Paryayvachi Shabd (पर्यायवाची शब्द) Synonyms in Hindi, समानार्थी शब्द

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Hindi के Paryayvachi Shabd – Hindi Paryayvachi Shabd

paryayvachi shabd 1

पर्यायवाची शब्द का hindi mein या अर्थ है समान अर्थ वाले शब्द। पर्यायवाची शब्द किसी भी भाषा की सबलता की बहुता को दर्शाता है। जिस भाषा में जितने अधिक पर्यायवाची शब्द होंगे, वह उतनी ही सबल व सशक्त भाषा होगी। इस दृष्टि से संस्कृत सर्वाधिक सम्पन्न भाषा है। भाषा में पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग से पूर्ण अभिव्यक्ति की क्षमता आती है।

पर्याय का अर्थ है-समान। अतः समान अर्थ व्यक्त करने वाले शब्दों को पर्यायवाची शब्द (Synonym words) कहते हैं। इन्हें प्रतिशब्द या समानार्थक शब्द भी कहा जाता है। व्यवहार में पर्याय या पर्यायवाची शब्द ही अधिक प्रचलित हैं। विद्यार्थियों के अध्ययन हेतु पर्यायवाची शब्दों की सूची प्रस्तुत है-

More than 10 Paryayvachi Shabd in Hindi

शब्द –  पर्यायवाची शब्द

(अ)

अंक – संख्या, गिनती, क्रमांक, निशान, चिह्न, छाप।
अंकुर – कोंपल, अँखुवा, कल्ला, नवोद्भिद्, कलिका, गाभा
अंकुश – प्रतिबन्ध, रोक, दबाव, रुकावट, नियन्त्रण।
अंग – अवयव, अंश, काया, हिस्सा, भाग, खण्ड, उपांश, घटक, टुकड़ा, तन, कलेवर, शरीर, देह।
‘अग्नि – आग, अनल, पावक, जातवेद, कृशानु, वैश्वानर, हुताशन, रोहिताश्व, वायुसखा, हव्यवाहन, दहन, अरुण।
अंचल – पल्लू, छोर, क्षेत्र, अंत, प्रदेश, आँचल, किनारा।
अचानक – अकस्मात, अनायास, एकाएक, दैवयोगा।
अटल – अडिग, स्थिर, पक्का, दृढ़, अचल, निश्चल, गिरि, शैल, नग।
अठखेली – कौतुक, क्रीड़ा, खेल–कूद, चुलबुलापन, उछल–कूद, हँसी–मज़ाक।
अमृत – अमिय, पीयूष, अमी, मधु, सोम, सुधा, सुरभोग, जीवनोदक, शुभा।
अयोग्य – अनर्ह, योग्यताहीन, नालायक, नाकाबिल।
अभिप्राय – प्रयोजन, आशय, तात्पर्य, मतलब, अर्थ, मंतव्य, मंशा, उद्देश्य, विचार
अर्जुन – भारत, गुडाकेश, पार्थ, सहस्रार्जुन, धनंजय।
अवज्ञा – अनादर, तिरस्कार, अवमानना, अपमान, अवहेलना, तौहीन।
अश्व – घोड़ा, तुरंग, हय, बाजि, सैन्धव, घोटक, बछेड़ा, रविसुत, अर्दा
असुर – रजनीचर, निशाचर, दानव, दैत्य, राक्षस, दनुज, यातुधान, तमीचर।
अवरोध – रुकावट, विघ्न, व्यवधान, अरुंगा।
अतिथि – मेहमान, पहुना, अभ्यागत, रिश्तेदार, नातेदार, आगन्तुका.
अतीत – पूर्वकाल, भूतकाल, विगत, गत।
अनाज – अन्न, शस्य, धान्य, गल्ला, खाद्यान्न।
अनाड़ी – अनजान, अनभिज्ञ, अज्ञानी, अकुशल, अदक्ष, अपटु, मूर्ख, अल्पज्ञ, नौसिखिया।
अनार – सुनील, वल्कफल, मणिबीज, बीदाना, दाडिम, रामबीज, शुकप्रिय।
अनिष्ट – बुरा, अपकार, अहित, नुकसान, हानि, अमंगल।
अनुकम्पा – दया, कृपा, करम, मेहरबानी।
अनुपम – सुन्दर, अतुल, अपूर्व, अद्वितीय, अनोखा, अप्रतिम, अद्भुत, अनूठा, विलक्षण, विचित्र।
अनुसरण – नकल, अनुकृत, अनुगमन।
अपमान – अनादर, उपेक्षा, निरादर, बेइज्जती, अवज्ञा, तिरस्कार, अवमाना।
अप्सरा – परी, देवकन्या, अरुणप्रिया, सुखवनिता, देवांगना, दिव्यांगना, देवबाला।
अभय – निडर, साहसी, निर्भीक, निर्भय, निश्चिन्त।
अभिजात – कुलीन, सुजात, खानदानी, उच्च, पूज्य, श्रेष्ठ।
अभिज्ञ – जानकार, विज्ञ, परिचित, ज्ञाता।
अभिमान – गौरव, गर्व, नाज, घमंड, दर्प, स्वाभिमान, अस्मिता, अहं, अहंकार, अहमिका, मान, मिथ्याभिमान, दंभ।
अभियोग – दोषारोपण, कसूर, अपराध, गलती, आक्षेप, आरोप, दोषारोपण, इल्ज़ामा।
अभिलाषा – कामना, मनोरथ, इच्छा, आकांक्षा, ईहा, ईप्सा, चाह, लालसा, मनोकामना।
अभ्यास – रियाज़, पुनरावृत्ति, दोहराना, मश्क।
अमर – मृत्युंजय, अविनाशी, अनश्वर, अक्षर, अक्षय।
अमीर – धनी, धनाढ्य, सम्पन्न, धनवान, पैसेवाला।
अनन्त – असंख्य, अपरिमित, अगणित, बेशुमार।
अनभिज्ञ – अज्ञानी, मूर्ख, मूढ़, अबोध, नासमझ, अल्पज्ञ, अदक्ष, अपटु, अकुशल, अनजान।
अगुआ – अग्रणी, सरदार, मुखिया, प्रधान, नायक।
अधर – रदच्छद, रदपुट, होंठ, ओष्ठ, लब।
अध्यापक – आचार्य, शिक्षक, गुरु, व्याख्याता, अवबोधक, अनुदेशक।
अंधकार – तम, तिमिर, ध्वान्त, अँधियारा, तिमिस्रा।
अनुरूप – अनुकूल, संगत, अनुसार, मुआफिक
अन्तःपुर – रनिवास, भोगपुर, जनानखाना।
अदृश्य – अन्तर्ध्यान, तिरोहित, ओझल, लुप्त, गायब।
अकाल – भुखमरी, कुकाल, दुष्काल, दुर्भिक्षा।
अशुद्ध – दूषित, गंदा, अपवित्र, अशुचि, नापाका।
असभ्य – अभद्र, अविनीत, अशिष्ट, गँवार, उजड्ड।
अधम – नीच, निकृष्ट, पतित।
अपकीर्ति – अपयश, बदनामी, निंदा, अकीर्ति।
अध्ययन – अनुशीलन, पारायण, पठनपाठन, पढ़ना।
अनुरोध – अभ्यर्थना, प्रार्थना, विनती, याचना, निवेदन।
अखण्ड – पूर्ण, समस्त, सम्पूर्ण, अविभक्त, समूचा, पूरा।
अपराधी – मुजरिम, दोषी, कसूरवार, सदोष।
अधीन – आश्रित, मातहत, निर्भर, पराश्रित, पराधीन।
अनुचित – नाजायज़, गैरवाजिब, बेजा, अनुपयुक्त, अयुत।
अन्वेषण – अनुसन्धान, गवेषण, खोज, जाँच, शोध।
अमूल्य – अनमोल, बहुमूल्य, मूल्यवान, बेशकीमती।
अज – ब्रह्मा, ईश्वर, दशरथ के जनक, बकरा।
अंधा – नेत्रहीन, सूरदास, अंध, चक्षुविहीन, प्रज्ञाचक्षु।
अनुवाद – भाषांतर, उल्था, तर्जुमा।
अरण्य – जंगल, कान्तार, विपिन, वन, कानन।
अवनति – अपकर्ष, गिराव, गिरावट, घटाव, ह्रास।
अश्लील – अभद्र, अधिभ्रष्ट, निर्लज्ज बेशर्म, असभ्य।
आकुल – व्यग्र, बेचैन, क्षुब्ध, बेकल।
आकृति – आकार, चेहरा–मोहरा, नैन–नक्श, डील–डौला
आदर्श – प्रतिरूप, प्रतिमान, मानक, नमूना।
आलसी – निठल्ला, बैठा–ठाला, ठलुआ, सस्त, निकम्मा, काहिला
आयुष्मान् – चिरायु, दीर्घायु, शतायु, दीर्घजीवी, चिरंजीव।
आज्ञा – आदेश, निदेश, फ़रमान, हुक्म, अनुमति, मंजूरी, स्वीकृति, सहमति, इजाज़ता
आश्रय – सहारा, आधार, भरोसा, अवलम्ब, प्रश्रय।
आख्यान – कहानी, वृत्तांत, कथा, किस्सा, इतिवृत्ता
आधुनिक – अर्वाचीन, नूतन, नव्य, वर्तमानकालीन, नवीन, अधुनातन।
आवेग – तेज़ी, स्फूर्ति, जोश, त्वरा, तीव्र, फुरती, चपलता।
आलोचना – समीक्षा, टीका, टिप्पणी, नुक्ताचीनी, समालोचना।
आरम्भ – श्रीगणेश, शुरुआत, सूत्रपात, प्रारम्भ, उपक्रम।
आवश्यक – अनिवार्य, अपरिहार्य, ज़रूरी, बाध्यकारी।
आदि – पहला, प्रथम, आरम्भिक, आदिमा
आपत्ति – विपदा, मुसीबत, आपदा, विपत्ति।
आकाश – नभ, अम्बर, अन्तरिक्ष, आसमान, व्योम, गगन, दिव, द्यौ, पुष्कर, शून्य।
आचरण – चाल–चलन, चरित्र, व्यवहार, आदत, बर्ताव, सदाचार, शिष्टाचार।
आडम्बर – पाखण्ड, ढकोसला, ढोंग, प्रपंच, दिखावा।
आँख – अक्षि, नैन, नेत्र, लोचन, दृग, चक्षु, ईक्षण, विलोचन, प्रेक्षण, दृष्टि।
आँगन – प्रांगण, बगड़, बाखर, अजिर, अँगना, सहन।
आम – रसाल, आम्र, फलराज, पिकबन्धु, सहकार, अमृतफल, मधुरासव, अंब।
आनन्द – आमोद, प्रमोद, विनोद, उल्लास, प्रसन्नता, सुख, हर्ष, आहलाद।
आशा – उम्मीद, तवक्को, आस।
आशीर्वाद – आशीष, दुआ, शुभाशीष, शुभकामना, आशीर्वचन, मंगलकामना।
आश्चर्य – अचम्भा, अचरज, विस्मय, हैरानी, ताज्जुब।
आहार – भोजन, खुराक, खाना, भक्ष्य, भोज्य।
आस्था – विश्वास, श्रद्धा, मान, कदर, महत्त्व, आदर।
आँसू – अश्रु, नेत्रनीर, नयनजल, नेत्रवारि, नयननीर।

(इ)

इन्दिरा – लक्ष्मी, रमा, श्री, कमला।
इच्छा – लालसा, कामना, चाह, मनोरथ, ईहा, ईप्सा, आकांक्षा, अभिलाषा, मनोकामना।
इन्द्र – महेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरेश, पुरन्दर, देवराज, मधवा, पाकरिपु, पाकशासन, पुरहूत।
इन्द्राणी – शची, इन्द्रवधू, महेन्द्री, इन्द्रा, पौलोमी, शतावरी, पुलोमजा।
इनकार – अस्वीकृति, निषेध, मनाही, प्रत्याख्यान।
इच्छुक – अभिलाषी, लालायित, उत्कण्ठित, आतुर
इशारा – संकेत, इंगित, निर्देश।
इन्द्रधनुष – सुरचाप, इन्द्रधनु, शक्रचाप, सप्तवर्णधनु।
इन्द्रपुरी – देवलोक, अमरावती, इन्द्रलोक, देवेन्द्रपुरी, सुरपुर।

(ई)

ईख – गन्ना, ऊख, रसडंड, रसाल, पेंड़ी, रसद।
ईमानदार – सच्चा, निष्कपट, सत्यनिष्ठ, सत्यपरायण।
ईश्वर – परमात्मा, परमेश्वर, ईश, ओम, ब्रह्म, अलख, अनादि, अज, अगोचर, जगदीश।
ईर्ष्या – मत्सर, डाह, जलन, कुढ़न, द्वेष, स्पर्धा।

(उ)

