले कवि का नाम है (टी.जी.टी. परीक्षा 2001)
(a) जायसी
(b) अमीर खुसरो
(c) विद्यापति
(d) भारतेन्दु
उत्तर :
(b) अमीर खुसरो

4. हिन्दी के उद्भव का सही क्रम है
(a) पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्ठ
(b) प्राकृत, पालि, अवहट्ठ, अपभ्रंश
(c) अपभ्रंश, प्राकृत, अवहट्ठ, पालि
(d) अवहट्ठ, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश
उत्तर :
(a) पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्ठ

5. अपभ्रंश को ‘पुरानी हिन्दी’ किसने कहा है?
(a) ग्रियर्सन
(b) श्यामसुन्दर दास
(c) चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
(d) भारतेन्दु
उत्तर :
(c) चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

6. साहित्यिक अपभ्रंश को पुरानी हिन्दी किसने कहा था? (यू.जी.सी. नेट/जे.आर.एफ. दिसम्बर 2010)
(a) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(b) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(c) शिवसिंह सेंगर
(d) राहुल सांकृत्यायन
उत्तर :
(a) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

7. अपभ्रंश की उत्तरकालीन अवस्था का नाम है-
(a) पालि
(b) प्राकृत
(c) संस्कृत
(d) अवहट्ठ
उत्तर :
(d) अवहट्ठ

8. शौरसेनी अपभ्रंश से किस उपभाषा का विकास हुआ?
(a) बिहारी
(b) राजस्थानी
(c) बांग्ला
(d) पंजाबी
उत्तर :
(b) राजस्थानी

9. अपभ्रंश और पुरानी हिन्दी के मध्य का समय कहा जाता है-
(a) उत्कर्ष काल
(b) अवसान काल
(c) संक्रान्ति काल
(d) प्राकृत काल
उत्तर :
(c) संक्रान्ति काल

10. चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने किसको पुरानी हिन्दी का प्रथम कवि माना है?
(a) सरहपाद
(b) स्वयंभू (टी.जी.टी. परीक्षा 2003)
(c) राजामुंज
(d) पुष्पदन्त
उत्तर :
(c) राजामुंज

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