उचित – ठीक, सम्यक्, सही, उपयुक्त, वाजिब।
उत्कर्ष – उन्नति, उत्थान, अभ्युदय, उन्मेष।
उत्पात – दंगा, उपद्रव, फ़साद, हुड़दंग, गड़बड़, उधम।
उत्सव – समारोह, आयोजन, पर्व, त्योहार, मंगलकार्य, जलसा।
उत्साह – जोश, उमंग, हौसला, उत्तेजना।
उत्सुक – आतुर, उत्कण्ठित, व्यग्र, उत्कर्ण, रुचि, रुझान।
उदार – उदात्त, सहृदय, महामना, महाशय, दरियादिल।
उदाहरण – मिसाल, नमूना, दृष्टान्त, निदर्शन, उद्धरण।
उद्देश्य – प्रयोजन, ध्येय, लक्ष्य, निमित्त, मकसद, हेतु।
उद्यत – तैयार, प्रस्तुत, तत्पर।
उन्मूलन – निरसन, अन्त, उत्सादन।
उपकार – (1) परोपकार, अच्छाई, भलाई, नेकी। (ii) हित, उद्धार, कल्याण
उपस्थित – विद्यमान, हाज़िर, प्रस्तुत।
उत्कृष्ट – उत्तम, श्रेष्ठ, प्रकृष्ट, प्रवर।
उपमा – तुलना, मिलान, सादृश्य, समानता।
उपासना – पूजा, आराधना, अर्चना, सेवा।।
उद्यम – परिश्रम, पुरुषार्थ, श्रम, मेहनत।
उजाला – प्रकाश, आलोक, प्रभा, ज्योति।
उपाय – युक्ति, ढंग, तरकीब, तरीका, यत्न, जुगत।
उपयुक्त – उचित, ठीक, वाज़िब, मुनासिब, वांछनीय।
उल्टा – प्रतिकूल, विलोम, विपरीत, विरुद्धा.
उजाड़ – निर्जन, वीरान, सुनसान, बियावान।
उग्र – तेज़, प्रबल, प्रचण्ड
उन्नति – प्रगति, तरक्की, विकास, उत्थान, बढ़ोतरी, उठान, उत्क्रमण, चढ़ाव, आरोह
उपवास – निराहार, व्रत, अनशन, फाँका, लंघन।
उपेक्षा – उदासीनता, विरक्ति, अनासक्ति, विराग, उदासीन, उल्लंघन।
उपहार – भेंट, सौगात, तोहफ़ा।
उपालम्भ – उलाहना, शिकवा, शिकायत, गिला।
उल्लू – उलूक, लक्ष्मीवाहन, कौशिक

(ऊ)

ऊँचा – उच्च, शीर्षस्थ, उन्नत, उत्तुंग।
ऊर्जा – ओज, स्फूर्ति, शक्ति।
ऊसर – अनुर्वर, सस्यहीन, अनुपजाऊ, बंजर, रेत, रेह।
ऊष्मा – उष्णता, तपन, ताप, गर्मी।
ऊँट – लम्बोष्ठ, महाग्रीव, क्रमेलक, उष्ट्र।
ऊँघ – तंद्रा, ऊँचाई, झपकी, अर्द्धनिद्रा, अलसाई।

(ऋ)

ऋषि – मुनि, मनीषी, महात्मा, साधु, सन्त, संन्यासी, मन्त्रदृष्टा।
ऋद्धि – बढ़ती, बढ़ोतरी, वृद्धि, सम्पन्नता, समृद्धि।

(ए)

एकता – एका, सहमति, एकत्व, मेल–जोल, समानता, एकरूपता, एकसूत्रता, ऐक्य, अभिन्नता।
एहसान – आभार, कृतज्ञता, अनुग्रह।
एकांत – सुनसान, शून्य, सूना, निर्जन, विजन।
एकाएक – अकस्मात, अचानक, सहसा, एकदम।

(ऐ)

ऐश – विलास, ऐयाशी, सुख–चैन।
ऐश्वर्य – वैभव, प्रभुता, सम्पन्नता, समृद्धि, सम्पदा।
ऐच्छिक – स्वेच्छाकृत, वैकल्पिक, अख्तियारी।
ऐब – खोट, दोष, बुराई, अवगुण, कलंक, खामी, कमी, त्रुटि।

(ओ)

ओज – दम, ज़ोर, पराक्रम, बल, शक्ति, ताकत।
ओझल – अन्तर्ध्यान, तिरोहित, अदृश्य, लुप्त, गायब।
ओस – तुषार, हिमकण, हिमसीकर, हिमबिन्दु, तुहिनकण।
ओंठ – होंठ, अधर, ओष्ठ, दन्तच्छद, रदनच्छद, लब।

(औ)

और – (i) अन्य, दूसरा, इतर, भिन्न (ii) अधिक, ज़्यादा (ii) एवं, तथा।
औषधि – दवा, दवाई, भेषज, औषध

(क)

कपड़ा – चीर, वस्त्र, वसन, अम्बर, पट, पोशाक चैल, दुकूल।
कमल – सरोज, सरोरुह, जलज, पंकज, नीरज, वारिज, अम्बुज, अम्बोज, अब्ज, सतदल, अरविन्द, कुवलय, अम्भोरुह, राजीव, नलिन, पद्म, तामरस, पुण्डरीक, सरसिज, कंज।
कर्ण – अंगराज, सूर्यसुत, अर्कनन्दन, राधेय, सूतपुत्र, रविसुत, आदित्यनन्दन।
कली – मुकुल, जालक, ताम्रपल्लव, कलिका, कुडमल, कोरक, नवपल्लव, अँखुवा, कोंपल, गुंचा।
कल्पवृक्ष – कल्पतरु, कल्पशाल, कल्पद्रुम, कल्पपादप, कल्पविटप।
कन्या – कुमारिका, बालिका, किशोरी, बाला।
कठिन – दुर्बोध, जटिल, दुरूह।
कंगाल – निर्धन, गरीब, अकिंचन, दरिद्र।
कमज़ोर – दुर्बल, निर्बल, अशक्त, क्षीण।
कुटिल – छली, कपटी, धोखेबाज़, चालबाज़।
काक – काग, काण, वायस, पिशुन, करठ, कौआ।
कुत्ता – कुक्कर, श्वान, शुनक, कूकुर।
कबूतर – कपोत, रक्तलोचन, हारीत, पारावत।
कृत्रिम – अवास्तविक, नकली, झूठा, दिखावटी, बनावटी।
कल्याण – मंगल, योगक्षेम, शुभ, हित, भलाई, उपकार।
कूल – किनारा, तट, तीर।
कृषक – किसान, काश्तकार, हलधर, जोतकार, खेतिहर।
क्लिष्ट – दुरूह, संकुल, कठिन, दुःसाध्य।
कौशल – कला, हुनर, फ़न, योग्यता, कुशलता।
कर्म – कार्य, कृत्य, क्रिया, काम, काज।
कंदरा – गुहा, गुफा, खोह, दरी।
कथन – विचार, वक्तव्य, मत, बयाना
कटाक्षे – आक्षेप, व्यंग्य, ताना, छींटाकशी।
कुरूप – भद्दा, बेडौल, बदसूरत, असुन्दर।
कलंक – दोष, दाग, धब्बा, लांछन, कलुषता।
कोमल – मृदुल, सुकुमार, नाजुक, नरम, सौम्य, मुलायम।
किरण – रश्मि, केतु, अंशु, कर, मरीचि, मखूख, प्रभा, अर्चि, पुंज।
कसक – पीड़ा, दर्द, टीस, दुःख।
कोयल – कोकिल, श्यामा, पिक, मदनशलाका।
कायरता – भीरुता, अपौरुष, पामरता, साहसहीनता।
कंटक – काँटा, शूल, खार।
कामदेव – मनोज, कन्दर्प, आत्मभू, अनंग, अतनु, काम, मकरकेतु, पुष्पचाप, स्मर, मन्मथ
कार्तिकेय – कुमार, पार्वतीनन्दन, शरभव, स्कन्ध, षडानन, गुह, मयूरवाहन, शिवसुत, षड्वदन।
कटु – कठोर, कड़वा, तीखा, तेज़, तीक्ष्ण, चरपरा, कर्कश, रूखा, रुक्ष, परुष, कड़ा, सत्ता
किला – दुर्ग, कोट, गढ़, शिविर
किंचित – (i) कतिपय, कुछ एक, कई एक (ii) कुछ, अल्प, ज़रा।
किताब – पुस्तक, ग्रंथ, पोथी।
किनारा – (i) तट, मुहाना, तीर, पुलिन, कूल। (ii) अंचल, छोर, सिरा, पर्यन्त।
कीमत – मूल्य, दाम, लागता
कुबेर – राजराज, किन्नरेश, धनाधिप, धनेश, यक्षराज, धनद।
कुमुदनी – नलिनी, कैरव, कुमुद, इन्दुकमल, चन्द्रप्रिया।
कृष्ण – नन्दनन्दन, मधुसूदन, जनार्दन, माधव, मुरारि, कन्हैया, द्वारकाधीश, गोपाल, केशव, नन्दकुमार, नन्दकिशोर, बिहारी।
कृतज्ञ – आभारी, उपकृत, अनुगृहीत, ऋणी, कृतार्थ, एहसानमंद।
केला – रम्भा, कदली, वारण, अशुमत्फला, भानुफल, काष्ठीला।
क्रोध – गुस्सा, अमर्ष, रोष, कोप, आक्रोश, ताव।
करुणा – दया, तरस, रहम, आत्मीयभाव।

(ख)

खग – पक्षी, चिड़िया, पखेरू, द्विज, पंछी, विहंग, शकुनि।
खंजन – नीलकण्ठ, सारंग, कलकण्ठ।
खंड – अंश, भाग, हिस्सा, टुकड़ा।
खल – शठ, दुष्ट, धूर्त, दुर्जन, कुटिल, नालायक, अधम।
खूबसूरत – सुन्दर, सुरम्य, मनोज्ञ, रूपवान, सौरम्य, रमणीक।
खून – रुधिर, लहू, रक्त, शोणित।
खम्भा – खम्भ, स्तूप, स्तम्भ।
खतरा – अंदेशा, भय, डर, आशंका।
खत – चिट्ठी, पत्र, पत्री, पाती।
खामोश – नीरव, शान्त, चुप, मौन।
खीझ – झुंझलाहट, झल्लाहट, खीझना, चिढ़ना।

(ग)

गरुड़ – खगेश्वर, सुपर्ण, वैतनेय, नागान्तका
गौरव – मान, सम्मान, महत्त्व, बड़प्पन।
गम्भीर – गहरा, अथाह, अतला
गाँव – ग्राम, मौजा, पुरवा, बस्ती, देहात।
गृह – घर, सदन, भवन, धाम, निकेतन, आलय, मकान, गेह, शाला।
गुफा – गुहा, कन्दरा, विवर, गह्वर।
गीदड़ – शृगाल, सियार, जम्बुका
गुप्त – निभृत, अप्रकट, गूढ, अज्ञात, परोक्ष।
गति – हाल, दशा, अवस्था, स्थिति, चाल, रफ़्तार।
गंगा – भागीरथी, देवसरिता, मंदाकिनी, विष्णुपदी, त्रिपथगा, देवापगा, जाहनवी, देवनदी, ध्रुवनन्दा, सुरसरि, पापछालिका।
गणेश – लम्बोदर, मूषकवाहन, भवानीनन्दन, विनायक, गजानन, मोदकप्रिय, जगवन्द्य, हेरम्ब, एकदन्त, गजवदन, विघ्ननाशका
गज – हस्ती, सिंधुर, मातंग, कुम्भी, नाग, हाथी, वितुण्ड, कुंजर, करी, द्विपा
गधा – गदहा, खर, धूसर, गर्दभ, चक्रीवाहन, रासभ, लम्बकर्ण, बैशाखनन्दन, बेसर।
गाय – धेनु, सुरभि, माता, कल्याणी, पयस्विनी, गौ।
गुलाब – सुमना, शतपत्र, स्थलकमल, पाटल, वृन्तपुष्प
गुनाह – गलती, अधर्म, पाप, अपराध, खता, त्रुटि, कुकर्म।

(घ)

घड़ा – कलश, घट, कुम्भ, गागर, निप, गगरी, कुट।
घी – घृत, हवि, अमृतसार।
घाटा – हानि, नुकसान, टोटा।
घन – जलधर, वारिद, अंबुधर, बादल, मेघ, अम्बुद, पयोद, नीरद।।
घृणा – जुगुप्सा, अरुचि, घिन, बीभत्स।
घुमक्कड़ – रमता, सैलानी, पर्यटक, घुमन्तू, विचरण शील, यायावर।
घिनौना – घृण्य, घृणास्पद, बीभत्स, गंदा, घृणित।
Ghumantu/घुमंतू – बंजारा, घुमक्कड़

(च)

चंदन – मंगल्य, मलयज, श्रीखण्ड।
चाँदी – रजत, रूपा, रौप्य, रूपक
चरित्र – आचार, सदाचार, शील, आचरण।
चिन्ता – फ़िक्र, सोच, ऊहापोह।
चौकीदार – आरक्षी, पहरेदार, प्रहरी, गारद, गश्तकार।
चोटी – शृंग, तुंग, शिखर, परकोटि।
चक्र – पहिया, चाक, चक्का।
चिकित्सा – उपचार, इलाज, दवादारू।
चतुर – कुशल, नागर, प्रवीण, दक्ष, निपुण, योग्य, होशियार, चालाक, सयाना, विज्ञा
चन्द्र – सोम, राकेश, रजनीश, राकापति, चाँद, निशाकर, हिमांशु, मयंक, सुधांशु, मृगांक, चन्द्रमा, कला–निधि, ओषधीश।
चाँदनी – चन्द्रिका, ज्योत्स्ना, कौमुदी, कुमुदकला, जुन्हाई, अमृतवर्षिणी, चन्द्रातप, चन्द्रमरीचि।
चपला – विद्युत्, बिजली, चंचला, दामिनी, तड़िता
चश्मा – ऐनक, उपनेत्र, सहनेत्र, उपनयन।
चाटुकारी – खुशामद, चापलूसी, मिथ्या प्रशंसा, चिरौरी, चमचागीरी।
चिह्न – प्रतीक, निशान, लक्षण, पहचान, संकेत।
चोर – रजनीचर, दस्यु, साहसिक, कभिज, खनक, मोषक, तस्कर।

(छ)

চল্প। – विद्यार्थी, शिक्षार्थी, शिष्य।
छाया – साया, प्रतिबिम्ब, परछाई, छाँव।
छल – प्रपंच, झाँसा, फ़रेब, कपट।
छटा – आभा, कांति, चमक, सौन्दर्य, सुन्दरता।
छानबीन – जाँच–पड़ताल, पूछताछ, जाँच, तहकीकात।
छेद – छिद्र, सूराख, रंध्रा
छली – ठग, छद्मी, कपटी, कैतव, धूर्त, मायावी।
छाती – उर, वक्ष, वक्षःस्थल, हृदय, मन, सीना।

(ज)

जननी – माँ, माता, माई. मइया. अम्बा, अम्मा।
जीव – प्राणी, देहधारी, जीवधारी।
जिज्ञासा – उत्सुकता, उत्कंठा, कुतूहल।
जंग – युद्ध, रण, समर, लड़ाई, संग्राम।
जग – दुनिया, संसार, विश्व, भुवन, मृत्युलोक।
जल – सलिल, उदक, तोय, अम्बु, पानी, नीर, वारि, पय, अमृत, जीवक, रस, अप।
जहाज़ – जलयान, वायुयान, विमान, पोत, जलवाहन।
जानकी – जनकसुता, वैदेही, मैथिली, सीता, रामप्रिया, जनकदुलारी, जनकनन्दिनी।
जुटाना – बटोरना, संग्रह करना, जुगाड़ करना, एकत्र करना, जमा करना, संचय करना।
जोश – आवेश, साहस, उत्साह, उमंग, हौसला।
जीभ – जिह्वा, रसना, रसज्ञा, चंचला।
जमुना – सूर्यतनया, सूर्यसुता, कालिंदी, अर्कजा, कृष्णा।
ज्योति – प्रभा, प्रकाश, लौ, अग्निशिखा, आलोक

(झ)

झंडा – ध्वजा, केतु, पताका, निसान।
झरना – सोता, स्रोत, उत्स, निर्झर, जलप्रपात, प्रस्रवण, प्रपात।
झुकाव – रुझान, प्रवृत्ति, प्रवणता, उन्मुखता।
झकोर – हवा का झोंका, झटका, झोंक, बयार।
झुठ – मिथ्या, मृषा, अनृत, असत, असत्य।

(ट)

टीका – भाष्य, वृत्ति, विवृति, व्याख्या, भाषांतरण।
टक्कर – भिडंत, संघट्ट, समाघात, ठोकर।
टोल – समूह, मण्डली, जत्था, झुण्ड, चटसाल, पाठशाला।
टीस – साल, कसक, शूल, शूक्त, चसक, दर्द, पीड़ा।
टेढा – (i) बंक, कुटिल, तिरछा, वक्रा (ii) कठिन, पेचीदा, मुश्किल, दुर्गम।
टंच – सूम, कृपण, कंजूस, निष्ठुर।

(ठ)

ठंड – शीत, ठिठुरन, सर्दी, जाड़ा, ठंडक
ठेस – आघात, चोट, ठोकर, धक्का।
ठौर – ठिकाना, स्थल, जगह।
ठग – जालसाज, प्रवंचक, वंचक, प्रतारक।
ठाठ –आडम्बर, सजावट, वैभवा
ठिठोली – मज़ाक, उपहास, फ़बती, व्यंग्य, व्यंग्योक्ति।
ठगी – प्रतारणा, वंचना, मायाजाल, फ़रेब, जालसाज़।

(ड)

डगर – बाट, मार्ग; राह, रास्ता, पथ, पंथा
डर – त्रास, भीति, दहशत, आतंक, भय, खौफ़
डेरा – पड़ाव, खेमा, शिविर
डोर – डोरी, रज्जु, तांत, रस्सी, पगहा, तन्तु।
डकैत – डाकू, लुटेरा, बटमार।
डायरी – दैनिकी, दैनन्दिनी, रोज़नामचा।

(ढ)

ढीठ – धृष्ट, प्रगल्भ, अविनीत, गुस्ताख।
ढोंग – स्वाँग, पाखण्ड, कपट, छल।
ढंग – पद्धति, विधि, तरीका, रीति, प्रणाली, करीना।
ढाढ़स – आश्वासन, तसल्ली, दिलासा, धीरज, सांत्वना।
ढोंगी – पाखण्डी, बगुला भगत, रंगासियार, कपटी, छली।

(त)

तन – शरीर, काया, जिस्म, देह, वपु।
तपस्या – साधना, तप, योग, अनुष्ठान।
तरंग – हिलोर, लहर, ऊर्मि, मौज, वीचि।
तरु – वृक्ष, पेड़, विटप, पादप, द्रुम, दरख्त।
तलवार – असि, खडग, सिरोही, चन्द्रहास, कृपाण, शमशीर, करवाल, करौली, तेग।
तम – अंधकार, ध्वान्त, तिमिर, अँधेरा, तमसा।
तरुणी – युवती, मनोज्ञा, सुंदरी, यौवनवक्षी, प्रमदा, रमणी।
तारा – नखत, उड्डगण, नक्षत्र, तारका
तम्बू – डेरा, खेमा, शिविर।
तस्वीर – चित्र, फोटो, प्रतिबिम्ब, प्रतिकृति, आकृति।
तालाब – जलाशय, सरोवर, ताल, सर, तड़ाग, जलधर, सरसी, पद्माकर, पुष्कर
तारीफ़ – बड़ाई, प्रशंसा, सराहना, प्रशस्ति, गुणगाना
तीर – नाराच, बाण, शिलीमुख, शर, सायक।
तोता – सुवा, शुक, दाडिमप्रिय, कीर, सुग्गा, रक्ततुंड।
तत्पर – तैयार, कटिबद्ध, उद्यत, सन्नद्ध।
तन्मय – मग्न, तल्लीन, लीन, ध्यानमग्न।
तालमेल – समन्वय, संगति, सामंजस्य।
तरकारी – शाक, सब्जी, भाजी।
तूफान – झंझावात, अंधड़, आँधी, प्रभंजना
त्रुटि – अशुद्धि, भूल–चूक, गलती।

(थ)

थकान – क्लान्ति, श्रान्ति, थकावट, थकन।
थोड़ा – कम, ज़रा, अल्प, स्वल्प, न्यून।
थाह – अन्त, छोर, सिरा, सीना।
थोथा – पोला, खाली, खोखला, रिक्त, छूछा।
थल – धरती, ज़मीन, पृथ्वी, भूतल, भूमि।

(द)

दर्पण – शीशा, आइना, मुकुर, आरसी।
दास – चाकर, नौकर, सेवक, परिचारक, परिचर, किंकर, गुलाम, अनुचर।
दुःख – क्लेश, खेद, पीड़ा, यातना, विषाद, यन्त्रणा, क्षोभ, कष्ट
दूध – पय, दुग्ध, स्तन्य, क्षीर, अमृत।
देवता – सुर, आदित्य, अमर, देव, वसु।
दोस्त – सखा, मित्र, स्नेही, अन्तरंग, हितैषी, सहचर।
द्रोपदी – श्यामा, पाँचाली, कृष्णा, सैरन्ध्री, याज्ञसेनी, द्रुपदसुता, नित्ययौवना।
दासी – बाँदी, सेविका, किंकरी, परिचारिका।
दीपक – आदित्य, दीप, प्रदीप, दीया।
दुर्गा – सिंहवाहिनी, कालिका, अजा, भवानी, चण्डिका, कल्याणी, सुभद्रा, चामुण्डा।
दिव्य – अलौकिक, स्वर्गिक, लोकातीत, लोकोत्तर।
दीपावली – दीवाली, दीपमाला, दीपोत्सव, दीपमालिका।
दामिनी – बिजली, चपला, तड़ित, पीत–प्रभा, चंचला, विजय, विद्युत्, सौदामिनी।
देह – तन, रपु, शरीर, घट, काया, गात, कलेवर, तनु, मूर्ति।
दुर्लभ – अलम्भ, नायाब, विरल, दुष्प्राप्य।
दर्शन – भेंट, साक्षात्कार, मुलाकाता
दंगा – उपद्रव, फ़साद, उत्पात, उधम।।
द्वेष – बैर, शत्रुता, दुश्मनी, खार, ईर्ष्या, जलन, डाह, मात्सर्य।
दरवाज़ा – किवाड़, पल्ला, कपाट, द्वार।
दाई – धाया, धात्री, अम्मा, सेविका।
देवालय – देवमन्दिर, देवस्थान, मन्दिर।
दृढ़ – पुष्ट, मज़बूत, पक्का, तगड़ा।
दुर्गम – अगम्य, विकट, कठिन, दुस्तर।
द्विज – ब्राह्मण, ब्रह्मज्ञानी, वेदविद्, पण्डित, विप्रा
दिनांक – तारीख, तिथि, मिति।

(ध)

धनुष – चाप, धनु, शरासन, पिनाक, कोदण्ड, कमान, विशिखासन।
धीरज – धीरता, धीरत्व, धैर्य, धारण, धृति।
धरती – धरा, धरणी, पृथ्वी, क्षिति, वसुधा, अवनी, मेदिनी।
धवल – श्वेत, सफ़ेद, उजला।
धुंध – कुहरा, नीहार, कुहासा।
ध्वस्त – नष्ट, भ्रष्ट, भग्न, खण्डित।
धूल – रज, खेहट, मिट्टी, गर्द, धूलिा
धंधा – दृढ़, अटल, स्थिर, निश्चित।
धनुर्धर – रोज़गार, व्यापार, कारोबार, व्यवसाय
धाक – धन्वी, तीरंदाज़, धनुषधारी, निषंगी।
धक्का – रोब, दबदबा, धौंस। टक्कर, रेला, झोंका।

(न)

नदी – सरिता, दरिया, अपगा, तटिनी, सलिला, स्रोतस्विनी, कल्लोलिनी, प्रवाहिणी।
नमक – लवण, लोन, रामरस, नोन।
नया – ‘नवीन, नव्य, नूतन, आधुनिक, अभिनव, अर्वाचीन, नव, ताज़ा।
नाश – (i) समाप्ति, अवसान (i) विनाश, संहार, ध्वंस, नष्ट–भ्रष्ट।
नित्य – हमेशा, रोज़, सनातन, सर्वदा, सदा, सदैव, चिरंतन, शाश्वत।
नियम – विधि, तरीका, विधान, ढंग, कानून, रीति।
नीलकमल – इंदीवर, नीलाम्बुज, नीलसरोज, उत्पल, असितकमल, कुवलय, सौगन्धित।
नौका – तरिणी, डोंगी, नाव, जलयान, नैया, तरी।
नारी – स्त्री, महिला, रमणी, वनिता, वामा, अबला, औरत।
निन्दा – अपयश, बदनामी, बुराई, बदगोई।
नैसर्गिक – प्राकृतिक, स्वाभाविक, वास्तविक
नरेश – नरेन्द्र, राजा, नरपति, भूपति, भूपाल
निष्पक्ष – उदासीन, अलग, निरपेक्ष, तटस्थ।
नियति – भाग्य, प्रारब्ध, विधि, भावी, दैव्य, होनी।
नक्षत्र – तारा, सितारा, खद्योत, तारक
नाग – सर्प, विषधर, भुजंग, व्याल, फणी, फणधर, उरग।
नग – भूधर, पहाड़, पर्वत, शैल, गिरि।
नरक – यमपुर, यमलोक, जहन्नुम, दौजख।
निधि – कोष, खज़ाना, भण्डार।
नग्न – नंगा, दिगम्बर, निर्वस्त्र, अनावृत।
नीरस – रसहीन, फीका, सूखा, स्वादहीन।
नीरव – मौन, चुप, शान्त, खामोश, निःशब्द।
निरर्थक – बेमानी, बेकार, अर्थहीन, व्यर्थी
निष्ठा – श्रद्धा, आस्था, विश्वास
निर्णय – निष्कर्ष, फ़ैसला, परिणाम।
निष्ठुर – निर्दय, निर्मम, बेदर्द, बेरहमा

(प)

पत्थर – पाहन, प्रस्तर, संग, अश्म, पाषाण।
पति – स्वामी, कान्त, भर्तार, बल्लभ, भर्ता, ईश।
पत्नी – दुलहिन, अर्धांगिनी, गृहिणी, त्रिया, दारा, जोरू, गृहलक्ष्मी, सहधर्मिणी, सहचरी, जाया।
पथिक – राही, बटाऊ, पंथी, मुसाफ़िर, बटोही।
पण्डित – विद्वान्, सुधी, ज्ञानी, धीर, कोविद, प्राज्ञा
परशुराम – भृगुसुत, जामदग्न्य, भार्गव, परशुधर, भृगुनन्दन, रेणुकातनय।
पर्वत – पहाड़, अचल, शैल, नग, भूधर, मेरू, महीधर, गिरि।
पवन – समीर, अनिल, मारुत, वात, पवमान, वायु, बयार।
पवित्र – पुनीत, पावन, शुद्ध, शुचि, साफ़, स्वच्छ
पार्वती – भवानी, अम्बिका, गौरी, अभया, गिरिजा, उमा, सती, शिवप्रिया।
पिता – जनक, बाप, तात, गुरु, फ़ादर, वालिद।
पुत्र – तनय, आत्मज, सुत, लड़का, बेटा, औरस, पूता
परिणय – शादी, विवाह, पाणिग्रहण।
पूज्य – आराध्य, अर्चनीय, उपास्य, वंद्य, वंदनीय, पूजनीय।
पुत्री – तनया, आत्मजा, सुता, लड़की, बेटी, दुहिता।
पृथ्वी – वसुधा, वसुन्धरा, मेदिनी, मही, भू, भूमि, इला, उर्वी, ज़मीन, क्षिति, धरती, धात्री।
प्रकाश – चमक, ज्योति, द्युति, दीप्ति, तेज़, आलोक।
प्रभात – सवेरा, सुबह, विहान, प्रातःकाल, भोर, ऊषाकाला
प्रथा – प्रचलन, चलन, रीति–रिवाज़, परम्परा, परिपाटी, रूढ़ि।
प्रलय – कयामत, विप्लव, कल्पान्त, गज़ब
प्रसिद्ध – मशहूर, नामी, ख्यात, नामवर, विख्यात, प्रख्यात, यशस्वी, मकबूला
प्रार्थना – विनय, विनती, निवेदन, अनुरोध, स्तुति, अभ्यर्थना, अर्चना, अनुनय।
प्रिया – प्रियतमा, प्रेयसी, सजनी, दिलरुबा, प्यारी।
प्रेम – प्रीति, स्नेह, दुलार, लाड़–प्यार, ममता, अनुराग, प्रणय।
पैर – पाँव, पाद, चरण, गोड़, पग, पद, पगु, टाँग
प्रभा – छवि, दीप्ति, द्युति, आभा।
पंथ – राह, डगर, पथ, मार्ग।
परतन्त्र – पराधीन, परवश, पराश्रित।
परिवार – कुल, घराना, कुटुम्ब, कुनबा।
परछाई – प्रतिच्छाया, साया, प्रतिबिम्ब, छाया, छवि।
पक्षी – विहग, निहंग, खग, अण्डज़, शकुन्त।
पल – क्षण, लम्हा, दमा
पश्चात्ताप – अनुताप, पछतावा, ग्लानि, संताप।
पाश – जालबंधन, फंदा, बंधन, जकड़न।
पराग – रंज, पुष्परज, कुसुमरज, पुष्पधूलि।
परिवर्तन – क्रांति, हेर–फेर, बदलाव, तब्दीली।
पड़ोसी – हमसाया, प्रतिवासी, प्रतिवेशी।
पुरातन – प्राचीन, पूर्वकालीन, पुराना।
पूजा – आराधना, अर्चना, उपासना।
प्रकांड – अतिशय, विपुल, अधिक, भारी।।
प्रज्ञा – बुद्धि, ज्ञान, मेधा, प्रतिभा।
प्रचण्ड – भीषण, उग्र, भयंकर।
प्रणय – स्नेह, अनुराग, प्रीति, अनुरक्ति।
प्रताप – प्रभाव, धाक, बोलबाला, इकबाल।
प्रतिज्ञा – प्रण, वचन, वायदा।
प्रेक्षागार – नाट्यशाला, रंगशाला, अभिनयशाला, प्रेक्षागृह।
प्रौढ़ – अधेड़, प्रबुद्ध।
पल्लव – किसलय, घर्ण, पत्ती, पात, कोपल, फुनगी।
पांडुलिपि – हस्तलिपी, मसौदा, पांडुलेख।
फणी – सर्प, साँप, फणधर, नाग, उरग।
फ़ौरन – तत्काल, तत्क्षण, तुरन्ता
फूल – सुमन, कुसुम, गुल, प्रसून, पुष्प, पुहुप, मंजरी, लतांता
फौज़ – सेना, लश्कर, पल्टन, वाहिनी, सैन्य।
फणीन्द्र – शेषनाग, वासुकी, उरगाधिपति, सर्पराज, नागराज।

(ब)

बलराम – हलधर, बलवीर, रेवतीरमण, बलभद्र, हली, श्यामबन्धु।
बाग – उपवन, वाटिका, उद्यान, निकुंज, फुलवाड़ी, बगीचा।
बन्दर – कपि, वानर, मर्कट, शाखामृग, कीश।
बट्टा – घाटा, हानि, टोटा, नुकसान।
बलिदान – कुर्बानी, आत्मोत्सर्ग, जीवनदान।
बंजर – ऊसर, परती, अनुपजाऊ, अनुर्वर।
बिछोह – वियोग, जुदाई, बिछोड़ा, विप्रलंभ।
बियावान – निर्जन, सूनसान, वीरान, उजाड़।
बंक – टेढ़ा, तिर्यक्, तिरछा, वक्र
बहुत – ज़्यादा, प्रचुर, प्रभूत, विपुल, इफ़रात, अधिक।
बुद्धि – प्रज्ञा, मेधा, ज़ेहन, समझ, अकल, गति।
ब्रह्मा – विधि, चतुरानन, कमलासन, विधाता, विरंचि, पितामह, अज, प्रजापति, स्वयंभू।
बादल – मेघ, पयोधर, नीरद, वारिद, अम्बुद, बलाहक, जलधर, घन, जीमूत।
बाल – केश, अलक, कुन्तल, रोम, शिरोरूह, चिकुर।
बिजली – तड़ित, दामिनी, विद्युत, सौदामिनी, चंचला, बीजुरी।
बसंत – ऋतुराज, ऋतुपति, मधुमास, कुसुमाकर, माधव।
बाण – तीर, तोमर, विशिख, शिलीमुख, नाराच, शर, इषु।
बारिश – पावस, वृष्टि, वर्षा, बरसात, मेह, बरखा।
बालिका – बाला, कन्या, बच्ची, लड़की, किशोरी।

(भ)

भगवान – परमेश्वर, परमात्मा, सर्वेश्वर, प्रभु, ईश्वर।
भगिनी – दीदी, जीजी, बहिन
भारती – सरस्वती, ब्राह्मी, विद्या देवी, शारदा, वीणावादिनी।
भाल – ललाट, मस्तक, माथा, कपाल।
भरोसा – सहारा, अवलम्ब, आश्रय, प्रश्रय।
भास्कर – चमकीला, आभामय, दीप्तिमान, प्रकाशवान।
भुगतान – भरपाई, अदायगी, बेबाकी।
भोला – सीधा, सरल, निष्कपट, निश्छल।
भूखा – बुभुक्षित, क्षुधातुर, क्षुधालु, क्षुधात।
भँवरा – भ्रमर, ग, मधुकर, मधुप, अलि, द्विरेफ।
भाई – अग्रज, अनुज, सहोदर, तात, भइया, बन्धु।
भाँड – विदूषक, मसखरा, जोकर।
भिक्षुक – भिखमंगा, भिखारी, याचक

(म)

मछली – मीन, मत्स्य, सफरी, झष, जलजीवन।
मज़ाक – दिल्लगी, उपहास, हँसी, मखौल, मसखरी, व्यंग्य, छींटाकशी।
मदिरा – शराब, हाला, आसव, मद्य, सुरा।
महादेव – शंकर, शंभू, शिव, पशुपति, चन्द्रशेखर, महेश्वर, भूतेश, आशुतोष, गिरीश
मक्खन – नवनीत, दधिसार, माखन, लौनी।
मंगनी – वाग्दान, फलदान, सगाई।
मनीषी – पण्डित, विचारक, ज्ञानी, विद्वान्।
मुँह – मुख, आनन, बदन।
मित्र – सखा, दोस्त, सहचर, सुहृद।
माँ – मातु, माता, मातृ, मातरि, मैया, महतारी, अम्ब, जननी, जनयित्री, जन्मदात्री।
मेघ – धराधर, घन, जलचर, वारिद, जीमूत, बादल, नीरद, पयोधर, जगलीवन, अम्बुद।
मैना – सारिका, चित्रलोचना, कलहप्रिया।
मंथन – बिलोना, विलोड़न, आलोड़न।
महक – परिमल, वास, सुवास, खुशबू, सुगंध, सौरभ।
मृत्यु – देहावसान, देहान्त, पंचतत्वलीन, निधन, मौत, इंतकाल।
माँझी – मल्लाह, नाविक, केवट।
माया – छल, छलना, प्रपंच, प्रतारणा।
माधुरी – माधुर्य, मिठास, मधुरता।
मानव – मनुज, मनुष्य, मानुष, नर, इंसान।
मोती – सीपिज, मौक्तिक, मुक्ता, शशिप्रभा।
मेंदकं – दादुर, दर्दुर, मण्डूक, वर्षाप्रिय, भेका
मोर – मयूर, नीलकण्ठ, शिखी, केकी, कलापी।
मोक्ष – मुक्ति, निर्वाण, कैवल्य, परमधाम, परमपद, अपवर्ग, सदगति।
मंदिर – देवालय, देवस्थान, देवगृह, ईशगृह।
मधु – शहद, बसंत–ऋत. भसमासव, मकरंद, पुष्पासव।

(य)

यम – सूर्यपुत्र, धर्मराज, श्राद्धदेव, कीनाश, शमन, दण्डधर, यमुनाभ्राता।
यत्न – प्रयत्न, चेष्टा, उद्यम
यामिनी – निशा, रजनी, राका, विभावरी।
योग्य – कुशल, सक्षम, कार्यक्षम, काबिला
यात्रा – भ्रमण, देशाटन, पर्यटन, सफ़र, घूमना।
याद – सुधि, स्मृति, ख्याल, स्मरण।
यंत्र – औज़ार, कल, मशीन।
यती – संन्यासी, वीतरागी, वैरागी।
युद्ध – रण, जंग, समर, लड़ाई, संग्राम।
याचिका – आवेदन–पत्र, अभ्यर्थना, प्रार्थना पत्र।

(र)

रक्त – खून, लहू, रुधिर, शोणित, लोहित, रोहित।
राधा – ब्रजरानी, हरिप्रिया, राधिका, वृषभानुजा।
रानी – राज्ञी, महिषी, राजपत्नी।
रावण – लंकेश, दशानन, दशकंठ, दशकंधर, लंकाधिपति, दैत्येन्द्र।
राज्यपाल – प्रान्तपति, सूबेदार, गवर्नर।
राय – मत, सलाह, सम्मति, मंत्रणा, परामर्श
रूढ़ि – प्रथा, दस्तूर, रस्म।
रक्षा – बचाव, संरक्षण, हिफ़ाजत, देखरेख।
रमा – कमला, इन्दिरा, लक्ष्मी, हरिप्रिया, समुद्रजा, चंचला, क्षीरोदतनया, पद्मा, श्री, भार्गवी।
रसना – जीभ, जबान, रसेन्द्रिय, जिह्वा, रसीका।
रविवार – इतवार, आदित्य–वार, सूर्यवार, रविवासर।
राजा – नरेन्द्र, नरेश, नृप, भूपाल, राव, भूप, महीप, नरपति, सम्राट।
रामचन्द्र – रघुवर, रघुनाथ, सीतापति, कौशल्यानन्दन, अमिताभ, राघव, रघुराज, अवधेश
रात – रैन, रजनी, निशा, विभावरी, यामिनी, तमी, तमस्विनी, शर्वरी, विभा, क्षपा, रात्रि
रिपु – बैरी, दुश्मन, विपक्षी, विरोधी, प्रतिवादी, अमित्र, शत्रु।
रोना – विलाप, रोदन, रुदन, क्रंदन, विलपन।

(ल)

लक्ष्मण – अनंत, लखन, सौमित्र।
लग्न – संलग्न, सम्बद्ध, संयुक्ता
लज्जा – शर्म, हया, लाज, व्रीडा।
लहर – लहरी, हिलोर, तरंग, उर्मि।
लालसा – तृष्णा, अभिलाषा, लिप्सा, लालच।
लगातार – सतत, निरन्तर, अजस्र, अनवरत।
लता – बेल, वल्लरी, लतिका, प्रतान, वीरुध।
लघु – थोड़ा, न्यून, हल्का, छोटा।
लक्ष्मी – श्री, कमला, रमा, पद्मा, हरिप्रिया, क्षीरोद, इन्दिरा, समुद्रजा।

(व)

वर्षा – बरसात, मेह, बारिश, पावस, चौमास।
वक्ष – सीना, छाती, वक्षस्थल, उदरस्थला
वन – अरण्य, अटवी, कानन, विपिन।
वस्त्र – परिधान, पट, चीर, वसन, कपड़ा, पोशाक, अम्बर।
विकार – विकृति, दोष, बुराई, बिगाड़!
विष – गरल, माहुर, हलाहल, कालकूट, ज़हर।
विरुद – प्रशस्ति, कीर्ति, यशोगान, गुणगान।
विविध – नाना, प्रकीर्ण, विभिन्न।
विभोर – मस्त, मुग्ध, मग्न, लीना
विप्र – भूदेव, ब्राह्मण, महीसुर, पुरोहित, पण्डित।
विभा – प्रभा, आभा, कांति, शोभा।
विशारद – पण्डित, ज्ञानी, विशेषज्ञ, सुधी।
विलास – आनन्द, भोग, सन्तुष्टि, वासना।
व्यसन – लत, वान, टेक, आसक्ति।
वृक्ष – द्रुम, पादप, तरु, विटप।
विवाद – अनबन, झगड़ा, तकरार, बखेरा।
वंक – टेढ़ा, वक्र, कुटिल।
विपरीत – उलटा, प्रतिकूल, खिलाफ़, विरुद्ध।
व्रण – घाव, फोड़ा, ज़ख्म, नासूर।
वेश्या – गणिका, वारांगना, पतुरिया, रंडी, तवायफ़
वसन्त – मधुमास, ऋतुराज, माधव, कुसुमाकर, कामसखा, मधुऋतु।
विद्या – ज्ञान, शिक्षा, गुण, इल्म, सरस्वती।
विधि – शैली, तरीका, नियम, रीति, पद्धति, प्रणाली, चाल।
विमल – स्वच्छ, निर्मल, पवित्र, पावन, विशुद्ध।
विष्णु – नारायण, केशव, गोविन्द, माधव, जनार्दन, विशम्भर, मुकुन्द, लक्ष्मीपति, कमलापति।

(श)

शपथ – कसम, प्रतिज्ञा, सौगन्ध, हलफ़, सौं।
शहद – मधु, मकरंद, पुष्परस, पुष्पासव।
शब्द – ध्वनि, नाद, आश्व, घोष, रव, मुखर।
शरण – संश्रय, आश्रय, त्राण, रक्षा।
शिष्ट – शालीन, भद्र, संभ्रान्त, सौम्य, सज्जन, सभ्य।
शेर – सिंह, नाहर, केहरि, वनराज, केशरी, मृगेन्द, शार्दूल, व्याघ्र।
शिरा – नाड़ी, धमनी, नस।
शुभ – मंगल, कल्याणकारी, शुभंकर।
शिक्षा – नसीहत, सीख, तालीम, प्रशिक्षण, उपदेश, शिक्षण, ज्ञान।
श्वेत – सफ़ेद, धवल, शुक्ल, उजला, सिता
शंकर – शिव, उमापति, शम्भू, भोलेनाथ, त्रिपुरारि, महेश, देवाधिदेव, कैलाशपति, आशुतोष
शाश्वत – सर्वकालिक, अक्षय, सनातन, नित्य।
शिकारी – आखेटक, लुब्धक, बहेलिया, अहेरी, व्याध
श्मशान – मरघट, मसान, दाहस्थल।

(ष)

षड्यंत्र – साज़िश, दुरभिसंधि, अभिसंधि, कुचक्र

(स)

सब – अखिल, सम्पूर्ण, सकल, सर्व, समस्त, समग्र, निखिल।
संकल्प – वृत, दृढ़ निश्चय, प्रतिज्ञा, प्रण।
संग्रह – संकलन, संचय, जमावा
संन्यासी – बैरागी, दंडी, विरत, परिव्राजका
सजग – सतर्क, चौकस, चौकन्ना, सावधान।
संहार – अन्त, नाश, समाप्ति, ध्वंसा
समसामयिक – समकालिक, समकालीन, समवयस्क, वर्तमान।
समीक्षा – विवेचना, मीमांसा, आलोचना, निरूपण।
समुद्र – नदीश, वारीश, रत्नाकर, उदधि, पारावार।
सखी – सहेली, सहचरी, सैरंध्री।
सज्जन – भद्र, साधु, पुंगव, सभ्य, कुलीन।
संसार – विश्व, दुनिया, जग, जगत्, इहलोक।
समाप्ति – इतिश्री, इति, अंत, समापन।
सार – रस, सत्त, निचोड़, सत्त्व।
स्तन – पयोधर, छाती, कुच, उरस, उरोज।
सुन्दरी – ललिता, सुनेत्रा, सुनयना, विलासिनी, कामिनी।
सूची – अनुक्रम, अनुक्रमणिका, तालिका, फेहरिस्त, सारणी।
स्वर्ण – सुवर्ण, सोना, कनक, हिरण्य, हेम।
स्वर्ग – सुरलोक, धुलोक, बैकुंठ, परलोक, दिव।
स्वच्छन्द – निरंकुश, स्वतन्त्र, निबंध।
स्वावलम्बन – आत्माश्रय, आत्मनिर्भरता, स्वाश्रय।
स्नेह – प्रेम, प्रीति, अनुराग, प्यार, मोहब्बत, इश्क।
समुद्र – सागर, रत्नाकर, पयोधि, नदीश, सिन्धु, जलधि, पारावार, वारीश, अर्णव, अब्धि।
सरस्वती – भारती, शारदा, वीणापाणि, गिरा, वाणी, महाश्वेता, श्री, भाष, वाक्, हंसवाहिनी, ज्ञानदायिनी।
सूर्य – सूरज, दिनकर, दिवाकर, भास्कर, रवि, नारायण, सविता, कमलबन्धु, आदित्य, प्रभाकर, मार्तण्ड।
सम्पूर्ण – पूर्ण, समग्र, सारा, पूरा, मुकम्मल।
सर्प – भुजंग, अहि, विषधर, व्याल, फणी, उरग, साँप, नाग, अहि।
सुरपुर – सुलोक, स्वर्गलोक, हरिधाम, अमरपुर, देवराज्य, स्वर्ग।
सेठ – महाजन, सूदखोर, साहूकार, ब्याजजीवी, पूँजीपति, मालदार, धनवान, धनी, ताल्लुकदार।
संध्या – निशारंभ, दिनावसान, दिनांत, सायंकाल, गोधूलि, साँझ।
स्तुति – प्रार्थना, पूजा, आराधना, अर्चना।

(ह)

हंस – मुक्तमुक, मराल, सरस्वतीवाहन।
हाँसी – स्मिति, मुस्कान, हास्य।
हित – कल्याण, भलाई, भला, उपकार।
हक – अधिकार, स्वत्व, दावा, फर्ज़, उचित पक्ष।
हिमालय – हिमगिरि, हिमाद्रि, गिरिराज, शैलेन्द्र।
हनुमान् – पवनसुत, महावीर, आंजनेय, कपीश, बजरंगी, मारुतिनन्दन, बजरंग।
हाथ – कर, हस्त, पाणि, भुजा, बाहु, भुजाना
हाथी – गज, कुंजर, वितुण्ड, मतंग, नाग, द्विरद।
हार – (i) पराजय, पराभव, शिकस्त, मात। (ii) माला, कंठहार, मोहनमाला, अंकमालिका।
हिम – तुषार, तुहिन, नीहार, बर्फी
हिरन – मृग, हरिण, कुरंग, सारंग।
होशियार – समझदार, पटु, चतुर, बुद्धिमान, विवेकशील।
हेम – स्वर्ण, सोना, कंचन।
हरि – बंदर, इन्द्र, विष्णु, चंद्र, सिंह।

(क्ष)

क्षेत्र – प्रदेश, इलाका, भू–भाग, भूखण्ड।
क्षणभंगुर – अस्थिर, अनित्य, नश्वर, क्षणिका
क्षय – तपेदिक, यक्ष्मा, राजरोग।
क्षुब्ध – व्याकुल, विकल, उद्विग्न।
क्षमता – शक्ति, सामर्थ्य, बल, ताकत।
क्षीण – दुर्बल, कमज़ोर, बलहीन, कृश

(Paryayvachi Shabd) पर्यायवाची शब्द वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली

निर्देश (प्र.सं. 1-2) प्रश्नों में दिए गए शब्द के समानार्थक शब्द का चयन उसके नीचे दिए गए विकल्पों में से कीजिए।

प्रश्न 1.
विप्र (के.वी.एस.पी.आर.टी 2015)
(a) निर्धन
(b) धनी
(c) ब्राह्मण
(d) सैनिक
उत्तर :
(c) ब्राह्मण

प्रश्न 2.
आविर्भाव
(a) मृत्यु
(b) मोक्ष
(c) वानप्रस्थ
(d) उत्पत्ति
उत्तर :
(d) उत्पत्ति

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में पर्यायवाची शब्द है (अन्वेषक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) अचिर, अचर
(b) राधारमण, कंसनिकन्दन
(c) अम्बुज, अम्बुधि
(d) नीरद, नीरज
उत्तर :
(b) राधारमण, कंसनिकन्दन

प्रश्न 4.
कौन-सा विकल्प वैचारिक अन्तर के समानार्थी शब्दों का है?
(a) देखना, घूरना
(b) बेहद, असीम
(c) जल, नीर
(d) सौन्दर्य, खूबसूरती
उत्तर :
(a) देखना, घूरना

प्रश्न 5.
‘नौका’ शब्द का पर्याय बताइए।
(a) तिया
(b) तरंगिणी
(c) तरी
(d) तरणिजा
उत्तर :
(c) तरी

प्रश्न 6.
‘घर’ के लिए यह पर्यायवाची नहीं है (डी.एस.एस.एस.बी. असिस्टेंट टीचर परीक्षा 2015)
(a) गृह
(b) ग्रह
(c) आलय
(d) निलय
उत्तर :
(b) ग्रह

प्रश्न 7.
‘पवन’ का पर्यायवाची शब्द है (सहायक उपनिरीक्षक भर्ती परीक्षा 2014)
(a) मिलना
(b) पूजना
(c) समीर
(d) आदर
उत्तर :
(c) समीर

प्रश्न 8.
‘खर’ का पर्यायवाची शब्द है । (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) खरगोश
(b) शशक
(c) मूर्ख
(d) गधा
उत्तर :
(d) गधा

प्रश्न 9.
अनिल पर्यायवाची है (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) पवन का
(b) चक्रवात का
(c) पावस का
(d) अनल का
उत्तर :
(a) पवन का

प्रश्न 10.
‘प्रसून’ शब्द का पर्यायवाची है। (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) वृक्ष
(b) पुष्प
(c) चन्द्रमा
(d) अग्नि
उत्तर :
(b) पुष्प

Upsarg in Hindi – उपसर्ग (Upsarg) – परिभाषा, भेद और उदाहरण

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उपसर्ग (Upsarg)- परिभाषा, भेद और उदाहरण (Examples) in Hindi Grammar

upsarg-in-hindi

उपसर्ग (Upsarg) की परिभाषा भेद

यौगिक शब्दों के बारे में बताया जा चुका है कि इसमें दो रूढ़ों का प्रयोग होता है। इसके अलावा उपसर्गों, प्रत्ययों के कारण भी यौगिक शब्दों का निर्माण होता है। नीचे दिए गए उदाहरणों को देखें-
Upsarg in Hindi - उपसर्ग (Upsarg) - परिभाषा, भेद और उदाहरण 1

पो + इत्र = पवित्र (संधि के कारण)
(ओ + इ)

ऊपर दिए गए उदाहरणों से स्पष्ट है कि उपसर्ग, प्रत्यय, संधि और समास के कारण नये शब्दों का निर्माण होता है। संधि के बारे में हम जान चुके हैं। अब हम क्रमशः उपसर्ग, प्रत्यय

और समास विधि से शब्द-रचना सीखेंगे-

उपसर्ग

उप + सर्ग = उपसर्ग
‘उप’ का अर्थ है-समीप या निकट और ‘सर्ग’ का-सृष्टि करना।

“उपसर्ग वह शब्दांश या अव्यय है, जो किसी शब्द के आरंभ में जुड़कर उसके अर्थ में (मूल शब्द के अर्थ में) विशेषता ला दे या उसका अर्थ ही बदल दे।”

जैसे-

  • अभि + मान = अभिमान
  • प्र + चार = प्रचार आदि।

उपसर्ग की तीन गतियाँ या विशेषताएँ होती हैं-
1. शब्द के अर्थ में नई विशेषता लाना।

जैसे-

  • प्र + बल = प्रबल
  • अनु + शासन = अनुशासन

2. शब्द के अर्थ को उलट देना।

जैसे-

  • अ + सत्य = असत्य
  • अप + यश = अपयश

3. शब्द के अर्थ में, कोई खास परिवर्तन न करके मूलार्थ के इर्द-गिर्द अर्थ प्रदान करना।

जैसे-

  • वि + शुद्ध = विशुद्ध
  • परि + भ्रमण = परिभ्रमण

उपसर्ग शब्द-निर्माण में बड़ा ही सहायक होता है। एक ही मूल शब्द विभिन्न उपसर्गों के योग से विभिन्न अर्थ प्रकट करता है।

जैसे-

  • प्र + हार = प्रहार : चोट करना
  • आ + हार = आहार : भोजन
  • सम् + हार = संहार : नाश
  • वि + हार = विहार : मनोरंजनार्थ यत्र-तत्र घूमना
  • परि + हार = परिहार : अनादर, तिरस्कार
  • उप + हार = उपहार : सौगात
  • उत् = हार = उद्धार : मोक्ष, मुक्ति

हिन्दी भाषा में तीन प्रकार के उपसर्गों का प्रयोग होता है-

  • संस्कृत के उपसर्ग : कुल 22 उपसर्ग
  • हिन्दी के अपने उपसर्ग : कुल 10 उपसर्ग
  • विदेशज उपसर्ग : कुल 12 उपसर्ग

ये उपसर्ग जहाँ कहीं भी किसी संज्ञा या विशेषण से जुड़ते हैं, वहाँ कोई-न-कोई समास अवश्य रहता है। यह सोचना भ्रम है कि उपसर्ग का योग समास से स्वतंत्र रूप में नये शब्द के निर्माण का साधन है। हाँ, समास के कारण भी कतिपय जगहों पर शब्द-निर्माण होता है।

अव्ययीभाव समास – तत्पुरुष समास
आ + जीवन = आजीवन – प्र + आचार्य = प्राचार्य
प्रति + दिन = प्रतिदिन – प्र + ज्ञ = प्रज्ञ
सम् + मुख = सम्मुख – अति + इन्द्रिय = अतीन्द्रिय
अभि + मुख = अभिमुख
अधि + गृह = अधिगृह
उप + गृह = उपगृह

बहुव्रीहि समास

प्र + बल = प्रबल : प्रकृष्ट हैं बल जिसमें
निर् + बल = निर्बल : नहीं है बल जिसमें
उत् + मुख = उन्मुख : ऊपर है मुख जिसका
वि + मुख = विमुख : विपरीत है मुख जिसका

प्रमुख उपसर्ग, अर्थ एवं उनसे बने शब्द

अर्थ – नवीन शब्द

संस्कृत के उपसर्ग

प्र अधिक, उत्कर्ष, गति, यश, उत्पत्ति, प्रबल, प्रताप, प्रक्रिया, प्रलाप, प्रयत्न,
आगे – प्रलोभन, प्रदर्शन, प्रदान, प्रकोप
परा – उल्टा, पीछे, अनादर, नाश पराजय, – पराभव, पराक्रम, परामर्श, पराकाष्ठा
अप – लघुता, हीनता, दूर, ले जाना – अपमान, अपयश, अपकार, अपहरण, अपसरण, अपादान, अपराध, अपकर्ष
सम् – अच्छा, पूर्ण, साथ – संगम, संवाद, संतोष, संस्कार, समालोचना, संयुक्त
अनु – पीछे, निम्न, समान, क्रम – अनुशासन, अनुवाद, अनुभव, अनुराग, अनुशीलन, अनुकरण

अर्थ – नवीन शब्द

अव – अनादर हीनता, पतन, विशेषता – अवकाश, अवनत, अवतार, अवमान, अवसर, अवधि
निसृ – रहित, पूरा, विपरीत – निस्तार, निस्सार, निस्तेज, निष्कृति, निश्चय, निष्पन्न
नीर – बिना, बाहर, निषेध – निरपराध, निर्जन, निराकार, निर्वाह, निर्गम, निर्णय, निर्मम, निर्यात, निर्देश
दुस्रू – बुरा, कठिन – दुश्शासन, दुष्कर, दुस्साहस, दुस्तर, दुःसह
दूर – कठिनता, दुष्टता, निंदा, हीनता – दुर्जन, दुराचार, दुर्लभ, दुर्दिन।
वि – भिन्नता, हीनता, असमानता, विशेषता – वियोग, विवरण, विमान, विज्ञान, विदेश, विहार
नि – निषेध, निश्चित, अधिकता – निवारण, निपात, नियोग, निवास, निगम, निदान
आ – तक, समेत, उल्टा – आकण्ठ, आगमन, आरोहण, आकार, आहार, आदेश
अति – अत्यधिक – अतिशय, अत्याचार, अतिपात, अतिरिक्त, अतिक्रमण
अधि – ऊपर, श्रेष्ठ, समीपता, उपरिभाव – अधिकार, अधिपति, अध्यात्म, अधिगत, अध्ययन, अधीक्षक, अध्यवसाय
सु – उत्तमता, सुगमता, श्रेष्ठता। – सुगम, सुजन, सुकाल, सुलभ, सुपच, सुरम्य,
उत् – ऊँचा, श्रेष्ठ, ऊपर – उत्कर्ष, उदय, उत्पत्ति, उत्कृष्ट, उत्पात, उद्धार
अभि – सामने, पास, अच्छा, चारों ओर – अभिमुख, अभ्यागत, अभिप्राय, अभिकरण, अभिधान, अभिनव
परि – आस-पास, सब तरफ, पूर्णता – परिक्रमा, परिजन, परिणाम, परिमाण, परिश्रम, परित्यक्त
उप – निकट, सदृश, गौण, सहायता, लघुता – उपवन, उपकूल, उपकार, उपहार, उपार्जन, उपेक्षा, उपादान, उपपत्ति। प्रतिकार, प्रतिज्ञा,
प्रति – विशेषार्थ में – प्रतिष्ठा, प्रतिदान, प्रतिभा, प्रतिमा

हिन्दी के उपसर्ग

अ/अन अभाव, निषेध – अछूता, अचेत, अनमोल, अनपढ़, अनगढ़, अपढ़
क/कु बुराई, नीचता – कुचाल, कुठौर, कपूत
अध आधा – अधपका, अधमरा, अधकचरा
औ/अव हीनता, अनादर, निषेध – अवगुण, औघट, औढ़र
नि निषेध, अभाव – निडर, निकम्मा, निहत्था, निठुर
भर पूरा – भरपेट, भरपूर, भरसक
सुस उत्तमता, साथ – सुडौल, सुजान, सपूत
उन एक कम – उनचास, उनतीस, उनासी
दु कम, बुरा – दुबला
बिन अभाव, बिना – बिनदेखा, बिनबोला

विदेशज उपसर्ग अरबी-फारसी के उपसर्ग

  • कम अल्प, हीन – कमजोर, कमसिन
  • खुश उत्तमता – खुशबू, खुशहाल, खुशखबरी

अर्थ – नवीन शब्द

गैर निषेध, रहित – गैरहाजिर, गैरकानूनी
दर अन्दर, में – दरअसल, दरहकीकत, दरकार
ना अभाव, रहित – नालायक, नाजायज, नापसंद
ब अनुसार – बनाम, बदौलत
बद हीनता – बदतमीज, बदबू
बर पर – बरवक्त, बरखास्त
बा – बाकायदा, बाकलम
बिला बिना – बिलाअक्ल, बिलारोक
ला अभाव – बेईमान, बेवकूफ, बेहोश
ला अभाव, बिना – लाजवाब, लावारिस, लापरवाह
सर श्रेष्ठ – सरताज, सरपंच, सरनाम
हम साथ – हमदर्द, हमसफर, हमउम्र, हमराज
प्रत्येक – हररोज, हरघड़ी, हरदफा

उपसर्गवत् अव्यय, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण

अ अभाव, निषेध – अधर्म, अज्ञान, अनीति
अन् अभाव/निषेध – अनर्थ, अनंत
अन्तर भीतर – अन्तर्नाद, अन्तर्राष्ट्रीय
का/कु बुरा – कापुरुष, कुपुत्र
चिर बहुत – चिरकाल, चिरंजीव
न अभाव – नगण्य, नपुंसक
पुनर् फिर – पुनर्निर्माण, पुनरागमन
पुरा पहले – पुरातन, पुरातत्त्व
बाहिर/ बाहर – बहिष्कार, बहिर्धार
बहिस् –
स सहित – सपरिवार, सदेह, सचेत
सत् अच्छा – सत्पात्र, सदाचार
सह, साथ – सहकारी, सहोदर
अलम् शोभा, बेकार – अलंकार
आविस प्रकट/बाहर होना – आविष्कार, आविर्भाव
तिरस् तिरछा, टेढ़ा, अदृश्य – तिरस्कार, तिरोभाव
पुरस् सामने – पुरस्कार
प्रादुर् प्रकट होना, सामने आना – प्रादुर्भाव, प्रादुर्भूत
साक्षात् – साक्षात्कार

दो उपसर्गों से निर्मित शब्द

निर् + आ + करण = निराकरण
प्रति + उप + कार = प्रत्युपकार
सु + सम् + कृत = सुसंस्कृत
अन् + आ + हार = अनाहार
सम् + आ + चार = समाचार
अन् + आ + सक्ति = अनासक्ति
अ + सु + रक्षित = असुरक्षित
सम् + आ + लोचना = समालोचना
सु + सम् + गठित = सुसंगठित
अ + नि + यंत्रित = अनियंत्रित
अति + आ + चार = अत्याचार
अ + प्रति + अक्ष = अप्रत्यक्ष

Samas in Hindi | समास परिभाषा व भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

Samas Vigraha Examples In Hindi

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Samas in Hindi (समास इन हिंदी) | Samas ki Paribhasha Aur Uske Bhed, Udaharan (Examples) – Hindi Grammar

What is Samas in Hindi

समास ‘संक्षिप्तिकरण’ को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में समास संक्षेप करने की एक प्रक्रिया है। दो या दो से अधिक शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले शब्दों अथवा कारक चिह्नों का लोप होने पर उन दो अथवा दो से अधिक शब्दों के मेल से बने एक स्वतन्त्र शब्द को समास कहते हैं। उदाहरण ‘दया का सागर’ का सामासिक शब्द बनता है ‘दयासागर’।

समास हिंदी में (Types of Samas in Hindi Grammar)

समास में विषय :

  • समास क्या है? (Samas kya hey)
  • समास के प्रश्न (Samas key prashn)
  • समास परिभाषा व भेद (Samas Paribhasha va Bhed)
  • बहुव्रीहि समास के उदाहरण (Bahuvir Samas key Udaharan)
  • समास के भेद का चार्ट (Samas key Bhed ka Chart)
  • कर्मधारय समास (Karmadhaaray Samaas)
  • समास के प्रकार और उदाहरण (Samaas Ke Prakaar aur Udaaharan)

इस उदाहरण में ‘दया’ और ‘सागर’ इन दो शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले ‘का’ प्रत्यय का लोप होकर एक स्वतन्त्र शब्द बना ‘दयासागर’। समासों के परम्परागत छ: भेद हैं-

  1. द्वन्द्व समास
  2. द्विगु समास
  3. तत्पुरुष समास
  4. कर्मधारय समास
  5. अव्ययीभाव समास
  6. बहुव्रीहि समास

Samas Vigraha Examples in Hindi

1. द्वन्द्व समास

जिस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों ही प्रधान हों अर्थात् अर्थ की दृष्टि से दोनों का स्वतन्त्र अस्तित्व हो और उनके मध्य संयोजक शब्द का लोप हो तो द्वन्द्व समास कहलाता है;

जैसे

  • माता-पिता = माता और पिता
  • राम-कृष्ण = राम और कृष्ण
  • भाई-बहन = भाई और बहन
  • पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
  • सुख-दुःख = सुख और दुःख

2. द्विगु समास

जिस समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो, द्विगु समास कहलाता है।

जैसे-

  • नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
  • सप्तदीप = सात दीपों का समूह
  • त्रिभुवन = तीन भुवनों का समूह
  • सतमंजिल = सात मंजिलों का समूह

3. तत्पुरुष समास

जिस समास में पूर्वपद गौण तथा उत्तरपद प्रधान हो, तत्पुरुष समास कहलाता है। दोनों पदों के बीच परसर्ग का लोप रहता है। परसर्ग लोप के आधार पर तत्पुरुष समास के छ: भेद हैं

(i) कर्म तत्पुरुष (‘को’ का लोप) जैसे-

  • मतदाता = मत को देने वाला
  • गिरहकट = गिरह को काटने वाला

(ii) करण तत्पुरुष जहाँ करण-कारक चिह्न का लोप हो; जैसे-

  • जन्मजात = जन्म से उत्पन्न
  • मुँहमाँगा = मुँह से माँगा
  • गुणहीन = गुणों से हीन

(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष जहाँ सम्प्रदान कारक चिह्न का लोप हो; जैसे-

  • हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी
  • सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
  • युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि

(iv) अपादान तत्पुरुष जहाँ अपादान कारक चिह्न का लोप हो; जैसे-

  • धनहीन = धन से हीन
  • भयभीत = भय से भीत
  • जन्मान्ध = जन्म से अन्धा

(v) सम्बन्ध तत्पुरुष जहाँ सम्बन्ध कारक चिह्न का लोप हो; जैसे

  • प्रेमसागर = प्रेम का सागर
  • दिनचर्या = दिन की चर्या
  • भारतरत्न = भारत का रत्न

(vi) अधिकरण तत्पुरुष जहाँ अधिकरण कारक चिह्न का लोप हो; जैसे-

  • नीतिनिपुण = नीति में निपुण
  • आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
  • घुड़सवार = घोड़े पर सवार

4. कर्मधारय समास

जिस समास में पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य हो, कर्मधारय समास कहलाता है। इसमें भी उत्तरपद प्रधान होता है; जैसे

  • कालीमिर्च = काली है जो मिर्च
  • नीलकमल = नीला है जो कमल
  • पीताम्बर = पीत (पीला) है जो अम्बर
  • चन्द्रमुखी = चन्द्र के समान मुख वाली
  • सद्गुण = सद् हैं जो गुण

5. अव्ययीभाव समास

जिस समास में पूर्वपद अव्यय हो, अव्ययीभाव समास कहलाता है। यह वाक्य में क्रिया-विशेषण का कार्य करता है; जैसे-

  • यथास्थान = स्थान के अनुसार
  • आजीवन = जीवन-भर
  • प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
  • यथासमय = समय के अनुसार

6. बहुव्रीहि समास

जिस समास में दोनों पदों के माध्यम से एक विशेष (तीसरे) अर्थ का बोध होता है, बहुव्रीहि समास कहलाता है; जैसे

  • महात्मा = महान् आत्मा है जिसकी अर्थात् ऊँची आत्मा वाला।
  • नीलकण्ठ = नीला कण्ठ है जिनका अर्थात् शिवजी।
  • लम्बोदर = लम्बा उदर है जिनका अर्थात् गणेशजी।
  • गिरिधर = गिरि को धारण करने वाले अर्थात् श्रीकृष्ण।
  • मक्खीचूस = बहुत कंजूस व्यक्ति

Samas in Hindi Worksheet Exercise Questions with Answers PDF

1. किस समास में शब्दों के मध्य में संयोजक शब्द का लोप होता है?
(a) द्विगु (b) तत्पुरुष (c) द्वन्द्व (d) अव्ययीभाव
उत्तर :
(c) द्वन्द्व

2. पूर्वपद संख्यावाची शब्द है
(a) अव्ययीभाव (b) द्वन्द्व (c) कर्मधारय (d) द्विगु
उत्तर :
(d) द्विगु

3. ‘जन्मान्ध’ शब्द है
(a) कर्मधारय (b) तत्पुरुष (c) बहुव्रीहि (d) द्विगु
उत्तर :
(b) तत्पुरुष

4. ‘यथास्थान’ सामासिक शब्द का विग्रह होगा
(a) यथा और स्थान (b) स्थान के अनुसार (c) यथा का स्थान (d) स्थान का यथा
उत्तर :
(b) स्थान के अनुसार

5. जिस समास में दोनों पदों के माध्यम से एक विशेष (तीसरे) अर्थ का बोध होता है, उसे कहते हैं-
(a) अव्ययीभाव (b) द्विगु (c) तत्पुरुष (d) बहुव्रीहि
उत्तर :
(d) बहुव्रीहि

6. ‘सप्तदीप’ सामासिक पद का विग्रह होगा
(a) सप्त द्वीपों का स्थान (b) सात दीपों का समूह (c) सप्त दीप (d) सात दीप
उत्तर :
(b) सात दीपों का समूह

7. ‘मतदाता’ सामासिक शब्द का विग्रह होगा
(a) मत को देने वाला (b) मत का दाता (c) मत के लिए दाता (d) मत और दाता
उत्तर :
(a) मत को देने वाला

8. ‘आत्मविश्वास’ में समास है-
(a) कर्मधारय (b) बहुव्रीहि (c) तत्पुरुष (d) अव्ययीभाव
उत्तर :
(c) तत्पुरुष

9. ‘नीलकमल’ का विग्रह होगा
(a) नीला है जो कमल (b) नील है कमल (c) नीला कमल (d) नील कमल
उत्तर :
(a) नीला है जो कमल

10. ‘लम्बोदर’ का विग्रह पद होगा
(a) लम्बा उदर है जिसका अर्थात् गणेशजी (b) लम्बा ही है उदर जिसका (c) लम्बे उदर वाले गणेश जी (d) लम्बे पेट वाला
उत्तर :
(a) लम्बा उदर है जिसका अर्थात् गणेशजी

Pratyay in Hindi प्रत्यय | प्रत्यय परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

Pratyay in Hindi

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प्रत्यय – Pratyay ki Paribhasha, Prakar, Bhed aur Udaharan (Examples) in Hindi Grammar

प्रत्यय ‘प्रत्यय’ दो शब्दों से बना है– प्रति + अय। ‘प्रति’ का अर्थ है ‘साथ में, पर बाद में; जबकि ‘अय’ का अर्थ ‘चलने वाला’ है। अत: ‘प्रत्यय’ का अर्थ हुआ, ‘शब्दों के साथ, पर बाद में चलने वाला या लगने वाला, अत: इसका प्रयोग शब्द के अन्त में किया जाता है। प्रत्यय किसी भी सार्थक मूल शब्द के पश्चात् जोड़े जाने वाले वे अविकारी शब्दांश हैं, जो शब्द के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ में या भाव में परिवर्तन कर देते हैं अर्थात् शब्द में नवीन विशेषता उत्पन्न कर देते हैं या अर्थ बदल देते हैं।

जैसे–

  • सफल + ता = सफलता
  • अच्छा + ई = अच्छाई

यहाँ ‘ता’ और ‘आई’ दोनों शब्दांश प्रत्यय हैं, जो ‘सफल’ और ‘अच्छा’ मूल शब्द के बाद में जोड़ दिए जाने पर ‘सफलता’ और ‘अच्छाई’ शब्द की रचना करते हैं। हिन्दी भाषा के प्रत्यय को चार भागों में विभक्त किया गया है। जो निम्न हैं

  1. संस्कृत प्रत्यय
  2. हिन्दी प्रत्यय
  3. विदेशज प्रत्यय
  4. ई प्रत्यय

हिन्दी प्रत्यय
(i) कृत् (कृदन्त) मूल क्रिया के साथ कृत् प्रत्यय को जोड़कर नए शब्दों की रचना की जाती है।

  • प्रत्यय – मूल क्रिया – उदाहरण
  • अ – लूटू, खेल – लूट, खेल
  • अक्कड़ – पी, घूम् – पिअक्कड़, घुमक्कड़
  • अन्त – लड़, पिट् – लड़न्त, पिटन्त
  • अन – जल, ले – जलन, लेन
  • अना – पढ़, दे – पढ़ना, देना
  • आ – मेल, बैठ – मेला, बैठा
  • आई – खेल, लिख – खेलाई, लिखाई
  • आऊ – टिक्, खा – टिकाऊ, खाऊ
  • आन – उठ्, मिल् – उठान, मिलान
  • आव – घुम् , जम् – घुमाव, जमाव
  • आवा – छल्, बहक् – छलावा, बहकावा
  • आवना, – सुह, डर – सुहावना, डरावना
  • आक, आका, आकू – तैराक, लड़ाका, पढ़ाकू
  • आप, आपा – तैर, लड़ा, पढ़ – मिलाप, पुजापा
  • आवट – मिल्, पुज – बनावट, दिखावट
  • आहट – बन्, दिख् – घबराहट, झनझनाहट
  • आस – पी, मीठा – प्यास, मिठास
  • इयल – मर्, अड़ – मरियल, अड़ियल
  • इया – छल, घट – छलिया, घटिया
  • ई – घुड़क्, लग – घुड़की, लगी
  • ऊ – मार्, काट् – मारू, काटू
  • एरा – लूट, बस् – लुटेरा, बसेरा
  • ऐया – हँस, बच – हँसैया, बचैया
  • ऐत – लड़, बिगड़ – लडैत, बिगडैत
  • ओड़, ओड़ा – भाग, हँस, – भगोड़ा, हँसोड़
  • औता, औती – समझ्, चुन् – समझौता, चुनौती
  • औना, औनी, आवनी – खेल्, मिच्, डर् – खिलौना, मिचौनी, डरावनी
  • का – छील, फूल – छिलका, फूलका
  • वाला – जा, सो – जाने वाला, सोनेवाला

(ii) हिन्दी के तद्धित प्रत्यय हिन्दी के तद्भव शब्दों में तद्धित प्रत्यय जोड़कर संज्ञा और विशेषण शब्द बनाने वाले कुछ प्रत्यय

  • प्रत्यय – मूल क्रिया – उदाहरण
  • आ – भूख, प्यास – भूखा, प्यासा
  • आई – विदा, ठाकुर – विदाई, ठकुराई
  • आन – ऊँचा, नीचा – ऊँचान, निचान
  • आना – तेलंग, बघेल – तेलंगना, बघेलाना
  • आर – कुम्भ, सोना – कुम्भार, सोनार
  • आरी, आरा – हत्या, घास – हत्यारा, घसियारा
  • आल, आला – ससुर, दया – ससुराल, दयाला
  • आवट – नीम, आम – निमावट, अमावट
  • आस – मीठा, खट्टा – मिठास, खटास
  • आहट – चिकना, कडुआ – चिकनाहट, कडुवाहट
  • इया – दुःख, भोजपुर – दुखिया, भोजपुरिया
  • ई – खेत, सुस्त – खेती, सुस्ती
  • ईला – रंग, जहर – रंगीला, जहरीला
  • ऊ – गँवार, बाज़ार – गँवारू, बाज़ारू
  • एरा – मामा, चाचा – ममेरा, चचेरा
  • एड़ी – भांग, गाँजा – भँगेड़ी, गजेड़ी
  • औती – काठ, मान – कठौती, मनौती
  • ओला – सॉप, खाट – सँपोला, खटोला
  • का – ढोल, बाल – ढोलक, बालक
  • ऐल – झगड़ा, तोंद – झगडैल, तोंदैल
  • त – संग, रंग – संगत, रंगत
  • पन – मैला, लड़का – मैलापन, लड़कपन
  • पा – बहन, बूढ़ा – बहनापा, बुढ़ापा
  • हारा – लकड़ी, पानी – लकड़हारा, पनिहारा
  • स – उष्मा, तम – उमस, तमस
  • ता – मधुर, मनुज – मधुरता, मनुजता
  • हरा – एक, तीन – एकहरा, तिहरा
  • वाला – टोपी, धन – टोपीवाला, धनवाला

(iii) हिन्दी के स्त्री प्रत्यय पुल्लिगवाची शब्दों के साथ जुड़ने वाले स्त्रीलिंगवाची

  • प्रत्यय – मूल क्रिया – उदाहरण
  • आइन – पण्डित, लाला – पण्डिताइन, ललाइन
  • आनी – राजपूत, जेठ – राजपूतानी, जेठानी
  • इन – तेली, दर्जी – तेलिन, दर्जिन
  • इया – चूहा, बेटा – चुहिया, बिटिया
  • ई – घोड़ा, नाना – घोड़ी, नानी
  • नी – शेर, मोर – शेरनी, मोरनी

3. विदेशज प्रत्यय
(उर्दू एवं फ़ारसी के प्रत्यय)

विदेशी भाषा से आए हुए प्रत्ययों से निर्मित शब्द

  • प्रत्यय – मूल शब्द – उदाहरण
  • कार – पेश, काश्त – पेशकार, काश्तकार
  • खाना – डाक, मुर्गी – डाकखाना, मुर्गीखाना
  • खोर – रिश्वत, चुगल – रिश्वतखोर, चुगलखोर
  • दान – कलम, पान – कलमदान, पानदान
  • दार – फल, माल – फलदार, मालदार
  • आ – खराब, चश्म – खराबा, चश्मा
  • आब – गुल, जूल – गुलाब, जुलाब
  • इन्दा – वसि, चुनि – बसिन्दा, चुनिन्दा

4. ई प्रत्यय
इनके प्रयोग से भाववाचक स्त्रीलिंग शब्द बनते हैं।

  • प्रत्यय – मूल शब्द – उदाहरण
  • ई – रिश्तेदार, दोस्त – रिश्तेदारी, दोस्ती
  • बाज – अकड़, नशा – अकड़बाज, नशाबाज
  • आना – आशिक, मेहनत – आशिकाना, मेहनताना
  • गर – कार, जिल्द – कारगर, जिल्दगर
  • साज – जिल्द, घड़ी – जिल्दसाज, घड़ीसाज
  • गाह – ईद, कब्र – ईदगाह, कब्रगाह
  • ईना – माह, नग – महीना, नगीना
  • बन्द, बन्दी – मेंड, हद – मेंड़बन्द, हदबन्दी

Pratyay in Hindi Worksheet Exercise with Answers PDF

1. ‘प्रत्यय’ शब्द निर्मित है
(a) प्रत् + अय (b) प्रत्य + य (c) प्रति + अय (d) प्रति + य
उत्तर :
(c) प्रति + अय

2. ‘प्रत्यय’ लगाए जाते हैं
(a) शब्द के आदि में (b) शब्द के मध्य में (c) शब्द के अन्त में (d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(c) शब्द के अन्त में

3. जो शब्द के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ या भाव में परिवर्तन कर देते हैं, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर :
(a) समास (b) अव्यय (c) उपसर्ग (d) प्रत्यय
(d) प्रत्यय

4. “कृत्’ प्रत्यय किन शब्दों के साथ जुड़ते हैं?
उत्तर :
(a) संज्ञा (b) सर्वनाम (c) विशेषण (d) क्रिया
(d) क्रिया

5. निम्नलिखित में कौन–सा पद ‘इक’ प्रत्यय से नहीं बना है?
उत्तर :
(a) दैविक (b) सामाजिक (c) भौमिक (d) इनमें से कोई नहीं
(d) इनमें से कोई नहीं

6. ‘अनुज’ शब्द को स्त्रीवाचक बनाने के लिए किस प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर :
(a) आङ् (b) ईयत् (c) आ (d) ई
(c) आ

7. ‘सनसनाहट’ में कौन–सा प्रत्यय है?
(a) सन (b) सनसन (c) हट (d) आहट
उत्तर :
(d) आहट.

8. ‘दासत्व’ में प्रत्यय है
(a) त्व (b) सत्व (c) व (d) तव
उत्तर :
(a) त्व

Alankar in Hindi अलंकार – अलंकार की परिभाषा, प्रकार, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

Learn Hindi Grammar online with example, all the topics are described in easy way for education. Alankar in Hindi Prepared for Class 10, 9 Students and all competitive exams.

Alankar in Hindi (अलंकार इन हिंदी) Alankar Ki Paribhasha, Bhed, Udaharan(Examples) & Types in Hindi Grammar

अलंकार (Figure of Speech)

alankar in hindi

अलंकार की परिभाषा

काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-

  1. शब्दालंकार,
  2. अर्थालंकार,
  3. उभयालंकार और
  4. पाश्चात्य अलंकार।

अलंकार का विवेचन

शब्दालंकार

काव्य में शब्दगत चमत्कार को शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकार मुख्य रुप से सात हैं, जो निम्न प्रकार हैं-अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश, पुनरुक्तिवदाभास और वीप्सा आदि।

1. अनुप्रास अलंकार

एक या अनेक वर्गों की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति को ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं-
(i) छेकानुप्रास जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है;

जैसे-
“इस करुणा कलित हृदय में,
अब विकल रागिनी बजती”

यहाँ करुणा कलित में छेकानुप्रास है।

(ii) वृत्यानुप्रास काव्य में पाँच वृत्तियाँ होती हैं-मधुरा, ललिता, प्रौढ़ा, परुषा और भद्रा। कुछ विद्वानों ने तीन वृत्तियों को ही मान्यता दी है-उपनागरिका, परुषा और कोमला। इन वृत्तियों के अनुकूल वर्ण साम्य को वृत्यानुप्रास कहते हैं;

जैसे-
‘कंकन, किंकिनि, नूपुर, धुनि, सुनि’

यहाँ पर ‘न’ की आवृत्ति पाँच बार हुई है और कोमला या मधुरा वृत्ति का पोषण हुआ है। अत: यहाँ वृत्यानुप्रास है।

(iii) श्रुत्यनुप्रास जहाँ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वाले वर्षों की आवृत्ति होती है, वहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार होता है;

जैसे-
तुलसीदास सीदति निसिदिन देखत तुम्हार निठुराई’

यहाँ ‘त’, ‘द’, ‘स’, ‘न’ एक ही उच्चारण स्थान (दन्त्य) से उच्चरित होने। वाले वर्षों की कई बार आवृत्ति हुई है, अत: यहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार है।

(iv) अन्त्यानुप्रास अलंकार जहाँ पद के अन्त के एक ही वर्ण और एक ही स्वर की आवृत्ति हो, वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है;

जैसे-
“जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर”।

यहाँ दोनों पदों के अन्त में ‘आगर’ की आवृत्ति हुई है, अत: अन्त्यानुप्रास अलंकार है।

(v) लाटानुप्रास जहाँ समानार्थक शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो परन्तु अर्थ में अन्तर हो, वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है;

जैसे-
“पूत सपूत, तो क्यों धन संचय?
पूत कपूत, तो क्यों धन संचय”?

यहाँ प्रथम और द्वितीय पंक्तियों में एक ही अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग हुआ, है परन्तु प्रथम और द्वितीय पंक्ति में अन्तर स्पष्ट है, अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।

2. यमक अलंकार

जहाँ एक शब्द या शब्द समूह अनेक बार आए किन्तु उनका अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है;

जैसे-
“जेते तुम तारे, तेते नभ में न तारे हैं”

यहाँ पर ‘तारे’ शब्द दो बार आया है। प्रथम का अर्थ ‘तारण करना’ या ‘उद्धार करना’ है और द्वितीय ‘तारे’ का अर्थ ‘तारागण’ है, अतः यहाँ यमक अलंकार है।

3. श्लेष अलंकार

जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है;

जैसे-
“रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।”

यहाँ ‘पानी’ के तीन अर्थ हैं—’कान्ति’, ‘आत्मसम्मान’ और ‘जल’, अत: यहाँ श्लेष अलंकार है।

4. वक्रोक्ति अलंकार

जहाँ पर वक्ता द्वारा भिन्न अभिप्राय से व्यक्त किए गए कथन का श्रोता ‘श्लेष’ या ‘काकु’ द्वारा भिन्न अर्थ की कल्पना कर लेता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। इसके दो भेद हैं-श्लेष वक्रोक्ति और काकु वक्रोक्ति।

(i) श्लेष वक्रोक्ति जहाँ शब्द के श्लेषार्थ के द्वारा श्रोता वक्ता के कथन से भिन्न अर्थ अपनी रुचि या परिस्थिति के अनुकूल अर्थ ग्रहण करता है, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
“गिरजे तुव भिक्षु आज कहाँ गयो,
जाइ लखौ बलिराज के द्वारे।
व नृत्य करै नित ही कित है,
ब्रज में सखि सूर-सुता के किनारे।
पशुपाल कहाँ? मिलि जाइ कहूँ,
वह चारत धेनु अरण्य मँझारे।।”

(ii) काकु वक्रोक्ति जहाँ किसी कथन का कण्ठ की ध्वनि के कारण दूसरा __ अर्थ निकलता है, वहाँ काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है;
जैसे-
“मैं सुकुमारि, नाथ वन जोगू।
तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।”

5. पुनरुक्तिप्रकाश इस अलंकार में कथन के सौन्दर्य के बहाने एक ही शब्द की आवृत्ति को पुनरुक्तिप्रकाश कहते हैं;

जैसे-
“ठौर-ठौर विहार करती सुन्दरी सुरनारियाँ।”

यहाँ ‘ठौर-ठौर’ की आवृत्ति में पुनरुक्तिप्रकाश है। दोनों ‘ठौर’ का अर्थ एक ही . है परन्तु पुनरुक्ति से कथन में बल आ गया है।

6. पुनरुक्तिवदाभास

जहाँ कथन में पुनरुक्ति का आभास होता है, वहाँ पुनरुक्तिवदाभास अलंकार होता है;

जैसे-
“पुनि फिरि राम निकट सो आई।”

यहाँ ‘पुनि’ और ‘फिरि’ का समान अर्थ प्रतीत होता है, परन्तु पुनि का अर्थ-पुन: (फिर) है और ‘फिरि’ का अर्थ-लौटकर होने से पुनरुक्तिावदाभास अलंकार है।

7. वीप्सा

जब किसी कथन में अत्यन्त आदर के साथ एक शब्द की अनेक बार आवृत्ति होती है तो वहाँ वीप्सा अलंकार होता है;

जैसे-
“हा! हा!! इन्हें रोकन को टोक न लगावो तुम।”

यहाँ ‘हा!’ की पुनरुक्ति द्वारा गोपियों का विरह जनित आवेग व्यक्त होने से वीप्सा अलंकार है।

अर्थालंकार

साहित्य में अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहते हैं। प्रमुख अर्थालंकार मुख्य रुप से तेरह हैं-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, भ्रान्तिमान, सन्देह, दृष्टान्त, अतिशयोक्ति, विभावना, अन्योक्ति, विरोधाभास, विशेषोक्ति, प्रतीप, अर्थान्तरन्यास आदि।

1. उपमा

समान धर्म के आधार पर जहाँ एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा के चार अंग हैं

  1. उपमेय वर्णनीय वस्तु जिसकी उपमा या समानता दी जाती है, उसे ‘उपमेय’ कहते हैं; जैसे-उसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। वाक्य में ‘मुख’ की चन्द्रमा से समानता बताई गई है, अत: मुख उपमेय है।
  2. उपमान जिससे उपमेय की समानता या तुलना की जाती है उसे उपमान कहते हैं; जैसे-उपमेय (मुख) की समानता चन्द्रमा से की गई है, अतः चन्द्रमा उपमान है।
  3. साधारण धर्म जिस गुण के लिए उपमा दी जाती है, उसे साधारण धर्म कहते हैं। उक्त उदाहरण में सुन्दरता के लिए उपमा दी गई है, अत: सुन्दरता साधारण धर्म है।
  4. वाचक शब्द जिस शब्द के द्वारा उपमा दी जाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में समान शब्द वाचक है। इसके अलावा ‘सी’, ‘सम’, ‘सरिस’ सदृश शब्द उपमा के वाचक होते हैं। उपमा के तीन भेद हैं–पूर्णोपमा, लुप्तोपमा और मालोपमा।

(क) पूर्णोपमा जहाँ उपमा के चारों अंग विद्यमान हों वहाँ पूर्णोपमा अलंकार होता है;

जैसे-
हरिपद कोमल कमल से”

(ख) लुप्तोपमा जहाँ उपमा के एक या अनेक अंगों का अभाव हो वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है;

जैसे-
“पड़ी थी बिजली-सी विकराल।
लपेटे थे घन जैसे बाल”।

(ग) मालोपमा जहाँ किसी कथन में एक ही उपमेय के अनेक उपमान होते हैं वहाँ मालोपमा अलंकार होता है।

जैसे-
“चन्द्रमा-सा कान्तिमय, मृदु कमल-सा कोमल महा
कुसुम-सा हँसता हुआ, प्राणेश्वरी का मुख रहा।।”

2. रूपक

जहाँ उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप हो अर्थात् उपमेय और उपमान को एक रूप कह दिया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है;

जैसे-
“बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी”।

यहाँ अम्बर-पनघट, तारा-घट, ऊषा-नागरी में उपमेय उपमान एक हो गए हैं, अत: रूपक अलंकार है।

3. उत्प्रेक्षा

जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें जनु, मनु, मानो, जानो, इव, जैसे वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। उत्प्रेक्षा के तीन भेद हैं-वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा।

(i) वस्तूत्प्रेक्षा जहाँ एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना की जाए वहाँ वस्तूत्प्रेक्षा होती है;

जैसे-
“उसका मुख मानो चन्द्रमा है।”

(ii) हेतृत्प्रेक्षा जब किसी कथन में अवास्तविक कारण को कारण मान लिया जाए तो हेतूत्प्रेक्षा होती है;

जैसे-
“पिउ सो कहेव सन्देसड़ा, हे भौंरा हे काग।
सो धनि विरही जरिमुई, तेहिक धुवाँ हम लाग”।।

यहाँ कौआ और भ्रमर के काले होने का वास्तविक कारण विरहिणी के विरहाग्नि में जल कर मरने का धुवाँ नहीं हो सकता है फिर भी उसे कारण माना गया है अत: हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।

(iii) फलोत्प्रेक्षा जहाँ अवास्तविक फल को वास्तविक फल मान लिया जाए, वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है;

जैसे-
“नायिका के चरणों की समानता प्राप्त करने के लिए कमल जल में तप रहा है।”

यहाँ कमल का जल में तप करना स्वाभाविक है। चरणों की समानता प्राप्त करना वास्तविक फल नहीं है पर उसे मान लिया गया है, अतः यहाँ फलोत्प्रेक्षा है।

4. भ्रान्तिमान

जहाँ समानता के कारण एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो, वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है;

जैसे-
“पायँ महावर देन को नाइन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एड़ी मीड़ति जाय।।”

यहाँ नाइन को एड़ी की स्वाभाविक लालिमा में महावर की काल्पनिक प्रतीति हो रही है, अत: यहाँ भ्रान्तिमान अलंकार है।

5. सन्देह

जहाँ अति सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अनिश्चय की स्थिति बनी रहे अर्थात् जब उपमेय में अन्य किसी वस्तु का संशय उत्पन्न हो जाए, तो वहाँ सन्देह अलंकार होता है;

जैसे-
“सारी बीच नारी है या नारी बीच सारी है,
कि सारी की नारी है कि नारी की ही सारी।”

यहाँ उपमेय में उपमान का संशयात्मक ज्ञान है अतः यहाँ सन्देह अलंकार है। 6. दृष्टान्त जहाँ किसी बात को स्पष्ट करने के लिए सादृश्यमूलक दृष्टान्त प्रस्तुत किया जाता है, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है;

जैसे-
“मन मलीन तन सुन्दर कैसे।
विषरस भरा कनक घट जैसे।।”

यहाँ उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य में बिम्ब-प्रतिबिम्ब का भाव है अतः यहाँ दृष्टान्त अलंकार है।

7. अतिशयोक्ति

जहाँ किसी विषयवस्तु का उक्ति चमत्कार द्वारा लोकमर्यादा के विरुद्ध बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
सारी लंका जरि गई, गए निशाचर भाग।”

यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगने के पहले ही सारी लंका का जलना और राक्षसों के भागने का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन होने से अतिशयोक्ति अलंकार है।

8. विभावना

जहाँ कारण के बिना कार्य के होने का वर्णन हो, वहाँ विभावना अलंकार होता है;

जैसे-
“बिनु पग चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करै विधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी।।”

यहाँ पैरों के बिना चलना, कानों के बिना सुनना, बिना हाथों के विविध कर्म करना, बिना मुख के सभी रस भोग करना और वाणी के बिना वक्ता होने का उल्लेख होने से विभावना अलंकार है।

9. अन्योक्ति

जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य कर कही जाने वाली बात दूसरे के लिए कही जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
“नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास एहि काल।
अली कली ही सो बिंध्यौ, आगे कौन हवाल।।”

यहाँ पर अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया गया है अतः यहाँ अन्योक्ति अलंकार है।

10. विरोधाभास

जहाँ वास्तविक विरोध न होने पर भी विरोध का आभास हो वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है;

जैसे-
“या अनुरागी चित्त की, गति सम्झै नहिं कोय।
ज्यों ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय।।”

यहाँ पर श्याम (काला) रंग में डूबने से उज्ज्वल होने का वर्णन है अतः यहाँ विरोधाभास अलंकार है।

11. विशेषोक्ति

जहाँ कारण के रहने पर भी कार्य नहीं होता है वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
“पानी बिच मीन पियासी।
मोहि सुनि सुनि आवै हासी।।”

12. प्रतीप

प्रतीप का अर्थ है-‘उल्टा या विपरीत’। जहाँ उपमेय का कथन उपमान के रूप में तथा उपमान का उपमेय के रूप में किया जाता है, वहाँ प्रतीप अलंकार होता है;

जैसे-
“उतरि नहाए जमुन जल, जो शरीर सम स्याम”

यहाँ यमुना के श्याम जल की समानता रामचन्द्र के शरीर से देकर उसे उपमेय बना दिया है, अतः यहाँ प्रतीप अलंकार है।

13. अर्थान्तरन्यास

जहाँ किसी सामान्य बात का विशेष बात से तथा विशेष बात का सामान्य बात से समर्थन किया जाए, वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है;

जैसे-
“सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सुहाय।
पवन जगावत आग को, दीपहिं देत बुझाय।।”

उभयालंकार

जो शब्द और अर्थ दोनों में चमत्कार की वृद्धि करते हैं, उन्हें उभयालंकार कहते हैं। इसके दो भेद हैं

(i) संकर जहाँ पर दो या अधिक अलंकार आपस में ‘नीर-क्षीर’ के समान सापेक्ष रूप से घुले-मिले रहते हैं, वहाँ ‘संकर’ अलंकार होता है;

जैसे-
“नाक का मोती अधर की कान्ति से,
बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?”

(ii) संसृष्टि जहाँ दो अथवा दो से अधिक अलंकार परस्पर मिलकर भी स्पष्ट रहें, वहाँ ‘संसृष्टि’ अलंकार होता है;

जैसे
तिरती गृह वन मलय समीर,
साँस, सुधि, स्वप्न, सुरभि, सुखगान।
मार केशर-शर, मलय समीर,
ह्रदय हुलसित कर पुलकित प्राण।

पाश्चात्य अलंकार

हिन्दी साहित्य पर पाश्चात्य प्रभाव पड़ने के फलस्वरूप पाश्चात्य अलंकारों का समावेश हुआ है। प्रमुख पाश्चात्य अलंकार है-मानवीकरण, भावोक्ति, ध्वन्यात्मकता और विरोध चमत्कार। परीक्षा की दृष्टि से मानवीकरण अलंकार ही महत्त्वपूर्ण है, इसलिए यहाँ उसी का विवरण दिया गया है। मानवीकरण जहाँ प्रकृति पदार्थ अथवा अमूर्त भावों को मानव के रूप में चित्रित किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है;

जैसे-
“दिवसावसान का समय, मेघमय आसमान से उतर रही है।
वह संध्या-सुन्दरी परी-सी, धीरे-धीरे-धीरे।”

यहाँ संध्या को सुन्दर परी के रूप में चित्रित किया गया है, अत: यहाँ मानवीकरण अलंकार है।

अलंकार मध्यान्तर प्रश्नावला

प्रश्न 1.
‘सन्देसनि मधुबन-कूप भरे’ में कौन-सा अलंकार है? (उत्तराखण्ड समूह-ग भर्ती परीक्षा 2014)
(a) उपमा (b) अतिशयोक्ति (c) अनुप्रास (d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(a) उपमा

प्रश्न 2.
‘काली घटा का घमण्ड घटा’ उपरोक्त पंक्ति (राजस्व विभाग उ.प्र. लेखपाल भर्ती परीक्षा 20।ऽ)
(a) रूपक (b) यमक (c) उपमा (d) उत्प्रेक्षा
उत्तर :
(b) यमक

प्रश्न 3.
“अम्बर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी’ में कौन-सा अलंकार है? (राजस्व विभाग, उ.प्र. लेखपाल भर्ती परीक्षा 2015)
(a) श्लेष (b) रूपक (c) उपमा (d) अनुप्रास
उत्तर :
(b) रूपक

प्रश्न 4.
‘उदित उदय-गिरि मंच पर रघुबर बाल पतंग’ में कौन-सा अलंकार है? (छत्तीसगढ़ सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा 2013)
(a) उपमा (b) रूपक (c) उत्प्रेक्षा (d) भ्रान्तिमान
उत्तर :
(a) उपमा

प्रश्न 5.
‘खिली हुई हवा आई फिरकी सी आई, चली गई पंक्ति में अलं (यू.पी.एस.एस.सी. कनिष्ठ सहायक परीक्षा 2015)
(a) सम्भावना (b) उत्प्रेक्षा (c) उपमा (d) अनुप्रास
उत्तर :
(c) उपमा

प्रश्न 6.
“पापी मनुज भी आज मुख से, राम नाम निकालते’ इस काव्य पंक्ति में अलंकार है (यू.पी.एस.एस.सी. कनिष्ठ सहायक परीक्षा 2015)
(a) विभावना (b) उदाहरण (c) विरोधाभास (d) दृष्टान्त
उत्तर :
(c) विरोधाभास

प्रश्न 7.
“दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या सुन्दरी परी-सी धीरे-धीरे-धीरे।” उपरोक्त पंक्तियों में अलंकार है (उप-निरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) उपमा (b) रूपक (c) यमक (d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 8.
“तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।” उपरोक्त पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है? (उप-निरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) यमक (b) उत्प्रेक्षा (c) उपमा (d) अनुप्रास
उत्तर :
(d) अनुप्रास

प्रश्न 9.
‘अब रही गुलाब में अपत कटीली डार।’ उपरोक्त पंक्ति में अलंकार है (उप-निरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) रूपक (b) यमक (c) अन्योक्ति (d) पुनरुक्ति
उत्तर :
(c) अन्योक्ति

प्रश्न 10.
“पट-पीत मानहुँ तड़ित रुचि, सुचि नौमि जनक सुतावरं।” उपरोक्त पंक्ति में अलंकार है (उप-निरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) उपमा (b) रूपक (c) उत्प्रेक्षा (d) उदाहरण
उत्तर :
(c) उत्प्रेक्षा